कल की चर्चा में नीरज बसलियाल की टिप्पणी थी-
हम टिप्पणी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले गरीब ब्लोगरों को कितना राशन मिलेगा|टिप्पणी देखते ही लगा कि कुछ खास ग्राहक है। गये ब्लॉग तो देखा नाम है कांव-कांव। पीछे गये तो रामकथा - डेमोक्रेसी काण्ड दिखा जिसके नीचे डिक्लेमर था-(अगर इस कहानी के पात्र काल्पनिक है, तो ये वास्तविकता नहीं, बहुत बड़ा षड्यंत्र है|) लोगों की प्रतिक्रियायें से अंदाजा लगा कि बंदा बिंदास है और लेखन झकास।
नीरज गोस्वामीजी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुये इस पोस्ट के कुछ अंश छांट के धर दिये हमारी सुविधा के लिये:
1.आम चुनाव से चुने गए ख़ास आदमियों को ही शोषण का हक होगा
2.चश्मा उनके व्यक्तित्व से कुछ यों जुड़ गया था कि वे अब पर्दा गिराकर ही चश्मा उतारते थे|
3.फैसले का तो पता नहीं क्या हुआ , लेकिन 4.जज साहब को शाम को अपने कपाल पर अमृतांजन बाम लगाना पड़ा
5.कुलवंती थी या धनवंती ... पता नहीं, कल न्यूजपेपर में पढ़ लेंगे यार
6.यह मेड इन चाइना फोल्डेड कुटिया थी
7.इस देश में देशभक्ति बड़ी सस्ती चीज़ है , पाकिस्तान को चार गाली दो और देशभक्त बन जाओ|
8.राम को अर्धनिद्रा में लगा कि वे आडवाणी हैं और सुमंत अटल बिहारी, तो लक्ष्मण गडकारी|
9.भरत कह उठेंगे कि भरत का काटा हुआ तो चप्पल भी नहीं पहन पाता
नीरज जी ने आगे लिखा:
ये पोस्ट मुझे डा. ज्ञान चतुर्वेदी जी के व्यंग उपन्यास "मरीचिका" की याद दिला गयी...अगर आपने ये उपन्यास अभी तक नहीं पढ़ा है तो फ़ौरन से पेश्तर इसे खरीद कर पढ़ें..आपके लेखन को भी उसे पढ़ कर नयी धार मिलेगी ये मुझे विशवास है...
पोस्ट और उस पर आई टिप्पणियां देखकर नीरज बसलियाल से यही कहना है कि उनके जैसे लोग राशन की दुकान तक नहीं आते ,राशन खुद उन तक चलकर आता है उनकी जरूरत के हिसाब से बस वे चालू रहें।
नीरज की पोस्ट पर नीरज गोस्वामीजी की टिप्पणी पढ़ते हुये मुझे याद आया कि नीरज जी ने ज्ञान चतुर्वेदी का उपन्यास मरीचिका कुश को भेंट किया था। उसका परिणाम थी कुश के द्वारा लिखी कुछ बेहतरीन पोस्टें जिनमें से पहली पोस्ट का एक अंश है:
गुरुजी अपनी कुटिया से निकले.. पीछे पीछे दो चेले उनकी लॅपटॉप पट्टीका उठाए.. आ रहे थे.. सभी ब्लॉगर अपनी अपनी जगह पर खड़े हो गये.. और झुक कर गुरुजी को प्रणाम किया.. कुछ गुरुजी जी के प्रिय ब्लॉगर तो इतना झुके की नीचे ज़मीन पर बैठा एक कीड़ा उनकी नाक में घुस गया.. उनमे से एक आध ने तो ज़ोर से छींक कर उस कीड़े को वायु मंडल की नमी को सादर समर्पित किया..
गुरुजी ने सबको बैठने के लिए कहा.. और स्वयं अपनी लॅपटॉप पट्टीका खोलकर बैठ गये..
सभी ब्लॉगर सहमे हुए से बैठे थे.. की गुरुजी पता नही इनमे से किसकी ब्लॉग खोल कर शुरू हो जाए.. सबकी नज़रे गुरुजी के चेहरे पर टिकी थी..
