शनिवार, दिसंबर 25, 2010

आज हम एक उतावले समय में जी रहे हैं

आज 25 दिसंबर है। क्रिसमस का त्योहार मनाया जा रहा है दुनिया भर में। पूरा यूरोप कुड़कुड़ा रहा है मारे बर्फ़ानी माहौल के। जिधर देखो उधर बर्फ़ नजर आ रही है। सड़क पर बर्फ़, छतों पर बर्फ़, गाड़ियों पर बर्फ़, हवाई जहाजों पर। जिधर देखो उधर बर्फ़। काश इस बर्फ़ को संजों कर रखा जा सकता और फ़िर गर्मी के मौसम में निकाल दिया जाता थोक के भाव।

बहरहाल सभी को क्रिसमस की शुभकामनायें देते हुये मामला आगे बढ़ाते हैं। आइये आप भी साथ चलिये न! लेकिन चलने के पहले आप ये समाचार देख लीजिये। शिखा वार्ष्णेय की इस रपट में उन्होंने बताया है कि कैसी बदहाली का माहौल है लंदन के एयरपोर्ट पर इस कड़क समय में। हुलिया बिगड़ गया है कस्टमर सेवाओं का। एयरपोर्ट किसी रेलवे प्लेटफ़ार्म सरीखा लग रहा है। आगे क्या बतायें आप खुदै देख लीजिये उनकी रपट में।

अपने देश के लोगों की एक फ़ुल टाइम अदा है अपने अतीत पर गर्व करने की। लाल्टू जी ने इस पर अपनी राय बताते हुये लिखा:
कई बार मुझे लगता है कि काश हम एक महान संस्कृति महान देश कहलाने के दबाव से मुक्त हो पाते तो सचमुच हमारा ध्यान हमारी कमियों की ओर जाता और अपनी ऊर्जा महानता के नाम पर सीना पीटने के या विरोध की आवाज़ से डरने के बजाय बेहतर समाज और देश के निर्माण में लगा पाते. पर ऐसा होता तो लोगों को बेवकूफ बना कर देश को लूट रहे महान लोगों की क्या हस्ती रहती!


ऐसे ही घूमते हुये अनुराग वत्स के ब्लॉग सबद पर जाना हुआ। हिन्दी के वरिष्ठ कवि कुंवर नारायण ने साहित्य अकादमी द्वारा महत्तर-सदस्यता पर्दान किया जाने के अवसर पर २० दिसंबर को जो स्वीकृति वकतव्य दिया उसको यहां पोस्ट किया गया है। कुंवर नारायण जी को इस वर्ष का ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया है। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा:
आज हम एक उतावले समय में जी रहे हैं. इस ज़ल्दबाज़ी में असंयम और बौखलाहट है. जो हम चाहते हैं, उसे तुरत झपट लेने की आपाधापी. यह हड़बड़ी भी एक तरह की हिंसा है -- लड़भिड़ कर किसी तरह से आगे निकल जाने की होड़. यह बेसब्री हमारे अन्दर कुंठा और अधीरज को भड़काती है -- उस अनुशासन को नहीं जिसका लक्ष्य महान-कुछ को प्राप्त करना होता है. मेरी एक कोशिश जहां अपने समय को ठीक-ठीक समझ सकने की रही है वहीं उसे स्वस्थ और स्थाई जीवनमूल्यों से जोड़ने की भी.

खुदा झूठ न बुलवाये कुंवर नारायण की यह बात पढ़ते हुये मुझे अपनी एक अनगढ़ तुकबंदी याद आ गयी:
ये दुनिया बड़ी तेज चलती है ,
बस जीने के खातिर मरती है।

पता नहीं कहां पहुंचेगी ,
वहां पहुंचकर क्या कर लेगी ।

बस तनातनी है, बड़ा तनाव है,
जितना भर लो, उतना अभाव है।


आगे कुंवर नारायण जी ने यह भी कहा:
''बाजारवाद'' और ''उपभोक्तावाद'' आज का कटु यथार्थ है जो हमारे रहन-सहन, रीति-रिवाजों, आपसी संबंधों और सांस्कृतिक चेतना को कई स्तरों पर तेज़ी से बदल रहा है. हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती इस समय तमाम विकल्पों में से सही रास्ते चुन सकने की है. शायद इसीलिए इस समय को ''द्विविधाओं'' और ''संदेहों'' का समय कहना ज़्यादा ठीक लगता है.

