नमस्कार मित्रों!
आज के कुछ पोस्ट ने इतना प्रभावित किया कि एक और चिट्ठा चर्चा प्रस्तुत करने का लोभ संवरण नहीं कर सका।
एक ब्लॉग है नीलाभ का मोर्चा इस पर Hirawal Morcha प्रस्तुत करते हैं देशान्तर के तहत कवि जीवनानन्द दास का जीवन परिचय और उनकी कुछ रचनाएं।
बांग्ला कविता में जीवनानन्द दास का महत्व है और रहेगा। उनकी कविता तीव्र अन्तर्विरोधों और समाज से सामंजस्य न बैठा पाने की कविता है। अपने चारों ओर के समाज की पतनशीलता से विमुख हो करजीवनानन्द दास ने या तो धुर बंगाल के ग्रामीण परिवेश में शरण ली या फिर हिन्दुस्तान, मिस्र, असीरिया और बैबिलौन के धूसरअतीत में। इसीलिए उनकी कविता में आक्रोश की जगह अवसाद का पुट अधिक गहरा है। वे बेहतर समाज की इच्छा तो करते हैं,पर उसकी राहों का सन्धान करने की जद्दोजहद उनकी कविता में नहीं है। इसीलिए सरसरी नज़र से पढ़ने वाले को ऐसा महसूस होसकता है कि उनकी कविता पलायन की कविता है; लेकिन उनकी कविता में मनुष्य और उसके सुख-दुख, हर्ष-विषाद की निरन्तरउपस्थिति इस बात को झुठलाती है और उसे यों ही ख़ारिज नहीं किया जा सकता। इस अर्थ में उनकी कविता की प्रासंगिकता बनीरहेगी। "एक अद्भुत अँधेरा" जैसी कविता तो मानो आज का दस्तावेज़ है।
एक अद्भुत अँधेरा
एक अद्भुत अँधेरा आया है इस पृथ्वी पर आज,
जो सबसे ज़्यादा अन्धे हैं आज वे ही देखते हैं उसे।
जिनके हृदय में कोई प्रेम नहीं, प्रीति नहीं,
करुणा की नहीं कोई हलचल
उनके सुपरामर्श के बिना भी पृथ्वी आज है अचल।
जिन्हें मनुष्य में गहरी आस्था है आज भी,
आज भी जिनके पास स्वाभाविक लगती है
कला या साधना अथवा परम्परा या महत सत्य,
सियार और गिद्ध का भोज
किसी भी विषय को डोरोथी कुछ अलग अंदाज़ में सोचती हैं और फिर उनकी लेखनी एक सशक्त कविता लेकर हाज़िर हो जाती है। बीतना एक साल का भी उनकी सोच और लेखनी का कमाल है। कवयित्री कहती है
काल की दहलीज पर ठिठका हुआ ये साल
बुझते मन से देख रहा है उस भीड़ को जो
घक्का मुक्की करते गुजर रही है सामने से
उसे अजनबी आंखों से घूरते
बड़ी ही हड़बड़ी और जल्दबाजी में.
कवयित्री का विचार या मनःस्थिति इस कविता में अधिक कौशल के साथ व्यक्त होती है। भाषा, भाव, और विचार का निर्वाह उनकी विशिष्ट काव्य क्षमता का परिचायक है।
बिछुड़ने का दर्द समेटे
ढूंढता है इस वक्त
कोई ऐसा दिल
जो सहेजेगा
उस की यादों को
और करेगा ढेरों बातें
उसके बारे में
धुधलाने या गुमने
न देगा उसे
या उसकी यादों को।
इसे पढ़कर ऐसा लगा मानों कवयित्री की अनुभूति, सोच, स्मृति और स्वप्न सब मिलकर काव्य का रूप धारण कर लिया हो।
आखर कलश पर कुछ ग़ज़लें- श्रद्धा जैन की प्रस्तुत की गई है। वैसे तीनों ही ग़ज़लें बहुत अच्छी हैं, आपके विचारार्थ एक यहां पेश कर रहा हूं, बिना कुछ विशेष टिप्पणी के।
हश्र औरों का समझ कर जो संभल जाते हैं
वो ही तूफ़ानों से बचते हैं, निकल जाते हैं
मैं जो हँसती हूँ तो ये सोचने लगते हैं सभी
ख़्वाब किस-किस के हक़ीक़त में बदल जाते हैं
