आजकल अभिनेता संजय दत्त की सजा और उसकी माफ़ी के बड़े चर्चे हैं। उनका तो अपराध साबित हो गया। बहुत पहले। अपराध साबित होने के बाद कुछ दिन की सजा भुगतने के बाद वे जमानत पर छूटे और विदेश तक घूम कर आये थे। सुप्रीम कोर्ट से सजा फ़ाइनल होने के बाद उनको माफ़ करने की मांग की आंधी चली। मीडिया दनादन संजय दत्त कवरेज कर रहा है। लेकिन उसके चौखटे से अरविंद केजरीवाल गायब हैं जो पिछले सात दिनों से अनशन पर हैं। डा. राजेन्द्र त्रिपाठी ने अपने फ़ेसबुक वाल पर यह सूचना दी:
उधर मारुती कंपनी प्रबंधन, सरकार और प्रशासन के दमन के खिलाफ 24 मार्च से हरियाणा के कैथल जिले में चल रहा अनिश्चितकालीन धरना आज से आमरण अनशन में बदल गया है. संघर्षरत मज़दूरों ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल के पक्ष में व्यापक समर्थन की अपील की है. इस मौके पर जेल में बंद 147 मजदूरों की और से जारी पत्र को अपने यहां जारी किया गया है।मजदूरों ने अपने हाल बयान करते हुये अपने बारे में लिखा है:
डा. सुषमा नैथानी कम लिखती हैं लेकिन जब लिखती हैं तो खूब लिखती हैं, डूबकर लिखती हैं। पिछले दिनों न्यूयार्क यात्रा संस्मरण लिखा उन्होंने। इस संस्मरण में विदेश में भारतीयों से भेदभाव, अपने यहां भी खुन्नस के बारे में बतियाते हुये वे व्हेलिंग की जानकारी देती हैं। भेदभाव के किस्से सुनिये उनसे ही:
सेमिनारों में शाकाहारी भोजन की उपलब्धता और महिलाओं की बढ़ती भागेदारी पर टिप्पणी:
आगे व्हेलिंग यानी कि व्हेल मछली का शिकार की जानकारी और उससे जुड़ी अन्य बातों की जानकारी है:
इस्मत जैदी के ब्लॉग की पंच लाइन है-हम ने ज़मीर का कभी सौदा नहीं किया बस ख़्वाहिशात हार गईं कारज़ार में! उनके ब्लॉग की चर्चा की याद करते हुये उनका एक शेर याद आया जिसे गौतम राजरिशी चुरा के ले गये थे:
शानदार गजल। कुछ कठिन शब्दों के मतलब भी दिये हैं नीचे ताकि पाठक वाह-वाह करते हुये उनके मतलब समझकर दुबारा वाह-वाह कर सके।
होली तो अब होली। इस बार हम होली में जबलपुर में ही रहे। कानपुर की होली मिस किये।लेकिन कल हेमा दीक्षित की पोस्ट ने फ़िर से कानपुर की होली की याद दिला दी। कानपुर की होली के बयान उनके ही यहां सुनिये:
डाक्टरों के क्या हाल हैं आजकल देश में देख लीजिये काजल कुमार के कार्टून में:
चलते-चलते देखिये खुशदीप के यहां अपने उल्लू प्रेम कथा के 66 साल और ज्ञानदत्त जी के यहां भोंदू के किस्से। फोटू नीचे देखिये भोंदू की।
अभी फ़िलहाल इत्ता ही। बाकी फ़िर कभी। लेकिन जाने से पहले मधु अरोरा की फ़ेसबुक दीवार से यह समझाइश बांच लीजिये:
उधर मारुती कंपनी प्रबंधन, सरकार और प्रशासन के दमन के खिलाफ 24 मार्च से हरियाणा के कैथल जिले में चल रहा अनिश्चितकालीन धरना आज से आमरण अनशन में बदल गया है. संघर्षरत मज़दूरों ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल के पक्ष में व्यापक समर्थन की अपील की है. इस मौके पर जेल में बंद 147 मजदूरों की और से जारी पत्र को अपने यहां जारी किया गया है।मजदूरों ने अपने हाल बयान करते हुये अपने बारे में लिखा है:
अपनी सेवाओं के बारे में बताते हुये वे लिखते हैं:हम सभी किसान या मजदूरों के बच्चे हैं. माँ-बाप ने हमे बड़ी मेहनत से खून-पसीना एक करके 10वी-12वी या ITI शिक्षा दिलवाई व इस लायक बनाया कि इस जीवन में कुछ बन सके व अपने परिवार का सहारा बन सके.हम सभी ने कंपनी द्वारा भर्ती प्रक्रिया में लिखित व् मौखिक परीक्षायों को पास करके व् कंपनी की जो जो भी नियम व शर्ते थी, उनपर खरे उतर कर मारुति कंपनी को ज्वाइन किया. जोइनिंग करने से पहले, कंपनी ने सभी प्रकार से हमारी जांच करवाई थी, जैसे- घर की थाने तहसील की व क्रीमिनल जांच करवाई गई थी! पिछले समय का हमारा कोई क्रिमिनल रिकार्ड नहीं हैं.
