सोमवार, अगस्त 23, 2010

सोमवार (२३.०८.२०१०) की चर्चा

नमस्कार मित्रों!

मैं मनोज कुमार एक बार फिर चिट्ठा चर्चा के साथ हाज़िर हूं। आज श्रावण का अंतिम सोमवार है, भोलेबाबा के भक्तों के लिए पूजा-अर्चना का महत्वपूर्ण दिन।

कल रक्षा बंधन का त्योहार है।

इस पुनीत पर्व के उपलक्ष्य पर

मैं आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।

तो आइए चर्चा शुरु करें।

 

मेरा फोटोरक्षा बंधन के दिन रक्षा सूत्र बांधा जाता है, ताकि भाई अपनी बहन की रक्षा करे। पर हम सब जिस परिवेश में जी रहे हैं, उस प्रकृति को नित दिन विनाश के कगार पर ले जा रहे हैं। तो ल्या हम इस रक्षा बंधन के दिन कुछ संकल्प ले सकते हैं? शब्द-शिखर पर~आकांक्षा जी हमें बता रही हैं वृक्षों को रक्षा-सूत्र बाँधने का अनूठा अभियान। पिछले कई वर्षों से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य कर रही एवं छत्तीसगढ़ में एक वन अधिकारी के0एस0 यादव की पत्नी सुनीति यादव सार्थक पहल करते हुए वृक्षों को राखी बाँधकर वृक्ष रक्षा-सूत्र कार्यक्रम का सफल संचालन कर नाम रोशन कर रही हैं।

उनके इस अभियान के पीछे एक रोचक वाकया है। जब एक पेड़ को उसके भूस्वामियों ने काटने की ठानी तो किस चातुर्य से उन्होंने इसे बचाया आप वह पूरा वाकया उनके पोस्ट में पढें पर इतना बताता चलूं कि इस सराहनीय कार्य के लिए उन्हें ‘महाराणा उदय सिंह पर्यावरण पुरस्कार, स्त्री शक्ति पुरस्कार 2002, जी अस्तित्व अवार्ड इत्यादि पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।

इस रक्षा बंधन के पर्व पर आइए धरती पर हरियाली को सुरक्षित रखकर हम जिन्दगी को और भी खूबसूरत बनाएंगे, कच्चे धागों से हरितिमा को बचाएंगे। आइए, रक्षाबंधन के इस पर्व पर हम भी ढेर सारे पौधे लगाएं और लगे हुए वृक्षों को रक्षा-सूत्र बंधकर उन्हें बचाएं।

डा. महाराज सिंह परिहारडा. महाराज सिंह परिहार अपना विचार-बिगुल बजाते हुए पूछ रहे हैं अन्नदाता पर गोलिया: किसानों पर अत्याचार क्यों ? कहते हैं एक ओर तो हम किसान को अन्नदेवता कहते नहीं थकते। वहीं दूसरी ओर किसान को समाप्त करने का कुचक्र जारी है। विभिन्न सरकारी अथवा गैरसरकारी योजनाओं के लिए किसानों की भूमि का जबरन अधिग्रहण किया जा रहा है। जब किसान इस अधिग्रहण का विरोध अथवा उचित मुआवजे की मांग करता है तो उसे गोलियों से भून दिया जाता है।

यह एक क्रूर सत्य है। यह रचना किसानों की विभिन्न समस्याओं के विभिन्न पक्षों पर गंभीरती से विचार करते हुए कहीं न कहीं यह आभास भी कराती है कि स्थिति बद से बदतर हो रही है।

मेरा फोटोबुढ़ापा : ‘ओल्ड एज’ - सिमोन द बउवा एक अंग्रेज़ी पुस्तक है जिसका अनुवाद अभी तक हिंदी में देखने में नहीं आया है। इस पुस्तक का सार-संक्षेप हिंदी पाठकों के बीच रखते हुए  कलम पर चंद्रमौलेश्वर प्रसाद कहते हैं भारतीय संस्कृति में वृद्धों का विशेष सम्मान होता था। समय के साथ परिस्थियाँ बदल गई और आज यह स्थिति हो गई है कि बुढ़ापा एक श्राप लगने लगा है। एक फ़्रांसिसी महिला चिंतक एवं साहित्यकार सिमोन द बुउवा ने इस विषय पर चिंतन करने के लिए कलम उठाई थी। सिमोन को लोग समझाने में लगे रहे कि बुढ़ापा कोई यथार्थ नहीं है। लोग युवा होते हैं - कुछ अधिक युवा या कुछ कम, पर कोई बूढ़ा नहीं होता।

बड़े ही रोचक ढंग से इस समीक्षा में प्रसाद जी ने विभिन्न पहलुओं पर बात की है। निष्कर्ष के तौर पर कहते हैं बुढ़ापे को एक नई दृष्टि से देखने की आवश्यकता है, एक ऐसी दृष्टि से जिसमें संवेदना है और बूढ़ों के लिए आदर व सम्मान का जीवन देने की आकांक्षा है।

