वर्धा में हुये दो दिनिया मिलन-जुलन की इसकी पहले की कहानियां वहीं से लिखीं गयीं थीं। उधर बोला जा रहा था इधर लिखा जा और कुछ भाई लोग अपने उधर से टिपियाते भी जा रहे थे।
पिछली पोस्ट लिखने तक सम्मेलन का ब्लॉगरों के हिस्से का मामला निपट चुका था। जिन लोगों का जिक्र किया मैंने पिछली पोस्टों में उसके अलावा जाकिर अली रजनीश, जय कुमार झा और अशोक कुमार मिश्र ने अपने विचार रखे। इसके बाद आई एक्स्पर्ट पवन दुग्गल ने आई टी कानूनों की जानकारी दी।
ब्लॉग के बारे आई. टी. कानून से संबंधित जानकारी देते हुये उन्होंने बताया कि यदि आपकी बात किसी को बुरी और अपने खिलाफ़ लगती है और उसके द्वारा बताये या नोटिस देने के बाद आप उसे तुरंत अपने ब्लॉग से हटा लेते हैं तो आपके खिलाफ़ कोई मामला नहीं बनता।
सुरेश चिपलूनकर ने एक सवाल पूछा था कि यदि आप किसी दूसरी साइट या अखबार का मसाला इस्तेमाल करते हैं और उसका जिक्र भी करते हैं और आपकी बात किसी को बुरी लगती है तो क्या साइट या अखबार के साथ आपको खिलाफ़ भी मुकदमा बनता है। इस पर उनका कहना था कि हां ऐसे मामले में भी आप पार्टी बन सकते हैं। लेकिन यदि आप सूचना या नोटिस मिलने के बाद अपने ब्लॉग या साइट से वह सामान उतार लेते हैं और खेद प्रकट करते हैं तो आपके खिलाफ़ कोई मामला नहीं बनता।
अगर यह बात सच है तो फ़िर स्नैप शॉट लेकर धरने की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिये।
पवन दुग्गल ने साइबर मसले से जुड़े कुछ मनोरंजक किस्से भी सुनाये जैसे कि:
१. एक जगह पुलिस ने छापा मारा और केवल मानीटर उठाकर ले गयी। सी पी यू छोड़ गयी। बाद में मानीटर इधर-उधर कर दिये और मामला रफ़ा-दफ़ा।
२. एक जगह सबूत के लिये ली गयी पुलिसिया च अदालतिया अंदाज में फ़्लॉपियां सूजे से छेदकर नत्थी करके अदालत में पेश की गयीं। जाहिर है फ़्लॉपी पर कुछ भी पढ़ने में न आया।
३. एक जगह पीसी उठाकर ले गये पुलिस अधिकारी के घर में बच्चों ने होमवर्क किया! गणित के सवाल। इसी बिना पर छूट गया मामला कि इसमें तो कुछ है ही नहीं सिवाय गणित के सवालों के।
वर्धा से लौटकर तमाम लोगों ने अपने संस्मरण लिखे हैं उनमें से कुछ का जिक्र यहां करते हैं!
संजय बेंगाणी को वर्धा सम्मेलन की तीन बातें यादगार लगीं:
१.देर शाम को हिन्दी के महान कवियों की कविताएं पूरे सुर-ताल में सुनना!
२.अधिवक्ता पवन दुग्गल द्वारा सायबर अपराध पर हिन्दी में जानकारी दिया जाना!
३.रवि रतलामीजी की दूरस्थ प्रस्तुति और उसकी भाषा. पहली बार लगा चिट्ठाकारिता की अपनी भाषा में कोई तो बोला. पहला ही वाक्य था, संहिता को गोली मारो. साहित्य की भाषा से विद्रोह.