ज़िंदगी, मौत, जुदाई और मिलन एक जगह
एक ही रात में कितने दिए जल जाते हैं
आदत अब हो गई तन्हाई में जीने की मुझे
उनके आने की ख़बर से भी दहल जाते हैं
हमको ज़ख़्मों की नुमाइश का कोई शौक नहीं
कैसे ग़ज़लों में मगर आप ही ढल जाते हैं
शिवकुमार मिश्र ने एक बहुत ही मज़ेदार पोस्ट लगाई है, सिंगिंग रिअलिटी-शो ला रा लप्पा ला का फिनाले। एक बेहद रोचक अंदाज़ में, जिसके वे सिद्धहस्त तो हैं ही, शिव जी ने इस पोस्ट को कल न्यूज दैट मैटर्स नॉट के लिए लिखी थी आज हमारे लिए फिर से लिखी है। उनके इतनी मेहनत करने का राज भी इसी पोस्ट में है कि विख्यात मेंटोर और कुख्यात गायक श्री दलेर मेंहदी ने उनसे कहा; "रब्ब राखां पुत्तर. चक दे फटे. जिन्दा रह पुत्तर." बस वो दुगुने उत्साह से जुट गए और कहते हैं कल मुंबई में हुआ ला रा लप्पा ला नामक सिंगिंग रिअलिटी शो का फायनल तमाम अस्वाभाविक घटनाओं के लिए वर्षों तक याद किया जाएगा. ज़ीहाँ टीवी द्वारा आयोजित इस टैलेंट हंट के फिनाले में शुरुआत ही अच्छी नहीं रही. कार्यक्रम में अथिति के रूप में आये अक्षय कुमार अपनी कार से उतरकर पैदल चलते हुए अपनी सीट तक गए. उनके ऐसा करने से निराश तमाम दर्शकों ने यह कहते हुए हंगामा शुरू कर दिया कि उन्हें ठग लिया गया. अपनी बात को स्पष्ट करते हुए इन लोगों ने बताया कि उन्हें आशा थी कि अक्षय कुमार ज़ी उड़ते हुए, कूदते हुए या फिर तार के सहारे आसमान से उतरेंगे और उनके ऐसा नहीं करने की वजह से इन दर्शकों का पैसा वसूल नहीं हुआ.
पेट पकड़कर हंसने के लिए बाक़ी के अंश शिव जी से ही सुनिए।
कंचन सिंह चौहान जी की प्रस्तुति गया साल.. एक नज़र और आने वाले की शुभकामना....! बीत रहे साल के लेखाजोखा के साथ-साथ आने वाली साल के पैग़ाम भी लेकर आई है। बताती हैं, “वर्ष भी कुछ अजीब सा ही रहा...! पारिवारिक रूप से बेहद खराब....! साहित्यिक उपलब्धियों की दृष्टि से काफी अच्छा...!” उनके इस मिश्रित अनुभवों वाले साल के इस संस्मरण के साथ एक ग़ज़ल भी है,
किसे कब हँसाये, किसे कब रुलाये,
ना जाने नया साल क्या गुल खिलाये।
रहम वीणापाणि का इतना हुआ है,
के हम भी अदीबों के संग बैठ पाए
लिहाफों, ज़ुराबों में ठिठुरे इधर हम,
उधर कोई छप्पर की लकड़ी जलाये।
इस वर्ष की अंतिम पोस्ट...! नव वर्ष खूब सारा उत्साह, उपलब्धियाँ, मानसिक शांति और प्रेम ले कर आये सबके जीवने में, इस शुभकामना के साथ, मिलते हैं एक नवीन दशक में।
Rangnath Singh मिर्ज़ा ग़ालिब के जन्म दिन पर उन्हें याद करते एक पोस्ट लिखी है गालिब जो मर गया है तो हर शायर-दिल उदास है। कहते हैं ‘आज गालिब का जन्मदिन है। 'जन्मदिन की बधाई' की जो अंतरध्वनि है वह गालिब के फलसफा-ए-जिंदगी का विपर्यय ही रचती है। गालिब ने कभी चाहा था कि -
रहिए अब ऐसी जगह चलकर जहाँ कोई न हो।
हम-सुखन कोई न हो और हम-जबाँ कोई न हो।।
आगे कहते हैं ‘गालिब जैसे शायर को आज भी कुछ खास तरह के लोग ही याद कर रहे हैं। गालिब के ही तर्ज पे कहें तो गालिब जो मर गया है तो हर शायर-दिल उदास है.....
