मंगलवार, जून 01, 2010

काव्य शास्त्र विनोदेन कालोगच्छति धीमताम

यह चित्र इवा सहाय का है जिन्होंने संघ लोक सेवा आयोग (यू. पी. एस. सी.) द्वारा आयोजित भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई. ए. एस.) के लिए वर्ष 2009 की परीक्षा में अखिल भारतीय स्तर पर तीसरा स्थान एवं महिलाओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इवा सहाय ने अपना २० साल से तय किया अपना लक्ष्य पाने के लिये अनथक मेहनत की। इस बारे में बताते हुये वे कहती हैं:
एक अलग शक्ति से मेरा तात्पर्य इंसान की अपनी दृढ इच्छाशक्ति से है | आप अपने लक्ष्य पर पूरी तरह से मन को एकाग्र कर मेहनत करें तो आपकी इच्छाशक्ति आपसे वह भी करवा सकती है जो आप नहीं कर सकते | यह इच्छाशक्ति आपमें एक जुनून भर देता है कि मुझें यह करना है | 20 साल से मैंने यह लक्ष्य बना रखा था कि मुझे आई.ए.एस. की परीक्षा में पहले प्रयास में पहला स्थान लाना है | यह लक्ष्य इतना ऊँचा था कि यही मुझे प्रेरित करता कि मैं लगातार मेहनत करूँ | मैं यह मानती हूँ कि इंसान की सफलता में पूरी लगन एवं मेहनत का हाथ होता है | ऐसा नहीं है कि मैं ईश्वर को नहीं मानती |


मेहनत और लगन सारी कमियों की क्षतिपूर्ति कर सकते हैं। इवा सहाय ने हालांकि खुद टॉप किया लेकिन असली हीरो वह उन लोगों को मानती हैं जिन्होंने विषम परिस्थितियों में सफलता हासिल की है|

इवा अपने इंटरव्यू में इस बात का खुलासा करती हैं कि कक्षा 9 व 10 के दौरान वे पढ़ने में इतनी अच्छी नहीं थीं लेकिन इलाहाबाद के सेंट मैरीज की मैडम बनर्जी ने उनको प्रोत्साहित किया और वे अच्छा करने लगीं।

अलग-अलग क्षेत्रों के अलग-अलग लोगों को अपना रोल माडल मानने वाली इवा का आगे की पीढ़ी के लिये मानना है-
इन्सान अच्छा विद्यार्थी रहे, अच्छा खिलाडी रहे, इससे कहीं ज्यादा जरूरी है कि वह अच्छा इन्सान रहे | माता-पिता की इज्जत करे, बड़ों की इज्जत करे | देश के लिए सोचे | पारम्परिक भारतीय मूल्यों को समझे | पाश्चात्य संस्कृति के पीछे न भागे | फैशन की अंधी दौड़ में न दौड़े | माता-पिता भी बच्चों को इनसे दूर रखें | पढाई -लिखाई पर ध्यान दें|


महिलाओं को अपना सन्देश देते हुये इवा ने कहा:
मैं यह कहना चाहूंगी कि अपने पैरों पर खड़ी हों | प्रशासनिक सेवा में, पुलिस में, ज्यादा से ज्यादा आयें | आत्मनिर्भर बनें | पढाई पर ध्यान दें, कुछ बन कर दिखाएँ |


पूरा इंटरव्यू इधर पढिये। आप जिस भी क्षेत्र में हैं, आपको पढ़कर अच्छा लगेगा।

किताबों की दुनिया में आज नीरजजी परिचय करा रहे हैं परवीन शाकिर की किताब खुली आंखों में सपना से। परवीन शाकिर की नज्मों का नमूना देखिये:
मैंने हाथों को ही पतवार बनाया वरना
एक टूटी हुई कश्ती मेरे किस काम की थी

ये हवा कैसे उड़ा ले गयी आँचल मेरा
यूँ सताने की तो आदत मेरे घनश्याम की थी

बोझ उठाये हुए फिरती है हमारा अब तक
ऐ ज़मीं माँ ! तेरी ये उम्र तो आराम की थी

आँखों पे धीरे धीरे उतर के पुराने ग़म
पलकों पे नन्हें-नन्हे सितारे पिरो गये

वो बचपने की नींद तो अब ख़्वाब हो गयी
क्या उम्र थी कि रात हुई और सो गये


नीरज जी का इस पुस्तक से परिचय कराने के लिये शुक्रिया।

ई-स्वामी ने
ई-मेल बाँची बाप ने पड रहा दिल का दौरा, पूत ट्विट्टतो जावे!
में लिखा है:
१) मैं क्या जाने बिना नही रह सकता? मै आन-लाईन किसके संपर्क में आए बिना दिन नही गुज़ार सकता? नियत समय के लिये अनुपलब्ध हो जाना असामाजिक हो जाना नही है. ठीक उसी प्रकार – मैं अपनी डेस्क पर किस चीज़ को बेवजह लादे रख रहा हूं? के उत्तर जानने जरूरी हैं.

