शनिवार, जून 05, 2010

शनिवार की चर्चा के साथ साथ दो चार बात

नमस्कार मित्रों!

मैं मनोज कुमार एक बार फिर हाज़िर हूं शनिवार की चिट्ठा चर्चा के साथ। पिछ्ले शनिवार को नहीं प्रस्तुत कर सका चिट्ठा चर्चा, इसका मुझे दुख है। एक सप्ताह की छुट्टी पर गांव गया था, बिहार के मिथिलांचल में। लैपटॉप साथा में था, चिट्ठा चर्चा भी लगभग पूरी हो चुकी थी पर ऐन मौक़े पर सिस्टम ही बैठ गया। फेर गया मेरी मेहनत पर पानी।

पानी बहुत ही क़ीमती है। उताना ही क़ीमती है पर्यावरण। आज विश्‍व पर्यावरण दिवस है। इस मंच से हम शपथ लेते हैं कि पर्यावरण को अक्षुण्ण रखने के लिये हम हर संभव कोशिश करेंगे।

आइए अब शुरु करते हैं चर्चा।

 

आलेख

अब विश्‍व पर्यावरण दिवस के अवसर पर बात कुछ ऐसे ही गंभीर मुद्दों से शुरु की जाए। प्लास्टिक और पॉलीथिन आधुनिक विज्ञान और तकनालाजी की एक चमत्कारिक देन है। 20 साल पहले पेड़ों को बचाने के लिए कागज के स्थान पर पॉलीथिन के इस्तेमाल का फैसला किया गया था। किन्तु इसका कचरा एक सिरदर्द बन गया है। जमीन में प्लास्टिक-पॉलीथिन का कचरा जाने से केंचुए व अन्य जीव अपना कार्य नहीं कर पाते हैं और भूजल भी प्रदूषित होता है। यदि इन्हें जलाया जाए तो वातावरण में जहरीली गैसें जाती है। इनके पुनः इस्तेमाल (रिसायकलिंग) से भी समस्याएं हल नहीं होती।

इस समस्या का हल ढूढते हुए हम एक समस्या के समाधान के चक्कर में नई समस्या पैदा कर रहे हैं। एक संकट का हल खोजने में नए गंभीर संकटों को दावत दे रहे हैं। दरअसल हम रोग की गलत पहचान और गलत निदान कर रहे हैं। इसलिए ज्यों-ज्यों दवा कर रहे हैं, त्यों-त्यों मर्ज बढ़ता जा रहा है। इन सब विशःअयों पर एक गहन चिंतन प्रस्तुत किया गया है अफ़लातून द्वारा जब दवा ही मर्ज बन जाए (बुनियादी संकटों के तकनीकी समाधान नहीं हो सकते) समतावादी जनपरिषद में।

प्रकृति के प्रति हिकारत, शत्रुभाव और उसे दास बनाने का एक झूठा अहंकार हमारी आज की  सभ्यता की एक खासियत है।

My Photoपिछले कुछ समय से नॉलेज प्रोसेस आउटसोर्सिग यानी केपीओ के प्रति शिक्षित युवा वर्ग की रुचि काफी बढ़ी है। एक रिपोर्ट में वर्ष 2010 तक ग्लोबल केपीओ सेक्टर में भारत की हिस्सेदारी 71 प्रतिशत तक होने का अनुमान लगाया गया है। भारत की पहचान ग्लोबल स्तर पर ‘नॉलेज हब’ के रूप में उभर कर सामने आई है। इन्हीं सब विषयों के प्रति एक रोचक आलेख लेकर आए हैं हमारे शिक्षा मित्र और समझा रहे हैं केपीओ और बीपीओ का फ़र्क़!
आमतौर पर लोग केपीओ को बीपीओ का एक्सटेंशन मान लेते हैं, पर सच्चाई यह है कि केपीओ बीपीओ से भिन्न है। दोनों की जरूरतें भी एक-दूसरे से अलग होती हैं। बीपीओ सेक्टर में लो-लेवल स्किल की जरूरत होती है, वहीं केपीओ के लिए नॉलेज और एक्सपर्टाइज काफी महत्त्व रखते हैं। केपीओ के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र का दायरा बढ़ता ही जा रहा है। केपीओ के तहत मुख्य रूप से जो क्षेत्र आते हैं, जहां प्रोफेशनलों की काफी मांग है।

