चिट्ठाचर्चा कभी हमारी मनपसंद कारगुजारी होती थी नेट पर। है तो अभी भी लेकिन इस कारगुजारी के लिये समय नहीं निकलना मुश्किल हो गया है। बीच-बीच में शुरु करते हैं बंद कर देते हैं। तय करते हैं कि नियमित करेंगे लेकिन फ़िर अनियमित हो जाते हैं। मेरी दो टकियों की नौकरी में लाखों की चर्चा जाये टाइप। अब सोचते हैं कि बिल्कुल अनियमित चर्चा करेंगे।
चिट्ठाजगत के शुरुआती दौर में चहल-पहल बहुत थी। किसी बड़े घर के आंगन के तरह से सुबह से ही गुलजार हो जाता था चिट्ठाजगत का आंगन। जीवंत, कलरव,कलह, टिप्पणी फ़ुटौव्वल, सुलह मरहम। तब संकलकों की बड़ी भूमिका थी चिट्ठों के बारे में जानकारी देने में। बीते दिनों को याद करते हुये चंद्रभूषण पूछते हैं-क्या हिंदी ब्लॉगिंग दोबारा जिंदा हो सकती है पुराने दिनों को याद करते हुये वे लिखते हैं:
अब चर्चा की शुरुआत कर रहे हैं तो हिन्दी ब्लॉगिंग के मार्निंग ब्लॉगर ज्ञान जी से ही काहे न की जाये। पांच साल पहले ज्ञानजी पर लिखी पोस्ट का शीर्षक था- ज्ञानजी हिंदी ब्लॉग जगत के मार्निंग ब्लॉगर हैं । आज पांच साल बाद भी ज्ञानजी अपना जलवा बरकरार रखे हैं और सुबहिया पोस्टें ठेलते हैं। नया कैमरा ले किये हैं तो अब खरपतवार के फ़ोटू भी लेना शुरु किये हैं! आप भी देखिये ताजी पोस्ट का एक ठो फ़ोटू।
इससे एक बार फ़िर साबित हुआ कि अच्छा कैमरा हाथ आते ही लोग कूड़ा फ़ोटू खैंचने लगते हैं।
अच्छे भले लड़के कैसे कविता और बाद में कैसे ब्लॉगिंग की तरफ़ उन्मुख होते हैं यह पता चलता है देवांशु की दो साला पोस्ट से। अगड़म-बगड़म-स्वाहा पर पोस्ट पूरे उन्नीस दिन बाद आई। लेकिन इसको पढ़ने से पता चलता है किन-किन लोगों का हाथ रहा है इनको ब्लॉग की दुनिया में लाने और बनाये रखने में। वे लिखते हैं:
देवांशु की इस पोस्ट में ब्लॉग जगत के सक्रिय और शरीफ़ माने जाने वालें ब्लॉगर हैं। खतरनाक कहने में खतरा सो न कहेंगे लेकिन एक-एक करके उनके ब्लॉग का पता बता देते हैं। बायें से पहली हैं सोनल रस्तोगी। छोटी-छरहरी पोस्टों में अपनी बात कहने वाली सोनल छुटकी कविताओं और एकबार में पढ़कर तारीफ़ करने लायक कहानियों में अपनी बात कहती हैं। कविताओं में जो होता है सो आप देखें लेकिन कहानियों में कुछ न कुछ शरारत जरुर रहती है। ताजी पोस्ट में कविता है सो देखिये उसका अंश:
बायें से दूसरी अनु् सिंह चौधरी घुमन्तू और संस्मरण उस्ताद हैं। आसपास की घटनाओं को अपने संवेदनशील नजरिये से देखने वाली। उनकी सबसे ताजी पोस्ट का शीर्षक ही उनकी पूरी बात बयान करता है- बोए जाते हैं बेटे, उग आती हैं बेटियां। देखिये इसका अंश:
उसई ऊपर वाले फ़ोटू में चौथे कलाकार हैं अभिषेक बाबू। हम मिले तो नहीं इनसे लेकिन लगता है सबसे शरीफ़ इस फोटू में अभिषेक ही हैं। प्रेम कहानी बहुत लिखते हैं। इस बार पर हम कोई टिप्पणी नहीं करेंगे लेकिन अच्छा लगता है उनकी कहानियां पढ़ना। सबसे ताजी कहानी आप भी प्रेम रस में पगी है। देखिये बयान:
