शब्द शब्द होते है ...उन्हें किसी लिबास की आवश्यकता क्यों......न किसी नेमप्लेट की.......कभी कभी उन्हें गर यूं ही उधेड़ कर सामने रखा जाए तो......
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(एक)
हर दिन की तरह, अल्सुबह की नरमी आँखों में भारती रही, दोपहर का सूरज चटकता रहा और सुरमई शाम का जाता उजाला स्वाद बन जीभ पर तैरता रहा.. जिस बीच कई दिनों से खुद से लापता रहने के बाद मौसम के चेहरे पर खुशियाँ तलाशने में जुटना और इस कवायद में एक स्वप्निल जगह का बनना और ठहर जाना.. सब कुछ के बावजूद खुद को पा लेने वाले अपने ही अंदाज़ में. लेकिन खुद को पाना कभी खुद से लापता रहने वाली लुका छिपी के बीच वाली जगह में अभिवादन और खेद सहित लौटी - लौटाई गयी इच्छाएं ठूस-ठूस कर एक नुकीले तार में पिरोकर टांग दी गयी थी... मजबूत, कमज़ोर, छोटी, बड़ी, इस या उस तरह की.. अब यदि उनमे से किसी एक इच्छा को उतार कर निकलना फिर टटोलने का मन हो तो बाकी को भी उतारना और फिर उन्ही रास्तों, पतझड़ी मौसम की उदासियों की तरह गुज़ारना होता, सच के झूट में तब्दील होता एक पहाड़.. जहाँ तक हांफते हुए दौड़ना, पहुंचना फिर लौटना.. सांसो की आवा-जाही के साथ तार से बिंधी इच्छाओं को उतारना- संवारना... एक कातर नज़र डालना और पलटकर फिर टांग देना
(दो)
क्या किया जाना है?
आवेदनपत्र भरो
और नत्थी करो बायोडाटा
जीवन कितना भी बड़ा हो
बायोडाटा छोटे ही अच्छे माने जाते हैं.
स्पष्ट, बढ़िया, चुनिन्दा तथ्यों को लिखने का रिवाज़ है
लैंडस्केपों की जगह ले लेते हैं पते
लड़खड़ाती स्मृति ने रास्ता बनाना होता है ठोस तारीख़ों के लिए.
अपने सारे प्रेमों में से सिर्फ़ विवाह का ज़िक्र करो
और अपने बच्चों में से सिर्फ़ उनका जो पैदा हुए
(तीन)
आज लिखने बैठा तो कुछ प्रश्न मन में आये - मैं क्यों लिखे जा रहा हूँ?
बाउ के बहाने पूर्वी उत्तरप्रदेश के एक निहायत ही उपेक्षित ग्रामक्षेत्र की भूली बिसरी गाथाओं की कथामाला हो या सम्भावनाओं की समाप्ति के कई वर्षों के बाद बीते युग में भटकता प्रेम के तंतुओं की दुबारा बुनाई करता मनु हो, मैं क्यों लिखे जा रहा हूँ?
मैं वर्तमान पर कहानियाँ क्यों नहीं लिख रहा?
अंतिम प्रश्न - जाने कितनों ने ऐसे विषयों पर लिख मारा होगा, तुम कौन सा नया कालजयी तीर चला रहे हो?
उत्तर भी आये हैं - तुम इसलिए लिख रहे हो कि लिखे बिना रह ही नहीं सकते। कभी वर्तमान पर भी लिखने लगोगे। कहानियाँ समाप्त कहाँ होती हैं?
लिखते हुए सोचा बस है, तुम और इंटेलेक्चुअल हो गई होगी। आयु, परिवेश, सहचर और बच्चों के प्रभाव तुम पर पड़े होंगे क्या? इसे पढ़ोगी भी? पत्र है यह? कहाँ अटके हो मनु? – यह सब तुम्हारे मन में आएँगे क्या?