एक बहुत ही उपयोगी पोस्ट।

My Photoवैज्ञानिक निरन्तर इस खोज में रहे हैं कि वो सोमरस की जडी बूटी कहाँ मिले, जिसकी वेदों नें बडी भारी प्रशंसा की है। यदि ऋचाओं की संख्या को ध्यान में रखें तो इन्द्र के बाद सोम पर ही सबसे अधिक ऋचाएं कहीं गई हैं। प्रश्न उठता है कि सोमरस की वो जडी बूटी है कहाँ?
पं.डी.के.शर्मा"वत्स" बता रहे हैं कि न जाने कितने वैज्ञानिक इसकी खोज में लगे रहे, लेकिन आज तक भी किसी के हाथ कुछ न लग पाया। साथ ही यह भी कह रहे हैं कि अभी भी ये प्रश्न अनुतरित है कि "सोमरस" क्या है?

आदि ग्रन्थो के अनुसार लिखी इस पोस्ट के अगले भाग की प्रतिक्षा रहेगी कि सोम किसे कहतें हैं, और सोम को विद्वान लोग क्या कहते थे?

My Photoगूगल ब्लॉगर साथियों को एक घंटे में 3497.62 रुपए पाने का मौका दे रहा है। बता रहे हैं आशीष खण्डेलवाल। कहते हैं आपको केवल उसकी Blogger usability study में भाग लेने की जरूरत है। गूगल 17-23 जून के बीच यह स्टडी आपके घर पर ही आपके बताए दिन व समय पर ऑनलाइन करेगा।

लिंक पर जाइए और अपनी सूचनाएं भरकर अपने मनपसंद दिन व वक्त का चयन कर लीजिए। गूगल द्वारा चयनित होने पर वह आपसे संपर्क करेगा और आपकी बहुमूल्य राय जानेगा। याद रखिए कि 75 डॉलर का गिफ्ट चैक केवल फॉर्म भरने पर नहीं मिलेगा। अगर गूगल इस स्टडी में आपका वास्तविक फीडबैक लेता है, उसी स्थिति में आपको यह उपहार राशि दी जाएगी।

 

ये तो मस्त है पैसा मिले न मिले कुछ नया ज़रूर करने का मौका है!

My Photoप्री-डायबीटिज़ एक ऐसी अवस्था तो है जिस के बारे में जागरूक रहने की ज़रूरत है और इस को डायबीटिज तक पहुंचने से रोकने के लिये अपना वज़न नियंत्रित करने के साथ साथ नियमित शारीरिक व्यायाम करना भी बेहद लाजमी है। मीडिया डॉक्टर Dr Parveen बता रहे हैं कि
“मेरे गुरू जी कहते हैं कि तुम लोग किसी बात को अपनी लाइफ में उतारना चाहते हो तो उस से संबंधित ज्ञान को दूसरों के साथ बांटना शूरू कर दो ----इस से जितनी बार तुम दूसरों को इस के बारे में कहोगे, उतनी ही बार अपने आप से भी तो कहोगे और वह पक्की होती जायेगी। मेरे खाने-पीने के साथ भी ऐसा ही हुआ ----मैं पिछले कुछ वर्षों से जब से सेहत विषयों पर लिख रहा हूं तो मैंने भी बाहर खाना बंद कर दिया है, जंक बिल्कुल बंद है -------क्या हुआ छः महीने साल में एक बार कुछ खा लिया तो क्या है !!”
डॉक्टर की सलाह मानिए, उन्हों ने तो रोज़ाना टहलने का मन बनाया है, मीठा कम करने की ठानी है और फिर से साइकिल चलाने की प्लॉनिंग कर ली है।