इस आलेख में सार्थक शब्दों के साथ तार्किक ढ़ंग से विषय के हरेक पक्ष पर प्रकाश डाला गया है। विषय को गहराई में जाकर देखा गया है और इसकी गंभीरता और चिंता को आगे बढ़या गया है।मेरा फोटोसरोकार पर arun c roy लेकर आए हैं गीली चीनी! अरे इस चीनी का स्वाद चख कर देखिए, आंखें नम हो जाएंगी। कवि अरुण जब गीली चीनी को कल्पित करता है तो जैसे गीली चीनी के साथ मां को नहीं, खुद को भी उदास पाता है । इस संदर्भ में ही गीली चीनी कविता को देखा जा सकता है। कहते हैं

चीनी का
गीला होना
ए़क अर्थशास्त्र की ओर
करता है इशारा

यह कविता देशज-ग्रामीण और हमारे घर-परिवार की गंध से भरी हुई है। लीजिए इस गंध की सूंघ

वर्षो से नहीं बदल सकी
चीनी वाली डिब्बी
जो अब
हवाबंद नहीं रह गए
हवा खाते चीने के डिब्बे
गवाह हैं
हमारे बचपन से
जवा होने तक के

इस कविता में भाषा की सादगी, सफाई, प्रसंगानुकूल शब्‍दों का खूबसूरत चयन, जिनमें ग्राम व लोक जीवन के व्‍यंजन शब्दो का प्राचुर्य है। ये कवि की भाषिक अभिव्‍यक्ति में गुणात्‍मक वृद्धि करते हैं। कविता में भावुक करते शब्दों के प्रासंगिक उपयोग, लोकजीवन के खूबसूरत बिंब कवि के काव्‍य-शिल्‍प को अधिक भाव व्‍यंजक तो बना ही रहे हैं, दूसरे कवियों से उन्‍हें विशिष्‍ट भी बनाते हैं।

जब माँ ने
बेचे थे अपने गहने
हमारे परीक्षा शुल्क के लिए
गीली चीनी की मिठास
कुछ ज्यादा ही हो गई थी
माँ के चेहरे के उजास से
वर्षों बाद अब
चीनी तो गीली नहीं रहती
लेकिन
गीली रहती है
माँ की आँखें
गीला रहता है
माँ के मन का आसमान

यह कविता एक संवेदनशील मन की निश्‍छल अभिव्‍यक्तियों से भरा-पूरा है। जमीनी सच्‍चाइयों से गहरा परिचय, उनके कवि व्यक्तित्व की ताकत है।

 

 

आगे की चर्चा आज शॉर्टकट में …

अब आगे चर्चा शॉर्टकट में ही।

पोस्ट

एक लाइना

ब्लॉग / प्रस्तुतकर्ता

तन्हाई, रात, बिस्तर, चादर और कुछ चेहरे,....

खींच कर चादर अपनी आँखों पर ख़ुद को बुला लेती हूँ

काव्य मंजूषा पर 'अदा'

फिगर मेन्टेन करें हस्तपात मुद्रा से

किसी आरामदायक स्थान पर बैठ जाएं।

स्वास्थ्य-सबके लिए पर कुमार राधारमण

हरिशंकर परसाई के लेखन के उद्धरण

इस देश के बुद्धिजीवी शेर हैं,पर वे सियारों की बरात में बैंड बजाते हैं.

नुक्कड़ पर प्रमोद ताम्बट

मुंबई से उज्जैन रक्षाबंधन पर यात्रा का माहौल और मुंबई की बारिश १ (Travel from Mumbai to Ujjain 1)

यहाँ के इंफ़्रास्ट्रक्चर बनाने वाले कभी सुधर ही नहीं सकते।

कल्पनाओं का वृक्ष पर Vivek Rastogi

Geetnuma Ghazal

बेपरवाह- नशीली जुल्फें!

भीगा चेहरा,गीली जुल्फें!!

vilaspandit - a ghazal writer पर vilas pandit

जफा के कौर...

जो भी तूने दे दिया खाती रही अनामिका की सदायें ... पर अनामिका की सदायें ......

बोकारो में भयमुक्‍त होकर जीने में मुझे बहुत समय लग गए !!

वैसे तो बोकारो बहुत ही शांत जगह है और यहां आपराधिक माहौल भी न के बराबर है!

गत्‍यात्‍मक चिंतन पर संगीता पुरी

चल रहें दे !

आज रात भी है काली बहुत चाँद से भी तो चांदनी की सिफारिश  नहीं की है.

स्पंदन SPANDAN पर shikha varshney

रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर ***********

माँ के सारे गहने-कपडे तुम भाभी को दे देना

डॉ.कविता'किरण'( कवयित्री) Dr.kavita'kiran' (poetess) पर Dr. kavita 'kiran' (poetess)

वॉन गॉग

पेंटिंग की क़ीमत पाँच करोड़ डॉलर आंकी गई है!

Fine Arts पर चित्रकला विभाग एम्.एम्.एच. कालेज गाजियाबाद

बूँद बूँद से सागर....