कभी कभी बहक किसी को भीतर तक हिला जाती है। दादा! बहकने वालों को पता ही नहीं होता और दूसरों के रास्ते खो जाते हैं...
(चार)
साँसें बारीक काटकर
भर लें आ
सौ सीसियों में..
"ऊँची ऊँचाई" पर जब
हाँफने लगें रिश्ते
तो
उड़ेलना होगा
फटे फेफड़ों में
इन्हीं सीसियों को
होमियोपैथी की खुराक
देर-सबेर असर तो करेगी हीं!!
(पांच )
बाँध लो कस के सीट बेल्ट अपनी
रास्ते में बहुत ही मिलते हैं
तेज झटके एस्टेरॉयड से,
देख लो बस यहीं से बैठे हुए
दूर से तुम शनी के वो छल्ले
अगर छू दोगी उन्हें तुम जानां
उनकी औकात बस रह जायेगी
एक मामूली बूम रिंग जितनी,
बहुत तारीक़* सी सुरंगें हैं
आगे जा कर ब्लैक होलों की
डर लगे गर..मुझे पकड़ लेना,
ध्यान देना कहीं इसी ज़ानिब
एक आवाज़ का ज़जीरा है
पिछले साल के उस झगडे में
तुमने दी थीं जो गालियाँ मुझको
सब सुनाऊंगा, झेंप जाओगी,
ये ‘स्टॉप’ पहले आसमां का है,
सात आसमानों के सात स्टॉप होते हैं,
ये जो नेब्युला* देखती हो ना
ये हामिला सी लगती है
एक तारे का जन्म होगा अब,
बहुत ही दूर निकल आये हैं
चलो अब लौट ही चलें वापस
जिया सालों की ये जो दूरी है
चंद मिनटों में तय हो जाती है
खयाली कार से अगर जाओ,
अब तो वापिस ही लौट आये हैं
ज़रा देखो न सफर में अपने
चाँद भी जम गया है शीशों पर
ज़रा ठहरो एक घडी तुम भी
ज़रा ये वाइपर चलाने दो.... !
(छह )
(सात )
विकिलीक्स जैसा कुछ करने के लिए मंशा चाहिए। वह हमारी नहीं है। हम किसी भी सच्चाई से ज्यादा खुद से प्यार करते हैं – यह सच है। और विकिलीक्स माध्यमों (प्रिंट, ध्वनि, टीवी, वेब) का मसला नहीं है – वह सच्चाई से कुर्बान हो जाने की हद तक प्यार करने का मसला है। ये जिद जब किसी में आएगी, तो वह किसी भी माध्यम का इस्तेमाल करके विकिलीक्स जैसा काम कर जाएगा।
हमारे यहां और हमारे पड़ोस में कई सारी ऐसी चीजें हैं, जिसके दस्तावेजों को खोजा जाना चाहिए। बल्तिस्तान का मसला, कश्मीर पर सियासी फायदों से जुड़े रहस्य, मणिपुर को लेकर सरकारी पॉलिसी, युद्धों में आदेशों की फाइलें, गुजरात, 26/11… हमारे सामने किसी का भी पूरा सच मौजूद नहीं है। हमारे टेलीविजन सरकारी जबान को ही सच मानते हैं और जो सूत्रों से जानते हैं, उनमें विस्मयादिबोधक चिन्ह लगाते हैं। अपनी तरह से सच तक पहुंचने की जहमत नहीं उठाते।
एक बात यह भी है कि हम गरीब देश हैं और हमारे यहां अपनी दिलचस्पियों के साथ वयस्क होने की इजाजत नहीं है। हम दूसरों की उम्मीदों के हमदम होते हैं और हमारी ख्वाहिशों का कोई मददगार नहीं होता। हम हिंदी पढ़ते-पढ़ते साइंस पढ़ने लगते हैं। पत्रकारिता करते करते पीआर करने लगते हैं और आंदोलन करते करते संसद खोजने लगते हैं। ऐसे में कौन बनेगा जूलियन असांजे, एक अजीब सवाल है और फिलहाल तो विकल्प गिनाने के नाम पर दूर दूर तक कोई प्रतीक भी नहीं है।
चलते चलते-
चिठ्ठा चर्चा के एक बेहद गंभीर पाठक फिलहाल गले के केंसर के ओपरेशन के बाद अस्पताल में है ...अपने जीवट व्यक्तित्व ओर लगभग निडर स्वभाव के मुताबिक उन्होंने केंसर से भी दो दो हाथ कर लिये है.....उन्हें अच्छी फिल्मे देखने का बेहद शौंक है ....उनके स्वास्थ्य की बेहतर शुभ कामनायो सहित .......विश्व सिनेमा की एक बेहतरीन फिल्म का एक द्रश्य डॉ अमर कुमार के वास्ते
फिलहाल तो अमर जी जल्दी से ठीक हो जाए ... उनके लिए अटल जी की "मौत से ठन गयी" डेडीकेट करना चाहूँगा .. बाकी फिर से आता हूँ.
