- इन्द्रधनुष - नितिन बागला
- जो न कह सके - सुनील दीपक
- देश-दुनिया - हिंदी ब्लागर
- सुमीर शर्मा हिन्दी में - सुमीर शर्मा
- पेज १-२-३ - पारु
- प्रतिमांजली - संजय विद्रोही
- ब्रज से दूर ब्रजवासी की चिट्ठियाँ - अमित अग्रवाल/संकेत गोयल
- हिन्दी - अमित अग्रवाल
- अभिप्राय - राजेश कुमार सिंह
सभी चिट्ठाकारों का हिंदी चिट्ठा जगत में हार्दिक स्वागत है। आशा है इन चिट्ठाकारों को नियमित रूप से अपने विचार प्रकट करने का पर्याप्त समय मिलेगा जो कि हिंदी चिट्ठाजगत को समृद्ध करेगा।
चर्चा की शुरुआत अक्षरग्राम से। ग्याहरवीं अनुगूंज का विषय था - "माजरा क्या है?"। अवलोकनी चिट्ठा लिखते समय पाया गया कि चौदह लोगों ने कुल सोलह पोस्ट लिखीं। यह संख्या अनुगूंज में अभी तक की सर्वाधिक है। अगली अनुगूंज की घोषणा होना अभी बाकी है। लाइव जर्नल की शुरुआत की सूचना भी अक्षरग्राम का आकर्षण रही। अतुल ने लगता है अपनी तारीफ का हिस्सा दुनिया को दिखाना जरूरी समझा सो चौपाल पर आ गये धन्यवाद ज्ञापन करने। स्वामीजी ने हालांकि बताया कि तारीफ उनके लेखन की की गई थी, उनकी नहीं।
सारिका सक्सेना बताती हैं:
उदासी और मन का जरूर
कविता से कुछ गहरा नाता है;
जहां घिरे कुछ बादल गम के,
गीत नया बन जाता है!
एक नज़र का ही तो कमाल है कि:
मांग मेरी मोती, सितारों से भर गई।
माथे पे मेरे आज महताब जगमागाया है।
मन तितली की चाहत है :
संग तुम्हारे निकले घर से;
बढ के कोई नज़र उतारे।
इधर-उधर की बताते हुये रमण ने बताया कि वर्डप्रेस का नया संस्करण आ गया। रघुबीर टालमटोल के माध्यम से असहज सवाल टालने का तरीका बताया । लोग किस-किस रास्ते चिट्ठे पर पहुँचते हैं यह बताना भी नहीं भूले।
इन्द्रधनुषी छटा बिखेरते हुये नितिन बागला ने लिखा :
बहुत दिनो से सोच रहे लिखना हिन्दी ब्लोग,
ठहरे पक्के आलसी, लगा नही सन्योग।
लगा नही सन्योग आज शुभ दिन यह आया,
"इन्द्रधनुषी" चिट्ठा यह अस्तित्व मे आया।
जीवन से जो मिला सो स्वीकार किया :
मैने,
हर हाल मे जीवन को जिया है।
जिस-जिस ने मुझको जो दिया,
मृदु पुष्प भी, कटु शूल भी,
मन से या फिर मन मार कर,
स्वीकार किया है।
विचारोत्तेजक "माजरा क्या है?" लिखने के बाद स्वामी खुश हुये पहली ब्लागर मीट पर। कला के ध्येय से शुरु हुई बात बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की चालाकियों तक पहुंची। अनुराग जैन के विचार पठनीय है इस मुद्दे पर। नंगई में कला की संभावनायें भी हैं
कुछ ऐसा ही लगता है यह पोस्ट पढ़कर। भारत के विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने की खबर पर शंका करते हुये चचा गालिब के पास चले गये कुछ सलाह लेने।