आज समय कैसा चल रहा है यह बोधिसत्व की कविता में देखिये:
घरे-घरे दौपदी, दुस्सासन घरे-घरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥

गली-गली कुरुक्षेत्र, मरघट दरे-दरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥

देस भा अंधेर नगर, राजा चौपट का करे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥

सीता भई लंकेस्वरी, राम रोवें अरे-अरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥

पूजा मतलब पूजा उपाध्याय जिनको मैं डा.पूजा कहता हूं उनकी गजब की अभिव्यक्ति के कारण को जब भी पढ़ता हूं तो लगता क्या लिखती हैं ये, कैसे लिखती हैं। तुम्हारे आने का कौन सा मौसम है जान? का एक अंश:
घर पर हूँ और सोच रही हूँ कि आज के सूचना और टेक्नोलोजी के ज़माने में ऐसा कैसे मुमकिन है कि कहीं तुम मुझे ढूंढ ना पाओ. जिस जमाने में ये सब कुछ नहीं था तब भी तुम मुझे ढूंढ निकालते थे...याद है वो नए साल का सरप्राइज जब तुम हॉस्टल की दीवारें फांद कर बस मुझसे मिलने आये थे एक लम्हे के लिए बस. वो लिफ्ट में जब तुमने कहा था 'किस मी' तुम्हें याद है कि चलती लिफ्ट के वो भागते सेकंड्स जब भी याद करती हूँ हमेशा स्लो मोशन में चलते हैं.
कहा भी न जाये रहा भी न जाये का शायद इसी को कहते हैं जब पूजा लिखती हैं:
बहुत साल हो गए जान...अफ़सोस कि मैं एक स्त्री हूँ इसलिए ये नहीं कह सकती...कि जान मैंने सात पैग व्हिस्की पी है, दो डब्बे सिगरेट फूंकी है और तब जा के कहने की हिम्मत कर पायी हूँ...काश कि ऐसा होता मेरी जान. पर मैंने कोई नशा नहीं किया है...तुम्हारी याद को ताउम्र जीते हुए, आज इस सांझ में तुम्हारी आँखों में आँखें डाल कर कहना चाहती हूँ 'मुझे लगता है मुझे तुमसे प्यार हो गया है जान...काश तुम सामने होते तो तुम्हारे होठों को चूम सकती'.

अरुण रॉय की कविता का अंश देखिये। आगे आपका खुद मन होगा पढ़ने के लिये:
छीलते हुए मटर
गृहणियां बनाती हैं
योजनायें
कुछ छोटी, कुछ लम्बी
कुछ आज ही की तो कुछ वर्षों बाद की
पीढी दर पीढी घूम आती हैं
इस दौरान.

अपनी एक पोस्ट में अजित गुप्ता जी ने बताया लघु कहानी क्या है, कैसे लिखें:
लघुकथा में वर्णन की गुंजाइश नहीं है, जैसे चुटकुले में नहीं होती, सीधी ही केन्द्रित बात कहनी होती है। कहानी विधा में उपन्‍यास और कहानी के बाद लघुकथा प्रचलन में आयी है। उपन्‍यास में सामाजिक परिदृश्‍य विस्‍तार लिए होता है ज‍बकि कहानी में व्‍यक्ति, चरित्र, घटना जैसा कोई भी एक बिन्‍दु केन्द्रित विषय रहता है जिसमें वर्णन की प्रधानता भी रहती है लेकिन लघुकथा में दर्शन प्रमुख रहता है। लघुकथा का प्रारम्‍भ किसी व्‍यक्ति के चरित्र या घटना से होता है लेकिन अन्‍त पलट जाता है और अधिकतर सुखान्‍त होता है।



आज नीरज बसलियाल ने बताया कि कहानी कैसे लिखें:
लिखना एक ऑपरेशन जैसा है | ऑपरेशन थियेटर, एक परिवेश जो एक पूरी दुनिया है , आप अपनी कहानियाँ इसी परिवेश से तो चुराते हो | कभी गए हो वहाँ अन्दर ? गौर किया है कि वहाँ अन्दर जाने पर डर ख़त्म हो जाता है, लेकिन राहत मिले ऐसा भी नहीं |