जवाब देंहटाएंडॉ अमर कुमार जी को ईश्वर शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करे.शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंचलते चलते देखकर चिटठा चर्चा के बारे में कुछ कहने का अभी मन नहीं ,
जवाब देंहटाएंगेट वेल सून, अमर जी |
अमर जी के अति शीघ्र स्वास्थ्य कामना के साथ.
जवाब देंहटाएंpadhna suru karte hi samajh gaya charcha kis gali
जवाब देंहटाएंka ho raha hai....kasam se...
o vartman par bhi likhne lagenge ..... ye aap ke
viswas se hamara viswas aur gahra hua hai.......
wikiliks jaise blogiliks me bhi hone ke chanses hain .... doosron ke bare to kah nahi sakta ....
bas aap thore se thora khud jor laga den .......
ek pathak ki haisiyat se hamne 'apne gambhir pathak' ko apna guruwar banane ka peshkash kiya
lekin sayad o hame apne sisya ke star par nahi paye .... yse ye khabar satish bhaijee ne dekar
shokked' kar diya tha ....lekin unke jannewale
jante hai ke o 'anand ke anand hi hain' unko
sighra swasht hone ka mangalkamna karta hoon...
aur apko sadar pranam.
अमर कुमार जी को ईश्वर शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करे.शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंडॉ. अमर कुमार मैं आपको बहुत पसंद करता हूँ इसलिए सुन कर शोक्ड हूँ. मेरा शब्दों का ज्ञान एकाएक बुझ गया है. जो लिखना चाहता हूँ वह अव्वल तो सूझ नहीं रहा और जो सूझता है उसको शब्द नहीं मिल रहे. मैं बहुत दूर रहता हूँ वरना अब तक आपके पास पहुँच चुका होता. इस समय इटेलिक टिप्पणियां मेरे मस्तिष्क में घूम रही है. तीखे किन्तु जीवाणुरोधी वाक्यों की स्मृति भी हो आई है. आप स्वस्थ हो जाएँ यही कामना है.
जवाब देंहटाएंडॉ. अनुराग साहब के साहित्यिक सरोकारों के इतर इन सामाजिक संवेदनाओं के प्रति आभार. शुक्रिया चिट्ठाचर्चा !
कहने वाले कहते है ब्लोगों में उस अदम्य बैचेनी का अभाव दिखता है ..जो पिछले दो सालो में था.......मुझे हर कंप्यूटर एक केलिड़ोस्कोप नजर आता है...अपने अपने समान्तर कई रेखा चित्रों समेत ...समय ओर हालात में उलझा एक पात्र दूसरे किसी यथार्थ को यूटोपिया कह सकता है .....कुछ दिन पहले किसी ने मुझसे कहा था बहुसंख्यक पाठक अक्सर रचनाकारों के नाम पढ़कर अपनी राय बनाते है ..शब्द नेपथ्य में रह जाते है ........बात में मेरी सहमति थी ...सो सोचा कुछ पढ़े हुए का हिस्सा बाँट दूंगा ...