राजेश के कल्पवृक्ष से अब तक की सबसे अच्छी कविता उपजी। संकल्प आशावादी है, नमोहक है :
हम जहाँ हैं,
वहीं से, गे बढेंगे।
हैं अगर यदि भीड़ में भी, हम खड़े तो,
है यकीं कि, हम नहीं,
पीछे हटेगे।
देश के, बंजर समय के, बाँझपन में,
या कि, अपनी लालसाओं के,
अंधेरे सघन वन में,
पंथ, खुद अपना चुनेंगे ।
या , अगर हैं हम,
परिस्थितियों की तलहटी में,
तो ,
वहीं से , बादलों कॆ रूप में , ऊपर उठेंगे।
माजरा बयान करते-करते आशीष श्रीवास्तव पता नहीं कैसे अपनी व्यथा-कथा कहने लगे पता ही नहीं चला।
रवि रतलामी के लेख में भ्रष्टाचार मुख्य विषय रहा । कम्प्यूटर, सड़क, बाबू-अधिकारी, देश, सब जगह भ्रष्टाचार फैला है। इन हालात का मुकाबला बहुआयामी दिमाग से ही किया जा सकता है।
सुनील दीपक जो कह न सके उसे सहज भाषा खूबसूरत, बोलते चित्रों से बताते हैं। @ का हिंदी अनुवाद, लंदन का बांगलादेश लिखने के बाद मनमोहनसिंह की ब्रिटिशप्रशंसा पर अपना विचार व्यक्त किया। विदेश मेंगंगा उत्सव मनाते ही विरह का दुख झेलना पड़ा।
देश-दुनिया की रोजमर्रा की खबरों को अपनी नजरों से हिंदी ब्लागर ने पेश करना शुरु किया। कुछ प्रमुख खबरे हैं - खेल ओलंपिक मेज़बानी का, ओपन-सोर्स जर्नलिज़्म या जनपत्रकारिता, आख़िरकार झुका अमरीका, स्टीव जॉब्स की ज़िंदगी के तीन पड़ाव। आशा है कि हिंदी ब्लागर का नाम भी जल्द ही पता चल जायेगा।
निठल्ले तरूण सिर्फ एक लेख लिख कर रह गये - माजरा क्या है?
देबाशीष आजकल शायद समय की कमी के कारण सिद्धों की भाषा मे बात करने लगे हैं। लिख दिया, मतलब आपनिकालें।
अनुनाद सिंह ने बहुत मेहनत करके इंटरनेट पर मौजूद हिंदी से संबंधित कड़ियों को इकट्ठा करने का सराहनीय काम किया है।
संजय विद्रोही ने अपना चिट्ठा शुरु किया - प्रतिमांजली। कई पुस्तकें प्रकाशित हैं, कई प्रकाश्य हैं। "कभी यूँ भी तो हो" नयी पुस्तक है। बिटिया जब घर से चली, काजल, ...रेत पर हादसा कवितायें लिखीं। मन के दोहे तीन बार पोस्ट किये - कहां तक बचेगा पढ़ने वाला।
प्रत्यक्षा ने मोगरे की खुशबू से बात शुरू की :
रात भर ये मोगरे की
खुशबू कैसी थी
अच्छा ! तो तुम आये थे
नींदों में मेरे ?
बेसाख्ता हंसी से चेहरे पर नूर बिखर गया:
इक नूर बरसता है
चेहरे पे क्यों हरदम
इसका कुछ तो सबाब
मुझको भी जाता है यकीनन
तय नहीं कर पातीं कि खामोशी का सुकून है सुकून की खामोशी :
आँखें मून्दे लेट जाती हूँ
चारों ओर से लपेट लेती हूँ
समन्दर की लहरें लौट जाती हैं वापस
ये सुकून की खामोशी है
या खामोशी का सुकून ??