इसके अलावा संजय बेंगाणी ने सिद्धार्थजी व उनके सहयोगी जो जी-जान से जुटे रहे सम्मेलन को सफ़ल बनाने में उनकी मन से प्रशंसा की अभी एक और पोस्ट वर्धा की यादों पर अंजय निकाल सकते हैं।
जय कुमार झा ने हिन्दी ब्लॉगिंग सम्मेलन सफ़ल बनाने में पर्दे के पीछे के हीरों का जिक्र किया तारीफ़ सहित।
डॉ महेश सिन्हा ने भी वर्धा सम्मेलन से लौटने के किस्से बताये कि कैसे वे बाल-बाल बचे। इस पोस्ट में आलोक धन्वा के वक्तव्य का अश भी है जिसके एक भाग पर संजय बेंगाणी को त्वरित एतराज हुआ (इसके बारे में फ़िर कभी)
रवीन्द्र प्रभात जे जितने सलीके और प्रभावशाली अंदाज में अपनी बातें रखीं ब्लॉग के बारे में सम्मेलन में उतने ही बल्कि और सुघड़ तरीके से तस्वीरें और रपट पेश की। अभी तक उनकी तीन रपटें आ चुकी हैं। आगे और जारी हैं देखिये:
फ़ोटो के साथ विवरण/संवाद पेश करने का अंदाज रवीन्द्र प्रभात का बहुत अच्छा लगा।
विवेक सिंह ने भी वर्धा के गलियारों से (कुछ झूठ कुछ सच ) लिखा। अब सच क्या और झूठ क्या लेकिन विवेक की भोली शक्ल और भले व्यवहार को देखकर कविताजी ने उनके पिछले सारे पाप क्षमा कर दिये यह कहते हुये -अरे तू तो बच्चा है।
संजीत त्रिपाठी ने भी अपने संस्मरण लिखे। संजीत के साथ अनिल पुसदकर को भी आना था लेकिन आये नहीं। डा.महेश सिन्हा संजीत को लेकर आये। संजीत से मिलना भी एक मजेदार अनुभव रहा।
प्रवीण पाण्डेय जी ने भी अपने अंदाज में सारा कुछ देखा-भाला और बताया--वक्तव्यों के देवता।
कविता जी ने दो दिन के सारे घटनाक्रम की रिपोर्ट बहुत सलीके से पेश की! सभी घटनाओं के बारे में इतने अच्छे तरीक से वे ही लिख सकती हैं। ऐसी रपट जिसमें कुछ जोड़ा या घटाया जाना मुमकिन नहीं।
यशवंत ने अपनी संस्मरणात्मक रपट में तो अपना दिल ही उड़ेलकर रख दिया। इस रपट में उन्होंने अपने बारे में भी बताया:
मेरी दिक्कत है कि मैं किसी से बहुत जल्दी अभिभूत हो जाता हूं और किसी से भी बहुत जल्दी फैल जाता हूं.कुछ लोगों को आत्मीयता से लबालब भरी पोस्ट पढ़कर शायद यह लगे कि यह बहुत जल्द अविभूत व्यक्ति के संस्मरण हैं लेकिन चूंकि मैं वहां था और इन सब अनुभवों का गवाह रहा इसलिये कह सकता हूं जो यशवंत ने लिखा वह सच है। यह अलग बात है कि इस तरह हर कोई लिख नहीं पाता। अद्भुत संस्मरण है यह इस सम्मेलन के बारे में।
और बाकी रपटों के बारे में जारी रहेगी। तब ताक आप ये बांच लें और अन्य लोगों के संस्मरण भी आ जायेंगे तब तक। ठीक है न!
इस विषय में मेरी पोस्ट आनी शेष है, वक्तव्यों के देवता तो गांधीजी का आश्रम देखने के बाद ही तैयार हो गयी थी। उनकी कर्मशीलता का चित्रण आज के सामाजिक परिवेश के आधार पर था, ब्लॉगर सम्मेलन से तनिक भी सम्बद्ध न था।
जवाब देंहटाएंबाह बाह ई हुई न बात ..प्रवीण जी की पोस्ट की भी प्रतीक्षा रहेगी ..अब सब ठो रपट एके जगह मिल जाएगा
जवाब देंहटाएंwhere is the white paper of this govt sponsored meet ? Can we talk about the results instead of posting the pics, and repeated one liners ?
जवाब देंहटाएंIs someone going to compile the reports which are going to be made public ?
aap rapate rahen hum sarpte rahenge.....
जवाब देंहटाएंek ek khabaron ka khabar lete rahenge....
aap agle post ki tayaree rakhen hum tab-tak
sare links par ghoom aate hain.....
pranam
raam tyagi ji ki baat par dhyaan dae
जवाब देंहटाएंसबको पढने के बाद अब केवल प्रवीण पाण्डेय जी की लेखनी का इन्तजार है !!
जवाब देंहटाएंडा.अनिल सिन्हा कौन हैं ?
...शायद डा. महेश सिन्हा होंगे ?
