क्षण!
जो लिखित रूप में मौजूद हैं ब्लॉग की मालकिन हैं बनारस की रहने वाली और
सम्प्रति इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म और मासकॉम की पढ़ाई कर रही
हैं। जैसे कि बुद्धिजीवी लोग होते हैं वैसे ही स्वभाव से आलसी हैं। अपने
आसपास की घटनाओं को सहज और संवेदनशील ढंग से धर देती है अपने ब्लॉग में।
हमको उनका लिखा पसंद आता है सो तारीफ़ कर देते हैं। इस पर अनामिका का कहना
होता है -खाली तारीफ़ मत करिये, कमी भी बताइये। अब भला हम क्या कमी बतायें
जब कुछ दिखे तब न।
अच्छा
छोड़िये इधर-उधर की। अब आइये आपको अनामिका के ब्लॉग पोस्टों की कुछ झलकियां
दिखाते हैं। शुरुआत करते हैं उनके मकान मालिक के किस्से से। उनकी आपसी बातचीत आपै देखिये:
महिनें में कई दिन ऐसे होते है…जब सुबह मकान मालिक से लड़ाई होती है….शाम को हमें बिजली से मुक्त कर अपने छोटे लड़के से लालटेन भेजवाते है … ना जाने कौन सी करामात करके रात को नल से पानी ही गायब कर देते हैं …..इतने नखरे झेलने पड़ते है मक्कान मालिक के…
बाकी का पता नहीं लेकिन ये देर तक दांत मांजने वाली बात सही लगती है। क्योंकि अनामिका आलस को अपना स्वाभाविक मित्र बताती हैं।
लाईफ़बॉय है जहां में अनामिका अपने बचपन के लाईफ़बॉय से साफ़ होने और तन्दुरुस्त होने के किस्से बताते हुये इस साबुनिया झांसे की तरफ़ इशारा करती हैं:
लेकिन कैसे भी करके हम इसी साबुन से नहा कर तंदुरुस्त हुए….. तब तक यह बस नहाने का ही साबुन था…और हाथ धोने के लिए रिन साबुन के टुकड़े रखे जाते थे….लेकिन कुछ समय बाद लोग गमगमाने वाली किसी साबुन की तरफ आकर्षित हुए उस समय मुहल्ले के कई घरों में टेलिविजन आ चुका था….औऱ लोग सोनाली वेंद्रे के साबुन को घसने के इच्छुक हुए…औऱ घर के साबुनदानी मे खूशबुदार निरमा का निवास हो गया… .कुछ दिनों बाद नीबू की खूशबु वाला सिंथॉल भी आया…औऱ लाईफ़बॉय को लोगों ने हाथ धोने का साबुन बना दिया….तब तक लाईफ़बॉय का हैण्डवॉश विकसित नही हुआ था….और ऐसा लगता है कि लोगों से प्रेरित होकर ही हिन्दुस्तान यूनिलीवर नें लाईफ़बॉय का हैण्डवॉश परोसा….. और टेंशनियाकर कुछ दिन बाद लाईफ़बॉय में भी खुशबू झोंक दिया…साबुन के रैपर को नया रुप दिया…सब्जी वाली भौजाई अनामिका की एक बहुत संवेदनशील पोस्ट है इसकी शुरुआत देखिये :
किसी ठकुराईन से कम नहीं लगती है वह सब्जी वाली …वुमेन हास्टल के पास वाले चौराहे पर दिन ढलते ही ठेले पर सब्जियों को करीने से तैयार करती है..जैसे मां अपनें ब्च्चे को स्कूल भेजनें के लिए रोज तैयार करती है.. सब्जियों को सजाते वक्त उसके हाथ की लाल चूड़िया हरी हरी सब्जियों के बीच ऐसे इठलाती है मानों सावन में कोई फसल पर कर लाल पड़ गयी हो…लेकिन वह कभी ध्यान नहीं देती अपनी सुंदरता पर..वह तो सब्जियों को सजानें में व्यस्त रहती है…और हमेशा अपनें को एक सब्जी वाली ही मानती है…आगे वे लिखती हैं सब्जी वाली भौजाई के बारे में:
शाम होते ही हास्टल की लड़कियों से घिर जाती है वह..हंसते बोलते बतियाते हुए सब्जी तौलती है…देखनें में ऐसा लगता है जैसे फागुन में कई सारी ननदों नें मिलकर भौजाई को घेर रखा हो…लेकिन कुछ तो है उसके अंदर जो लोगों को अच्छा लगता है…चाहे वह सब्जी तौलते-तौलते उसे छौंकनें की विधि बता दे..चाहे बिन मांगे मुफ्त के हरे धनिया मिर्चा से विदाई कर दे..चाहे पैसे कम पड़नें पर कभी और लेने का हिम्मतपूर्ण वादा करवा ले…लेकिन कुछ है उसमें… उसके सरल और आत्मीय शब्दों में जो एक अजनबी शहर में अपनें मुहल्ले की चाची भाभी की हंसी ठिठोली का आनंद दिलाती हैएक लड़की नाजियाकी दास्तां बताती हैं अनामिका इस पोस्ट में:
बीस साल की उम्र पूरी करते बच्ची की तरह दिखने वाली एक लड़की की गोद में खुद एक बच्ची आ गई…जो संपूर्ण औरत बन गई थी…लेकिन अभी भी वह लड़ रही थी अपनें ससुराल वालों से कि उसे पढ़ाया जाये…पहले तो वह इसलिए पढ़ना चाहती थी ताकि कुछ कर सके…लेकिन अब वह बेटी के लिए पढ़ना चाहती है ताकि कल को उसकी बेटी को उसका पति ये जवाब ना दे कि अपनें घर से ही अपनें पैरों पर खड़ा होकर क्यों नहीं आयी…दिल्ली में हुई बलात्कार की घटना के बाद अनामिका ने अपने लेख मानसिकता की जय हो......में लिखा:
शहरों गांवों में चलनें वाले बस आटो पर गरीबों के बच्चे कंडक्टरी करते हैं…इस दौरान वे दारु पीना सीखते हैं फूहड़ और भद्दे भोजपुरी गानें सुनकर जवान होते हैं…अपनें मालिकों की अश्लील बातें सुनते हैं…अश्लील काम को देखते है…फिर इनको इतना तजुर्बा हासिल हो जाता है कि…बलात्कार जैसी घटना को अंजाम देना इनके बाएं हाथ का खेल हो जाता है….और मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चे कैसे उत्तेजित होते हैं ये हर वो मध्यमवर्गीय परिवार जानता है जो सिर्फ मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की का बलात्कार होनें पर मामले को हवा देता हैं…वरना रोज ही दलितों की बेटियां किसी ना किसी मालिक के हवस का शिकार बनती हैं…..पहले के समय में किसी का बेटा पुलिस दरोगा बन जाता तो बेटी का बाप अपनी बेटी के लिए वर के रुप में उसे लालटेन लेकर खोजता था……अब पुलिस दरोगा जिस तरह से बाप की बेटी को देख रहे हैं…पूरा देश जानता हैंअनामिका के लेखन का अंदाज जैसा देखा-सुना वैसा लिखा वाला है। अपनी तरफ़ से नमक-मिर्च नहीं लगाती तो कड़वे सच को छिपाती भी नहीं। बलात्कार की बतकही में दिल्ली कांड के बाद की कहानी बताती हैं:
उनमें से एक लड़का जोर से अपनें दोस्तों पर चिल्ला रहा था…और कह रहा था.."साल्ले मना किया था तुझे न….अभी दिल्ली वाली लड़की के साथ बलात्कार हुआ है और सुना है मर भी गई है वो…कुछ दिन में सब शान्त हो जावेगा साल्ले तब तक के लिेए शरीफ बन जा बेटा आयी बात समझ में….और ये पुलिस भोंसड़ी के ना अप्पन का पहले कुछ उखाड़ी है ना ही आज उखाड़ती…अगर लड़की वाला बलात्कार का मामला पूरे देशवा में ना फैला होता..ये पुलिस वाले साले खुद रोज लड़कियां छेड़ते हैं और भोंसड़ी के आज हमीं को दौड़ाये हैं"…सहज करुणा अनामिका के व्यक्तित्व का मूल भाव है। उनकी एक और संवेदनशील पोस्ट का अंश देखिये:
अपनी बातों पर मुझे हंसते हुए देखकर उनमें से एक ने कहा…जाने दो दीदी तुम्हारे पास फुटकर पैसे नहीं हैं तो…लेकिन हमारी एक फोटो ले लो….अम्मा जाती हैं…एक बड्डे से साहब के घर बर्तन माजने…उन्होंने अपनी लड़की का फ्राक मेरे लिए दिया है..आज वही पहिने हूं….तो हमार फोटो ले लो….. उनकी बातें सुनकर ना जाने मुझे किस तरह का दुख हो रहा था…उसे कोई शब्द देकर मैं नहीं बयां कर सकती….मैं उन्हें दस रुपए दी और वहां से चल दी….लेकिन दिमाग मे उन बच्चियों की खनकती हुई आवाज शोर मचा रही थी….एक रुपया दे दो दीदी…एक रुपया दे दो भैया…आम तौर पर लेख लिखने वाली अनामिका कवितायें भी लिखती हैं:
ek hee rang
जवाब देंहटाएंvividhata ke sang
vah shukl jee vah
धन्यवाद!
हटाएंBAHUT BADHIYA LINKS SANJOYE HAIN AAPNE .
जवाब देंहटाएंBEST BLOG OF THE WEEK-चिट्ठा चर्चा
धन्यवाद जी आपका शुक्रिया।
हटाएंई काम बहुत अच्छा किया आपने..बनारस वालों पर आपकी कृपा दृष्टि बनी रहे।
जवाब देंहटाएंबनारस वाले किसी की कृपा के क्या मोहताज। उनका इकबाल ऐसे ही बुलंद रहता है।
हटाएंबढ़िया ..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
हटाएंआज तो त्रिलोक अनामिका जी पर ही लुटा दिए :-) नए ब्लागरों को प्रोत्साहित करना ही चाहिए -मैं सहमत हूँ!
जवाब देंहटाएंत्रिलोक लुटाना और इन्द्रलोक खलियाना ये सब आपके विशेषाधिकार हैं। बाकी अनामिका का लिखना अच्छा लगा सो आज चर्चा की। आप भी पढिये उसकी पोस्टें। बनारस की हैं तो और हक बनता है उसका आपसे तारीफ़ पाना। :)
हटाएं:):):)
हटाएंpranam.
अभी तो यहीं पढ़े हैं अनामिका की पोस्टें. किसी दिन एक चक्कर मारकर ब्लॉग का ऑपरेशन करेंगे :)
जवाब देंहटाएंमेरी टिप्पणी गायब हो गयी. अनामिका से यहाँ मिलकर अच्छा लगा. किसी दिन उनके ब्लॉग पर भी डेरा जमायेंगे.
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