प्रेम पीयूष ने बचपन की हायकू कविता नानी-माँ
को समर्पित करते हुये लिखी :
कैसे कहूँ मैं
बचपन छिपा है
मेरा अभी भी ।
खेलता रहा
यौवन के घर भी
छोरा मुझमें ।
लघु कहानी के बाद कविता की अर्थी निकाल दी :
नून-तेल के दायरे से
निकली जब जिन्दगी ।
माल असबाब भरे पङे थे
भविष्य के गोदामों में ।
जिंदा बची नज्म के साथ चिट्ठाकार मंडली को नमो नमः किया :
ब्लाग कहो या चिट्ठा ,खट्टा हो या मीठा
सुलेख हो या कुलेख, मिले तालियाँ या गालियाँ ।
जो मन में आये लिखो, सीखो या सिखाओ
मुफ्त़ में मेरे जैसा कवि-लेखक बन जाओ ।
देशी बोली में कुछ सुनाओ, हम सब दोपाया जन्तु हैं
यहाँ भी कई दल हैं, अच्छे-भले और चपल तन्तु हैं ।
जय रामजी की, अपनी तो एक ही तसल्ली है
अनिर्मित सेतु बनाने को, हमारी एक बानर टोली है ।
ब्रज से दूर ब्रजवासियों - अमित अग्रवाल तथा संकेत गोयल
ने संयुक्त चिट्ठा शुरु किया। अमीम सयानी से शुरु हुयी बात मंगल पाण्डेय से होते हुये शोध के लड्डुओं तक पहुंची। लंदन के विस्फोट अमेरिकी नीति की पड़ताल करने की कोशिश की गयी।
महावीर शर्मा जी ने मिर्जा पर पहले अपना हाथ तथा फिरबात साफकी।
मनोज ने बताया :
ज्ञान एक ऐसी सम्पत्ति है जिसे चोर नहीं चुरा सकता,लुटेरा नहीं लुट सकता और यह एक ऐसी सम्पत्ति है जो बाँटने से घटती नहीं बढ़ती है।
भारत के आने वाले कल पर नजर डालते हुये कहते हैं मनोज :
सो खुदरा दुकानदारी के क्षेत्र में 'वालमार्ट' और 'कैरिफोर' के प्रवेश को लेकर मुझको भी 'फील-गुड' हो रहा है। जरा कल्पना कीजिए कितना सुंदर दृश्य होगा। गला-लंगोट पहनकर 'एक्सप्रेस-बिल्डिंग' के सामने पान-बीड़ी-सिगरेट बेचेगें 'वालमार्ट' वाले और अपने अशोक मल्लिक शेखर गुप्ता के साथ पान खाते हुए एक्सप्रेस के बढ़ते विज्ञापन बढ़ते रेवेन्यू पर चर्चा करेंगे। ये क्या कि भैया अखबार-नवीसों की तरह पान की गुमटी पर पान खाया और जहाँ-तहाँ पीक फेकते हुए जो-सो अखबार में बकते रहे!
अनूप भार्गव निवेदन करते हैं:-
आरती का दिया है तुम्हारे लिये
ज़िन्दगी को जिया है तुम्हारे लिये
एक अरसा हुआ इस को रिसते हुए
ज़ख्म फ़िर भी सिया है तुम्हारे लिये
पाप की गठरियाँ तो हैं सर पे मेरे
पुण्य जो भी किया है तुम्हारे लिये
मैनें थक के कभी हार मानी नहीं
हौसला फ़िर किया है तुम्हारे लिये
जिन्दगी को हसीं एक मकसद मिला
साँस हर इक लिया है तुम्हारे लिये
जिंदगी की जटिल गणित आसान बनाने के तरीके
अनूठे हैं :
शशिसिंह गुजरात पुलिस के नजारे दिखा के गालिब की आबरू के बारे में बताने लगे। फिर भोजपुरी लिखने का मन किया तो किनारे में फंस गये :
मौजें भी शर्मसार हो जाएंगी
बनकर खुद साहिल
साहिल की आशिकी को अंजाम तक पहुंचाएंगी
प्रेमचंद के बारे में बताते डर इनकी जेब में कब घुस गया ये जान ही न पाये।
आशीष कानपुर की गंदगी से परेशान हैं। मनमोहन सिंह जी ने ब्रितानी शासन की तारीफ करके और परेशान कर दिया। लाल रत्नाकरजी की कलाकृतियों से कुछ सुकून मिला कि उत्तरप्रदेश की हालत ने नाक में दम कर दिया।
रति सक्सेना ने असमय साथ छोड़ जाने वाले साथी चित्रकार के बारे में मार्मिक संस्मरण लिखा :
रोजाना सुबह एक चिड़िया
आकर बैठ जाती है मेरी मेज पर
गौर से देखती है
मेरे बनाए चित्रों को, फिर
उनमें से एक चुन
चौंच में दबा कर उड़ जाती है
चित्र को मिल जाता है
नीला रंग आसमान का
जब वह बैठती है दरख्त पर
मेरा चित्र हो जाता है हरा
चित्रकार ने लिखा था
रोजनामचा में अतुल ने भैंस के दर्द की कहानी आगे बढ़ाई। वहीं अमेरिकी संस्मरणों की किस्त की अगली कड़ी पेश की :