लेकिन आप तो ब्लॉग लिखते हैं न! आप सोच रहे होगे कि कोई यह तो बताये ब्लॉग कैसे लिखा जाता है। तो देखिये ऐसे लिखा जाता है ब्लॉग :
लिखने का मजा तो यार तो तब है जब ऐसे लगे कि आमने-सामने बैठ के बतिया रहे हैं। अबे-तबे भी हो रही है और अरे-अरे, ऐसे नहीं-वैसे नहीं भी।

कोई तरतीब नहीं। एकदम बेतरतीब। मूड की बात। जैसे कोसी नदी। आज इधर कल किनारा बदल के सौ मील दूर। आज इधर डुबा रही हैं, अगले साल उधर मरणजाल डाल रही हैं। आदमी पानी के बीच पानी के लिये तरस रहा है। जल बिच मैन पियासा।


लेकिन लफ़ड़ा यह है कि ब्लॉग में लोग बेहतरीन और कालजयी लिखने के चक्कर में फ़ंस जाते हैं। अच्छा लिखने की चाहना माया है ब्लॉगिंग की राह में। देखिये:
लब्बो-लुआब यह कि अच्छा और धांसू च फ़ांसू लिखने का मोह ब्लागिंग की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है। ये साजिश है उन लोगों द्वारा फ़ैलाई हुयी जो ब्लाग का विकास होते देख जलते हैं और बात-बात पर कहते हैं ब्लाग में स्तरीय लेखन नहीं हो रहा है। इस साजिश से बचने के लिये चौकन्ना रहना होगा। जैसा मन में आये वैसा ठेल दीजिये। लेख लिखें तो ठेल दें, कविता लिखें तो पेल दें।


ब्लॉगिंग में तात्कालिकता का बहुत महत्व है। ज्यादा सोच-समझकर लिखने में यही होता है फ़िर कि टापिक हाथ से निकल जाता है। हाथ आती है केवल मन पछितैहे अवसर बीते वाली मुद्रा।

अब देखिये उधर प्याज महंगा हुआ इधर शिव कुमार मिश्र ने पोस्ट ठेल दी और कह डाला:
आज उतनी भी मयस्सर न किचेन-खाने में
जितनी झोले से गिरा करती थी आने-जाने में
काजल कुमार ने भी कार्टून बना डाला। इसके बाद ही प्याज की कीमतें कुछ तो औकात में आ ही गयीं और टापिक हाथ से निकल गया। इसलिये हे संतजनों जो मन कह डालिये। आगे आने वाला समय न जाने कौन की करवट बैठे।

और अंत में


  • डा.अमर कुमार चकाचक और टिचन्न होने की राह में हैं। पिछ्ली चर्चा में उनक टिप्पणी थी:
    Wah Anup Ji, goya Dr. amar kumar na huye...Chittha-Havaldar ho gaye !
    Mauj le lo, guru.. main aspataliya se bhi Charcha par nazar rakhe huye hoon !
    Shabhi Shubhchitakon ko mere parivar ki taraph se Dhanyavad.
    Gyan ji ko sasharir dekha, pasand karne yogya hain !
    Bye Bye karne ki stage mein TaTa kyon jata ? Sangam hi sahi..Lekin surya dakhsinayan hain, so..Lautaya ja raha hoon.
    Rachna ji, Aaj Roman mein likhte huye bahut bura lag raha hai.. aapko bura nahin lagata ?:)


    इसके पहले आपको बता दें कि अपने बुजुर्गवार चंद्रमौलेश्वरजी भी आपरेशन थियेटर से निकलकर घर वालों की निगरानी में हैं। उन्होंने कल अमरकुमार जी के माध्यम से बताया:
    Dr. Amar ji, hum ek hi kashti ke sawar hain, sab thik ho jayega. sheghra swasth laabh kar laut aayiye iss dangal mein. mujhe bhi bura lag raha hai roman mein likhne ka par kya karen, baraha ne dhokha de diya :)


    मेरा दुआ है कि दोनों सितारे जल्दी जल्दी स्वास्थ्य लाभ करें और ठसक के साथ जियें।


  • जिन साथियों को ब्लॉगपोस्टें देखने में परेशानी हो रही है वे हिन्दीब्लॉगजगत में जायें। काफ़ी पोस्टें वहां संकलित रहती हैं। काम चल जायेगा। बाकी जिनको पढ़ना है उनको खोजने के लिये गूगल बाबा की शरण लें।