२) हर संपर्क का एक स्थान है. इन्टरनेट पर भी. व्यक्तिगत/अव्यक्तिगत/सामूहिक/व्यावसायिक संपर्कों में भिन्नता और उनके महत्व का ध्यान रखना जरूरी है.

३) “बेफ़ाल्तू” की मल्टीटास्किंग से बचें.

४) पीसी काम करने के लिये है, कचरा सहेजने के लिये नही है.

५) पुराने बेकाम के डिवाईसेज़ जीवन के बाहर कर दें .


अब बेफ़ालतू की मल्टीटास्किंग क्या है यह कैसे तय हो? इस पोस्ट टिपियाते हुये डा.अनुराग लिखते हैं:
पहली बात तो इत्ते धांसू फोटो का जुगाड़ कहाँ से होता है …….दूसरी भूखे पेट भी इतनी रचनात्मकता होना …काबिले तारीफ़ है …..एक ओर झकास लेख….उम्मीद करता हूँ .अलसाये हुए लेप टेप पर दो चार ओर लेखो का ठेलन हो जाएगा
अब डाक्टर अनुराग से पूछा जाये कि वे जैसा लिखते हैं वैसा कैसे लिखते हैं तो का बता पायेंगे? नहीं न! खैर देखिये उनके लेखन का नमूना:
कहने वाले कहते है ....."ओरिजनल" मिडिल क्लास नहीं रहा ..इसकी भी कई क्लास हो गयी है ..हर दो चार साल बाद . नए एडिशन भी निकल रहे है .... मध्यमवर्गीय ईगो" वो भी .ओरिजनल नहीं रहा.... ...अब वाले में दिखावे ओर छिछोरेपन की परसेंटेज़ ज्यादा है "....... फिमेल वाइग्रा भी अब लौंच हो गयी है .... भगवान् अब स्लो मोशन में नहीं चलता है ...कलयुग .ओर सतयुग जैसे सौ सालो का कांसेप्ट चला गया है ..हर दस साल में भगवान् कदम बढ़ा देता है .. ओर दुनिया भी बदल जाती है ......जेनरेशन गेप अब भाइयो के बीच बैठ के हँसता है ... ... प्रायश्चित करने के लिए मंदिर मस्जिद के दरवाजे पे जाने के बजाय ..कंप्यूटर पे "एपोलोज़ी डोट कोम" पे अपने गुनाह लिखकर आराम से मेगी नूडल्स खा कर सोया जा सकता है ....

डा.अनुराग के लेखन देखकर मुझे ऐसा लगता है कि सौ-पचास लोगों के बीच अगर डा.अनुराग को पहचानना हो तो सबसे एक-एक पैराग्राफ़ लिखवा लिया जाये। एक पैरा देखते ही समझ में आ जायेगा ये डा.अनुराग हैं। उनके लेखन की इस्टाईल उनका डी.एन.ए. है। :)

आजकल के कुंवारे लड़के बड़े कठकरेजे होते हैं। कहानी भी लिखते हैं तो जोड़े को अलग कर देते हैं। देखिये आप पंकज उपाध्याय की करतूत। पता नहीं भाई लोग आधे-अधूरे पन में क्या मजा पाते हैं:
प्रिया आजकल यूएसए में है… उसके पति के पास ग्रीन कार्ड है… कुछ दिन में उसे भी मिल जायेगा… उसकी झोली में ढेर सारी खुशियाँ हैं लेकिन उसकी ज़िंदगी अभी भी कुछ अधूरी सी है… अभी भी वो फ़ेसबुक पर गणेश की पब्लिक अपडेट्स देखा करती है… फ़्रेन्ड रिक्वेस्ट आजतक नहीं भेज पायी… फ़ेसबुक प्रोफ़ाईल पर गणेश का मेराईटल स्टेट्स (marital status) ’मैरिड’ है…

गणेश की शादी तो हो गयी है लेकिन क्या वो खुश है? क्या वो अभी भी प्रिया को याद करता है?… काश फ़ेसबुक ये भी बता सकता!