अब देखिये मजाक-मजाक में इत्ते चिट्ठों का जिक्र हो गया। करना तो और चाहते थे लेकिन समय मुआ मौका नहीं देता। सो चलना पड़ेगा जी। लेकिन चलते-चलते एक समाचार सुनते चलिये। कविता वाचक्नवी जी को भारतीय उच्चायोग, लंदन द्वारा "आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पत्रकारिता सम्मान" से सम्मानित किया गया। उनको बहुत-बहुत बधाई। कविता जी चिट्ठाचर्चा मंच से बहुत दिन तक जुड़ी रहीं। तमाम बेहतरीन चर्चायें की उन्होंने। चिट्ठाचर्चा की हजारवीं पोस्ट उन्होंने ही लिखी थी-गर्व का हजारवाँ चरण : प्रत्येक ज्ञात- अज्ञात को बधाई
कविता जी को बहुत-बहुत बधाई। आगे और सम्मान मिलने के लिये मंगलकामनायें।
आज के लिये फ़िलहाल इतना ही। बाकी फ़िर कभी।
आपका दिन चकाचक बीते। शुभकामनायें।
चिट्ठाजगत के शुरुआती दौर में चहल-पहल बहुत थी। किसी बड़े घर के आंगन के तरह से सुबह से ही गुलजार हो जाता था चिट्ठाजगत का आंगन। जीवंत, कलरव,कलह, टिप्पणी फ़ुटौव्वल, सुलह मरहम। तब संकलकों की बड़ी भूमिका थी चिट्ठों के बारे में जानकारी देने में। बीते दिनों को याद करते हुये चंद्रभूषण पूछते हैं-क्या हिंदी ब्लॉगिंग दोबारा जिंदा हो सकती है पुराने दिनों को याद करते हुये वे लिखते हैं:
पांच-छह साल पहले अचानक ऐसा हुआ कि हिंदी की सबसे अच्छी चीजें ब्लॉग पर ही पढ़ने को मिलने लगीं। कंटेंट और भाषा, दोनों स्तरों पर इतनी ताजगी कि जादू सिर चढ़ कर बोलता था। उन्हीं दिनों देखादेखी मैं भी लिखने वालों में शामिल हुआ। बिल्कुल स्पॉन्टेनियस ढंग से कुछ चीजें लिखीं और इसमें भी उतना ही मजा आया, जितना पढ़ने में आता था।आज के हाल भी बयान किये चंदू जी ने:
पिछले साल के मध्य में थोड़ा-बहुत सोशल साइटें देखने की फुरसत और हिम्मत मिली तो दिखा कि खेल का मैदान बदल चुका है। जिन भी ब्लॉगरों के लिंक मेरे पास थे, उनपर नई चीजें बहुत ही कम आ रही थीं। उन्हें फिर से पढ़ पाने की चाहत में फेसबुक पर गया, जहां उनकी सक्रियता की खबरें मिल रही थीं। टेक्नोसैवी मैं हूं नहीं, लिहाजा देख पाने की सीमा है, लेकिन पता नहीं क्यों फेसबुक के साथ मेरी रसाई बिल्कुल ही नहीं हो पाई है।आखिर में उनका सवाल है:
हालत यह है कि लगभग सभी नामी अखबार और पत्रिकाएं अपने ऑनलाइन एडिशन में चर्चित लेखकों को ब्लॉगर की शक्ल में ही पेश कर रही हैं- हालांकि जेनुइन ब्लॉग कंटेंट के आसपास भी ये नहीं पहुंचते। जानना चाहता हूं कि क्या हिंदी ब्लॉगिंग अब खत्म हो चुकी है।और लोगों की टिप्पणियों के अलावा रवि रतलामी की टिप्पणी है :
ब्लॉगिंग तो कभी मरी ही नहीं थी, तो फिर से जिंदा होने का सवाल कहाँ से उठता है.अब जब ब्लॉगिंग धड़ल्ले से हो रही है तो अपन सोचते हैं कि उसकी चर्चा भी होनी चाहिये-भले ही गाहे-बगाहे। है कि नहीं।
ब्लॉगिंग सदा सर्वदा की तरह फल फूल रही है. यहाँ देखें -
http://www.haaram.com/Default.aspx?ln=hi