  • बकिया फ़िर कभी अभी निकलना है एक पिकनिक के लिये। आप भी मजे करिये। क्रिसमस मुबारक।

    Post Comment

    Post Comment

    20 टिप्‍पणियां:

    1. बहुत सारी मौज ले ली। अलग सा फलसफा से आपकी पोस्‍ट का। बस पढ़ते रहो और मौज लेते रहो। हम तो चकराए तब जब हमारा चौकटा भी दिखायी दे गया। आभार आपका।

      जवाब देंहटाएं
    2. जिन साथियों को ब्लॉगपोस्टें देखने में परेशानी हो रही है वे
      http://hindibloggerwoman.blogspot.com/
      में जायें। काफ़ी पोस्टें वहां संकलित रहती हैं। काम चल जायेगा। बाकी जिनको पढ़ना है उनको खोजने के लिये गूगल बाबा की शरण लें।

      जवाब देंहटाएं
    3. काफी बढ़िया अंदाज रहा...
      कुछ शानदार पोस्टें पढ़वाईं आपने.. कुछ तो पहले ही पढ़ चुका था...
      सबको क्रिसमस मुबारक........

      जवाब देंहटाएं
    4. हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं, जहाँ पर हमारे सामने कोई आदर्श नहीं है | जहाँ हमसे पहले आई हुई पीढ़ी ने सिर्फ बौद्धिकता दिखाने के नाम पर स्थापित आदर्शों की धज्जियाँ उड़ा दी हैं | हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं, जहाँ किसी का अनुसरण करना भी एक गुलामी ही मानी जाती है | हमारे पास हर घटना के दो पहलू है | सही या गलत बताने वाला कोई नहीं , कोई बताना चाहता भी नहीं | किताबों पे भरोसा था, उन्हें लोगों ने सिर्फ अपने वैचारिक मजे के लिए , या पता नहीं नाम या दाम कमाने के लिए सिर्फ उत्तेजक बनाकर छोड़ दिया | हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं, जहाँ कुरान और रामायण की हर चीज़ का ऐसा विश्लेषण किया जा रहा है जो उन्हें गलत रौशनी में दिखाए | महापुरुषों की गलतियों को ऐसे दिखाया जाता है कि जैसे गलती करना स्वाभाविक नहीं बल्कि जरूरी हो | ऐसा करने वालों के भी अपने तर्क हैं, कि हर एक चीज़ पर सही शोध होना चाहिए | ये 'सही शोध' अंततोगत्वा किस दिशा में जाता है पता नहीं | ये बौखलाहट, हड़बड़ी, असंयम, कुंठा, अधीरज, इन सब का जिम्मेदार मैं अपने समाज के बुद्धिजीवियों को मानता हूँ जिन्होंने इस पर मुहर लगा दी है कि 'To Err is Human'

      जवाब देंहटाएं
    5. काफी दिन बाद आपकी लिखी हुई चर्चा पढ़ने को मिली मुझे. आपकी शैली, आपका देखने का अलग अंदाज है . अच्छा लगा.

      जवाब देंहटाएं
    6. Rachna ji, Aaj Roman mein likhte huye bahut bura lag raha hai.. aapko bura nahin lagata ?:)


      naa ji naa bilkul nahin lagtaa suvidha haen utha rahee hun , suvidha buri kyun lagae

      jaldi aayae vapas dr amar aur चंद्रमौलेश्वरजी

      aur yae anup ki tarah बुजुर्गवार mae to naa likhu jii
      sabsey बुजुर्गवार anup khud haen auro ko unki umr kaa ehsaas karatey haen

      is par dr amar ki teep kaa intezaar rahey gaa

      जवाब देंहटाएं
    7. 4 din 3 charcha ... lagta hai santa claza khush hain ..... badhai sabhi ko x-mas ki....

      kal laut ke ana nahi hua .... baraste kanchan di'aur aradhana di'ke 'ma' ke yaad me ye pardesi khoya raha ... halke hone ke liye satish bhaijee
      ke dwar pe dastak di .... to 'beti' ke bhavishya
      me paraye ghar chale jane ka 'gum' lekar ana para.

      babjood aisi mansik jaddojahad ke 'guruwar amar'
      ki oopasthiti ki-bord tak khich laya.....

      is munch ka jo bat sabse khas hame lagta hai o'
      hai .... jise aap gali samajh link dete hain o'
      to national highway jaisa anthin safar par le
      jata hai .....

      thanks to chittha-charcha ..
      thanks to charchakar .......

      pranam.