और अक्सर ही ये सब सोंचते हुये प्रिया अपने मेलबाक्स में ’गणेश’ नाम से सर्च मारती रहती है और एक लम्बी साँस लेते हुये यही सोचती है कि उस आखिरी ईमेल का जवाब आजतक नहीं आया………


इससे अच्छी तो शेफ़ालीजी हैं जो हास्य-व्यंग्य के अलावा जब कभी कवितायें भी लिखती हैं तो संयोग की। देखिये जरा:
आटे में कुछ गीत चुपके से
आकर गुँथ गए थे|

नमक मिर्च हल्दी के साथ
चटपटे, रंगीन एहसास
सब्जी की कटोरी में
घुल गए थे|

बेशर्म से एहसासों को
झाड़ू से बुहार दिया था|

बिस्तर पर बिछाकर
असंख्य शब्दों की चादर
अनुभूतियों के साथ ही अभिसार
कर लिया था|

इस तरह मैंने भी
तुम्हें बिना बताए
तुमसे प्यार कर लिया था|


और इस ब्लॉग पर आई टिप्पणियों को देखकर तो सिर्फ़ संस्कृत का श्लोक याद आता है- काव्य शास्त्र विनोदेन कालोगच्छति धीमताम। बुद्धिमान लोगों का समय काव्यशास्त्र मनोविनोद में गुजरता है।

एक ब्लॉग की शुरुआती तीन पोस्टों पर आई टिप्पणियां देखिये। पलक नाम महिला का है। इस पर तमाम टिप्पणियां पुरुषों की हैं। पलक जो भी हैं बहुत मौजी है। किसी से माडरेशन के बारे में पूछ रही हैं। किसी से ब्लॉगवाणी में रजिस्ट्रेशन की फ़ीस। सभी सरों को गुडनाइट हो रहा है। पता नहीं कहां लोग इन पुलकित कर देने वाली टिप्पणी विनिमय से दूर ब्लॉग जगत में कटुता देख रहे हैं। ऐसा आनन्द होते हुये कैसे कटुता रह सकती है। और तो और पलक नामी ब्लॉगर नीशू सर को ही सच्चा मर्द मानता है देखिये:
नीशू सर मैं इस मामले में आपके साथ हूं। चाहे आपका अपना साया भी साथ छोड़ जाए पर मैं ऐसा नहीं करने वाली हूं। जो मुझे पसंद आया है। जिसके विचार मुझे सच्‍चे लगते हैं। मैं उसी के साथ रहूंगी, चाहे जमाना कुछ भी कहे। मुझे लगता है कि तुम्‍हीं एक शेर हो, एक मर्द हो, जो मेरे ब्‍लॉग पर भी नहीं आए हो। खैर ... मुझे आप अच्‍छे लगे तो मैंने सोचा कि अपनी भावना आप तक पहुंचा दूं। आप अगर अपना नंबर दो तो मैं आपसे बात करना चाहूंगी। आपके मूंछें नहीं हैं तो क्‍या, बिना मूंछ के भी तो मर्द होते हैं। मुझे तो ऐसे ही मर्द पसंद हैं। मैं अपनी अगली कविता आपको ही समर्पित करूंगी। अगर नंबर दोगे तो बात कर लूंगी, नहीं तो सीधे समर्पित कर दूंगी। मैं किसी की परवाह नहीं करने वाली।


पलक के ब्लॉग पर टिप्पणियां देखकर दिलचस्प और हँसमुख लड़की बबली जी का ब्लॉग याद आता है।

विश्वत सूत्र बताते हैं कि पलक के ब्लॉग से प्रभावित होकर ही सतीश पंचम ने पोस्ट लिखी-
ये ओढ़निया ब्लॉगिंग का दौर है गुरू......ओढ़निया ब्लॉगिंग.....समझे कि नहीं........
देखिये एक और मजेदार पोस्ट!

