सोमवार, सितंबर 20, 2010

सोमवार की चर्चा (२०.०९.२०१०)

नमस्कार मित्रों!

मैं मनोज कुमार एक बार फिर सोमवार की चर्चा के साथ हाज़िर हूं। इसी सप्ताह हिन्दी दिवस था। तो दिवस को समर्पित करते हुए कुछ विद्वानों के विचार रखते हुए आज की इस चर्चा का शुभारंभ करते हैं।

मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिन्दी की इज़्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे

भारतेंदु और द्विवेदी ने हिन्दी की जड़ें पताल तक पहुँचा दी हैं। उन्हें उखाड़ने का दुस्साहस निश्‍चय ही भूकंप समान होगा। - शिवपूजन सहाय

हिंदी दिवस सरकारी तौर पर हिंदी को राजभाषा (राष्ट्रभाषा नहीं) के रूप में स्वीकार करने की सांविधानिक तिथि। भारत की विभिन्न बोलियों और भाषाओं में भिन्न्ता होने के बावज़ूद एकसूत्रता के तत्व मौज़ूद थे। जिसके रहते वे भारत के राष्ट्रीय एकीकरण में कभी बाधा बन कर नहीं उपस्थित हुईं। उनका घर एक ही था खिड़्कियां कई थीं। हिंदी में इन खिड़कियों के अंतस्संबंधों को परखने तथा क़ायम रखने की क्षमता है। इसीलिए हिंदी हिन्दुस्तान की अस्मिता है। हिंदी है तो हिन्दुस्तान रहेगा। इसके बग़ैर एक विखंडित संस्कृति के सिवा कुछ नहीं बचेगा।

मेरा फोटोजब शब्द मिलते हैं तो आपस में प्रेम और भाईचारा बढता है। कुछ इसी तरह के भाव लेकर साधना वैद जी इसकी परिणति से हमें अवगत करा रही हैं। कहती हैं

भावों की भेल,
आँखों का खेल,
शब्दों का मेल,
प्यार की निशानी है !
होंठों पे गीत,
नैनों में मीत,
पाती में प्रीत,
जोश में जवानी है !

सुदर्शन ने कहा था प्रेम स्वर्गीय शक्ति का जादू है। इसके द्वारा राक्षस भी देवता बन जाता है। वहीं स्वामी विवेकानंद ने कहा था प्रेम असंभव को संभव कर देता है। जगत्‌ के सब रहस्यों का द्वार प्रेम ही है।

मेरा फोटोहाल ही में दिल्ली और जोधपुर में डॉक्टरों की हड़ताल ने लोगो को दहला दिया। एक के बाद एक होती मौतों ने सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर क्या वजह है कि मौत से दो-दो हाथ करने वाले हाथों ने अपना काम छोड़ दिया है। देर रात आए एक मरीज की मौत हालांकि डॉक्टरों की लापरवाही नहीं थी। पर उत्तेजित परिजनों ने इसके लिए डॉक्टरों को दोषी ठहरा कर उत्पात मचाया। जिसका नतीजा अगले दिन हड़लात थी। रोहित जी जब बोलते हैं तो बिन्दास ही बोलते हैं पर आज बता रहे हैं डॉक्टर बोले तो …. ? 

कुछ सीधे से सवाल उठाते हुए पूछते हैं जब डॉक्टर जानते हैं कि उनकी जरा सी लापरवाही मरीजों की जान ले लेती है, तो क्या उन्हें हड़ताल करनी चाहिए। सरकारी अस्पतालों में गरीब औऱ निम्न मध्यम वर्ग के मरीज ज्यादा आते हैं। ऐसे में उनकी जान से खिलवाड़ क्यों। इतिहास से कुछ तथ्यों का हवाला देते हुए बताते हैं गुलाम भारत में पिछली सदी में एक महान जीव विज्ञानी हुए थे जगदीश चंद्र बसु। जिस कॉलेज में वो पढ़ाते थे, उसमें उनकी तनख्वाह अंग्रेज प्रोफेसरों से कम थी। इस अन्याय के खिलाफ उन्होंने भी विरोध जताया। वो भी एक दो दिन नहीं पूरे दो साल तक।  एक हाथ पर विरोध की काली पट्टी बांधी औऱ बिना तनख्वाह लिए पढ़ाते रहे। हार कर दो साल बाद अंग्रेजी सरकार झुक गई।