      जवाब देंहटाएं
    8. मैंने सिर्फ़ पूजा को पढ़ा. वो बहुत अच्छा लिखती है. अब सबको तो नहीं पढ़ सकते ना... लेकिन चर्चा पूरी पढ़ी और हमेशा की तरह अच्छी लगी... अजित जी की लघुकहानी की परिभाषा में मेरी कहानी 'चाकू' आ जाती है, ये सोचकर संतोष हुआ :-)
      ठण्ड बड़ी ज्यादा है और आप पिकनिक पर जाने वाले हैं... कहाँ जायेंगे "मोतीझील" ?

      जवाब देंहटाएं
    9. उतावला समय पहले भी था.. मुझे नहीं लगता कि ये नया है। हम हमेशा से वैसे ही उतावले थे और शायद वही जीन में रह गया है..
      कुँवर नारायण जी की कविता पसंद आयी और उसी के साथ रामदरश मिश्र जी की भी एक हिंदी गजल याद आ गयी..

      बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे,
      खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे।

      किसी को गिराया न ख़ुद को उछाला,
      कटा ज़िंदगी का सफ़्रर धीरे-धीरे।

      जहाँ आप पहुँचे छ्लांगे लगाकर,
      वहाँ मैं भी आया मगर धीरे-धीरे।

      पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी,
      उठाता गया यूँ ही सर धीरे-धीरे।

      न हँस कर न रोकर किसी में उडे़ला,
      पिया खुद ही अपना ज़हर धीरे-धीरे।

      गिरा मैं कहीं तो अकेले में रोया,
      गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे।

      ज़मीं खेत की साथ लेकर चला था,
      उगा उसमें कोई शहर धीरे-धीरे।

      मिला क्या न मुझको ए दुनिया तुम्हारी,
      मोहब्बत मिली, मगर धीरे-धीरे।

      शायद ये उतावली दुनिया में धीरे धीरे चलते एक इंसान की किस्सागोई थी। पूजा या डा० पूजा जबरदस्त लिखती हैं। उनका लिखा किसी फ़िल्म सा सामने चलता रहता है और हमेशा बाँधे रखता है..

      जवाब देंहटाएं
    10. लो जी, हम चोर दरवाज़े [टिप्पणी के माध्यम से] चर्चा में आ गए... आभारी हैं:)

      पूजा जी:
      याद है वो नए साल का सरप्राइज जब तुम हॉस्टल की दीवारें फांद कर बस मुझसे मिलने आये थे एक लम्हे के लिए बस...

      और अब... बकौल काका हाथरसी के...
      बुझ चुका है तुम्हारे हुस्न का हुक्का
      एक वो ही हैं कि गुड़गुड़ाये जाते हैं :)

      जवाब देंहटाएं
    11. सारगर्भित चिट्ठों की कुशल चिट्ठाकारों के विस्तृत विवरण सहित उत्तम ज्ञानवर्धक चर्चा । आपकी अनगढ तुकबन्दी और बोधिसत्व की कविता विशेष पसन्द आई । आभार...
      अपनी शैली से तो आप परिचित हो ही चुके हैं । जो मन की मौज में आ जावे लिख दो । कुछ तो अपने मन की हो जावेगी और कुछ पाठक भी मिल ही जाएँगे । साहित्य के नियम-कायदों व सिद्धान्तों का ध्यान रखकर यदि कुछ लिखने की सोची जावे तो अपने राम का तो बोरिया-बिस्तर बंध जाना तय ही समझिये.

      जवाब देंहटाएं
    12. आपकी चर्चा ने अवकाश दिवस का भरपूर कराया। अच्छी पोस्ट पर नजर टिकाने की विधि लिखे तो और भी भला हो।

      जवाब देंहटाएं
    13. शुक्रिया बढ़िया चर्चा के लिए.