अद्भुत है यह ब्लॉगिंग की दुनिया।

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19 टिप्‍पणियां:

  1. आईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
    आचार्य जी

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  2. thankyou anup sir. मैं सोच रही हूं कि आज अपनी कविता आपको ही समर्पित कर दूं। आपका ही हक बनता है पर मै मिथिलेश दुबे सर को वादा कर चुकी हूं। सर आपका नंबर थोड़ा बाद में आएगा प्लीज सर। नाराज मत होना। ब्‍लोगवाणी न जोड़े तो न सही, पर आपने तो मेरे ब्‍लोग की चर्चा की है। आप रियल फेंटेस्टिक सर हैं। आपने टिप्‍पणी का भी जिक्र किया है। सर मुझे आप पर गर्व है। यू आर सचमुच रियली ग्रेट सरजी। पर आपकी तो मूछे हैं सर जी। जस्‍ट किडिंग सर। बच्‍ची हूं न अभी। इतना तो हक बनता है सर जी, है न।

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  3. "....व्यसनेन् च मूर्खाणाम् निद्रया कलहेन् वा!!"

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  4. "उनके लेखन की इस्टाईल उनका डी.एन.ए. है। :)"
    आप वाली स्माईली के साथ हमारी स्माईली भी :)

    बबली जी की पुरानी पोस्ट पढी.. खोजी चिट्ठाचर्चा का एक बेहतरीन नमूना है है वो चर्चा.. कुश को इसके लिये ’व्योमकेश बख्शी’ की उपाधि दी जाय :)

    सतीश जी की ’ओढ़निया ब्लॉगिंग’ पलक जी के ब्लॉग से प्रभावित है :) वाह मतलब सतीश जी की बोलीवुड फिलेम और पलक जी की होलीवुड फिलेम.. ;) बढिया है..

    शेफ़ाली जी का कविता इस कठकरेजे को बेमिसाल लगी और नीरज जी की ’किताबो की दुनिया’ सीरीज साहित्य पढने वालो के लिये एक अच्छा कलेक्शन है..

    इवा सहाय जी को बधाईया.. उनका इन्टरव्यू पढता हू अभी..

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. वाह आज कि चर्चा देख तो दिल खुश हो गया...बहुत दिनों बाद इतने खूबसूरत लिंक मिले .शुक्रिया..

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  7. बेनामीजून 01, 2010 2:46 pm

    कल कहा गया विवाद से दूर रहो
    आज फिर कोक शास्त्र सॉरी काव्य शास्त्र हो रहा हैं
    चर्चा मंच के स्तर का कुछ ख्याल रखे
    समर्पण मुबारक हो
    कुश कल मुझे भी याद आये

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  8. अच्छी चर्चा है। चिट्ठा चर्चा का एक मोनोग्राम बना कर लगा दो जिस से एग्रीगेटर पर उसे अलग पहचानने में परेशानी न हो।

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  9. इवा सहाय जी को बहुत बहुत बधाई.
    -----
    सतीश पंचम जी की पोस्ट पर --क्या बात! क्या बात!क्या बात!:)
    ------
    कुश अगले मिशन 'जेम्स बोंड ००७ 'पर हैं शायद?
    ------
    विवेक सिंह जी की टिप्पणी अधूरी सी लगी.

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  10. एक सार्थक चर्चा के लिए बधाई आदरणीय मनोज जी को और मैं आदरजोग दिनेशराय द्विवेदी की एग्रीगेटर बात से पूर्णतः सहमत हूँ. सादर साधुवाद !!

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  11. मैंने हाथों को ही पतवार बनाया वरना
    एक टूटी हुई कश्ती मेरे किस काम की थी
    उतसाहबर्धक रचना

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  12. का है कि बडे भैया ऐसी चर्चा करोगे तो लोग तो आपको पलको पे बिठा लेगे. आपने तो काव्य शास्त्र लिखो पर जाने कैसे काऊ ने समझी कि कोक शास्त्र होगा. हमकू तो दोनो एक बराबर.

    कबऊ भैया हमार भी चर्चा करो, कसम से एक टूटी फ़ूटी कविता आपके नाम कर ही देगे. मूछ नही है तो का हम तो मान के चल रहे है कि मर्द ही होन्गे. अब हमारे पास कोई तरीका भी तो नही है. भौजी से पूछेगे तो बेलन नही किचिन रेन्ज उठा के हम पे फ़ेन्क के मारेगी.

