उनके गिलास को भरने के बाद मुझमे विनायक सेन को ओर जानने की उत्सुकता है ..पर वे एक ओर गेर पेशेवर स्टेट मेंट देते है ...."अब इस समाज में कोई क्रान्ति संभव नहीं है ..यहाँ कोई बैचेनी स्थायी नहीं रहती " कुछ झुके सर सिर्फ हूम हां करते है ....ओर पेशेवर टिप्स की तलाश में नज़दीक आये कुछ युवा आहिस्ता से उठने लगते है .
कौन है ये विनायक सेन ?जिसको चिकित्सको का एक तबका भी अपने जमीर की आखिरी नस्ल के तौर पे देखता है ....
पच्चीस साल पहले देश के प्रतिष्टित मेडिकल कोलेज से निकलने के बाद वे उस रास्ते को चुनते है जिस पर मै ओर आप अब भी चलने में हिचकते है .....उनका कर्तव्य प्रेमचंद के मन्त्र ओर कफ़न पर "उफ़ " करके ख़तम नहीं होता ...... वे उस समाज के भीतर उसकी बेहतरी के लिए घुसते है जिसके पास अपनी व्यथा कहने के लिए वो भाषा या औजार नहीं है जिससे सभ्य समाज तारतम्य बैठाता है ...या रुक कर समझने की कोशिश करता है ....तमाम प्रतिकूलताओ ओर सीमायों के बावजूद उनकी प्रतिबद्ता एक अजीब सी जीवटता लिए न केवल कायम रहती है ....बल्कि अपनी नैतिक स्म्रतियो को बेदखल नहीं होने देती .... वे अपनी उस जिम्मेदारी का निर्वाह करते है जिसका बॉस केवल उनका जमीर है ..........
प्रगतिशीलता के तमाम बुलडोज़रो के बीच अपनी बौद्धिक इमानदारी की आँख न मुंदने देने वाला इंसान जो अपने संशय ईमानदारी से रखता है ..... अचानक देशद्रोही कैसे हो गया ?मेरे लिए ये भी ये यक्ष प्रशन है
इस देशद्रोह को दिनेश राय द्रिवेदी डिफाइन करते है
जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यप्रस्तुति द्वारा या अन्यथा भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा, या पैदा करने का प्रयत्न करेगा, या असंतोष उत्तेजित करेगा या उत्तेजित करने का प्रयत्न करेगा वह आजीवन कारावास से, जिस में जुर्माना भी जोड़ा जा सकेगा या तीन वर्ष तक के कारावास से जिस में जुर्माना जोड़ा जा सकेगा, या जुर्माने से दंडित किया जा सकेगा।
स्पष्टीकरण-1 'असंतोष' पद के अन्तर्गत अभक्ति और शत्रुता की सभी भावनाएँ आती हैं।
स्पष्टीकरण-2 घृणा, अवमान या असंतोष उत्तेजित किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना सरकार के कामों के प्रति विधिपूर्ण साधनों द्वारा उन को परिवर्तित कराने की दृष्टि से आक्षेप प्रकट करने वाली टीका-टिप्पणियाँ इस धारा के अधीन अपराध नहीं हैं।
स्पष्ठीकरण-3 घृणा, अवमान या असंतोष उत्तेजित किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना सरकार की प्रशासनिक या अन्य प्रक्रिया के प्रति आक्षेप प्रकट करने वाली टीका-टिप्पणियाँ इस धारा के अधीन अपराध नहीं हैं।
आंकड़े बताते है इस देश की आबादी २०१५ में शायद सबसे ज्यादा हो जायेगी .आंकड़े ये भी बत्ताते है पिछले कुछ सालो में संसद में मौजूद हमारे सांसदों में करोडपति सांसदों की संख्या में तीस प्रतिशत का इजाफा हुआ है ......आंकड़े याद दिलाते है सात लाख नौकर शाहों के इस देश में देश चलाने वाले नेताओ में तकरीबन कुछ लोग ही ग्रेज्यू वेट है ....आंकड़े भी अजीब होते है ... पर आंकड़े ये नहीं बताते के देशभक्ति आनुवंशिक नहीं होती ......लोक संघर्ष ब्लॉग कुछ यूँ बताता है
यही सन्देश भारतीय राज्य, न्याय व्यवस्था ने दिया है।
...कुछ तटस्थताओ के लिए भी साहस चाहिए ..इस समाज के कई प्रवक्ता है ....कई स्वीकृत कई स्व घोषित .....जो सिद्धांतो की भी बड़ी तर्क पूर्ण व्याखाए देते है .....यूँ भी लिज़ लिजी देश भक्ति कभी कभी हमारे आदर्शो को भी धुंधला कर देती है ......विज़न को भी ...