कुश पता नहीं फ़िर कब इस स्टाइल में लिखेंगे दुबारा।
सतीश सक्सेनाजी ने तो अपनी राय रख ही दी:
ब्लॉग जगत में निर्मल हास्य या तो है ही नहीं या लोगों को हँसना नहीं आतायह पढ़ते हुये रागदरबारी के लेखक श्रीलाल शुक्ल जी बातचीत ध्यान आई। - उनका कहना था:
हमारा समाज ‘एन्टी ह्यूमर’ है। हम मजाक की बात पर चिढ़ जाते हैं। व्यंग्य -विनोद और आलोचना सहन नहीं कर पाते। हिंदी में हल्का साहित्य बहुत कम है। हल्के-फ़ुल्के ,मजाकिया साहित्य, को लोग हल्के में लेते हैं। सब लोग पाण्डित्य झाड़ना चाहते हैं। गांवों में जो हंसी-मजाक है , गाली-गलौज उसका प्रधान तत्व है। वहां बाप अपनी बिटिया के सामने मां-बहन की गालियां देता रहता है। लेखन में यह सब स्वतंत्रतायें नहीं होतीं। इसलिये गांव-समाज हंसी-मजाक प्रधान होते हुये भी हमारे साहित्य में ह्यूमर की कमी है।
इसी बीच जबलपुर में राष्ट्रीय कार्यशाला हो ली। इस मौके पर शानदार रिपोर्ट और जानदार कवरेज हुआ।
समीरलाल के वहां होते हुये इस कार्यशाला को केवल राष्ट्रीय कहना कुछ हजम नहीं हुआ। या तो बैनर ठीक से छपा नहीं या यह समीरलाल का कद कम करने की साजिश है। दोनों ही बातें गड़बड़ हैं। हैं कि नहीं? :)
पिछले दिनों एक और उल्लेखनीय कार्यक्रम हुआ। सीमा गुप्ता जी ने जानकारी देते हुये अपने ब्लॉग पर लिखा:
"अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन के छठे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में 23 - 30 November 2010 को उज़्बेकिस्तान की राजधानी "ताशकंत" में मेरे दुसरे काव्य संग्रह "दर्द का दरिया" का विमोचन DR. Lari Azad जी के हाथो संपन हुआ. आज ए.आई. पी.सी के गौरवशाली आश्रय के अंतर्गत मेरे दुसरे काव्य संग्रह का दो भाषाओँ हिंदी और उर्दू में एक साथ प्रकाशित होना किसी महान उपलब्धि से कम नहीं है.
सीमाजी को बहुत-बहुत बधाई।
फ़िलहाल इतना ही। बकिया फ़िर कभी। मिलते हैं ब्रेक के बाद।
कल की चर्चा में नीरज बसलियाल की टिप्पणी थी-
जवाब देंहटाएंहम टिप्पणी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले गरीब ब्लोगरों को कितना राशन मिलेगा|
टिप्पणी देखते ही लगा कि कुछ खास ग्राहक है।
महागुरुदेव, टिप्पणियों में बीपीएल तबके की तो आपने झट से सुन ली...और हम जैसे एपीएल में आने वालों की गुहार पर कोई कान नहीं धरा...
आप की दुकान पर बादाम रोगन भी मिलता है क्या...
जय हिंद...
आह ! पता नहीं, मेरी फुसफसी कविताओं को प्रकाशन कब होगा...इंडिया में ही हो तो भी बुरा नहीं लगेगा...गुप्ता जी को उज़्बेकिस्तान में मेरी ईर्ष्यालु नमस्ते
जवाब देंहटाएंअनूप जी मेरी इस उपलब्धि को यहाँ स्थान देने और आपकी शुभकामनाओ के लिए दिल से आभार.
जवाब देंहटाएंregards
हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंगिरीश बिल्लोरे
अनूप जी, बोलते रहें, हम भी थोडा हँसना-हँसाना सीख लें आपसे|
जवाब देंहटाएंकुश वाला लेख जानदार है, पता नहीं , बहुत दिन से कुछ लिख ही नहीं रहे हैं वो|
शुभकामनाएं,
प्रणाम
nice
सीमा जी को शुभकामनाएँ! वैसे ये बात तो सही है कि हमारे देश में हलके साहित्य को लोग हलके में लेते हैं.