जवाब देंहटाएंपोस्ट क्रमश: विधु जी ,कबाडखाना ,गिरिजेश राव ,विश्व दीपक ,स्वप्निल ,चित्र रविश के क़स्बा ब्लॉग से ओर विकिलीक्स से सम्बंधित पोस्ट अविनाश के मोहल्ला ब्लॉग से लिए गए है
फिल्म दरअसल इरानी फिल्मकार अब्बास किरोस्तामी की फिल्म है ....फिल्म एक आठ साल के ऐसे बच्चे को लेकर है .जो गलती से अपने दोस्त की नोट बुक अपने बस्ते में ले आया है उस बच्चे की नोट बुक जिसे चेतावनी मिल चुकी है के अगली बार गर उसने काम पूरा नहीं किया तो उसे स्कूल से निकाल दिया जाएगा ....अपने दोस्त की उस नोट बुक को वापस करने के लिए वो घर से चुपचाप निकलता है ....ये जाने बगैर के उसके दोस्त का घर कहाँ है ....
गिरिजेश जी की तरह सभी में लिंक होता तो और भी अच्छा होता। चर्चा का यह नया अंदाज अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंअमर जी के लिये जल्द पूर्ण स्वास्थय लाभ की शुभकामनायें सहित,अच्छी चर्चा के लिये आभार।
जवाब देंहटाएंअमर कुमार जी को शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा
जवाब देंहटाएंडॉ अमर कुमार को शीघ्र स्वास्थ्यलाभ मिले
बेहतरीन चर्चा ....लिंक्स भी होते तो ब्लोग्स तक पहुंचा जा सकता था ..
जवाब देंहटाएं@देवेन्द्र जी .@संगीता जी ..लिंक लगा दिए गए है ....
जवाब देंहटाएंअमर जी अस्वस्थ हैं और वह भी इस तरह...यह शाकिंग है...
जवाब देंहटाएंईश्वर उन्हें शीघ्र पूर्ण स्वस्थ लाभ कराएँ...
आपके चर्चा की क्या कहूँ ?????
अमर जी शीघ्रातिशीघ्र स्वस्थ हों, ईश्वर से यही कामना है।
जवाब देंहटाएंडॉ अमर कुमार जी को ईश्वर शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करे.शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंअनुराग सर ..
जवाब देंहटाएंकवितायें सभी उम्दा लगीं ....विश्वदीपक जी की कविता छोटी होने के बावजूद प्रभाव छोडती है ..और अगर शिम्बोर्स्का की कविता की बारे मैं कुछ कहूँगा तो कम ही होगा...
विकिलीक्स आज का एक बड़ा मुद्दा है ...सलिल सर ने कहा था किसी दिन .. 'व्यवस्था की आराजकता का ज़वाब सूचना की आराजकता हो सकती है' ..असांजे उसी आराजकता की नायक हैं..और अभी तो लोगों को पसंद भी आ रहे हैं...
डॉ. अमर के बेहतर स्वास्थ्य के लिए शुभकामनायें मेरी ..
और फिल्म 'वेयर इज द फ्रेंड्स होम' देखने की इक्षा भी हो रही है..ढूँढने की कोशिश करूँगा ..इरानी फिल्मों में माजिद मजीदी की फ़िल्में ही देख पाया हूँ बस ... मेरी रचना को इस मंच के योग्य समझा आपने ... :) अच्छा लगा ...
सादर
पोस्ट को आँखों से नापते हुए आखिरी मे डॉ अमर की बीमारी की बात ने शॉक्ड किया..मगर उनकी जीवटता आश्वस्त करती है..कि ऐसे बंदे का कोई कुछ बिगाड़ नही सकता..हाँ बीमारी को ही बोल्ड और इटेलिक अक्षरों मे बेइज्जत होना पड़ेगा..आमीन है!