पढे लिखे भी झाड़ू लगाते हैं
केडीगुरू ने मजेदार आपबीती सुनायी। केडीगुरू आफिस से घर का रास्ता लोकल ट्रेन से तय करते हैं। एक दिन स्टेशन जाते समय केडीगुरू फुटपाथ पर चल रहे थे। कुछ सोचते सोचते केडीगुरू का सूक्ष्म शरीर चाँदनी चौक पहुँच गया और स्थूल शरीर टेनेसी के फुटपाथ पर चलता रहा। रास्ते में एक भीमकाय अश्वेत झाड़ू लगा रहा था और अमेरिकन सभ्यतानुसार केडीगुरू से "हाई मैन, हाऊ यू डूईंग" बोला। केडी गुरू बेखुदी में सोचने लगे कि क्या जमाना आ गया है जो पढे लिखे अँग्रेजी दाँ लोगो को भी झाड़ू लगानी पड़ रही है। केडीगुरू उसके हालत पर अफसोस प्रकट कर सरकार को कोसने जा ही रहे थे कि उन्हे ख्याल आया कि वे चाँदनी चौक में नही अमेरिका में हैं जहाँ अनपढ भी अँग्रेजी ही बोलते हैं।"
अमरसिंहजी ने लिखा मूँछे हों तो राजीव शुक्ल जैसी ।इस पर रविरतलामी ने पूछा है - और तोंद हो तो..। जबाब तो नहीं दिया पर चाहा है कि भारत का हर रेलवे स्टेशन भोपाल जैसा साफ-सुथरा हो तो कितना अच्छा हो।
सुधीर शर्मा ने बड़ी मेहनत से अपना ब्लाग यूनीकोड में शुरु किया तथा बाज़ार का दौरा किया :
हम ने फिर बाज़ार का दौरा किया।
हर एक ख्वाब पर फिर से नज़र दौडाई।
अब तक इस पशोपेश मेँ हैँ कि किस ख्वाब को चुने।।
पंकज माजरे की चिकाई करके चुपचाप बैठ गये।
कालीचरण भोपाली अंग्रेजी में भी चिट्ठा शुरु कर दिये। कम्प्यूटर श्रमिकों की कुछ समानतायें बतायीं :
टिप्पणी देख सीना फुलाते
जीतु भैया और हम,
प्रोत्साहन के भूखे हैं सभी,
चाहे हों देवगण या यम
कौन बनेगा करोड़पति की बात करते हुये हनुमान जी बताते हैं :
यदि खुशी से जीवन जीना चाहते हो तो दूसरे के लिए जीओ। दूसरे को खुश करोगे तभी असली खुशी मिलेगी।
पुरू ने सनसनीखेज तहलका पत्रकारिता के अंदाज में १-२-३ शुरु किया। पांचवी पोस्ट तक पहुंचते-पहुंचते भंडाफोड़ का माहौल बन गया।
फुरसतिया में ऐतिहासिक हिंदी-अंग्रेजी ब्लागर-(परिवार)कथाकार-पाठक-संयोजक मीट का विवरण दिया गया। इसका ठेलुहा संस्करण होना अभी बाकी है। इस विवरण के बाद ही बादलराग शुरु गया । महिलाओं की समाज में क्या स्थिति है यह पता चलता है तब जब किसी अड़ियल ससुराल वाले से पाला पड़ता है। एक दूसरी ब्लागरमीट जो कि रेलवे प्लेटफार्म पर हुयी उसका विवरण भी दिया गया।
अमित वर्मा भारत के प्रधानमंत्री की अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात की कल्पना करते हैं।
भविष्य की योजनायें कैसे बनायें बताते हैं अतानु डे। शिक्षा व्यवस्था पर भी नजर डालते हैं अतानु। गौतम घोष तरीका बताते हैं सफल मैनेजर बनने का।
दहेज का भूत समाज का पीछा नहीं छोड़ रहा है। सुनील लक्ष्मण बता रहे हैं कुछ किस्से।
मोहे गोरा रंग दई दे के बाद फेयर एंड लवली के बहाने गोरे रंग की महिमा बता रहे हैं विक्रम। देशी पंडित आपको बतायेगा कुछ चुनिंदा पठनीय ब्लाग पोस्ट के बारे में। रागदरबारी में श्रीलाल शुक्ल ट्रक महिमा बताते हुये कहते हैं - उसे (ट्रक को) देखते ही यकीन हो जाता था, इसका जन्म केवल सड़कों से बलात्कार करने के लिये हुआ है। ट्रक से शहरों की पीड़ा की बानगी दे रहे हैं -सुनील। औरत होने की परेशानियों पर नजर डालती हैं चारु तथा उमा। कुछ किस्से बताती हैं कि कितना कठिन है महिलाओं के लिये रोजमर्रा का जीवन जहां पुरुष की नजर बहानों से उनके शरीर पर लगी रहती है।
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