लोग पिक्चरें देख रहे हैं, पिक्चरें जो न करायें। नये-नये अनुभव हो रहे हैं। किसी के
कपड़े खराब हो रहे हैं, कोई
दस नंबरी बनकर
सरकार बनवा रहा है। कोई यहूदियों के
खतने देख रहा है, किसी को बचपन की
छलिया दुबारा याद आ रही है।
अखबार भी बुद्धू बनाने पर तुले हैं। लोग भी खाली कविता लिखने का
प्लान बनाकर सोचते हैं कि कविता लिख गई। बात यहीं तक रहती तो कोई बात थी। अब तो लोगों को
अंधरे में भी दिख रहा है साफ। हालात यहां तक बिगड़ चुके हैं कि लोग
नालायकियों तक को तलाक देने पर तुल गये हैं। वो तो कहो बहुत दिन बाद
चौबेजी दिख गये। आते ही शंका-समाधान में जुट गये - कुछ हालात संभले।
Post Comment
Post Comment
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।
नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.