अब चर्चा की शुरुआत कर रहे हैं तो हिन्दी ब्लॉगिंग के मार्निंग ब्लॉगर ज्ञान जी से ही काहे न की जाये। पांच साल पहले ज्ञानजी पर लिखी पोस्ट का शीर्षक था- ज्ञानजी हिंदी ब्लॉग जगत के मार्निंग ब्लॉगर हैं । आज पांच साल बाद भी ज्ञानजी अपना जलवा बरकरार रखे हैं और सुबहिया पोस्टें ठेलते हैं। नया कैमरा ले किये हैं तो अब खरपतवार के फ़ोटू भी लेना शुरु किये हैं! आप भी देखिये ताजी पोस्ट का एक ठो फ़ोटू।
इससे एक बार फ़िर साबित हुआ कि अच्छा कैमरा हाथ आते ही लोग कूड़ा फ़ोटू खैंचने लगते हैं।
अच्छे भले लड़के कैसे कविता और बाद में कैसे ब्लॉगिंग की तरफ़ उन्मुख होते हैं यह पता चलता है देवांशु की दो साला पोस्ट से। अगड़म-बगड़म-स्वाहा पर पोस्ट पूरे उन्नीस दिन बाद आई। लेकिन इसको पढ़ने से पता चलता है किन-किन लोगों का हाथ रहा है इनको ब्लॉग की दुनिया में लाने और बनाये रखने में। वे लिखते हैं:
ब्लॉग की दुनिया में पंकज बाबू हमें लेकर आये | हालांकि पंकज हमारे ही शहर से हैं, पर उनसे पहली मुलाक़ात कोलकाता में हुई | फिर वो मुंबई चले गए और मैं बंगलोर | पंकज के दो कॉलेज फ्रेंड मेरे साथ मेरे ही प्रोजेक्ट में थे | उनमें से एक पवन बाबू से पता चला कि पंकज साहब भी कॉलेज के पहले से लिखते आये थे | उनकी एक डायरी थी जिसे कॉलेज में “ज़हर की पोटली" कहा जाता और पंकज जैसे ही उसे लेकर आते बोला जाता “आओ डसो" |
देवांशु की इस पोस्ट में ब्लॉग जगत के सक्रिय और शरीफ़ माने जाने वालें ब्लॉगर हैं। खतरनाक कहने में खतरा सो न कहेंगे लेकिन एक-एक करके उनके ब्लॉग का पता बता देते हैं। बायें से पहली हैं सोनल रस्तोगी। छोटी-छरहरी पोस्टों में अपनी बात कहने वाली सोनल छुटकी कविताओं और एकबार में पढ़कर तारीफ़ करने लायक कहानियों में अपनी बात कहती हैं। कविताओं में जो होता है सो आप देखें लेकिन कहानियों में कुछ न कुछ शरारत जरुर रहती है। ताजी पोस्ट में कविता है सो देखिये उसका अंश:
जागा हूँ उस दिन सेइस कविता से ही पता चलता है कि कवि रहे भले सिटकनी वाले घरे में लेकिन कविता में कुण्डी ही लगायेगा।
पलक भी झपकी नहीं
के तुम लौट ना जाओ
खडका कर कुण्डी कहीं
आहट सुनना चाहता हूँ
तुम्हे छूना चाहता हूँ
कहते है राख से भी
जन्म जाते है लोग
गर पुकारो दिल से
बायें से दूसरी अनु् सिंह चौधरी घुमन्तू और संस्मरण उस्ताद हैं। आसपास की घटनाओं को अपने संवेदनशील नजरिये से देखने वाली। उनकी सबसे ताजी पोस्ट का शीर्षक ही उनकी पूरी बात बयान करता है- बोए जाते हैं बेटे, उग आती हैं बेटियां। देखिये इसका अंश:
बेटे पढ़ानेवाले, क्या तेरे मन में समाईपोस्ट पूरी पढी जानी चाहिये सो आप पहुंचिये यहां। देवांशु के ब्लॉग की तीसरी फोटो है लंदन निवासी प्रवासी ब्लॉगर शिखा वार्ष्णेय की। उनकी तारीफ़ क्या करें उनके बारे में सब लोग जानते होंगे। हाल ही में लेखनी सानिध्य में रहीं और उसके किस्से कम बयान किये फ़ोटू ज्यादा लगाये।
काहे ना बेटी पढ़ाई तूने...