My Photoस्मार्ट इंडियन (आपको अनुराग शर्मा का नमस्कार!) का मानना है कि एक अच्छे लेखक में इतनी बुद्धि होनी चाहिए कि वह जो कुछ लिख रहा है वह कम से कम तकलीफदेह हो। उनका कहना है कि एक लेखक के लिए - भले ही वह सिर्फ ब्लॉग-लेखक ही क्यों न हो - लेखक होने से पहले अपने नागरिक होने की ज़िम्मेदारी को ध्यान में रखना अत्यावश्यक है।
यह एक गम्भीर, मौलिक और सीख देता लेख है।

clip_image001अपने जीवन में घटित घटना से प्रेरित होकर विगत लगभग 2वर्षों सेपॉलीथीन मुक्ति अभियान चला रही चित्तौड़गढ़ शहर कीरहने वाली 10 वर्षीय नन्ही बालिका दिव्या जैन का प्रयास,लगन, निष्ठा, होंसला वमेहनत रंग लाई, जब राज्य सरकार ने 1अगस्त 2010 से राज्य मेंपॉलीथीन पर पूर्णतया प्रतिबंधलगाने का निर्णय लिया है। अब तो मानना पड़ेगा कि रंग लाया नन्हे हाथों का प्रयास। राजस्थानके कई जिलों व कस्बों मेंघूम-घूम कर पॉलीथीन की थैलियों केदुष्प्रभाव बताकरपॉलीथीन के प्रयोग को बंद करने का संदेश देने केसाथ-साथस्वयं के खर्चे से बनाए गए कपड़े के थैले बांटने वाली, लोगोंसेसंपर्क कर पॉलीथीन को उपयोग में नहीं लेने के शपथ पत्रभरवानेवाली नन्ही बालिका सुश्री दिव्या जैन की खुशी का कोईठिकाना नहींहै।

उर्दू और अवधी पर प्रकाश डाल रहे हैं भाषा,शिक्षा और रोज़गार पर शिक्षामित्र।

उर्दू और अवध का रिश्ता सदियों पुराना है। इस जुबान ने लोगों को एक धागे में पिरोने का काम किया है। उर्दू हमारी सांझा संस्कृति को बढ़ाने में हमेशा आगे रही। अब उर्दू को आगे बढ़ाना हमारी जिम्मेदारी है। उर्दू कई जगहों का सफर तय करती हुई अवध पहुंची और यहां की शान बनी। अवध के नवाबों ने इसको काफी बढ़ावा दिया। नयी पीढ़ी को उर्दू से जोड़ने के लिए जरूरी है कि नयी तकनीकी का सहारा लिया जाए। अध्यक्ष माइनारिटी मानीटरिंग एजूकेशन कमेटी डा. साबिरा हबीब ने कहा कि इस जुबान की मिठास हमारे दिलों और दिमाग को ताजा कर देती है।

अवधी संस्कृति का सबसे अच्छा संग्रह आकाशवाणी के पास मौजूद है। आकाशवाणी की बताशा बुआ, बहरे बाबा, भानमती का पिटारा, घर आंगन, जगराना लौटीं, किसानों के लिए, लोकायतन ऐसे कार्यक्रम हैं जिनमें अवधी मिट्टी की सोंधी खुशबू साफ झलकती है। अवधी के संरक्षण के लिए आकाशवाणी हमेशा से प्रयत्‍‌न शील रहा है। आज भी यहां से अवधी पर कई कार्यक्रमों का प्रसारण हो रहा है।

My Photoठंडे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,

तपती सड़क पे लम्हा एक गुज़ार तो आए!

ये संवेदना के स्वर हैं जो विश्‍व पर्यावरण दिवस पर यह चिंता ज़ाहिर कर रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग पर बहस उस जगह हो रही होगी जहाँ का टेम्परेचर 18 डिग्री पर वातानुकूलित किया गया होगा। बड़ी असान सी तरकीब है, इस तपती हुई धरती के माथे पर गीले कपड़े की पट्टियाँ रखने का. और इस गीली पट्टी का नाम है ‘विश्व पर्यावरण दिवस’. यह ईलाज सुझाया यूनाईटेड नेशंस ने और दुनिया के तकरीबन 100 से ज़्यादा मुल्क़, अपने अपने हिस्से की ख़िदमत का ज़िम्मा लेकर बैठ गए. यह गीली पट्टी हर साल 5 जून के दिन, धरती माँ के तपते जिस्म को ठंडक पहुँचाने के ख़याल से रखी जाती है. आज 38 साल बीत गए हैं, लेकिन बीमारी कम होने का नाम नहीं लेती, बल्कि बढ़ती ही जा रही है.