डॉक्टरों के अपने तर्क हैं, अपनी मांगे भी। पर इन सब पाटों में पिसता है आम भारतीय नागरिक। जान जाती है गरीब, निम्म औऱ मध्यम वर्ग की। ऐसे में बेबस औऱ लाचार समाज कैसे जानलेवा हड़ताल का समर्थन करे।

मेरा फोटोइसी पोस्ट पर बिहारी (बड़े) भाई कहते हैं “हम त बहुत सा बात कह चुके हैं..इसलिए अभी बस आपके बात से सहमति,असहमति अऊर कहें त बैलेंस बनाते हुए अपना हाज़िरी लगा रहे हैं.” दरअसल उन्हों ने भी एक पोस्ट इस विषय पर लगाई थी। शिर्षक था देवदूत। पढिए यहां।

इस पोस्ट को लगाने का उनका आशय शायद दिव्या जी के पोस्ट से रहा हो। पर पहले यह देखें कि दिव्या जी ने क्या कहा रोहित जी के पोस्ट पर “आज देश को ज़रुरत है एक जागरूक 'परशुराम' की जो अपने फरसे से चिकित्सकों को नेस्तनाबूद कर दे।” यह आक्रोश वाजिब है। डॉक्टरों पर हो रहे आत्याचार और नाइंसाफ़ी से क्षुब्ध होकर उन्होंने एक पोस्ट लगाया था और तमाम प्रश्न किया था। पेशे से डॉक्टर दिव्या जी ने आप डॉक्टर हैं या कसाई शीर्षक से एक पोस्ट लगाई थी। १४७ टिप्पणियों के साथ वहां काफ़ी विचार मंथन हुआ और चर्चा सफ़ल रही।

इस विषय पर अलग-अलग मत हैं। सबके पक्ष में कुछ तर्क, कुछ औचित्य और बहुत दम है।

My Photoअत्याचार की बात चली तो लगे हाथ आपको लिए चलते है शब्दकार पर जहां आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' प्रस्तुत कर रहे हैं सामयिक कविता : मेघ का सन्देश : --------संजीव सलिल'

देख अत्याचार भू पर.
सबल करता निबल ऊपर.
सह न पाती गिरे बिजली-
शांत हो भू-चरण छूकर.

प्रकृति पर भी निर्मम आत्याचार करने से हम बाज नहीं आ रहे। तभी तो तरह-तरह की प्राकृतिक आपदाओं का हमें सामना करना पड़ता है। और अग्र कवि हृदय हो ‘सलिल’ जी जैसा तो शब्दों का कमाल देखिए

तूने लाखों वृक्ष काटे.
खोद गिरि तालाब पाटे.
उगाये कोंक्रीट-जंगल-
मनुज मुझको व्यर्थ डांटे.

‘सलिल’ जी

आपने अपनी कविता में पर्यावरण पर हो रहे अत्याचार को लेकर कुछ जरूरी सवाल खड़े किए हैं। विगत कुछेक दशकों में हमारे पर्यावरण में जितने बदलाव आए हैं उसकी चिंता आपकी कविता में बहुत ही प्रमुख रूप में दिखाई देती है। हमने इस बदले वातावरण में जिस तरह से अपनी प्रकृति का दोहन और शोषण कर डाला है वह आपकी कविता में चिंता का विषय है। तभी तो आपका मेघ कहता है

गगनचारी मेघ हूँ मैं.
मैं न कुंठाग्रस्त हूँ.
सच कहूँ तुम मानवों से
मैं हुआ संत्रस्त हूँ.