बेटे को दिया तूने तख़्ती और बस्ता
बेटी ने गठरी उठाई
उसई ऊपर वाले फ़ोटू में चौथे कलाकार हैं अभिषेक बाबू। हम मिले तो नहीं इनसे लेकिन लगता है सबसे शरीफ़ इस फोटू में अभिषेक ही हैं। प्रेम कहानी बहुत लिखते हैं। इस बार पर हम कोई टिप्पणी नहीं करेंगे लेकिन अच्छा लगता है उनकी कहानियां पढ़ना। सबसे ताजी कहानी आप भी प्रेम रस में पगी है। देखिये बयान:
कुछ आज से पांच साल पहले तक तुम्हारे लिखे खत मुझे मिलते रहे..अब नहीं मिलते तुम्हारे खत मुझे..ये एक तरह से अच्छा भी है..क्यूंकि तुम्हारे खत पढ़ के मैं उन रास्तों पे चलने लगता हूँ जहाँ खुद को तुम्हारे और करीब पाता हूँ..जहाँ तुम और ज्यादा मेरे अंदर बस सी जाती हो..लेकिन शायद अब समय है की उन रास्तों पे आगे न बढूँ..तो ऐसे में ये अच्छा ही है की तुम्हारे खत नहीं मिलते हैं मुझे अब.अब नायक को समझना चाहिये कि पांच साल पहले का जमाना और था और आज का जमाना और। अब एस.एम.एस., चैटिंग के जमाने में कहां प्रेम पत्र। नायिकायें भी आधुनिक होंगी की नहीं।
अब देखिये मजाक-मजाक में इत्ते चिट्ठों का जिक्र हो गया। करना तो और चाहते थे लेकिन समय मुआ मौका नहीं देता। सो चलना पड़ेगा जी। लेकिन चलते-चलते एक समाचार सुनते चलिये। कविता वाचक्नवी जी को भारतीय उच्चायोग, लंदन द्वारा "आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पत्रकारिता सम्मान" से सम्मानित किया गया। उनको बहुत-बहुत बधाई। कविता जी चिट्ठाचर्चा मंच से बहुत दिन तक जुड़ी रहीं। तमाम बेहतरीन चर्चायें की उन्होंने। चिट्ठाचर्चा की हजारवीं पोस्ट उन्होंने ही लिखी थी-गर्व का हजारवाँ चरण : प्रत्येक ज्ञात- अज्ञात को बधाई
कविता जी को बहुत-बहुत बधाई। आगे और सम्मान मिलने के लिये मंगलकामनायें।
आज के लिये फ़िलहाल इतना ही। बाकी फ़िर कभी।
आपका दिन चकाचक बीते। शुभकामनायें।
अच्छा लगा कि चलो इस पन्ने की भी सुध ली :)
जवाब देंहटाएंमन तो कई बार किया पहले भी लेकिन आज सोचा करते हैं। जो होगा देखा जायेगा।
हटाएंदेवांशु की पोस्ट पढ़ते ही लग गया था कि अपने अनूप भाई इस अवसर को जाने न देगें जमकर कैश कर लेगें -वह मानुष ही क्या जो अवसर चूके .... :-) बाकी फायदा यह रहा कि सचमुच कई सुदर्शन ब्लागरों के दर्शन हो गए -अब इससे बढियां मोर्निंग पोस्ट कौन हो सकती है? झाड झंखाड़ वाली तो कतई नहीं ....मगर वो चर्चित फोटू का आख़िरी बन्दा कौन है जो चर्चाये काबिल न रहा ? क्या देवांशु हैं ?
जवाब देंहटाएंऔर वाचक्नवी जी को बधाई,इसी काव्य गोष्ठी से बहुत उदास सी शिखा वार्ष्णेय जी लौटी थीं जिसका सबब मैं समझने के जुगाड़ में जुटा हूँ :-) (अब ये बाल ऐसे ही सफ़ेद न हुए )
चिटठा चर्चा जारी रखें महराज -कोई तो शव तो साधना में लगा रहे -मरघट की मुर्दानगी खलती है भाई -रतलामी जी आशावादी अतिवादी हैं!
जी. सबसे दाहिने ओर वाला बंदा ही "जहरखुरानी" वाला देवांशु है.
हटाएं@अरविन्द मिश्रजी,
हटाएंदेवांशु की चर्चा तो सबसे पहले की। उसई के बाद इस फोटो के बहाने चर्चा कर लिये। यह अवसर भुनाने की बात आपके दिमाग में आयी और इधर चर्चा भी हो गयी। ये आपके विश्वास की रक्षा हुई। लेकिन हम ऐसा कई बार सोचते रहे कि चर्चा करनी चाहिये लेकिन समय बड़ा बलवान!
वैसे अब उस दौर और मूड से काफ़ी बाहर निकल आये हैं जिसमें अवसर भुनाने की बात सोची जाये। :)
स्पष्टीकरण के लिए आभार -यह जरुरी था वर्ना हमें तो आपका वह उदास चेहरा भूल ही नहीं रहा ..सच्ची !:-) चलिए बात खत्म हुयी !