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा बेमिसाल होती है ....बहुत अच्छे लिंक्स तक पहुँचने का मौका मिला ..आभार
जवाब देंहटाएंhttp://kabaadkhaana.blogspot.com/2010/12/blog-post_02.html
जवाब देंहटाएंand
http://kabaadkhaana.blogspot.com/2010/11/blog-post_2080.html
सचमुच अच्छा लिखते हैं नीरज बसलियाल जी .. उनको शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंअलग अन्दाज़ की सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंनीरज भाई को पढ़ आये है.. उत्तम लिखा है..
जवाब देंहटाएंबी पी एल चर्चा में हमें स्थान देकर आपने हमें महान बनाया है..
आपको प्रणाम
सागर, समझ नहीं आता कि मेरी कहानियों को पसंद करने के लिए, और उससे भी ज्यादा औरों तक पहुंचाने के लिए तुम्हारा किस तरह धन्यवाद करूँ, क्योंकि 'थैंक यू' तुम्हें पसंद नहीं है :) | वैसे आज मेरा जन्मदिन है, और आप सब लोग पुणे आकर चितले बंधू मिठाई वाले की काजू-कतली खाना चाहें, तो स्वागत है|
जवाब देंहटाएंनीरज जी, पुणे में कहाँ ? घोड़पड़ा या सोमवार पेठ या के ............ बुधवारपेठ !!!!!
जवाब देंहटाएंनीरज को यहाँ देखकर अच्छा लगा...उसे पढता आया हूँ पहले भी.........कल दो ओर नए लोगो का पढ़कर भला लगा था .....विभिन्नताये जेहन की पोलिश के लिए आवश्यक है.....ओर इस माध्यम को भी एक ताजगी देती है .....निरंतर लिखना एक आवश्यक आदत न हो ...पर निरंतर अच्छा पढना जरूर एक आवश्यक आदत होना चाहिए .....
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में जब ह्यूमर की बात चली है तो मुझे एक शख्स याद आता है जिसका जिक्र मैंने पहले अपनी एक चिटठा चर्चा में भी किया था .....वे है इ स्वामी ..उनके भीतर भी एक नैसर्गिक ह्यूमर है .....उनका लिखा कुछ दोबारा कोपी पेस्ट कर रहा हूँ...
पोस्ट थी......एक देसी एक बियर एक किस्सा
मैं बैठा कुछ देर तक प्रथम श्रेणी सीट की आरामदायक चौडाई महसूस करता रहा. “मैं इस आराम से अनुकूलित हो सकता हूं!” मैंनें सोचा.
मेरी मां ने एकबार पूछा था – “तू शराब पीता है?” ”धरती पर आम तौर पे छूता नहीं और आसमान में आम तौर पे छोडता नहीं” ..ये जवाव सुन कर मां मुस्कुराईं तो नहीं, पर वो निश्चिंत हो गईं थीं!
जब २२ घंटे की उडान के बाद मुझसे मिलने पहली बार भारत से यहां आईं तो बोलीं ‘इतनी लंबी और पकाऊ फ़्लाईट में तो कोई भी पीने लगे.. सारे पीने वाले जल्दी ही खर्राटे लेने लगे थे!’
हजारों मील हवाई धक्के खा चुकने के बाद, एयरलाईन्स वालों नें आज वफ़ादारी का सिला दिया, कोच श्रेणी में यात्रा करने वाले को मुफ़्त का प्रथम श्रेणी उच्चत्व प्राप्त हुआ था.. आम तौर पर सूफ़ी में रहने वाले नाचीज़ का फ़ील गुड एक ग्लास बीयर पी लेने के बाद और भी सेट होने लगा .. ये चिट्ठा लिखने के लिये आदर्श समय था.