अपनी कामवाली बाई को गुसलखाने धोने से मना कर देती हैं!

simte lamhen पर kshama

क्या आदमी है

बीबी की नजर में तो , नकारा है! गठरी पर अजय कुमार

तृप्त कामनाएं हैं ! चौमासै नैं रंग है !

करेंगे तृप्त या घन श्याम लौट जाएंगे !

शस्वरं पर Rajendra Swarnkar

नारी मन की थाह

खामोशी के सन्नाटे में, बस तुम्हारी ही आवाज़!

गीत.......मेरी अनुभूतियाँ पर संगीता स्वरुप ( गीत )

चन्दन वन में

अपने ह्रदय पुष्प बिछाती हूं मैं! कदम बढाओ तुम!!

मेरे भाव पर मेरे भाव

सर्कस की कलाबाजियां .....

सब तुम्हारी आँखों के सामने लाइव देखने को मिलेगा!

ज्ञानवाणी पर वाणी गीत

नेता जैसा पेट

देश तरक्की कर रहा है! सुधीर राघव पर सुधीर

‘लफंगे’ परिन्दे

इंसान बनना कुछ चाहता है और बन जाता है कुछ और!

राजू बिन्दास! पर rajiv

पीपली से रूबरू : कुछ बेतरतीब नोट्स-पहली किस्‍त

पीपली लाइव देख कर नहीं जी कर आए हैं।

गुल्लक पर राजेश उत्‍साही

बस! आज इतना ही। राखी पर एक बार फिर से शुभकामनाएं!

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18 टिप्‍पणियां:

  1. .
    कल.. यानि कि सूर्योदय के उपराँत वाले सोमवार के लिये भर-पेट होमवर्क परोस दिया मनोज जी ने..
    चन्द्रमौलेश्वर चाचा :) की पोस्ट अभी बाँची ही है, टिप्पंणी ऍप्रूवल ब्रेक के बाद..
    इस पहर बे-चा-रा मॉडरेटर क्यों डिस्टर्ब हो ? तब तक मैं भी एक जरा एक नींद सो तो लूँ..भला ?


    तो.. मिलते हैं, मोडरेटर जी की नींद खुलने के बाद :)

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  2. कई लिंक मिले जहां नहीं जा सका था ।सार्थक चर्चा ,आभार ।

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  3. शार्टकट और लांगकट दोनों चर्चा सुन्दर हैं। शार्टकट फ़्रेम से जरा बाहर हो गयी जैसे कोई बच्चा ट्रेक्टर ट्राली के पीछे बैठा नीचे पैर हिला रहा हो।

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  4. स्वास्थ्य-सबके लिए की पोस्ट लेने के लिए धन्यवाद। रक्षाबंधन की सारी पोस्ट आपने दिखा दी। अब कल के चर्चाकार क्या करेंगे,पता नहीं।

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  5. एक सार्थक चर्चा के लिए आपका आभार .. आप सबों को भी रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

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  6. हर बार की तरह सारगर्भित चर्चा……………चर्चा के नये नये सोपान यहीं देखने को मिलते हैं…………आभार्।

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  7. सुन्दर सार्थक चर्चा...
    कुछ देखें हैं,बाकी लिंक पर जाती हूँ...आपकी चर्चा ने उत्सुकता बढ़ा दी है,भले विस्तार में किया हो या संक्षेप में..

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  8. बहुत बढ़िया चर्चा ...लंबी और छोटी दोनों बेहतरीन ...आभार

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  9. आज की चिट्ठा चर्चा बहुत संतुलित और शानदार रही!

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  10. सिमोन को चर्चा में घसीटा :) बुढापा आभार प्रकट करता है :(

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  11. आज तो राखी की धूम है ब्लॉग पर ... राखी का पर्व मुबारक हो ...

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  12. आज का अंक बहुत गंभीरता लिए हुए है... किसानो की बात हो रही है.. बुजुर्गो की बात हो रही है... कविता भी है... लघु कथा भी हिया.. ग़ज़ल भी है.. सभी विधा का सुंदर समन्वय है... इस बीच अपनी गीली चीनी देख मन मिठास से भर आया... इस देश का चरित्र बदलने की साजिस हो रही है बाजार के जरिये... उसके शिकार हैं अपने बुजुर्ग अपने किसान.... नॉएडा को बसे ३० साल से ऊपर हो गए.. अभी भी ५०% शहर खाली है... किसान जिन्हें मुवाब्जा मिला था वे आज फक्ट्री में मजूरी कर रहे हैं... पैसे तो दारु में निकल गए... कहिये जब किसान नहीं रहेगा तो २०० रूपये भी आटा नहीं मिलेगा... गेहू अमेरिका से आएगा.... चिंतन को प्रेरित करती रचना .... सुनिती यादव जी को हमारी ओर से उनके पुनीत मिसन में शुभकामना...

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  13. बढ़िया और संतुलित चर्चा के लिए बधाई.मेरी चर्चा लेने के लिए आभार.

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  14. शॉर्ट कट लॉन्ग कट दोनों बेहतरीन हैं .

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