 

कविताएं

मेरा फोटोपर्यावरण दिवस विशेष : पेड़ तब भी नही सुखाता कवितायन पर मुकेश कुमार तिवारी की प्रस्तुति।

पर्यावरण दिवस..........
चिडियों,
ने जब बदल लिया हो
अपना आशियाना /
छांव ने तलाश लिया हो
कोई और ठौर /
न किसी डाल पे
कोई झूलते याद करता हो किसी को /
न तले गुड़गुड़ाते हों हुक्का बूढ़े
सुबह से शाम तक
पेड़,
तब भी नही सुखाता
पेड़,
जब सूखता है तो,
केवल पत्ते नही झरते,
न ही दरारें झाँकने लगती है डालों से
या उसके तने को ठोंककर पूछा जा सकता हो हाल
जब,
जड़ों में सूखने लगती है
आशा की नमी
कि, किसी शाम
कोई गायेगा गीत जी भरके /
कोई रोयेगा बुक्का भरके /
कोई सुखायेगा पसीना
पेड़ सूख जाता है

मेरा फोटो‘‘ऋ’’ से हैं वह ऋषि, जो सुधारे जगत।

अन्यथा जान लो, उसको ढोंगी भगत।।

ये अंदाज़ है डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी का जो काव्य में नए-नए प्रयोग करने में माहिर हैं। लेकर आज आए हैं स्वरावलि। पूरी स्वरावलि प्रस्तुत करने के बाद कहते हैं

‘‘अः’’ के आगे का स्वर,अब बचा ही नही।

इसलिए, आगे कुछ भी रचा ही नही।।

यह प्रस्तुति तो ... बस यही कहूंगा कि मील का पत्थर है।

वंदना जी कहती हैं

“आज तो कमाल कर दिया और ये कमाल सिर्फ़ आप ही कर सकते हैं……………………ऐसी व्याख्या तो आज तक किसी ने नही पढी होगी……………इस तरीके से तो अनपढ भी पढ्ना सीख जाये।”

My Photoज़िन्दगी श्यामल सुमन की पहली लाइन से अंत तक बँधे रखनी वाली अत्यन्त भावपूर्ण कविता है।

आग लग जाये जहाँ में फिर से फट जाये ज़मीं।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।
आँधी आये या तूफ़ान बर्फ गिरे या फिर चट्टान।
उत्तरकाशी भुज लातूर सुनामी और पाकिस्तान।।
मौत का ताण्डव रौद्र रूप में फँसी ज़िंदगी अंधकूप में।
लाख झमेले आने पर भी बढ़ी ज़िंदगी छाँव धूप में।।
दहशतों के बीच चलकर खिल उठी है ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।।

इस पोस्ट पर प्रवीण जी का कहना है

कहो मौत से,थोड़ी प्रतीक्षा करे,
साहब जिन्दगी में व्यस्त हैं ।

पेड़ लगाकर भूल न जाना रावेंद्रकुमार रवि जी की पर्यावरण दिवस पर अनुपम भेंट है।

आओ, हम सब पेड़ लगाएँ,

अपनी धरती ख़ूब सजाएँ!

पेड़ लगाकर भूल न जाना,

इनको पानी रोज़ पिलाना!

रोज़ सवेरे इन्हें चूमकर,

बहुत प्यार से फिर सहलाना!

इन पर बैठ सदा चिड़ियाएँ,

गीत ख़ुशी के हमें सुनाएँ!

आओ, हम सब ... ... .

विकसित होता भारत देखो ! अंधड़ पर पी.सी.गोदियाल के साथ

अटल, सोनिया, एपीजे, मनमोहन और प्रतिभा-रत देखो,
लालू, मुलायम, ममता , येचुरी, प्रकाश-वृंदा कारत देखो !
संतरी देखो, मंत्री देखो, अफसर, प्रशासक सेवारत देखो,
आओ दिखाएँ तुमको अपना,विकसित होता भारत देखो !!