लेता नहीं मेरे दिल-ए-आवारा की खबर।
अब तक वह जानता है कि मेरे ही पास है।।
हर इक मकान को है मकीं से शरअ असद।
मजनूँ जो मर गया है,तो जंगल उदास है।।
दालान पर रंजन जी के है CNN - IBN अवार्ड समारोह !! यह एक बहुत सुलझी और सशक्त कलम से लिखा गया संस्मरण है जो लाइव कमेंट्री की तरह सारे दृष्य को आंखों के सामने साकर कर देता है।
लॉबी में खडा था - राजदीप से मुलाकात हुई - ब्लैक कलर के बंद गला में 'गजब के स्मार्ट दिख रहे थे ! स्वभाव से शर्मीला हूँ सो थोड़ी देर बाद आकाश को फोन किया और वो मुझे 'दरबार हौल में पहले से निर्धारित एक टेबल पर् बैठा दिए ! चुप चाप ! थोड़ी दूर पर् थे - 'कुमार मंगलम बिरला - अपने दादा जी और दादी जी के साथ ' सभी से मिल जुल रहे थे ! धीरे - धीरे सभी गेस्ट पहुँचाने लगे - वो सभी लोग थे - जिनको आज तक हम जैसे लोग सिर्फ 'अखबार और टी वी ' में ही दिखते थे ! प्रणव मुखर्जी , नितिन गडकरी , सुशील मोदी , ज्योतिराजे सिंधिया , रवि शंकर प्रसाद , विजय त्रिवेदी , सर मेघ्नंद देसाई , "सुधांशु मित्तल" और मालूम नहीं कितने लोग .....हम तो अपने टेबल पर् ऐसे बैठे थे - जैसे इन लोगों से रोज ही मुलाक़ात होती हो .....;)
रंजन जी की लेखनी के साथ-साथ उनकी हाजिर जवाबी भी काफ़ी प्रभावित करती है
नितीश को इन्डियन ऑफ द इन्डियन का अवार्ड मिला - मेरे बगल में एक विदेशी और बेहद ख़ूबसूरत - शालीन महिला बैठी थीं - जब नितीश को अवार्ड मिला तो - खुशी से आंसू आ गए - यह सम्मान - सभी बिहारी के लिये था ! हम तो कुर्सी से खडा हो गया - सबसे देर तक ताली बजाया - विदेशी महिला ने मुझसे पूछा - ये कौन हैं ? मैंने बोला - अगला 'प्रधानमंत्री' :))
और अंत में राजेन्द्र स्वर्णकार जी के साथ हम भी कह रहे हैं नव वर्ष आ !
... नव वर्ष आ ...
ले आ नया हर्ष
नव वर्ष आ !
आजा तू मुरली की तान लिये ' आ !
अधरों पर मीठी मुस्कान लिये ' आ !
विगत में जो आहत हुए , क्षत हुए ,
उन्हीं कंठ हृदयों में गान लिये ' आ !
आ ' कर अंधेरों में दीपक जला !
मुरझाये मुखड़ों पर कलियां खिला !
युगों से भटकती है विरहन बनी ;
मनुजता को फिर से मनुज से मिला !
सुदामा की कुटिया महल में बदल !
हर इक कैक्टस को कमल में बदल !
मरोड़े गए शब्दों की सुन व्यथा ;
उन्हें गीत में और ग़ज़ल में बदल !
कुछ पल तू अपने क़दम रोक ले !
आने से पहले ज़रा सोच ले !
ज़माने को तुमसे बहुत आस है !
नदी को समंदर को भी प्यास है !
नये वर्ष ! हर मन को विश्वास दे !
तोहफ़ा सभी को कोई ख़ास दे !
जन जन प्रसन्नचित हो आठों प्रहर !
भय भूख़ आतंक से मुक्त कर !
स्वागत है आ, मुस्कुराता हुआ !
संताप जग के मिटाता हुआ !!
नव वर्ष आ , मुस्कुराता हुआ !!!
बहुत अच्छी चर्चा ...इन पोस्ट पर कल जाना होगा ..नव वर्ष की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंবলবো তো..
অহাঃ আজকে চর্চাটা কি মি৯ষ্টিগো !
আবার জাবার সময হোল
আমায কৈনো রাখীশ ধর
চোখের জলের বাঁধন দিযে
বাঁধীশ না অর মাযার ডোরে
ফূরিযে ছে জীবনের ছূটি
নাম ধর আবার ডাকিশ না ভাঈ
अब जबकि मैं सकुशल अपनों के बीच में लौट आया,
गतवर्ष की विदाबेला में इस स्वागत गान की तान जैसे गुरुदेव तक पहुँचती है, बहुत अच्छा लग रहा है, अहाहा कि आनन्दो !