.बैरंग भी अपनी प्रतिक्रिया देता है ...ये कोई तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं है
डॉ सेन का जुर्म यह रहा कि उन्होने आदिवासियों के लिये काम करते हुए उनके अधिकारों की बात की, उन पर हो रहे जुल्मों का जिक्र किया। उन्होने हिंसा का हमेशा सख्त विरोध किया चाहे वह माओवादियों की हो या सरकारी बलों की! डॉ सेन पुलिस और पुलिस समर्थित गुटों द्वारा व्यापक पैमाने पर किये जा रहे भूमि-हरण, प्रताड़नाओं, बलात्कारों, हत्याओं को मीडिया की रोशनी मे लाये; पीडित तबके के लिये कानूनी लड़ाई मे शामिल हुए। उनका अपराध यह रहा कि वो उस ’पीपुल’स यूनियन फ़ॉर पब्लिक लिबर्टीज’ की छत्तीसगढ़ शाखा के सचिव रहे, जिसने मीडिया मे ’सलवा-जुडुम’ के सरकार-प्रायोजित अत्याचारों को सबसे पहले बेनकाब किया।
इतने गुनाह सरकार की नजर मे आपको कुसूरवार बनाने के लिये काफ़ी है। फिर तो औपचारिकता बाकी रह जाती है। इस लोकतांत्रिक देश की पुलिस ने पहले उन्हे बिना स्पष्ट आरोपों के महीनो जबरन हिरासत मे रखा। फिर कानूनी कार्यवाही का शातिर जाल बुना गया। सरकार तमाम कोशिशों के बावजूद उनकी किसी हिंसात्मक गतिविधि मे संलग्नता को प्रमाणित नही कर पायी। सरकार के पास उनके माओवादियों से संबंध का कोई स्पष्ट साक्ष्य नही दे पायी। पुलिस का उनके खिलाफ़ सबसे संगीन आरोप यह था कि जेलबंद माओवादी कार्यकर्ता नरायन सान्याल के ख़तों को दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने का काम उन्होने किया। मगर इस आरोप के पक्ष मे कोई तथ्यपरक सबूत पुलिस नही दे पायी। उनके खिलाफ़ बनाये केस की हास्यास्पदता का स्तर एक उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है कि सरकारी वकील अदालत मे उन पर यह आरोप लगाता है कि उनकी पत्नी इलिना सेन का ईमेल-व्यवहार ’आइ एस आइ’ से हुआ था। मगर बाद मे अदालत को पता चलता है कि यह आइ एस आइ कोई ’पाकिस्तानी एजेंसी’ नही वरन दिल्ली का सामाजिक-शोध संस्थान ’इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट’ था। फ़र्जी सबूतों और अप्रामाणिक आरोपों के द्वारा ही सही मगर पुलिस के द्वारा उनको शिकंजे मे लेने के पीछे अहम् वजह यह थी कि उनके पास तमाम पुलिसिया ज्यादतियों और फ़र्जी इन्काउंटर्स की तथ्यपरक जानकारियां थी जो सत्ता के लिये शर्म का सबब बन सकती थी।
उत्सव धर्मी इस समाज में साल के आखिरी दिन उम्मीदों ओर आशयो से इतर बिनायक सेन पर लिखना पढना शायद अजीब लगे पर उनकी मौजूदगी किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है ....ओर अपने भीतर सिमटे इस समाज के लिए भी .....वैचारिक असहमतिया ..उम्र कैद की हक़दार नहीं होती.....
सच मानिए आप शायद असहमत हो........पर वे मुझ ओर आपसे कई ज्यादा बड़े देशभक्त है
चाहूँगा कोई भी प्रतिक्रिया या विचार रखते वक़्त इस चर्चा ओर टिप्पणियों पर भी नज़र डाले .....
अरुंधति.....क्रान्ति....नक्सल वाद .आदिवासी ओर वेंटीलेटर पे ये देश