    हम कविता शुरू करते है आपकू कसम है कि वाह वाह जरूर करना
    नही तो फिर हम नाम लेके गरियायेगे कि एक तौ कविता लिखो और वाह बाह भी नही मिले

    ब्लोगर है अनूप शुक्ल
    करते है मजे
    लेते है मजे
    रहते है मौज मे
    हिन्दी ब्लोग के पुरखा

    चिटठा चर्चा के चर्चे
    कभी मौज के चर्चे
    कविता के पारखी है
    नौकरी सरकार की
    चाकरी हिन्दी ब्लोग की

    कभी नामी कभी अनामी
    कभी आती है सुनामी
    चलाते है ब्लोगरो का अखाडा
    हमको तो वो गुरू लगते है
    पर लोग कहे गुरू घन्टाल है

    चाहे कुछ भी कहो
    मौज मौज मै खुद तो
    खूब मजे ले जाते है
    दूसरे ब्लोगरो की खाट
    खडी कर जाते है

    कविता बिन विचारे सीधे सीधे लिखी गयी है, लेकिन इस पर मेरा कापी राइट है. कविता छपते ही ब्लोग जगत की हो जायेगी. ये कविता श्री अनूप शुक्ल ( ब्लोग जगत के पुरखा ) को ये मनकर समर्पित की गयी है कि वो पूरी तरह मर्द है और सभी कहते है कि मर्द को दर्द नही होता

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  13. कुडि़यों से चिकने आपके गाल लाल हैं सर और भोली आपकी मूरत है http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/06/blog-post.html जूनियर ब्‍लोगर ऐसोसिएशन को बनने से पहले ही सेलीब्रेट करने की खुशी में नीशू तिवारी सर के दाहिने हाथ मिथिलेश दुबे सर को समर्पित कविता का आनंद लीजिए।

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  14. जो कुछ भी उपलब्ध है ...
    ज्ञान वर्धक है ...
    रोचक है .....
    मन भावन है

    आभार .

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  15. आदरणीय भाई साहब,

    सादर अभिवादन,

    यह देखकर बहुत ख़ुशी हुई की "चिटठा चर्चा" ने मेरी पोस्ट - "आई ए ऍस टॉपर इवा सहाय से मुलाकात" को १ जून २०१० का सर्वश्रेष्ठ पोस्ट चुना और उस पर समीक्षा प्रकाशित की | मैंने ब्लॉग की दुनिया मै तीन महीने पहले ही प्रवेश किया है और प्रति माह एक पोस्ट ही दे पा रहा हूँ | इस अवधि मे ब्लॉग की दुनिया को जो थोड़ा बहुत जाना उससे लगा कि इस दुनिया मे शायद गिरोहबाजी भी चल रही है | ब्लॉग कि दुनिया मे मै तो अभी किसी को भी न के बराबर जानता हूँ और शायद ही कोई मुझे जानता है | ऐसी स्थिति मे मेरी पोस्ट को चिटठा चर्चा ने जो महत्व दिया है उससे मेरा वास्तव मे उत्साह बढ़ा है और चिटठा चर्चा के प्रति विश्वास जगा है |

    बहुत बहुत धन्यवाद ,



    आपका अपना

    अनंत अन्वेषी

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    उत्तर
    1. ANVESHI JI !sATHI HAME HINDI TYPING ABHI NAHI AATI ISI SE rOMAN LIKH RAHA HOON.Ek kavyansh -Aksharo k Rang aur shabd k gulalon se kalam ka sipahi holi khelane laga./Pachmarhi ka suryast dekhane laga.

      हटाएं
  16. AA GAYI BARKHA/JHAM-JHAMA-JHAM GIRA PANI/NADI-NALE AUR JHARNE KARE NADANI/CHOUPAL PER BAITHE MAVESHI AUR CHERVAHE/FANKTE GUTKHA.

    KHULI SHIKSHA KI DUKANE/SAB CHALE BAHURI BHUNANE/KHUL GAYE SCHOOL-COLLEGE/CHUK GAYI TANKHA.AA GAYI BARKHA....GOPESH VAJPAYEE.Junnordev,CHHINDWARA.M.P.
    gopeshvajpayee@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  17. Sabhi ko holiana namaskar!abhithik se hindi type karna nahi aata ,tabhi to roman me likh raha hoo. bahot dino k bad-Ek apni kavita ka ansh-/Dhoopgarh ka sury asht dekhane laga/Aa gayi gori to Aankh sekane laga/Udhar kuch hua to idhar bahut kuch hua pushp-pankhuri ko noch fekne laga/Gyat tha na aayegi vo kabhi bhi loutker fir bhi sandhya-sandhya terne laga.Gopesh Vajpayee.BHOPAL

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