जवाब देंहटाएंलिंक तो कहने की जरूरत नही कि सारे ही अच्छे हैं..खासकर विधु जी और विश्वदीपक जी को यहां देख खुशी हुई..दोनो लेखकों की कलम की बेपनाह स्केल से ज्यादा से ज्यादा पाठकों का तअर्रुफ़ होना जरूरी है..
वीडियो लिंक के बारे मे कुछ नही कहूँगा..गला भर आता है..क्यारोस्तामी को अपने भीतर इकट्ठा होते रहने देना चाहता हूँ अभी..उफनने देना चाहता हूँ..
और हाँ चर्चा का यह ’ब्लाइंड-डेट’ इश्टाइल नया और भला सा लगा! ;-)
जवाब देंहटाएंदो दिन पहले इसे देखा। तब से अब तक सारी पोस्टें पढ़ने में लगा रहा। अब लिख रहा हूं बेहतरीन चयन। सुन्दर।
जवाब देंहटाएंडा.अमर कुमार के परिवार से बातचीत हुई थी। वे जल्द ही स्वस्थ होंगे। आमीन!
शिम्बोर्स्का की कविता अभी हफ्ते भर पहले ही नीरा जी से शेयर की थी... इसकी कुछ लाइन जहाँ बेहद अच्छी लगी वहीँ कुछ विमर्श के लायक भी हैं... कुछ से असहमति है या शायद मेरा कम ज्ञान.
जवाब देंहटाएंरवीश कुमार मुझे बहुत पसंद है, कम से कम ईमानदारी से कुछ बात कह जाते हैं, कई बार बेहद निराशा भरी बातें भी और लोग कहते हैं बिहारी पत्रकार की अपनी लॉबी होती है. खैर...
विकिलीक्स को देखादेखी भी अपने यहाँ कोई कर ले तो बहुत बड़ी बात होगी...
स्वप्निल अपने दायरे में प्रयोग करते दीखते हैं, अनुसाशन के साथ 'खेलते' हुए उन्हें कई बार देखा है. ये सुखद है, दिलचस्प भी.. कम से कम तुक मिलाने शायरी करने से तो अच्छा है. थोक के भाव शेर लिखे जा रहे हैं पर याद कुछ भी नहीं रहता.
चलते-चलते नई बात पर आज ही एक कविता आई है ... ऐसी की कविता का उद्दयेश को परिभाषित कर दे ... ज़रा देखें
http://nayibaat.blogspot.com/2010/12/blog-post_24.html
अंत में, यह ऑडियो फाइल पोस्ट आपके लिए
http://artofreading.blogspot.com/2010/07/blog-post.html
@sagar...नयी बात पर ये पढ़ ली थी पर दूसरा लिंक अमोल है .........तुमने मेरी शाम को खुशनुमा कर दिया .डॉ साहब को भेजूंगा ....उनकी पसंद भी ऐसे ही
जवाब देंहटाएंकिस्सागो
लोग है ....
ये चर्चा जिस खूबसूरती के साथ शुरू हुई अंत ने उतना ही हतप्रभ कर दिया। डा० अमर की खबर ने एकदम से चौंका दिया है। शुक्र है कि वो सकुशल हैं। कुछ दिनों पहले ही उन्होंने मुझसे मेरा फोन नंबर लिया था और अब अफसोस हो रहा है कि उसी समय मैंने भी उनसे क्यों नहीं ले लिया उनका नंबर। आपके पास तो होगा ही, काल करता हूं अभी आपको।
जवाब देंहटाएंचर्चा का आपका अंदाज हमेशा से भाता है मुझे। चिट्ठा-चर्चा को वाकई नया रंग मिला आपकी कलम से डा० साब