मेरा फोटोजब मन संत्रस्त होता है तो उसके कुछ कारण भी होते हैं। ऐसे ही एक कारण पर ध्यान खींच रहे हैं चरैवेति चरैवेति पर अरुणेश मिश्र कहते उन्हें एक छन्द : त्यागने वाले मिले । देखिए इनकी जीवन के सच को बयान करती पंक्तियां।

सुमनोँ को मिला
जहाँ गन्ध पराग
वहाँ कण्टक
मतवाले मिले ।
कितनी बड़ी त्रासदी
है जग मेँ
अपनाकर
त्यागने वाले मिले ।

शब्द सामर्थ्य, भाव-सम्प्रेषण, संगीतात्मकता, लयात्मकता की दृष्टि से कविता अत्युत्तम हैं। जीवन के कटु यथार्थ को चित्रित करती कविता  नए आयाम स्पर्श कर रही है।

मेरा फोटोज़िंदगी के श्वेत पन्नों को न काला कीजिये परिकल्पना पर रवीन्द्र प्रभात की ये ग़ज़ल मेरी पसंद है।


ग़ज़ल
ज़िंदगी के श्वेत पन्नों को न काला कीजिये
आस्तिनों में संभलकर सांप पाला कीजिये।
चंद शोहरत के लिए ईमान अपना बेचकर -
हादसों के साथ खुद को मत उछाला कीजिये।
रोशनी परछाईयों में क़ैद हो जाये अगर -
आत्मा के द्वार से खुद ही उजाला कीजिये।
खोट दिल में हर किसी के यार है थोडी-बहुत
दूसरों के सर नही इल्ज़ाम डाला कीजिये ।
ताकती मासूम आँखें सर्द चूल्हों की तरफ ,
सो न जाये तब तलक पानी उबाला कीजिये।
जब तलक प्रभात जी है घर की कुछ मजबूरियाँ ,
शायरी की बात तब तक आप टाला कीजिये ।

आज बस इतना ही।

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38 टिप्‍पणियां:

  1. संक्षिप्‍त पर महत्‍वपूर्ण चर्चा !!

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  2. दो शब्‍द हिन्‍दी दिवस के बारे में कहना चाहूंगा। ये छल का दिन था : अंगरेजी हूकुमत से आजादी के सपने के साथ छल, उन सपनों को देखनेवाले करोड़ों देशप्रेमियों के साथ छल। संविधान में हिन्‍दी राजभाषा सिर्फ घोषित की गयी, सही अर्थों में बनायी नहीं गयी। क्‍योंकि, साथ में यह भी प्रावधान किया गया कि व्‍यवहार में राजभाषा के रूप में अंगरेजी का इस्‍तेमाल पहले की तरह जारी रहेगा। यदि शासकवर्ग के लिए भी ऐसा ही प्रावधान किया जाता, तब उन्‍हें कैसा लगता?

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  3. चर्चा बाँचकर बहुत आनन्द आया!
    --
    सभी अच्छे लिंक दिये हैं आपने!

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  4. अच्छी और नपी तुली चर्चा ,आभार ।

    जवाब देंहटाएं
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  8. बहुत संक्षिप्त और सुंदर चर्चा।
    हमारी भी आपत्ति दर्ज़ की जाए। हमें भी स्थान नहीं मिलता चर्चाओं में। इतनी उपेक्षित क्यों है राजभाषा हिन्दी।

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  9. हमेशा की तरह एक सार्थक चर्चा……………लिंक्स भी अच्छे मिले……………आभार्।

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  10. सार्थक चर्चा .... अच्छे लिंक्स मिले .......