महात्मा गांधी हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा एक स्वशासी संस्थान है जोकि हिन्दी भाषा के उन्नयन एवं प्रसार के लिए स्थापित है। इस संस्थान में हिन्दी के विभिन्न आयामो पर कार्यशाला और गोष्ठियाँ आयोजित की जाती हैं । इसी सिलसिले में इस ब्लॉगर सम्मेलन एवं कार्यशाला का आयोजन किया गया था ।
जवाब देंहटाएंयह इस संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम था न कि प्रायोजित। ब्लॉग के रूप में उभरते हुए, हिन्दी के इस नए मंच को स्वीकारते हुए विश्वविद्यालय ने यह आयोजन किया ।
गुरुजी(प्रवीण त्रिवेदी जी) सही कह रहे हैं लगता है :)
जवाब देंहटाएंअनूप जी उम्दा चर्चा है। मेरी भी शाम को पोस्ट आ रही है। बस शाम का ही मुहुर्त्त निकला है।
जवाब देंहटाएंएक ठो छोटी सी पोस्ट हमहूं ठेल दिये हैं… वर्धा की रिपोर्ट "जरा हट के" :)
जवाब देंहटाएंउसे पढ़कर कुछ लोग "हट" लेंगे… और कुछ "खिसक" लेंगे… :)
बाह बाह ई हुई न बात !
जवाब देंहटाएंसार्थक और सराहनीय चर्चा के लिए आभार ...
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जवाब देंहटाएंज़ाहिल कहे जाने की कीमत पर भी मैं यही दोहराऊँगा कि गैर-अकादमिक आयोजन के रूप में ऎसी गोष्ठियाँ, ऎसे सम्मेलनादि ध्रुवीकरण एवँ गुटों के गठन की मातृशक्ति है । हमारी सँस्कृति कि बुनियाद ही ऎसी है, सागर-मँथन के समय से ही सुर और असुरों के विभाजन की शुरुआत हो चुकी थी । आज तलक तमाम तरह के छलावे समाज को बाँटते ही आये हैं । विचारों को मारिये गोली.. ( काम के ) व्यक्तियों को पकड़े रहिये, जन्म सार्थक कीजिये ।
दूसरा प्रश्न यह था कि क्या वज़ह है कि, यह आयोजन विभूति नारायण जी की डेहरी पर हो रही है ? यदि यह उनकी कृपा से प्रायोजित रहा, तो चर्चा के पिछले तमाम रिपोर्ताज में इस तथ्य का उल्लेख नहीं है, अहो किम आश्चर्यम ?
अपने को लॉबीइँग के शिकार होते रहने से हम कब मुक्त हो पायेंगे ? और... होना भी न चाहिये क्योंकि मुझे याद है कि, चर्चा के इसी मँच से विभूति बाबू की कैसी थुड़ी थुड़ी हुई थी । अब उसके प्रायश्चित अनुष्ठान में बात के तौर पर सही पर कटु सत्य यह भी है कि , हिन्दी क्षेत्र में व्याप्त दूध-ज़लेबी की ताकत अब इधर भी ताक-झाँक लगाने लगी है । बिस्मिल्लाह रहमानुर्रहीम.. जुगाड़ रहे अपना औ’ रहमत तेरी, तौ भला हम काहे न दँड पेली ?
सवाल सीधा है, ब्लॉगिंग का मुक्त मँच क्या सरकारी / अर्ध-सरकारी इमदाद और दो-नम्बरी बाज़ारवाद की राह चल चुका है ?
आचार सँहिता को लेकर हमने भी यही पूछा था कि हम स्वयँ ही अपने को बाँधने का प्रयास क्यों करें ?
आदरणीय रतलामी भाई ने भी छूटते ही यही दागा कि, ’ संहिता को गोली मारो ’.. जबकि इस चर्चा की पिछली किश्तों में भी आम पाठकों की यही सहमति बनी, उनके कथन में केवल इतना ही नयापन है कि, ऊई कहिन तौ व्यक्तव्य, हम पँचे कहा तौ बकतब ( बकवास ! )
जय राम जी की, पूड़ी खाइये देसी घी की, हमको आज्ञा दीजिये, कुत्ता भौंकबे करेगा, हाथी अपनी राह चलेगा, जिसकी जितनी समझ होगी ऊ उतना ही सोचेगा ( ई सब ज़ुमलों को डिस्क्लेमर मान लेने में कोनो बुराई नहीं है, त मान लीजिये न ! )
आपकी यह चर्चा सचमुच सराहनीय ही नहीं सार्थक भी है, अच्छा लगा पढ़कर !