मुझे नहीं मालूम इ स्वामी कौन है ...उनका असल नाम क्या है ....उलीचना कैसे कैसे गर शीर्षक हो तो .... कई लोग ऐसे उलीचते है के उनकी किस्सागोई दूर देश में कंप्यूटर खंगालते किसी भी शख्स के चेहरे पर मुस्कान ले आती है .....बरस भर पहले यही विचार आया था के किसी पोस्ट की उम्र २४ घंटे ही क्यों रहती है .अग्रीगेटर के ओक्सीज़न डिलीवरी पाइप सहारे टिकी हुई ... इ स्वामी कुछ ऐसा ही लिखते है ..के उनकी हिम्मत पर दाद देने को जी आता है ......दिलचस्प बात ये है के उनके एक कोलेज रीयूनियन के बोल्ड लेख को ढूंढते हुए मैंने सर्च मारी तो ..वो तो नहीं मिला पर बाकी बहुत कुछ मिला मसलन......बानगी देखिये.
जवाब देंहटाएंवो बोली इट्स ओके में वे
मनोहर श्याम जोशी तर्ज पर कुछ कह देते है .....
मसलन ....
”मुझे तुम पुरुषों पर कई बार तरस आता है.. आम तौर पर तो हमारा मुस्कुराना भर काफ़ी है, अगर हम किसी पुरुष को कोई निवेदन करते हुए जरा आत्मियता से कंधे पर थपथपा दें; ना भी चाह रहे हों, तब भी वो हमारा काम कर देते हैं. पर तुम लोग स्त्रीयों को अक्सर ऐसा वाला व्यक्तिगत स्पर्श नहीं दे सकते!”
“अरे यहां तो मुस्कुराने पर भी खलनायक हो चुकने का आभास दिया जाता है!”
वो हंसने लगी – “यस वी हैव द पावर..लेकिन पता है एक बार मैं एक ऐसे ग्रुप में फ़ंस गई थी जहां पर मैं अकेली महिला थी और समूह के पुरुष मुझे अपनी गैंग में स्वीकारने को तैयार ही नहीं थे, ये कंधा थपथपाने वाली आत्मीय स्पर्श भी तब काम नहीं किया! ”
“फ़िर क्या किया तुमनें?”
“मैनें अपने ब्वायफ़्रैंड से बात की और उसने एक लाजवाब ट्रिक बताई!”
“क्या?”
“जब मैं अपने समूह के मर्दों के साथ एक बडी टेबल पर बैठी काम कर रही थी और मुझे हवा सरकानी थी, मैंने बडे आत्मविश्वास से एक ओर झुक कर पूरे जोरदार ध्वन्यात्मक तरीके से काम सरेआम संपन्न किया.. सारे मर्द पहले तो चौंके और फ़िर क्या हंसे!.. गैंग ने तुरंत काम खत्म होने के बाद मुझे अपने साथ खाने पर आने की दावत दे दी!.. तुम पुरुष लोग कितने जंगली और ज़ाहिल होते हो – तुम्हारा बाण्डिंग का तरीका है ये?!”
“ये है खूबसूरत होने का फ़ायदा..अरे ये सोचो की हम कितने फ़रागदिल होते हैं!.. यही काम कोई पुरुष किसी महिलाओं के समूह में कर दे तो बेचारे का क्या हाल हो!”
“देखो डबल स्टैंडर्डज़ तो दोनो तरफ़ हैं!”
ओर हाँ नीरज को जन्मदिन की शुभकामनाये ...........पर हमारे यहाँ इसे मनाने की रवायत दूसरी है
जवाब देंहटाएंनीरज को जन्मदिन की शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी बड़ी धारदार है इससे जो कटता है उसे तो मजा ही आ जाता है
जवाब देंहटाएंचर्चा में पुरानी धार सलामत है .बढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंबन्दा जबरदस्त है मगर बुकमार्क नहीं -कैसे पता लगेगा जब ये लिखेगा
जवाब देंहटाएंaap se hisab kitab bad me karenge(padhne aur tipne) ke pahile daktar babu ke isare par nazar
जवाब देंहटाएंmar ke aata hoon.......
pranam.