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  11. @ रचना जी
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    बहुत अच्छी पोस्ट का लिंक दिया। एक चर्चाकार के रूप में इस असफलता को स्वीकर करता हूं।

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  12. @ रचना जी
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    ये ( charcha is limited to a section of choice) स्वीकार्य नहीं है। जब से यह कमेंट पढा है, मैं आपनी सारी चर्चाओं को खंगाल गया, इसी लिए देरी से आया।
    बहरहाल ये आपका अभिमत है, और अगली चर्चा करने के पहले, अगर करने की इच्छाशक्ति रही तो, इसे पुनः स्मरण करूगा।

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  13. @ रचना जी
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    कल. को अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो, (कल अनावश्यक उलझनों और शारीरिक अस्वस्थता, रीढ-कशेरुक व्यथा, के कारण अधिक देर नहीं बैठ सका नेट पर) मैं अपनी तरह के ब्लोग और ब्लॉगर्स को ही अधिक प्रश्रय देता आया हूं, देता रहा हूं। इसपर एक बार सलाह मिली थी कि कुछ स्थापित, जिन्हें आपने एलिट बुद्धिजीवी ब्लॉगर्स कहा है, को भी शामिल करने से चर्चा में संतुलन आएगा।

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  14. @ and it would benefit people like us if the comment box can be like fursatiya comment box where hindi translition is enabled

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    अनूप जी इस पर ध्यान देंगे।
    वैसे पिछली एक चर्चा में मैंने कुछ ब्लॉग्स जैसे आइना का ज़िक्र किया था जहां आसान विधि बताई गई है कि रोमन में टाइप कर हिन्दी, देवनगरी परिणाम कैसे प्राप्त किया जा सकता है।

    जवाब देंहटाएं
  15. सभी सुधि ब्लॉगर्स को अब तक किए गए हौसला आफ़ज़ाई के लिए आभार। आपके मार्ग दर्शन में, जितनी भी अल्प बुद्धि थी, प्रयास किया कि चर्चा को एक स्तरीय अयाम दे सकूं, किन्तु समयाभाव और शारीरिक अस्वस्थता के कारण अब और आपके साथ इस मंच पर रह पाना शायद संभव न हो सकेगा।

    जवाब देंहटाएं
  16. सार्थक, सर्वोत्तम और वेहद प्रशंसनीय चर्चा हेतु पुन: बधाईयाँ !

    जवाब देंहटाएं
  17. आपने मुझ अकिँचन की सराहना की कृतज्ञ हूँ ।

    जवाब देंहटाएं
  18. आपने मुझ अकिँचन की सराहना की कृतज्ञ हूँ ।

    जवाब देंहटाएं
  19. संक्षिप्त सही...पर बहुत ही सुन्दर चर्चा...
    अच्छे लिंक दिए आपने...
    बहुत बहुत आभार...

    जवाब देंहटाएं
  20. सुन्दर चर्चा...आभार...

    जवाब देंहटाएं

  21. आज सुबह ही यह चर्चा पढ़ी, शुरुआती कुछ लिंक्स ने ही विचलित कर दिया..
    पूरे दिन यही दिमाग पर छाया रहा, क्या इतना बुरा होता है, डॉक्टर होना ?
    इससे पहले कि बात कुछ आगे बढ़ाई जाये,
    आइये हम एक दूसरे से परिचय प्राप्त कर लें,
    मैंनें आज ही एक काला चश्मा ख़रीदा है, कृपया आप लोग भी ऎसा चश्मा पहन लें । ऎसे चश्मों से अँधेरे को देखना आसान हो जाता है, यदि कहीं रोशनी हो वहाँ भी अँधेरा देखने की ग़ुँज़ाइश बनी रहती है ।
    बात देखने की हो रही हो तो पहले बिन्दास जी से मिल लें, उन्हें देखने के लिये उनके ही प्रोफ़ाइल से दो लाइना उठा लाया हूँ ... गौर करें
    " rohit rohit Male media new delhi : new delhi : India
    मीडिया में हूं, जिसे आंख खोलने के साथ देखा..दाल-रोटी के लिए कुछ तो करना ही है..इसिलिए फिलहाल इसी लाइन में हुं " मैं समझता हूँ कि वह स्वयँ ही अपनी मज़बूरी बयान कर गये हैं, और शायद इसीलिये .. वह इ्स नामाकूल मीडिया लाइन के लिये फिलहाल समर्पित (?) हैं !
    इस नाते उनकी गैर-ज़िम्मेदार बयानदारी ज़ायज़ है । मैं स्वयँ और क्या लिखूँ, बिन्दास भाई,
    चिहाचर्चा के इसी पृष्ठ पर रवीन्द्र प्रभात की कुछ लाइनें दर्ज़ हैं, आप बस उन्हें ही देख लें..
    ज़िंदगी के श्वेत पन्नों को न काला कीजिये
    आस्तिनों में संभलकर सांप पाला कीजिये।
    चंद शोहरत के लिए ईमान अपना बेचकर -
    हादसों के साथ खुद को मत उछाला कीजिये।
    रोशनी परछाईयों में क़ैद हो जाये अगर -
    आत्मा के द्वार से खुद ही उजाला कीजिये।
    खोट दिल में हर किसी के यार है थोडी-बहुत
    दूसरों के सर नही इल्ज़ाम डाला कीजिये ..