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएं@Arvind Mishra लीजिये मुस्करा दिये आपकी बात! :)
हटाएंबहुत बढ़िया लेख | बहुत कुछ नया समझने और पढने को मिला | ब्लोग्गेर्स के बारे में जानने को भी मिला |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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जवाब देंहटाएंरामराम.
डबल लाइक।
हटाएंराम राम!
वाकई वह अच्छा दौर था.....
जवाब देंहटाएंहां, था तो। अभी भी याद आता है।
हटाएंbadhiyan...........kafi dino baad charcha' kiye...... lekin tapchik kiye....
जवाब देंहटाएंabhar aapka.....
holinam.
धन्यवाद!
हटाएंbadhiyan...........kafi dino baad charcha' kiye...... lekin tapchik kiye....
जवाब देंहटाएंabhar aapka.....
holinam.
फ़िर से धन्यवाद!
हटाएंइतने लम्बे समय का गोता लगाना ये सिद्ध करता है कि अब चर्चा का समय फेसबुक ले गया है. फिर से चर्चा पढ़ने को मिली वह भी अतीत से जुडी . बहुत अच्छा लगा .
जवाब देंहटाएं--
चर्चा का समय फ़ेसबुक ने नहीं लिया। बस ऐसे ही कम हो गया है। लेकिन फ़िर से करेंगे- अनियमित। :)
हटाएंताजगी सी लिए चर्चा।
जवाब देंहटाएंआभार आपकी प्रतिक्रिया के लिये। :)
हटाएंअगर आप अनियमित तरीके से चर्चा करेंगे तो आपके ऊपर अनियमितता का आरोप लग सकता है :) :) :)
जवाब देंहटाएंबाकी आपने अभिषेक को सबसे शरीफ बोला इसपर हमें आपत्ति है और इस बात पर हमारा समर्थन पीडी भी करेगा , क्यूँ पीडी ?? :) :) :)
चिट्ठा चर्चा बड़े दिनों बाद हुई | और जब हुई तो हम भी शामिल हैं इस बात पर "मोगैम्बो खुश हुआ" :) :) :)
@ देवांशु निगम,
हटाएंआरोप लगेगा तब देखा जायेगा जी। पहले अनियमित हो तो लें।
अभिषेक को हमने शरीफ़ बोला क्योंकि कुछ तो बोलना था। तुम्हारी आपत्ति का समर्थन अभी तक पीडी ने नहीं किया है तो कैसे मान लें कि तुम्हारी आपत्ति जायज है
मोगैम्बो खुश होने के साथ-साथ लिखता भी रहे तो अच्छा है।
लीजिये, समर्थन कर देते हैं. आज का तो फैशन ही हो चला है समर्थन माँगना और देना. कभी-कभी वापस भी लेना.
हटाएंचलिए अनियमित ही सही,एक अच्छी चर्चा चालू रहे वही काफी है.
जवाब देंहटाएंआभार.
कविता जी को भारतीय उच्चायोग लन्दन ने, यहाँ १९ मार्च को हिंदी के लिए उनकी बेहतरीन सेवाओं के लिए आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित किया है.
हटाएंबेहद ख़ुशी का मौका है.उन्हें ढेरों बधाई.
देखिये कैसे चलती है। कविता जी को बधाई तो है ही। आजकल खूब उपलब्धियां हासिल हो रही हैं उनको।
हटाएंbahut badhiya charcha . kafi achche link padhane mile ... abhar
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मिसिरजी!
हटाएंसुन्दर लोगों के सुन्दर फोटो और सुन्दर चर्चा। नए कैमरे से भी सुन्दर फोटो , इसे कचरा न कहो। :)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद! चलिये कचरा हटा दिया। :)
हटाएंबहुत दिन बाद चर्चा देखकर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद! हमको भी बहुत दिन बाद चर्चा करना अच्छा लगा।
हटाएंअच्छा लगा इतने चिट्ठों का एक साथ मिलना ... आभार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनूप जी कि आपने भारतीय उच्चायोग द्वारा दिए गए उक्त सम्मान को यहाँ सचित्र स्थान दिया।
जवाब देंहटाएंयह चर्चा मंच तो अब तक मेरा अपना है... अब भी इस से जुड़ी हूँ। और उसके पूर्ववत् अनवरत होने की कामना हर समय मन में बनी रहती है। जब जब चर्चा लिखे एजाती है तो बाँचने भी जरूर आती हूँ। हाँ है, यह कठिन व समयलेवा काम... फिर ऊपर से थैंकलेस्स भी। नेकी कर कुएँ में डाल वाला।