- यदि किसी भूल के कारण कल का दिन दु:ख में बीता, तो उसे याद कर आज का दिन व्यर्थ न गँवाइए।राजभाषा हिन्दी
- ई गोरकी सब्बे लोकनी के हरान कई देहलस.... अबहीं उपरे की सीट पर शकीरा का गाना सुन रही है, अऊर ओकरे आई-पोड की आवाज इहां तक आ रही है बे। गजब की आईटम है बे। मेरी दुनिया मेरा जहां....
- ललकारती-गरियाती पोस्टें लिखना सबसे सरल ब्लॉगिंग है। परिवेश का वैल्यू-बढ़ाती पोस्टें लिखना कठिन, और मोनोटोनी वाला काम कर पोस्ट करना उससे भी कठिन! :-) मानसिक हलचल
- बिजली की तरह ही प्रेम को भी बाँधा नहीं जा सकता है । इस दशा में दोनों का ही प्रेम बहता और बढ़ता है बच्चों की ओर । अब इतना प्यार जिस घर में बच्चों को मिले तो वह घर स्वर्ग ही हो गया । न दैन्यं न पलायनम्
- पूपला से प ध्वनि को गायब कर दें तो उपला ही हाथ लगता है। पर सवाल है कि सिर्फ ध्वनि गायब करने से एक खाद्य पदार्थ अखाद्य में कैसे बदल सकता है? शब्दों का सफ़र
- विश्व के चौधरी ने खाप लगाकर फ़तवा जारी कर दिया है कि खबरदार! होशियार! इराक के बाद अब बारी ईरान की है! हमज़बान
- कुतुबमीनार से गुड़गांव तक शुरु हुई मेट्रो में बैठे सबों के माथे पर तिलक लगे थे। ट्रेन चलने के पहले हवन हुआ और फिर नारियल फोड़े गए। क्या सार्वजनिक कही जानेवाली मेट्रो या फिर ऐसे दूसरे कामों की शुरुआत टिपिकल हिन्दू रीति से होना जायज है,तब भी हम धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करते रहें। विनीत कुमार
- ब्लॉग जगत के लिए हमारीवाणी नाम से एकदम नया और अद्भुत ब्लॉग संकलक बनकर तैयार है। इस ब्लॉग संकलक के द्वारा हिंदी ब्लॉग लेखन को एक नई सोच के साथ प्रोत्साहित करने के योजना है। हमारीवाणी.कॉम
- एक कविता जो बेतकल्लुफ़ी से धूप के जले गालों को पकड़कर हिला देती है और सहसा ही बादल उमड़-घुमड़ आते हैं खुली-सी एक छोटी बालकोनी में...एक कविता जो ठिठक कर बैठ जाती है फिर कभी न उठने के लिये असम के वर्षा-वनों से उखाड़े गये जंगली बाँसों को तराश कर बुने हुये किसी सोफे पर...एक कविता जो किचेन के स्लैब पर चुपचाप निहारती है चाय के खौलते पानी से उठते भाप को...एक कविता जो भरी प्लेट मैगी को पेप्सी में घुलते हुये देखती है...एक कविता जो तपती दोपहर की गहरी आँखों वाली पलकों पर काजल बन आ सजती है...एक कविता जो पुराने एलबम की तस्वीरों में अपना बचपन ढूंढ़ती है धपड़-धपड़... गौतम राजरिशी
- ईमानदारी यहाँ के आम जीवन का हिस्सा है। आम तौर पर लोग किसी दूसरे के सामान, संपत्ति आदि पर कब्ज़ा करने के बारे में नहीं सोचते हैं। भारत में अक्सर दुकानों पर "ग्राहक मेरा देवता है" जैसे कथन लिखे हुए दिख जाते हैं मगर ग्राहक की सेवा उतनी अच्छी तरह नहीं की जाती है। बर्ग वार्ता
- मैं एक नियमित खून दाता ( ओ प्लस ) हूँ और दिल्ली के कई हास्पिटल में अपना नाम लिखवा रखा है कि अगर किसी को मेरे खून की जरूरत पड़े तो मुझे किसी भी समय बुलाया जाए, मैं उपलब्द्ध रहूँगा ! सतीश सक्सेना
- लाइफ में रखिए सदा, पॉज़ीटिव ऐप्रोच ।
ओल्ड थॉट्स को बेचकर, ब्रिंग होम न्यू सोच ॥ स्वप्नलोक
बुधवार, जून 23, 2010
कुछ पोस्टों के अंश बस ऐसे ही
चर्चाकारः
अनूप शुक्ल
16 टिप्पणियां:
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बस ऐसे ही ....पर बहुत खूब है.
जवाब देंहटाएंबस ऐसे ही !
जवाब देंहटाएंप्यारा अंदाज़ है अनूप भाई ! शुभकामनायें !
सुन्दर संकलन.
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग देखा. अच्छा लगा. मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.
नई पोस्ट: बकरी के अंडे सफ़ेद क्यों नहीं होते हैं?
बहुत बढ़िया अनूप जी,गंगा के पानी का असर है जो गागर में सागर भर लाते है आप
जवाब देंहटाएंआपने हमज़बान की पोस्ट का लिंक देकर मेरा मान ही बढ़ाया है..कैसे कृतग्य न होऊं !
जवाब देंहटाएंशहरोज़ [दिल्ली ]
मज़ा आ गया। बस ऐसे ही।
जवाब देंहटाएंsundar..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .. पर नवें नंबर का लिंक नहीं बन पाया है !!
जवाब देंहटाएंचर्चा अच्छी है इश्टाइल भी अच्छा है... पर गौतम के ब्लॉग का लिंकवा नहीं दिए हैं भूल गए का?
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंहमें चर्चा कैसी लगी, यह बाद में बतायेंगे, बस ऎसे ही !
बल्कि आज कोई टिप्पणी भी न दिया, बस ऎसे ही !
बेहतरीन प्रयोग।
जवाब देंहटाएंनवाचार कोई आपसे सीखे।
आज के वाक्य - 1
जवाब देंहटाएं" बस ऐसे ही " भी लिखा कीजिये कभी कभार....
जवाब देंहटाएंलाजवाब अंदाज !!!
तेरी हर अदा निराली है....
जवाब देंहटाएंआप एक किताब लिख सकते है..
"चर्चा के साथ मेरे प्रयोग"
ये स्टाइल भी बढ़िया है भाई
जवाब देंहटाएंयह तरीका भी रास आया...
जवाब देंहटाएंप्रभावी सार-संक्षिप्त....