जवाब देंहटाएंअरे वाह, चर्चा की भी चर्चा। काश, मैंने अपनी पोस्ट थोड़ा पहले लिखी होती।
जवाब देंहटाएं................
वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
….अब आप अल्पना जी से विज्ञान समाचार सुनिए।
milna jaruri hai. sabse jaruri hai apne aap se milna.narayan narayan
जवाब देंहटाएंवर्धामयी चर्चा...बढ़िया है .कुछ रिपोर्ट पढ़ ली हैं कुछ पढते हैं जाकर.
जवाब देंहटाएंहमारी डिमाण्ड है कि हमारे नाम के साथ जोड़े गए पाप शब्द से पहले तथाकथित शब्द और लगा दिया जाय ।
जवाब देंहटाएं(वैसे नहीं लगाएंगे तो भी हम कानूनी पचड़े में न पडेंगे ।)
इस फोटो पे क्लिक करने पर एक दूसरी फोटो खुल जाती है. फोटो नंबर ११७ का लिंक ७९ को जा रहा है :)
जवाब देंहटाएंबहुप्रतीक्षित चर्चा. वर्धा सम्मेलन की तस्वीरें लगायें, हम इन्तज़ार में हैं.
जवाब देंहटाएंवर्धा सम्मेलन कई अर्थों में विशिष्ट व महत्वपूर्ण था. विश्वविद्यालय, कुलपति और सिद्धार्थ को तो इसका श्रेय जाता ही है, साथ ही उन ब्लॉगर्ज़ को भी जिन्होंने इसे चिख चिख और हायतौबा से मुक्त रखा.
जवाब देंहटाएंबरती गयी दूरदर्शिता के अच्छे परिणाम आना स्वाभाविक है.
अभी आपका फुरसतिया टाईप संस्मरण फुरसतिया पर आना बाकी है, जिसमें यात्रा के कई रोचक पहलू और पढ़ने को मिलेंगे
इतने वैट पेपर ब्लैक कर दिये और इतनी गुटबाज़ी कि सोच में पड गए कि मौज करे या मस्त रहें :) :) मस्त चर्चा पर मस्ट टिप्पणियां - कोई डिस्क्लेमर नहीं:)
जवाब देंहटाएंसिन्हा और शुक्ल जी , वैसे ये विश्विद्यालय द्वारा आयोजित कार्यक्रम था प्रायोजित नहीं ?? अगर प्रायोजकों कि बात (और आयोजकों) की बात सुनूं तो ये प्रायोजित ही लगता है ! चलो शब्दों पर क्यों जाए - अगर आयोजित भी था तो क्या मिनट ऑफ मीटिंग या एक प्रोपर सारांश भेजा जाना न्यायोचित नहीं ? या फिर सटासट फोटो और वाहवाही चिपकाते जाओ और वाहवाही की कमेन्ट तो लोग देने तैयार हैं ही !!
जवाब देंहटाएंराम मुझे समझ नहीं आ रहा है की आपको क्षोभ किस बात का है । रही बात जानकारी की तो वह भी उपलब्ध है कई ब्लॉग पर।
जवाब देंहटाएंhttp://hindibharat.blogspot.com/2010/10/blog-post_13.html
http://sanjeettripathi.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
डॉ सिन्हा जी, नमस्ते
जवाब देंहटाएंमुझे क्षोभ नहीं, दुःख नहीं , अपेक्षा और कुछ प्रश्न थे बस
१. कि विस्तृत रिपोर्ट और बिन्दुवत स्पष्टीकरण कहीं उपलब्द्ध है क्या ? (the link you provided here, have all the repeated thing what i see everywhere - not sure how you extinct that with others)
२. कि कार्यक्रम की सार्वजनिक रूप से घोषणा नहीं की गयी थी, पर फिर पता चला कि त्रिपाठी जी के ब्लॉग पर इसको खबर थी, क्या अगले बार से और अधिक पारदर्शिता बरती जा सकती है ?