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शहर,सड़क व गलियों की 'प्रगति-ज्वर' से हया मर गई,
जन-प्रतिनिधियों की नाक तज,शर्म पलायन देश कर गई !
बेशर्मी बंद वाताकूलन में, इनकी हर ओंछी शरारत देखो,
आओ दिखाएँ तुमको अपना, विकसित होता भारत देखो !!

बहुत यथार्थ ..बेबाक..निर्भय और रौद्र..विद्रूप चित्रण..इसके व्यंग्य में दर्द और आक्रोश भी हैं।

My Photoएक बेहतरीन नव गीत प्रस्तुत कर रहे हैं बेचैन आत्मा पर बेचैन आत्मा।

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रिश्तों के सब तार बह गए

हम नदिया की धार बह गए.

अरमानों की अनगिन नावें

विश्वासों की दो पतवारें

जग जीतेंगे सोच रहे थे

ऊँची लहरों को ललकारें

सुविधाओं के भंवर जाल में

जाने कब मझधार बह गए.

बहुत कठिन है नैया अपनी

धारा के विपरीत चलाना

अरे..! कहाँ संभव है प्यारे

बिन डूबे मोती पा जाना

मंजिल के लघु पथ कटान में

जीवन के सब सार बह गए.

एक लक्ष्य हो, एक नाव हो

कर्मशील हों, धैर्य अपरिमित

मंजिल उनके चरण चूमती

जो साहस से रहें समर्पित

दो नावों पर चलने वाले

करके हाहाकार बह गए

एक सम्पूर्ण कविता जो बहुत सुन्दर है और जिसमें शब्द और भाव का अच्छा संयोजन है।

 

कथा-कहानी

मेरा फोटोकुमाउँनी चेली और ब्वारी शेफाली पाण्डे की लघुकथा मिस हॉस्टल हमें यह बताती है कि प्रतियोगिता जीतना एक बात है और आदर्शों को जीवन में उतारना अलग। हॉस्टल में एक प्रतियोगिता का अयोजन हुआ था। प्रश्नोत्तर राउंड के उपरांत जिस छात्रा को गत्ते का बना चमकीला ताज पहनाया गया, उसने अपने मार्मिक उत्तर से सभी छात्राओं का दिल जीत लिया। लेकिन उसी हॉस्टल से जाते वक़्त मिस हॉस्टल अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख सकी. उसने एक कंकड़ उठाया और पहले बल्ब पर निशाना साधा। क्यों? पढिए लघु कथा। जान जाएंगे।

 

पढ़ लिख कर भी मानसिकता में परिवर्तन नहीं आया तो ऐसे लोगों को पढ़ा लिखा असभ्य कहते हैं। कथनी और करनी में फर्क करने वाले लोगो पर करारा व्यंग्य है यह लघु कथा।

My Photoत्याग पत्र अब अपने उस मुकाम पर पहुंच चुका है जहां से राम दुलारी का जीवन एक नया मोड़ लेने वाला है। उसे अपने वैवाहिक जीवन के कुछेक महीनों में ही वह पहला बड़ा आघात लगा था। अपने पति से इस तरह के व्यवहार की वह कल्पना तक नहीं कर सकती थी। उसे लगा अपने परिवार वालों और संबंधियों से अपमानित होना, अग्नि के बिना ही शरीर को जलाते हैं। किंतु वह संयमित रही। जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है। वह अपने परिवार के वृक्ष को हरा भरा रखना चाहती थी ताकि उसमें मधुर फल लगे।

 

इस अंक में बहुत तरीके से आज की सामाजिक स्थिति का रोचक चित्रण किया है ।

 

संस्मरण / साक्षात्कार

मन तुलसी का दास हो अवधपुरी हो धाम।

सांस उसके सीता बसे, रोम-रोम में राम।।

इस दोहे के रचयिता बेकल उत्साही का मानना है कि गज़ल का आरम्भ कबीर और तुलसी करते हैं, और उसे सिद्ध करने के लिए उनके पास अकाट्य प्रमाण भी है।

