नींद के मारे सुनीलजी को कुंभकर्ण से सहज सहानुभूति है इसीलिये लंबी गरदन बाली
लड़कियों को देखते-देखते कुंभकर्ण के बारे में
चिंतित हो गये। आशीष गर्ग
कवि सम्मेलन के बारे में बता रहे हैं तो आशीष श्रीवास्तव
कन्या पुराण बांच रहे हैं।वहीं अतुल धर्मेन्दर के अंदाज मे फिलाडेल्फिया में हुई
नौटंकी के बारे में सुना रहे हैं। उधर काली भाई
बकझक करते हुये कालेज के दिनों से होते हुये
बाबर्चीखाने में घुस गये।पंकज लाये हैं
खुशखबरी कि फ्लाक से सीधे आप चिट्ठाकारी कर सकते हैं। अब कहीं कापी पेस्ट की जरूरत नहीं।
करिये तो सहीं हो जायेगा। भाई जी मुद्रा स्थानांतरण के
विज्ञापन भी दे रहे हैं।
रजनीश के गाने भी सुना रहे हैं।कौन रजनीश? अरे यार नये
साथी हैं बच्चे समेत आये हैं। गीत संगीत के दीवाने हैं। स्वागत-सत्कार करो भाई।
हनुमानजी एक बार फिर से
छा गये बालीवुड में। उधर शशि (सिंह) ने शशि(चन्द्रमा) को
बेच दिया। क्या जमाना आ गया गया? देशदुनिया में
देखिये रोचक जानकारी कैटरीना ,रीटा से जुड़ी है-एपोफ़िस और तोरिनो पैमाना। प्रेम शंकर झा लगातार दिल्ली के
माध्यम से दुनिया को देख रहे हैं।उनका एक और विचारोत्तेजक लेख
महिलाओं की वर्तमान स्थिति पर-फोकस से बाहर इंडियन वुमन। सुमीर शर्मा देख रहे हैं फिर इतिहास को
गोद लेने के सिद्धान्त से।जीतेन्दर की कलम कुछ चलने लगी है तो न लिखने वालों के खिलाफ खुली
रिपोर्ट दर्ज करा दी।फिर खुद ही कह रहे हैं यह
अच्छी बात नहीं है ,ये भी कोई बात हुई कि अपने छुट्टन को
भिड़ा दिये बिपाशा बसु से?
प्रत्यक्षा का दुबारा लिखना शुरु हुआ। इस बीच उनको लगा कि तमाम लोग आये होंगे उनके यहां सो पूछ रहीं हैं -
वो तुम थे क्या?:-
जब तक मैं हाथ
आगे बढाती
उँगलियों से पर्दे को
जरा सा हटाती
उस निमिष मात्र में
गाडी बढ गयी आगे
कहीं जो पीछे छूटा
वो तुम थे क्या ??इस पर हिमालय पर खड़े लोग
मुस्करा रहे हैं। फुरसतिया अपनी साइकिल मे दुबारा हवा भरवा के बोलते हैं आओ चलें
घूमने। राजेश
कहते हैं क्या फरक पड़ता है:-
सफर में,
क्या धूप,
कैसी छाँव...?
खेल में,
क्या जीत,
कैसी हार...? --
Posted by अनूप शुक्ला at 10/25/2005 08:48:00 AM
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प्रिय मित्र
जवाब देंहटाएंमेरा नाम सुमीर है सुधीर नहीं
मियां इतिहास से खिलवाङ नहीं करते
पहले से ही इतिहास को गल्त ढंग से पेश किया जा रहा और आप मेरा नाम गल्त प्रकाशत कर के और तूल दे रहे हो
It is concerning sumirhindimain referred to in your report.
सुमीर जी ,आपका नाम ठीक कर दिया। पांच दिन में ही आप इतिहास की वस्तु हो गये? इतनी देर से प्रतिक्रिया -ये अच्छी बात नहीं है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंShubh Shubh bolo Anoop Ji,
जवाब देंहटाएंI am enjoying on joining you people and want to stay longer.
Secondly, do not tease a professor of history. Ha ha ha.
In history, there is rule of evaluation after fifty years. I am bit too early. Well, even in contemporary history, five year gap is required even then I am too early. It is only journalists who write editorials the next day.
Happy Diwali.
ऐतिहासिक प्रोफेसर साहब,जब जुड़ ही गये तो 'मैं ' तुम कहां रहा? सब तो हम हो गये! साथ भी रहेगा ही देर तक। दीपावली की मंगलकामनायें।
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