मजदूरों की शिकायत है:जब हमने कंपनी को ज्वाइन किया तब, कंपनी का मानेसर प्लांट निर्माणाधीन था. हमने अपने कड़ी मेहनत व लगन से अपने भविष्य को देखते हुए, कंपनी को एक नयी उचाई पर ले गए. जब पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी छायी हुई थी, तब हमने प्रतिदिन दो घंटे एक्स्ट्रा टाइम देकर साल में 10.5 लाख गाड़ियों का निर्माण किया था. कंपनी की लगातार बढ़ते मुनाफा का हम ही पैदावार रहे हैं, जबकि आज हमे अपराधी और खूनी ठहराया जा रहा हैं.
लेकिन न तो हमारी कहीं सुनाई हो रही है, न ही हमें जमानत दी जा रही है. और तो और, जो हरियाणा पुलिस ने चार्जशीट कोर्ट में पेश की है, उसमें किसी गवाह का नाम नही है और वह आधी अधूरी है. हमारा लोकतान्त्रिक अधिकारो का हनन लगातार हो रहा हैं, और कानून को कंपनी मालिकों के स्वार्थ में व्यवहार किया जा रहा हैं. इस दौरान बहत से कर्मचारियों ने अपने परिवार के सदस्य के साथ-साथ बहत कुछ खो दिया है. काफी मजदूर ऐसे भी है जिनके माता-पिता नहीं हैं और पुरे परिवार का पालन पोषण का भार उन्ही पर है.क्या कोई मीडिया इनकी आवाज उठायेगा?
डा. सुषमा नैथानी कम लिखती हैं लेकिन जब लिखती हैं तो खूब लिखती हैं, डूबकर लिखती हैं। पिछले दिनों न्यूयार्क यात्रा संस्मरण लिखा उन्होंने। इस संस्मरण में विदेश में भारतीयों से भेदभाव, अपने यहां भी खुन्नस के बारे में बतियाते हुये वे व्हेलिंग की जानकारी देती हैं। भेदभाव के किस्से सुनिये उनसे ही:
सबका सामान आ गया, मेरा पोस्टर जो चेकइन किया था वो नहीं आया, एअरलाइन वालों को पूछ रही हूँ, एजेंट एक दुसरे से पूछ रहे है, कंप्यूटर पर चेक कर रहे हैं, टी.वी. पर अर्जेंटीना से नए पोप के चुने जाने की खबर है. डेस्क पर खड़ी एजेंट कहती है कि इसे चैकइन की जरूरत नहीं थी, कैरीऑन की तरह लाया जा सकता था. यही किया भी था, लेकिन पोर्टलैंड में एअरलाइन के एजेंट ने मुझसे चैकइन करवा लिया, बदले में तिरछी मुस्कान मिलती है. इन तिरछी मुस्कानों के आशय को पहचानती हूँ, जिस तरह भारत से निकलते वक़्त कस्टमकर्मीयों की नफ़रत और अपनी पावर के बेजा इस्तेमाल से एन.आर. आई. लोगों को तंग करने के सुख को.
सेमिनारों में शाकाहारी भोजन की उपलब्धता और महिलाओं की बढ़ती भागेदारी पर टिप्पणी:
पिछले बीस वर्षों में कम से कम कांफ्रेंस मेनू में शाकाहारी भोजन उसी तरह बढ़ गया है जैसे कान्फ्रेंस में औरतों की भागीदारी. शाकाहारियों को अब भूखों नहीं मरना पड़ता, औरतें ज्यादा सहज दिखतीं हैं ...
