अनु सिंह चौधरी संस्मरण उस्ताद हैं। अपने जीवन से जुड़े कई बेहतरीन संस्मरण उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखे हैं। एक पोस्ट में अपने जुड़वां बच्चों आद्या और आदित को (मां का पत्र बच्चों के नाम) कुछ समझाइशें दी अनु श्री ने ।उनमें से एक यह भी है:
प्यार कई बार होगा और हर बार जिससे भी प्यार करो, उतना ही टूटकर, उतनी ही ईमानदारी से प्यार करना। बाबा से प्यार करना। एक-दूसरे से प्यार करना। अपने दोस्तों से प्यार करना और उससे भी ज़रूरी, ख़ुद से प्यार करना। मोहब्बत लेकिन सिर्फ एक बार करना।यहां जिनको बाबा कहा गया वे परसों कटिहार से नई दिल्ली आते मुगलसराय स्टेशन पर उतर गये। उनको भूलने की बीमारी है। पता चलने पर दिन भर खोज हुयी। सारे स्टेशन खोजे गये। देवेन्द्र पाण्डेय जी बनारस से मुगलसराय गये। आखिर में वे कोडरमा में मिले। सुबह के खोये शाम को मिले। शायद अनु इस खोना-पाना बाबा का पर कोई संस्मरण लिखना चाहें।
शेफ़ाली पाण्डेय आजकल फ़ुल लिखन्तू मूड में हैं। उनके की बोर्ड माउस से दनादन व्यंग्य लेख निकल रहे हैं। अपनी ताजी पोस्ट में चलते-फ़िरते स्पर्श थेरेपी करते चलने वालों का चरित्र चित्रण करते हुये वे लिखती हैं:
ये महानुभाव आपको हर जगह मिल जाएंगे । इन्हें दुनयावी भाषा में दुकानदार कहा जाता है । आप इनकी दूकान से कुछ भी खरीदें, ये पैसा लेते या देते समय आपके हाथों को अवश्य स्पर्श करते हैं । ये स्पर्श थेरेपी के स्पेशलिस्ट होते हैं । इन्हें भय होता है कि यदि ये आपके हाथ को पकड़ कर पैसे ना लें तो इन पैसों को शायद धरती निगल जाएगी । आपके हाथों को छूकर इन्हें एहसास होता है कि पैसा एकदम सही हाथों में गया है ।ऐन-केन प्रकारेण किसी भी तरह स्पर्श सुख चाहना वाले लोगों के लक्षण देखिये:
दरअसल ये पूरी तरह होशो - हवास में रहते हैं । बस महिला के कंधे पर ही इन्हें ठीक से नींद आती है । अगर कोई पुरुष इनके बगल में आकर बैठ जाए तो इनकी नींद वैसे ही काफूर हो जाती है जैसे सजा सुनकर संजय दत्त और उसके चाहने वालों की । कभी - कभी नींद के सुरूर में ये इस कदर बेहोश हो जाते हैं कि इन्हें अपने हाथ पैरों के इधर - उधर चले जाने का होश नहीं रहता, ठीक उसी तरह जिस तरह खेनी प्रसाद वर्मा को अपनी जुबां का भरोसा नहीं रहता जो माइक को देखते ही बेकाबू हो जाती है ।अगर आप कविता और अच्छी कविता लिखना चाहते हैं तो देखिये जानिये अच्छी कविता लिखने के लिये आपके पास क्या होना चाहिये बता रही हैं माधवी शर्मा गुलेरी:
"...कविता मात्र आवेग नहीं... अनुभव है। एक अच्छी कविता लिखने के लिए तुम्हें बहुत-से नगर और नागरिक और वस्तुएं देखनी-जाननी चाहिए। बहुत-से पशु और पक्षी... पक्षियों के उड़ने का ढब। नन्हें फूलों के किसी कोरे प्रात में खिलने की मुद्रा। अज्ञात प्रदेशों और अनजानी सड़कों को पलटकर देखने का स्वाद। औचक के मिलन। कब से प्रस्तावित बिछोह।सागर सोचालय में क्या कहते हैं देखिये:
जिंदगी का कास्ट डायरेक्टर बुरा होते हुए भी अच्छा है। मूल्यांकन का तराजू वाला न्याय की तरह अंधा है। अपनी जिंदगी का शॉट डीविज़न करता हूं तो पाता हूं बहुत मिसकास्टिंग है मगर एक तुम्हारे नाम का वज़न रख दिया जाता है तो पलड़ा इस ओर झुक आता है। मिट्टी के चूल्हे पर सिंके हुए राख की सौंधी महक आती गोल-गोल रोटी की तरह।शहीद दिवस के मौके पर की गयी चर्चा में सागर की टिप्पणी थी:
भगत सिंह बहुत आकर्षित करते हैं, बल्कि कहूं कि मेरे सिर चढ़ कर नाचते हैं। इतने कि आप उनके बारे में जितना सोचते जाएं आपकी हैरानी बढ़ती जाएगी। मात्र 23 साल और विचार और कर्म में इतनी गहराई। 'मैं नास्तिक क्यों हूं' को पढ़ने पर लगता है कहां ज़माना आगे बढ़ा है? फेसबुक, गूगल और ओरेकल कंपनियों में तनख्वाह और सुविधाएं सही मिलने से नहीं होगा। आप अपने काम में भी भगताइयत ला सकते हैं। राइटर लेखन में बगावत लाएं से लेकर जो जिस पेशे से जुड़ा है उसमें वो बागी बन सकता है।
जो जिस पेशे से जुड़ा है उसमें वो बागी बन सकता है कहने वाले सागर अपने ब्लॉग सोचालय में क्या लिखते हैं देखिये:
मैं खुश रहने के लिए काम नहीं करता। न काम करके खुश होता हूं। काम करता हूं इसलिए कि अपने दिन के 12 घंटे काट सकूं। कई बार उमग कर, हुलस कर और कई बार मजबूर होकर फोन उठाया। बुखार में जब कमज़ोरी से कमर टूट रही हो तो क्या संभाला जाए ? जीभ पर जब कोई स्वाद न लगता हो, होंठ बार बार खुश्क हो जाते हों, और उसे लपलपाई जीभ से बार बार गीला करना पड़े और कई लोगों ने लगभग मिन्नत करना पड़ जाए कि 'प्लीज़ मुझसे एक मिनट बात कर लो'।समय बिताने के लिये काम करने वाला लेखक आखिर में लिखता है:
जिंदगी का कास्ट डायरेक्टर बुरा होते हुए भी अच्छा है। मूल्यांकन का तराजू वाला न्याय की तरह अंधा है। अपनी जिंदगी का शॉट डीविज़न करता हूं तो पाता हूं बहुत मिसकास्टिंग है मगर एक तुम्हारे नाम का वज़न रख दिया जाता है तो पलड़ा इस ओर झुक आता है। मिट्टी के चूल्हे पर सिंके हुए राख की सौंधी महक आती गोल-गोल रोटी की तरह।शनिवार को लखनऊ लिट्रेरी फ़ेस्टिवल हुआ। वहां फ़िल्म निर्देशक मुज़फ़्फ़र अली ने मुजफ़्फ़र अली ने बच्चों को बिगड़ने से बचाने के लिये जो उपाय बताया वह देखिये:
इस मौके पर आज मुज़फ़्फ़र अली बहुत बढ़िया बोले। बोले कि पैसा कमाना बहुत हो गया, दिमाग का सफ़र बहुत हो चुका, अब दिल का सफ़र होना चाहिए। किसी पत्ती के हरे होने और फिर उस के पीला होने और फिर पेड़ को छोड़ देने की बात ऐसी सूफ़ियाना रंग में डूब कर उन्हों ने कही कि मन मोह लिया। उन्हों ने आज के बच्चों के बिगड़ने की चर्चा की और कहा कि इन्हें शायरी सिखा दीजिए, सब सुधर जाएंगे।इस फ़ेस्टिवल में अमरेन्द्र भी शामिल हुये थे। उनकी रपट का इंतजार है।
होली के मौके पर कबाड़खाना पर कबाड़ी किंग अशोक पाण्डेय के सौजन्य से सुनिये शोभा गुर्टू की आवाज में आज बिरज में होरी रे रसिया।
चिट्ठाचर्चा की पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुये कविता जी ने लिखा:
यह चर्चा मंच तो अब तक मेरा अपना है... अब भी इस से जुड़ी हूँ। और उसके पूर्ववत् अनवरत होने की कामना हर समय मन में बनी रहती है। जब जब चर्चा लिखे एजाती है तो बाँचने भी जरूर आती हूँ। हाँ है, यह कठिन व समयलेवा काम... फिर ऊपर से थैंकलेस्स भी। नेकी कर कुएँ में डाल वाला।
नेकी तो नहीं लेकिन यह थैंकलेस काम मुझे मजेदार लगता है। जब मौका मिलता है करने लगता हूं। करते हैं और फ़िर छोड़ते हैं। फ़िर करते हैं। इस बार भी देखिये कब तक सिलसिला चलता है।
दो साल पहले चिट्ठाचर्चा को ब्लागर से अलग साइट पर ले गये थे। लेकिन वहां मामला जमा नहीं। उधर की पोस्टें भी नदारद हो गयीं। अब उनको खोजकर दुबारा यहां जमा रहे हैं। चिट्ठाचर्चा के टिप्पणी बक्से को फ़ेसबुक से जोड़ा है। इससे फ़ेसबुक के कमेंट भी यहां आ जायेंगे। यह सुविधा कई ब्लाग में पहले से ही है। आप भी अपने ब्लॉग पर इसे जोड़ना चाहते हैं तो जोड़ लीजिये। ट्यूटोरियल यहां पर है।
मेरी पसंद
आज सारे दिन घूमता रहा
और कोई दुर्घटना नहीं हुई।
आज सारे दिन लोगों से मिलता रहा
और कहीं अपमानित नहीं हुआ।