बीते सप्ताह अनायास और अनियोजित तरीके से देश के महान शाइर पद्म श्री बेकल उत्साही से SINGHSDM जी की मुलाकात हुई। उन्होंने गुज़ारी एक शाम बेकल उत्साही के साथ। कहते हैं कि बेकल उत्साही ने भाषा और विधा को भावनाओं के आदान-प्रदान में बाधक नहीं बनने दिया और शायद यही स्थिति किसी भी साहित्यकार को उसके कालजयी होने के लिए धरातल प्रदान करती है। उनके गीत जन भाषा में हैं। खड़ी बोली में लिखे गये ये गीत उर्दू और हिन्दी के बीच एक सन्धि स्थल का निर्माण करते हैं। यदि वे यह कहते है ‘मेरे सामने गज़ल है, मैं गीत लिख रहा हूँ’ तो वे अपनी भावनायें ही प्रकट कर रहे होते हैं। भारतीय परम्परा के इस महान वाहक कवि गज़लकार बेकल उत्साही की एक गज़ल पेशे खिदमत है जो भारतीय आम आदमी की स्थिति-परिस्थिति को किस खूबसूरती के साथ बयान करती है-

अब तो गेहूँ न धान बोते हैं।

अपनी किस्मत किसान बोते हैं।।

गाँव की खेतियाँ उजाड़ के हम,

शहर जाकर मकान बोते हैं।।

धूप ही धूप जिनकी खेती थी,

अब वही सायाबान बोते हैं।।

 

किस अंश की तारीफ़ करून सम्पूर्ण पोस्ट ही लाजवाब है, पढिए!

इस पोस्ट के बारे में मैं कुछ नहीं कहूंगा। तस्वीर ही बयां करती है सारी बात। हां शीर्षक यह है

अपना-अपना भाग्य !

My Photoगोदियाल जी आप ने तो कमाल का पोस्ट लगा दिया है।

वाह रे ज़माना! बच्ची जमीं पर कुत्ते को सर चढा लिया है।

इस तस्वीर में हमारे आज की तस्वीर झलकती है।

पश्चिम से इम्पोर्टेड आइडिया से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है?

हिमाचल में कहीं कुछ ऐसे भी अनछुए स्थल हैं जहां सैलानी अभी तक नहीं पहुंच पाए हैं। ऐसे ही एक स्थल के संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं तिलक रेलन आस्था की डोर – चैरा! “चैरा” देव माहूँनाग का मूल स्थान । इस स्थान की विशेषता यह है कि यहां स्थित माहूँनाग जी के मन्दिर का दरवाजा हर महिने की संक्रांति को ही खुलता है और यही नहीं उसे खोलने के लिये बकरे की बलि भी देनी पड़ती है।

इस स्थल की यात्रा में प्रकृति हर कदम पर बिल्कुल नए रंग दिखाती रहती है। कहीं पर पहाड़ बहुत हरे भरे तो कहीं पर बस पत्थर की बनावट सी प्रतीत होती ।

“माहूंनाग” दानी राजा “कर्ण” हैं और कोई भी इनके द्वार से खाली नहीं जाता है ये सबकी खाली झोली भरते हैं । अनेक दम्पती संतान की चाह लिये इनके द्वार पर मन्नत मांगते हैं और चाह पूरी होने पर बकरे की बलि देते हैं । जो कोई भी सच्चे मन से शीश नवाता है उसे उस चांन्दी के दरवाजे से नाग के फुंकारने की आवाज सुनाई देती है ।

देवालय में बैठ कर कोई प्रश्न नहीं उठता मन में । इंसान शून्य में विलीन हो जाता है , अंतस की गहराई में उतरने लगता है , मात्र कुछ समय के लिये ही सही अपनी सांसारिक दुनिया से दूर हो जाता है । शायद यही वो आस्था की शक्ति है जो आज के इस वैज्ञानिक युग मे भी हम इन संस्कृतियों से जुड़े हैं और बन्धे हैं भक्ति की डोर से