ई कवित्री सम्मेलन में आज़ाद साब लारी लिए क्यों खडे हैं :)
जवाब देंहटाएंआभार
जवाब देंहटाएंरपट की लिंकिंग हेतु
post to manbhawan hai hi.....slide show ne
जवाब देंहटाएंkalkata ke bhoole din yaad karaye.........
pranam
बढ़िया चर्चा, टिपण्णीयाँ भी शानदार आई. सागर के पेठ देख रहा हूँ :) दूकान खुली रखिये.
जवाब देंहटाएंजा रही हूं, नीरज जी के लिंक पर. अनुराग जी, कमेंट बॉक्स में पोस्ट( ई-स्वामी की) पढवाने के लिये शुक्रिया :)
जवाब देंहटाएंबड़े दिनों बाद यह धारदार चर्चा फिर दिखी है.अच्छा लगा.आते रहिएगा.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा ?
अभी ठीक से तो नहीं पढ़ी,
बस नब्ज़ भर टटोली, यह तो तय है कि इसमें जान है !
समीर भाई की पैरोकारी में बस इतना कहना चाहूँगा कि
स्वर्गादपि गरीयसी भारत-भूमि पर पग धरते ही वह नेशनल हो जाते हैं
( इसे मेरा अनाधिकारिक स्पष्टीकरण समझा जाये )
आज कि पोस्ट आपने गंभीर मूड में लिख दी, मगर अच्छी लगी ! दूकान पर ऐसे ही बैठने लगो तो फिर चल निकलेगी ! हम जैसे कस्टमरों को मूंगफली फ्री खिलाया करो ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
प्रणाम
ब्लॉग जगत में निर्मल हास्य या तो है ही नहीं या लोगों को हँसना नहीं आता
जवाब देंहटाएं# हमारा समाज ‘एन्टी ह्यूमर’ है। हम मजाक की बात पर चिढ़ जाते हैं। व्यंग्य -विनोद और आलोचना सहन नहीं कर पाते।
# हिंदी में हल्का साहित्य बहुत कम है। हल्के-फ़ुल्के ,मजाकिया साहित्य, को लोग हल्के में लेते हैं। सब लोग पाण्डित्य झाड़ना चाहते हैं।
# गांवों में जो हंसी-मजाक है , गाली-गलौज उसका प्रधान तत्व है। वहां बाप अपनी बिटिया के सामने मां-बहन की गालियां देता रहता है। लेखन में यह सब स्वतंत्रतायें नहीं होतीं। इसलिये गांव-समाज हंसी-मजाक प्रधान होते हुये भी हमारे साहित्य में ह्यूमर की कमी है
ये किसने कह दिया कि हिंदी ब्लॉग पर "साहित्यकारों वो भी हिंदी के " का अधिकार हैं . हिंदी मे ब्लॉग लिखने वाले अहिन्दी भाषी भी हैं और जिनके लिये हिंदी साहित्य कि नहीं मात्र बोल चाल कि भाषा हैं . टंकण कि सुविधा मिल गयी , सो हिंदी मे लिख दिया . गीत , ग़ज़ल , कहानी और भी ना जाने क्या क्या लिखा जा सकता हैं क्युकी ये ब्लॉग माध्यम का उपयोग मात्र हैं . वैसे ब्लॉग केवल और केवल एक डायरी ही है जिस मे समसामयिक बाते जयादा होती हैं .
निर्मल हास्य कि परिभाषा स्थान से स्थान पर बदलती हैं . जिनकी परवरिश गाव और देहातो मे नहीं हुई हैं वो गोबर से होली खेलने को "गंदगी "कहते हैं जबकि गाव मे और कुछ ना मिले तो गोबर ही सही .
कुछ लोग ब्लॉग पर मुद्दे पर लिखते हैं तो कुछ लोग सर्जनात्मक . मुदे पर बहस हो सकती हैं लेकिन किसी कि सर्जनात्मकता पर नहीं . हां देखना ये हैं कि एक दूसरे के ऊपर तारीफ़ कि पोस्ट लगा लगा कर निर्मल हास्य को कब तक मुद्दा बना कर कौन कितना लिख सकता हैं . निर्मल हास्य का फ़ॉर्मूला या कहले कल्ट से जल्दी ही ऊब जायेगे लोग