      जवाब देंहटाएं
    14. बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
      एक आत्‍मचेतना कलाकार

      जवाब देंहटाएं
    15. 1. @ Rachna Ji,
      Gar aap Muafi farmayen Rachna, to..
      yeh arj karoonga ki Hindi ko Roman men dekhna, Mujhe apni Maata Ji ko mange huye dheele skirt men dekhne jaisa lagata hai.
      Jaise aaj main apne bete ke Laptop se kaam chala raha hoon.
      Hey.. hey.. hey.. Like Dadi Devanagari in Roman Robe !

      2.Quote
      कई बार मुझे लगता है कि
      काश हम एक महान संस्कृति महान देश कहलाने के दबाव से मुक्त हो पाते तो सचमुच हमारा ध्यान हमारी कमियों की ओर जाता और अपनी ऊर्जा महानता के नाम पर सीना पीटने के या विरोध की आवाज़ से डरने के बजाय बेहतर समाज और देश के निर्माण में लगा पाते. पर ऐसा होता तो लोगों को बेवकूफ बना कर देश को लूट रहे महान लोगों की क्या हस्ती रहती Unquote

      Honoring your observations Learned Laltu Boss,
      Please bear my humble correction to your expression.... It not 'Dabav of any sort', it is mere 'Vyamoh' of our weak psyche hurt over centuries by invaders ! We need to come out of " Once upon a time my Dada had been Thanedar of the area...." complex and accept our weakness to call anyone Maha-mahim who is mightier and benefactor !

      3. Pooja mesmerises by her thoghtful keyboard, sometimes making me difficult to relive those moments, but my dear.. ऐसा कैसे मुमकिन है that सात पैग व्हिस्की पी है, दो डब्बे सिगरेट फूंकी है etc. are no more a symbol male liberty only in this आज के सूचना और टेक्नोलोजी के ज़माने में ! Some Taboos are preventing you to present the proper fierceness in your words of feeling lost in those bygone days.

      # Anup Sir is in a philosophical mode today, we liked the food for thought in this charcha.

      जवाब देंहटाएं
    16. ek request hai tanik regular ho jaaiye.
      Amarji kee teep dekh hamne bhi Roman :)
      Get well soon Amarji.

      जवाब देंहटाएं
    17. @dr amar
      Mujhe apni Maata Ji ko mange huye dheele skirt men dekhne jaisa lagata hai.

      waah agar maa ko us deele skirt mae ek comfort level haen to kyaa aap apni pasand / naa pasand kae liyae unsae unka yae comfort chheen laegae ???


      shaayad yae unka adhikaar haen aur jarurat bhi ki wo jo chahaey pehnae ??/ kyaa galat hun mae ???

      yahaan koi behas / debate nahin kartaa bina lambii lambi hindi ki baatey kiyae jabki yahaan sab hindi parangat nahin haen mae to bilkul nahin aur maere computer par yae suvidha baar baar enable karni hotee haen kyuki clients kae saath vaartalap chaltaa haen english mae simultaeneously

      ab aap baateae debate ho to is tarak ko kitnae number daegae ki jarurat kae anusaar kaam kar lo kaam karna jarurii haen phir chahey wo roman mae ho yaa dev nagri mae kyuki agar blog aur jeevika dono sae pyar ho to multi tasking hi option haen

      aasha haen swasth laabh kar kae jaldi vapas aaye gae
      waese sir
      aap ki teep samjhnae kae liyae roman aur devnagri dono hi kaam nahin aatee !!!

      जवाब देंहटाएं
    18. देर रात ऐसे ही टहलती इधर आ गयी, लगा कि आप शायद फिर से फॉर्म में हैं तो चर्चा अच्छी मिल जायेगी...अपना फोटो देख कर सुखद आश्चर्य हुआ. कमेन्ट देखे तो दिल भर आया...डॉ अमर कुमार जी...को स्पेशल धन्यवाद, अरसा हो गया था अपने बारे में इतना अच्छा पढ़े हुए :) बाकी आपकी शिकायत वाजिब है और ध्यान दूँगी उसपर.
      आराधना, पंकज...थैंक्स :)
      चिट्ठाजगत नहीं चलने के कारण जरूरी था कि चर्चा में कुछ ऐसा मिले कि अच्छा लगे...आपकी चर्चा एक पूरी पोस्ट की कहानी की तरह चलती है. अनूप जी ऐसी बेहतरीन चर्चाओं का मौसम फिर से वापस लाने के लिए ढेरों धन्यवाद.

      जवाब देंहटाएं

    चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

    नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

    टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

    Google Analytics Alternative