३. क्या मुझको हिंदी ब्लॉगर और देश का नागरिक होने के नाते आयोजकों से कोई प्रश्न पूछना मना है क्या
४ क्या प्रश्न पूछने से आयोजन की सफलता पर कोई अंकुश लग रहा है
५. आपकी तरह और भी १५००० माईनस ३० /४० लोगों की भी इच्छा रही होगी कि प्रबुद्ध लोगों से मिल सकें
६. इसका नवीन तकनीकियों से जैसे यू ट्यूब वगैरह के माध्यम से और भी अधिक लोगों तक पहुचाने का काम क्यूं नहीं किया गया or can we plan next time ?
७. जो लोग नहीं आ सकते थे क्या कुछ ऐसा सार्वजनिक जगह पर लिखा गया था कि वो ऑनलाइन होकर अपनी बात कह सकते हैं (विडियो कांफ्रेंसे के जरिये )
ऐसे छोटे छोटे प्रश्न (tathakathit - jaisa ki Tripathi said) हैं , जिन पर गौर करके अगली बार कार्यक्रम को और अधिक बढ़िया और लोकप्रिय बनाया जा सकता है , आलोचना कभी कम नहीं होगी, कितना भी सुधारक kar लो पर प्रश्न फिर भी होंगे पर क्या यही बहाना बनाकर हम प्रश्नों को अनुत्तरित रहेने देंगे ? प्रश्नों पर अगर बौखलाहट होने लगे या मुझे हजात जाने को बोल मेरे अमेरिका में रहने का मजाक उड़ाया जाए (KAvita jee also comes in same category) - क्या ऐसा करने से एक सार्वजनिक कार्यक्रम की सार्वजनिक जिम्मेदारी पूरी ho jaati है ? alochana को raddi kii tokari में phenk doge to मुझे कोई asar नहीं और अगर इसको maan loge to भी मुझे कोई phark नहीं पर haan isase आयोजन और हिंदी blogging और aayojnakarta के badppan का ahssas jaroor hota !
is बात को bahut jaldi khatm किया ja सकता था कुछ प्रश्नों को as a feedback shamil करके , har meeting के baad plas or delta की बात karana aajakal का एक standard हैं और हम हिंदी bloggars को और vishvidyalay को भी in मानकों पर पर चलने में संशय क्यूं हो रहा है या क्यों दिखाया जा रहा है !
आशा है, मैं आपका संशय या जदोजहद दूर कर पाया हूँ अपने स्पष्टीकरण से !!
I do not come on this blog or post regulariy so please send me email for further queires, doubts !
Also read
http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/2010/10/blog-post_18.html
&
http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/2010/10/blog-post_10.html for comments from Tripathi jee and my replies.
in case you want to disucss on phone, email me your number and i will be glad to call you this week end and then we can talk in detail.
Regards
Ram tyagi
HINDI BLOGGING MEIN BHI AJEEB TAMASHE CHAL RAHI HAI..MAHATMA GANDHI ANTARRASHTRIYA HINDI VISHWAVIDYALAYA , WARDHA KE BLOG PER ENGLISH KI EK POST PER PRITI SAGAR NE EK COMMENT POST KI HAI…AISA LAGA KI POST KO SABSE JYADA PRITI SAGAR NE HI SAMJHA..PER SACHHAI YE HAI KI PRITI SAGAR NA TO EK LINE BHI ENGLISH LIKH SAKTI HAIN AUR NA HI BOL SAKTI HAIN…BINA KISI LITERARY CREATIVE WORK KE PRITI SAGAR KO UNIVERSITY KI WEBSITE PER LITERARY WRITER BANA DIYA GAYA…PRITI SAGAR NE SUNITA NAAM KI EK NON EXHISTING EMPLOYEE KE NAAM PER HINDI UNIVERSITY KA EK FAKE ICARD BANWAYA AUR US ICARD PER SIM BHI LE LIYA…IS MAAMLE MEIN CBI AUR CENTRAL VIGILECE COMMISSION KI ENQUIRY CHAL RAHI HAI.. MEDIA KE LOGON KE PAAS SAARE DOCUMETS HAI AUR JALDI HI YEH HINDI UNIVERSITY WARDHA KA YAH SCANDAL NATIONAL MEDIA MEIN HIT KAREGA….AISE FRAUD BLOGGERS SE NA TO HINDI BLOGGING KA BHALA HOGA , NA TECHNOLOGY KA AUR NA HI DESH KA…KYUNKI GANDI MACHLI KI BADBOO SE POORA TAALAB HI BADBOODAAR HO JAATA HAI
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