 

ग़ज़लें

मर गया मैं तो कौन पूछेगा, ये मैं नहिं कह रहा हूं। यह श्याम सखा 'श्याम' जी की ग़ज़ल का शीर्षक है।

चुप रहूँगा तो अनकही होगी
गर कहूँगा तो दिल्लगी होगी
आया होगा बुझाने को तब कौन
आग पानी में जब लगी होगी
सो रहा दिन है तानकर चादर
रात तो सारी शब जगी होगी
मर गया मैं तो कौन पूछेगा
जिन्दगी मिस्ले-खुदकुशी होगी

My Photoअदा जी प्रस्तुत कर रहीं हैं ब्लॉग की ज़मीं आज करबला सी है

अब इस घर में अजब उदासी है

ख़ुशी तो है पर बहुत ज़रा सी है

जाने कितने राह भटक रहे हैं

ये और कुछ नहीं बदहवासी है

कहना है उनसे न करो तार-तार

कल ही तो रिश्तों की क़बा सी है

अहमकी के हक़ पर हो रहा यलग़ार

ब्लॉग की ज़मीं आज करबला सी है

इस पोस्ट पर अजीत गुप्त जी का कहना है

“अरे कहाँ करबला और कहाँ अपना ब्‍लाग जगत? यहाँ एकाध झगड़ा करता है तो क्‍या बाकि तो प्रेम करने वाले ही हैं।”

अंदाजे –बयां ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहे हैं Hindiarticles's Blog पर hindiarticles।

अपने होठों से कैसे तुम्हारा अंदाजे बयां कर दूँ ,
मन के अहसासों को ख़ुद से जुदा कर दूँ ।।

शोर करना तो झरने की फितरत है ,
कैसे समंदर के जज्बात मैं जग -जहाँ कर दूँ ।।

नर्म अल्फाज , भली बातें मुहज्जब लहजे ,
जो छलते हैं क्यों उसे मैं अदा कर दूँ ।।

नजर एटवी के जाने का मतलब नुक्कड़ पर प्रस्तुत कर रहे हैं डा.सुभाष राय।

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शऊर फिक्रो-अमल दूर-दूर छोड़ गया, वो जिंदगी के अंधेरों में नूर छोड़ गया.
नजर एटवी साहब बिना किसी को खबर किये चुपचाप रुखसत हो गए. सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी कि उनके कलाम लोगों तक पहुंचें. सीपी से नजर साहब की तीन गजलें यहाँ पेश हैं-
१.
तूने चाहा नहीं हालात बदल सकते थे
मेरे आंसू तेरी आँखों से निकल सकते थे.
तुमने अल्फाज की तासीर को परखा ही नहीं
नर्म लहजे से तो पत्थर भी पिघल सकते थे
२.
तेरे लिए जहमत है मेरे लिए नजराना
जुगनू की तरह आना, खुशबू की तरह जाना
मौसम ने परिंदों को यह बात बता दी है
उस झील पे  खतरा है, उस झील पे मत जाना
३.
उनकी यादों का जश्न जारी है
आज की रात हम पे भारी है
फासले कुर्बतों में बदलेंगे
होंठ उनके दुआ हमारी है

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33 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर संकलन, धन्यवाद!

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  2. एक साथ इतने ब्लॉग की जानकारी देकर आप निश्चित ही सराहनीय काम कर रहे हैं। साधुवाद

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  3. बहुत ही विस्तृत और लयबद्ध चर्चा!
    मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार!

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  4. बहुत संजदगी से कई महत्वपूर्ण चिट्ठों को एकत्रित करने का एक सार्थक प्रयास।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  5. कुत्ते वाला चित्र पहली नजर में ही फ़र्जी दिख गया. फ़ोटोशॉप का कमाल है.

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  6. कुत्ते वाला चित्र पहली नजर में ही फ़र्जी दिख गया. फ़ोटोशॉप का कमाल है.

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  7. विस्तृत सुगठित अच्छी चर्चा ...!!

