स्वामीजी की समस्या है कि बैठे-बैठे की यही कुछ ख्याल आने लहते हैं लेकिन मजे की बात ख्याल आते ही जीतेन्दर उड़ने लगते हैं।इस बीच उज्जैन से शरद शर्मा का भी आगमन हुआ चिट्ठा जगत में धानी चूनर के साथ। रजनीश मंगला ने गाने सुनाये,जर्मन सिखाना शुरु किया,पतझड़दिखाया तथा अब बता रहे हैं पंजाबी का टूल दिखा रहे हैं।धन के धेले में बदल जाने की कहानी सुनिये हिंदी ब्लागर से तथा दिल्ली में पुलिस की कहानी सुनिये दिल्ली वालों से।
लक्ष्मीगुप्त जी आवाहन कर रहे हैं:-
सितारों की तरह झिलमिलाते रहो
चाँद निकले, न निकले मेरे साथियो
प्रेम की वर्तिका तुम जलाते रहो
प्रिय आयें न आयें, मेरे साथियो
तुम दिवाली में दीपक......
संजय विद्रोही भी झूमने लगे:-
प्रीतम की बात चली
स्वप्न जगा झूम उठा,
अभिलाषा महक उठी
रोम-रोम पुलक उठा.
लेकिन उड़ती चिड़िया का दर्द है :-
बासी हो गए गीत सभी वो
ऊब चुके हैं सब जन सुनकर
तड़प भले अब भी उतनी हो
ताजी नहीं रही वो मन पर।
इस सब से बेखबर निठल्ले लोग सोने की बात कर रहे हैं गज़ल सुनातेहुये।
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Posted by अनूप शुक्ला at 10/29/2005 07:06:00 AM
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