आमार जाबार समय होलो
आमाय कैनो राखीश धरे
चोखेर जलेर बाँधन दिये
बाँधीश ना आर मायार डोरे
फूरिये छे जीवनेर छूटी
फिरिये ने तोर नयन टूटी
नाम धरे आबार डाकिश ना भाई
भावानुवाद :
लगा कि मेरे जाने की बेला आ गई है, मुझे क्यों पकड़ रखा था
आँसुओं की मायाडोर से मुझे न ही बाँधते, अपनी आँखें फेर लेते
जीने के वास्ते जो छुट्टी लेकर आया था, वह अब समाप्त हो चला है
अब मुझे मेरे नाम से भी न पुकारना, मुझे मायाडोर में न ही बाँधों
इस मँच के माध्यम से मैं अपने सभी शुभचिन्तकों, मुझसे परेशान रह कर भी मेरे लिये स्वास्थ्य कामना करने वाले सुधी मित्रों का आभार देता हूँ । मुझे तो इस मायाडोर से अभी बँधे ही रहना है, ईश्वर मेरे ब्लॅगरीय आत्मा को यहीं चिरशाँति दे !
आदरणीय मनोज कुमार जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
संयोगवश आपके यहां पहुंचा तो पता चला कि मेरे पूरे गीत सहित मेरी ताज़ा पोस्ट को चिट्ठा चर्चा में सम्मिलित किया गया है , आभार !
… लेकिन,
आपसे अनुरोध है कि सम्मिलित चिट्ठाकार की पोस्ट पर कमेंट बॉक्स में इसकी सूचना अवश्य डाल दिया करें , ताकि उनके लिए भी स्मृति में रहने का साधन उपलब्ध रहे ।
अंतर्जाल के समस्त् प्रियजनों को ~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
चर्चित अन्य चिट्ठे भी बहुत रुचिकर और उपयोगी हैं ।
जवाब देंहटाएंइन पर कल जाने का प्रयास रहेगा ।
आपका श्रम और लगन सार्थक होने के कारण स्तुत्य है ।
पुनः शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जवाब देंहटाएं@ डॉ अमर कुमार ,
एक तो मैं ही आपसे परेशान था :-(....
वाकई , आपकी रहस्यमयता के लिए ...
आपको न पहचान पाने के लिए ...कि आप चीज क्या हो ...??
मगर आपकी वह भयानक बीमारी और तत्स्वरुप हमारे दिल में, आपके खो जाने के भय से उत्पन्न चिंता ने आप के लिए बहुत बेचैन रखा !
मगर अब ब्लॉग जगत को राहत है कि एक तेज समझदार ब्लोगर हमारे बीच है जो हमें सचेत रहने का अहसास दिलाता रहेगा !
आपके लिए बहुत बहुत प्यार!! ईश्वर करे हमसे अधिक जियो...... .....
অমর দা!
जवाब देंहटाएंআগে তো ঈশ্ৱর কে অসংখ ধন্যৱাদ জানাঈ|
আপনী ফিরে অশেছেন আমাদের মধ্যে ঈ টা জেনে ভালো লাগলো| তা তে ও বেশ ভালো লাগলো জে আপনী আমার এঈ পোস্টে এশে আপনার ভালোবাশা জানিএছেন|
सामाजिक सरोकार से जुड़ के सार्थक ब्लोगिंग किसे कहते
जवाब देंहटाएंनहीं निरपेक्ष हम जात से पात से भात से फिर क्यों निरपेक्ष हम धर्मं से..अरुण चन्द्र रॉय
|
जवाब देंहटाएं||
|||?
this is not fare
pranam.
sundar charcha.
जवाब देंहटाएंरचनात्मक चर्चा.
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत चर्चा ..मनोज भाई । शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंमेरा नया ठिकाना
नई आशा की किरण लाती चर्चा के लिए साधुवाद:)
जवाब देंहटाएंsunder charcha.
जवाब देंहटाएंसम्मानोया मनोज जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
आप को नव वर्ष की बहुत बहुत बधाई ,इस पोस्ट में आप की पूरण मेहनत दिख रही है , नव वर्ष में आप और नयी उचाईयों को छुए ये कामन है , पुनः वर्ष की बधाई ,
सदर !
अच्छी चर्चा .
जवाब देंहटाएंनूतन दशक की बहुत सारी मंगल कामनाएं