मंगलवार, अक्तूबर 23, 2012

अधूरे सपनों की कसक

"मेरा डॉ बनने का जूनून उड़ान भरने लगा ,पर होनी कुछ और थी , मुझे दसवीं के बाद उस जगह से दूर विज्ञान  के कॉलेज में दाखिला के लिए पापा ने मना कर दिया | ये कह कर की  दूर नहीं जाना है पढने| जो है यहाँ उसी को पढो , और पापा ने मेरी पढ़ाई कला से करने को अपना फैसला सुना दिया | मैं  कुछ दिल तक कॉलेज नहीं गयी | खाना छोड़ा और रोती रही , पर धीरे -धीरे मुझे स्वीकार करना पड़ा उसी सच्चाई को |  "


"सपने देखने शुरू कर दिए मेरे मन ने .कई बार खुद को सरकारी जीप मे हिचकोले खाते देखा पर भूल गयी थी कि मैं एक लड़की हूँ ,उनके सपनो की कोई बिसात नही रहती ,जब कोई अच्छा लड़का मिल जाता हैं |बस पापा ने मेरे लिय वर खोजा और कहा कि अगर लड़की पढ़ना चाहे तो क्या आप पढ़ने  देंगे बहुत ही गरम जोशी से वादे किये गये ."


"जब बी ए  ही करना है तो यहीं से करो .. मैंने बहुत समझाया ...मुझे बी ए नहीं करना है वो तो एक रास्ता है मेरी मंजिल तक जाने का पर उस दिन एक बेटी के पिता के मन में असुरक्षा घर कर गई ..घर की सबसे बड़ी बेटी को बाहर  भेजने की हिम्मत नहीं कर पाए ...और मैं उनकी आँखे देखकर बहस "


"मुझे हमेशा से शौक था .... विज्ञान विषय लेकर पढ़ाई पूरी करने की क्यों कि कला के कोई विषय में मुझे रूचि नहीं थी ..... लेकिन बड़े भैया के विचारों का संकीर्ण होना कारण रहे .... मुझे कला से ही स्नातक करने पड़े ..... ऐसा मैं आज भी सोचती हूँ .... कभी-कभी इस बात से खिन्न भी होती है...."


"उन्हीं दिनों मेरे दादाजी घर आये हुए थे। कॉलेज  खुलने ही वाले थे, मेरे पिताजी ने दादा जी से भी विचार विमर्श  किया और दादाजी ने निर्णय सुना दिया गया कि कॉलेज नहीं बदलना है . उसी कॉलेज में आर्ट विषय लेकर पढ़ना है , मानो दिल पर एक आघात लगा था। कुछ दिन विद्रोह किया लेकिन बाद में उनका फैसला मानना ही पड़ा।  "


"न्यायाधीश की बेटी, और हर अन्याय के खिलाफ लड़ने का संकल्प धारण करने वाली लड़की अपने प्रति होने वाले इस अन्याय का प्रतिकार नहीं कर पाई और जीवन भर अपनी हार का यह ज़ख्म अपने सीने में छिपाये रही !"



रेखा श्रीवास्तव अपने ब्लॉग पर एक सीरीज अधूरे सपनों की कसक पढवा रही हैं . 
आप भी पढिये और सोचिये नर - नारी समानता आने में अभी कितनी और देर आप लगाना चाहते हैं . कितनी और बेटियों को आप अधूरे सपनों के साथ अपना जीवन जीने के लिये मजबूर करना चाहते हैं और कितनी बेटियों से आप ये सुनना चाहते हैं की नियति के आगे सब सपने अधूरे ही रहते हैं . 

बेटी के लिये विवाह कब तक कैरियर का ऑप्शन बना रहेगा . कब तक आप विवाह करके लडकियां सुरक्षित हैं हैं ये खुद भी मानते रहेगे और लड़कियों से भी मनवाते रहेगे . 




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11 टिप्‍पणियां:

  1. जो दर्द मेरा था उसमें मैं तनहा नहीं थी ...वो कहानी बस किरदार बदलती रही ...सोनल ,नीलिमा रजनी साधना ....क्रमश:

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  2. आप सब के एह्सासात खूब रहे

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  3. जब तक लड़कियों के प्रति पुरुष प्रधान समाज की सकारात्मक सोच नहीं होगी तब तक इसी प्रकार लड़कियाँ अधूरे सपनों की क़सक महसूस करती रहेंगी.लड़कियों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव भी आ रहा है इस तथ्य को झुठलाया भी नहीं जा सकता. लड़कियों को भी जागरूक होने की ज़रूरत है.

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  4. हाँ, रोका मुझे भी था बाऊ ने जब मैंने इलाहाबाद पढ़ने को कहा. वो रिटायर हो गए थे और गाँव में बसने की सोच चुके थे. बोले "गाँव में पढ़ो. बड़ा अच्छा कॉलेज है. मैं इलाहाबाद पढ़ने का खर्च नहीं उठा सकता." बड़ी रो-धो मचाई घर में मैंने. आसमान सर पर उठा लिया. मैंने कहा कि मैं ट्यूशन पढ़ा लूँगी, कोई पार्टटाइम काम कर लूँगी. बाऊ लगभग मान ही गए थे पर कुछ सकुचा रहे थे.
    उन्हीं दिनों भाई का सेलेक्शन पालीटेक्निक में हो गया और मुझे एक और बहाना मिल गया कि जब उसे बाहर भेज सकते हो तो मुझे क्यों नहीं? बाऊ ने हमदोनों को हमेशा एक बराबर कहकर पाला था, न कैसे कहते :) बस मैं निकल गयी इलाहाबाद.
    ये बात अलग है कि भाई इंजीनियरिंग कर रहा था तो मुझसे दुगने पैसे खर्च करता था और मैं एक-एक पैसे का हिसाब रखती थी. पर कोई गम नहीं. मैंने अपने मन की की और अब भी कर रही हूँ :)

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  5. bahut hi sarthak wa sargarbhit vishya chuna hai apne....wah

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  6. हरेक मनुष्य की मजबूरियां भले ही अलग अलग हों परन्तु उनके भोगे जाने और महसूस करने का यथार्थ एक जैसा होता हैं ...यह इस चर्चा का सार है ऐसा मुझे लगता हैं

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  7. ishwar chandra vidyasagar ke 150 sal baad bhi kuchh nahi badla

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