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  8. सभी पोस्ट पढूंगा फुर्सत से रात में ...
    मेरे गीत को चर्चा में शामिल करने के लिए आभार.

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  9. अच्छा हुआ कि आपका सामान दुरुस्त हो गया वर्ना वंचित रह जाते आज भी चर्चा से। सुन्दर।

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  10. बहुत अच्छी और सुंदर चर्चा!

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  11. बेनामीजून 05, 2010 9:21 am

    ghost buster kae kament ko mera bhi maana jaaye !!!
    a very detailed charcha bravo

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  12. एक अच्छी, सुंदर और विस्तृत चर्चा।

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  13. बहुत बढ़िया चर्चा....हमेशा की तरह

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  14. बहुत बहुत शुक्रिया मनोज जी इस सुन्दर और विस्तृत चर्चा के लिए !

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  15. कहाँ से खोज लाते हैं आप इतनी काम की चीजें !
    अवधी लिंक तक जा कर अच्छा लगा ! आभार !

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  16. पावन भाई के ब्लॉग को इस उम्दा चर्चा में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार| सच में वह बहुत बढ़िया कार्य कर रहे है !

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  17. वाह क्या चर्चा है आज तो गागर में सागर है. धन्यवाद.

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  18. इतने सारे लोग आपकी इस चर्चा का निशाना बने हैं ,लेकिन प्रत्येक को पूरा पढने की इच्छा हो रही है क्या कहूँ पढने की आदत बहुत खराब होती है ,लोग चार कमरों में पाच मिनट में झाडू लगा लेते हैं और मुझे एक कमरे में झाडू लगाने में आधा घंटा लगता है क्योंकि छोटे मोटे मुड़े तूडे कागज भी खोल के पढने लगती हूँ की ये कहीं काम का न हो, उस समय घर के किसी कोने से डांटने बडबडाने की आवाज भी आती रहे तो सुनने वाले कान ही बंद हो जातेहैं ,पढने में जितना मजा है वह किसी और काम में नहीं

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  19. सुंदर और विस्तृत चर्चा ...

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  20. बहुत बहुत शुक्रिया..........दिल से आभार...जो आपने शनिवार के चिटठा चर्चा में मेरी पोस्ट शामिल की.....! बहुत ही संतुष्टिदायक संकलन है यहाँ पर...........!

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  21. aapkee mehnat kaabile tareef hai....bahut shukriya is sundar charcha ke liye...

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  22. नज़र एटवी की गज़लों से संबंधित पोस्ट पर ध्यान आकृष्ट कराने के लिये शुक्रिया..इनकी कुछ गज़लें पढ़ी थीं और सहेजी थीं..मगर पता नही था तब कि यह उनकी लिखी हुयी हैं..ऐसे शायर की रुखसती पर उनकी यही पंक्तियाँ ठीक बैठती हैं..
    वो जिंदगी के अंधेरों में नूर छोड़ गया

    बढ़िया चर्चा!

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  23. भाषा,शिक्षा और रोज़गार ब्लॉग को चिट्ठाचर्चा में शामिल करने के लिए कृपया आभार स्वीकार करें।

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  24. भाषा,शिक्षा और रोज़गार ब्लॉग को चिट्ठाचर्चा में शामिल करने के लिए कृपया आभार स्वीकार करें और सहयोग बनाए रखें।

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  25. यहां आकर अच्‍छा लगा। हमारे ब्‍लाग की भी आप चर्चा करें। इसके लिए क्‍या करना होगा। बताएं।

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  26. मनोज जी, आपको तो चर्चा करने में महारत हासिल है...हमें तो आनन्द आ जाता है आपकी चर्चा बाँच कर....इस चर्चा के कारण ही कईं अच्छी पोस्ट पढने को मिल गई.
    आभार्!

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  27. मनोज जी, आपका प्रयास सराहनीय है!!हमें स्थान देने के लिए धन्यवाद!!!

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  28. मनोज जी, आपका प्रयास सराहनीय है!!हमें स्थान देने के लिए धन्यवाद!!!

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  29. @ राजेश उत्साही जी
    कुछ नहीं करना होगा। हम आपके समर्थक बन गये हैं।

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