आगे व्हेलिंग यानी कि व्हेल मछली का शिकार की जानकारी और उससे जुड़ी अन्य बातों की जानकारी है:
कांफ्रेंस के बाद घंटे भर के लिए 'व्हेलिंग म्यूजियम' देखा जो अब एक छोटे से मकान के भीतर है उन्नीसवीं सदी के मध्य में यहाँ 'कोल्ड स्प्रिंग हार्बर व्हेलिंग कम्पनी ' शुरू हुयी, जो सदी के आखिरी दशक में बंद हो गयी. . 'व्हेलिंग' यानि व्हेल मछली का शिकार. व्हेल मछली के शिकार और उसके शरीर के विभिन्न हिस्सों का इस्तेमाल ३ हज़ार वर्ष पहले से एस्किमो लोग जीवनयापन के लिए करते रहे हैं; मांस खाने के लिए, हड्डी का इस्तेमाल बर्तन, फ़र्नीचर, सुई से लेकर कई तरह के औजारों को बनाने के लिए, और त्वचा के नीचे चर्बी की बहुत मोटी परत जिसे ब्ल्बर कहते हैं, का उपयोग रोशनी के लिये. परन्तु उनकी जीवनपद्धती से समंदर के भीतर व्हेल मछली के बाहुल्य में कोई फर्क नहीं पड़ा.पूरा लेख पठनीय है। देखिये, पढिये।
इस्मत जैदी के ब्लॉग की पंच लाइन है-हम ने ज़मीर का कभी सौदा नहीं किया बस ख़्वाहिशात हार गईं कारज़ार में! उनके ब्लॉग की चर्चा की याद करते हुये उनका एक शेर याद आया जिसे गौतम राजरिशी चुरा के ले गये थे:
"हमारे हौसलों का रेग ए सहरा पर असर देखोउनकी ताजा गजल के तीन शेर आपके सामने पेश हैं:
अगर ठोकर लगा दें हम, तो चश्मे फूट जाते हैं"
रात जब नींद की आग़ोश में गुम होती है
कितनी ख़ामोशी से तनहाई में जलता है चराग़
हसरतें , ख़्वाहिशें, अरमान बुझे जाते हैं
पर दम ए रुख़सत ए आख़िर को संभलता है चराग़
यूँ तो आँधी के मुक़ाबिल भी डटा रहता है
और कभी हल्के से झोंके से बिखरता है चराग़
शानदार गजल। कुछ कठिन शब्दों के मतलब भी दिये हैं नीचे ताकि पाठक वाह-वाह करते हुये उनके मतलब समझकर दुबारा वाह-वाह कर सके।
होली तो अब होली। इस बार हम होली में जबलपुर में ही रहे। कानपुर की होली मिस किये।लेकिन कल हेमा दीक्षित की पोस्ट ने फ़िर से कानपुर की होली की याद दिला दी। कानपुर की होली के बयान उनके ही यहां सुनिये:
होली का खेला पूरा नहीं होता जब तक रँग, गुलाल-अबीर की संगत में कीचड़-कादा,गोबर ,टट्टी-पेशाब की भी पूरी महफ़िल ना सजा ली जाए ... किसी के पहने हुए कपड़ों को फाड़ कर नाली और कीचड़ में डुबा-डुबा कर बनाए गये पीठ तोड़ पछीटे लिए गली-गली चोई की तरह उतराते होरियार ...होली का त्यौहार लगता है लड़कों के लिये आरक्षित है यह भी वे अपनी पोस्ट में लिखती हैं:
सफेदे में पोत कर नग्न दौडाये जाते चितकबरे लोग ... रूमालों की बीन बनाये सम्पूर्ण नाग अवतार में ज़मीन पर लोट-लोट कर सामूहिक नागिन नृत्य करते लोग ... माँ-बहनात्मक गलचौर के रस में सम्पूर्ण माहौल को भिगाते लोग ...