    उल्लेखनीय है कि रवीन्द्र जी इसी दुनिया, इसी जम्बूद्वीपे भारतखँडे और इसी काल के रचनाकार हैं ।
    डॉक्टरों को लेकर बहुत सी बयानबाज़ी और ढेर सारे स्पष्टीकरण उछाले जा चुके हैं.. मैं अपनी एक टिप्पणी यहाँ पुनः दोहराना चाहूँगा ।
    " काश कि आदमीयत की बात करने वाले अपने सामने खड़े बँदे की आदम ज़रूरतों ( Basic Human needs ) को समझ पाते या हिँसक समूह के सम्मुख अपनाये जाने वाले आदम प्रतिक्रिया ( Human Reaction ) को समझ पाते ?
    काश कि आदमीयत की बात करने वाले यह समझ पाते कि समाज की आदमीयत में हम स्वयँ कहाँ हैं ?
    काश कि आदमीयत की बात करने वाले यह भी सोच पाते कि देवत्व का बलात अभिषेक कर देने मात्र से वह अपने कुकृत्यों पर देवताओं से श्रापित होने से बरी नहीं हो जाते ! काश कि वह अपने गढ़े हुये ऎसे देवताओं के कोप ( हड़-ताल ) के कारणों की पड़ताल या प्रायश्चित करने की क्षमता भी अपने में विकसित कर पाते । "
    ऎसे पोस्ट को सामने रखने के लिये मनोज जी बधाई के पात्र हैं ।

    जवाब देंहटाएं

  22. @ रचना जी, जहाँ ऎतना चर्चामँच सब मौज़ूद हो, आप भि एगो नारी-चर्चा काहे नहिं खोल लेतीं ?
    अपना स्वतन्त्र पहचान का लीए ईहाँ के पुरुशों से कुच्छौ सिकायत का कोनो फैदा नहीं है ।
    बकिया हम तो अपना बिलाग पर ट्राँसलिटेरेशन उटरेशन की ई सब सूबीधा तैय्यार रखा हूँ, आप एक्को बार उहौं त नहीं आयीं ?

    गोस्सा नहिं करीएगा, ह्म ई सब अईसहिं लीख दीए हैं । आपको हँसाने का लीए .. अईसहिं !

    जवाब देंहटाएं
  23. आउर सुनो अब नारी चर्चा मंच खोले का पड़ी , नारी ब्लॉग की चर्चा करवाए खातीर । का डॉ अमर इस सब चर्चा मंचन का पैदाइश अपने अपने ब्लोगन की चर्चा खातीर हीहुई हैं ।??अब पैदाइश मा कितनो दरद रहता हैं ई डाक्टर से बेहतर कौन समझे गा ।

    हम मुल्ला समझ बैठे थे की ई जो जगह जगह चर्चा होवे हैं उ मा अपने ब्लॉग का चर्चा करवाए खातीर टीप देने का पड़ी सो हीयाँ भी दए दी । अब आप तो मुल्ला अपने ऊपर हिया दुई दुई बार चर्चा करवाए चुके हो आप दुसरो का दरद नाहीं समझ सकत । कैसन डाक्टर हो ????