आज सारे दिन सच बोलता रहा
और किसी ने बुरा नही माना।
आज सबका यकीन किया
और कहीं धोखा नहीं खाया।
और सबसे बड़ा चमत्कार तो यह
कि लौटकर मैंने किसी और को नहीं
अपने को ही लौटा हुआ पाया।
-कुंवर नारायण
और अंत में
आज अभी फ़िलहाल इतना ही। बाकी फ़िर कभी। मस्त रहिये। नीचे का चित्र सतीश चन्द्र सत्यार्थी के फ़ेसबुक दीवाल से जिन्होंने संजय दत्त को सजा मामले में अपनी राय लिखी:
संजय दत्त जितने भी महत्वपूर्ण व्यक्ति हों क़ानून के अनुसार अपराध की सजा देकर अदालत ने जनता की निगाहों में अपना सम्मान बढ़ाया है... अब संजय दत्त के लिए अच्छा यही होगा कि वे माननीयों से दया की भीख लेने की जगह देश के संविधान का सम्मान करते हुए जेल चले जाएँ... इससे जनता और उनको चाहने वालों की नज़र में उनकी इज्ज़त ही बढ़ेगी... और साल छह महीने में अदालत को अगर लगता है कि उनका आचरण सही है और आगे दुबारा उनके द्वारा अपराध किये जाने की संभावना नहीं है तो बड़प्पन दिखाते हुए उनकी सजा को ख़त्म कर देना चाहिए.... जब हत्यारे, बलात्कारी और देश को लूटने वाले बाहर घूम रहे हैं तो करोड़ों चेहरे पर मुस्कान लाने वाले एक कलाकार का इतना हक़ तो बनता है यार...
अनु जी के लिए आपने पूरे दिन जो प्रयास किये वह ब्लागर धर्म के लिए अनुकरणीय बनेगा और देवेन्द्र जी इस अवसर पर आगे आये जानकर बहुत अच्छा लगा !
जवाब देंहटाएंबढियां चर्चा -यह आगे भी फुल स्पीड पकडे!
सोचालय नाम देखते ही ही मुझे कुछ अजीब सा भाव इस ब्लॉग से विकर्षित कर जाता है -मनुष्य के दिमाग को 'शौचालय ' के रूप में ध्वनित करने की सोच वाला क्या कुछ विकृत सा न लिखेगा ? मगर मन मारकर कुछ अंश आज यहाँ पढ़े तो लगा जनाब तो अच्छा लिखते है मगर मैं तो फिर भी वहां प्रवेश करने से रहा -नाम तो वे बदलेगें ना?
DrArvind Mishra अनु सिंह के पापा शाम को मिले। सुबह उनका एस.एम.एस. आया था कि मुगलसराय में किसी को जानते हैं , जरूरी काम है। फ़िर मैंने देवेंद्र पाण्डेय, ज्ञानदत्त जी, आपको आपको और अपने मित्र मनोज अग्रवाल को फोन किये। सबसे अपने स्तर से प्रयास किये। देवेंद्र जी मुगलसराय स्टेशन गये। चर्चा की स्पीड ऐसे ही रहती है चलती,रुकती, तेज, धीमे। सागर अपने ब्लाग का नाम बदलेंगे नहीं बदलेंगे यह तो वही बतायेंगे। :)
हटाएंतस्वीर जान मारू है। लिंक फिर कभी पढ़ेंगे..बढ़िया लग रहे हैं।
जवाब देंहटाएंतस्वीर तो मारू है ही। मौका निकाल कर पढियेगा चर्चा!
हटाएंबहुत ही बढियां चर्चा,बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
हटाएंआज पहली बार इस चिट्ठा-चर्चा के बारे में पता चला... प्रस्तुति आकर्षक है... :)
जवाब देंहटाएंआगे भी आते रहेंगे...
आपकी प्रतिक्रिया के लिये आभार!
हटाएंबहुत ही बढ़िया और सार्थक चर्चा चल रही है.प्लीज चलने दीजिएगा.
जवाब देंहटाएंafter ages came here .. loved reading it....... :)
जवाब देंहटाएं:) युगों के बाद आईं! अच्छा है!
हटाएंbahut hi badhiya charcha.......sabse achhi baat ye ke, aabhashi jagat.....vastawik jagat ke tarah karya karne laga hai.....
जवाब देंहटाएंaniyamit roop se niyamit charcha hoti rahe......to pathkon ko dana-pani milta rahe........
holinam.
दाना-पानी :) वाह!
हटाएंvaah ....achchha laga ....charcha karte rahiye...
जवाब देंहटाएंकरते रहें? अच्छा!
हटाएंचर्चियाते रहिये :)
जवाब देंहटाएंटिपियाते रहें!
हटाएंबहुत पढ़ लिए, अब थोडा काम भी देख लेते हैं. :)
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