शीला की जवानी में मदमस्त , मुन्नी बदनाम बनी तमाम कारों पर सवार लोग ... जलेबीबाई की तर्ज पर जैसे किसी पगलैट होड़ में कमाल के कमरतोड़ नाच मे अंधाधुंध डूबे और दौड़े चले जाते है
स्त्रियाँ और लड़कियाँ इन होरियारों को सिर्फ देख सकती है अपने-अपने सुरक्षित ठिये-ठिकानों से ...
स्त्रियाँ और लड़कियाँ अपनी हदबंदी में ही होरियार होती है ना बस ...
अरे हाँ .. लड़कियों एवं स्त्रियों को तो होलिका दहन देखने की मनाही होती है ... वो घर के अंदर रहती है दहीबड़े,काँजी,गुझियाँ ,पापड,चिप्स इत्यादि तलती हुई ... पुरुष जाते है बाहर होलिका दहन में गन्ना और गेंहूँ की बालियाँ भूंजने और बल्ले की माला चढ़ाने ...
डाक्टरों के क्या हाल हैं आजकल देश में देख लीजिये काजल कुमार के कार्टून में:
चलते-चलते देखिये खुशदीप के यहां अपने उल्लू प्रेम कथा के 66 साल और ज्ञानदत्त जी के यहां भोंदू के किस्से। फोटू नीचे देखिये भोंदू की।
अभी फ़िलहाल इत्ता ही। बाकी फ़िर कभी। लेकिन जाने से पहले मधु अरोरा की फ़ेसबुक दीवार से यह समझाइश बांच लीजिये:
इस्मत आपा का वो वाला शेर मैंने उनसे मांग लिया था और अब वो मेरे ब्लॉग के हेडर पर बैठा गुर्राता रहता है . जोश दिलाते हुए.
जवाब देंहटाएंवो शेर है ही ऐसा- जहां रहेगा गुर्रायेगा। :)
हटाएंशानदार लिंक्स...
जवाब देंहटाएंअरविंद केजरीवाल से लेकर कानपुर के होरियारे...बेहतरीन पढ़वाने के लिए अनूप जी शुक्रिया...
जय हिंद...
कानपुर के होरियारे के बाद देशनामा का भी किस्सा है।
हटाएंचर्चा चल रही है इधर निरंतर! आज जाना।
जवाब देंहटाएंमार्च की व्यस्तता का ज़िक्र भर है, इस व्यस्तता का असर नहीं आप पर।
शानदार।
व्यस्तता तो है लेकिन उसी से निकाला जा रहा है समय!
हटाएंबढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
हटाएंबढियां परिपक्व चर्चा -अब सुषमा नैथानी जी से ही पूछता हूँ कि उन्होंने मात्र व्हेल ही क्यों नहीं लिखा -क्यों व्हेल मछली लिखा -जबकि व्हेल मछली होती ही नहीं! ये असावधान भूलें लोगों का जीके खराब करती आयी हैं !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद! पूछिये उनसे। वैसे इस तरह की चीजें हो ही जाती हैं। जैसे कोई किसी के लिये कहे- वे बेचारे सज्जन व्यक्ति हैं। :)
हटाएंमेरी भी जीके खराब ही है :)
हटाएं@स्वप्नदर्शी,
हटाएंखराब जीके के भी मजे हैं। सुधारा तो जा सकता है। :)
इतने बढ़िया लिंक्स के साथ ’शेफ़ा’ कजगाँवी को भी शामिल करने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कि आपने चिट्ठाचर्चा देखी आज! :)
हटाएंअनूप जी आप का यह चिट्ठाचर्चा का लेखन कार्य तो बहुत ही अच्छा है अन्य ब्लॉगों की जानकारी और झलक ठीक यहीं से मिल जा रही है... चिट्ठा चर्चा की झलकियाँ... पसंद आई...
जवाब देंहटाएंचयन अच्छा है...
मुझे शामिल किया इसका हिस्सा होना अच्छा लगा...
धन्यवाद! आपका लिखा अच्छा लगा तो उसका जिक्र किया।
हटाएंबढ़िया चर्चा।
जवाब देंहटाएंउत्तम लिंक्स।
धन्यवाद डॉ साहब!
हटाएंशानदार लिंक चयन | बधाई | आभार
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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धन्यवाद तुषारजी,
हटाएंआयेंगे कभी आपके यहां भी !