    गोस्सा नहिं करीएगा, ह्म ई सब अईसहिं लीख दीए हैं ।

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  24. @manoj
    i am sorry to have projected my thoughts rather bluntly , people here are used to it

    please accept my apology unconditional and do not stop your charcha because of my comment

    get well soon

    जवाब देंहटाएं
  25. @ मैंनें आज ही एक काला चश्मा ख़रीदा है, कृपया आप लोग भी ऎसा चश्मा पहन लें । ऎसे चश्मों से अँधेरे को देखना आसान हो जाता है, यदि कहीं रोशनी हो वहाँ भी अँधेरा देखने की ग़ुँज़ाइश बनी रहती है ।
    अभी इतना ही पढा है।
    हंसते-हंसते पगाल हो गया हूं
    आगे क्या लिखें आप पता नहीं
    इस लिए सोचा पहले इस पर दिल की बात लिख ही डालूं।

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  26. बढिया रंगबिरंगी कलरफ़ुल चर्चा। तबियत-उबियत सही कर लो भाई मनोज। हंसने-हंसाने की बात भी सुन्दर है लेकिन ये आने-जाने की बात का क्या मतलब है जी। :)

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  27. चोर से कहा कि चोरी कर आओ,
    सिपाही से कहा जाओ पकड़ लो
    हम अनूप जी के प्रश्न का समर्थन करते हैं, लेकिन ये आने-जाने की बात का क्या मतलब है जी :(

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  28. @ चोर से कहा कि चोरी कर आओ,
    सिपाही से कहा जाओ पकड़ लो
    अच्छा है।

    जवाब देंहटाएं
  29. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  30. चिट्ठा-चर्चा पर चर्चित ब्लोगर्स और सभी टिप्पणीकारों की रचनाधर्मिता को नमन!

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  31. मनोज जी,
    हमको लगता है कि बहुते देरी हो गया आने में... काहे कि हमरे आने के पहिलहीं एहाँ बहुत खून खराबा ( मजाक) हो चुका है.. (अजकल कोस्ठक में मजाक को मजाक लिखना जरूरी होता है)… डाक्टरी वाला बिसय त हम कुमार राधा रमन अऊर बहिन दिव्याके पोस्ट से लिए थे..हमरा कोसिस भी एही था कि हमरा बात संतुलित रहे, अऊर डाक्टरी जईसा पेसा को ठेस नहीं पहुँचे... दूनों घटना दू पहलू दर्साता है अऊर हमरा एकदम निजी अनुभव है...
    बाकी रहा चर्चा का बात अऊर नारि सक्ति का बात त बिना बैकग्राउण्ड जाने कुछ कहना मोस्किल है.. हाँ हिंदी में कमेंट जईसे सब लोग बिना ट्रांसलिटरेशन एनेबल किए दे रहा है वईसे कोई भी दे सकता है.. इसमें कोई बड़ा बात नहीं है...

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  32. साक्षात्कार.कॉम ने अपना नया पत्रकारिता नेटवर्क शुरू कर दिया है . आप प्रेसवार्ता.कॉम नेटवर्क से जुड़कर आप समाचार , लेख , कहानिया , कविता , फोटो , विडियो और अपने ब्लॉग को जन जन तक भेज सकते है . इसके लिए आपको प्रेसवार्ता.कॉम पर जाकर अपना एक प्रोफाइल बनाना होगा . प्रेसवार्ता.कॉम से जुड़ने का लिंक www.pressvarta.com है .
    सुशील गंगवार
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