आज पहली अप्रैल है। बेवकूफ़ी की बातें करने का रिवाज है। साल भर से लोग इस दिन का इंतजार करते हैं ताकि दूसरे को बेवकूफ़ साबित कर सकें। फ़ेसबुक और ब्लॉग पर लोगों ने बेवकूफ़ी के तमाम पेंच लड़ाये हैं। हमारा तो मानना है कि :
डॉ मोनिका शर्मा ने बावला बनने के सुख विस्तार बताये हैं। वे लिखती हैं:
अमित श्रीवास्तव ने भी पहले फ़ेसबुक पर सवाल किया -मूर्ख दिवस कैसे मने !! 'कालिदास' तो बहुत हैं , 'विद्योतमाएं' ही नहीं मिलती अब । बाद में अपने ब्लॉग पर विद्योत्तमा का आह्वान करते हुये बोले-
तुम एक बार
शाख टूटने से पहले
मेरी जिन्दगी में
बन ’विद्योत्तमा
बस एक बार।
देवेंद्र पाण्डेय जी ने साल पहले के बनारस में हुये महामूर्ख मेले के बारे में बताया था उसमें उन्होंने बनारस के बुजुर्गों की फ़ितरत की जानकारी दी थी:
बनारसी बुजुगों से उलझने से बचने की सीख पर अमल करना करना मुश्किल काम नहीं लेकिन ऐसे बुजुर्गों का क्या कहा जाये जिनके लिये कहा गया है:
अपने राकेश खण्डेलवाल जी के गीत कलश के नये गीत का यह अंश देखिये;
एक अप्रैल मूर्ख दिवस के रूप में जाना जाता है। एक कारण शायद यह भी हो कि 31 मार्च को लक्ष्य पूरा करने के नाम पर जो बेवकूफ़ियां कमाई हों वे सब की सब अगले दिन खर्च कर ली जायें।रंजना भाटिया ने अपनी पोस्ट में मूर्ख दिवस के बारे में काफ़ी जानकारी दी है ।
डॉ मोनिका शर्मा ने बावला बनने के सुख विस्तार बताये हैं। वे लिखती हैं:
स्वयं को बावला मान लेने के अनगिनत लाभ हैं । कई सारे दूरदर्शी और जीवन की गहरी समझ रखने वाले तो स्वयं ही ये घोषित कर देते हैं कि वो बावले-भोले हैं । कई औरों से यह उपाधि पाने पर कोई आपत्ति उठाते । धीरे धीरे इस उपाधि को सबकी स्वीकार्यता मिल जाती है । बस, समझिये कि इसी भोलेपन की योग्यता के आधार पर वो व्यक्ति अपनी अधिकतर समस्याओं से पार पा लेता है । यूँ भी समझदारी दिखाने में रखा ही क्या है ? जिम्मेदारियों के सिवा हाथ ही क्या आता है ? इसीलिए बवालेबन जाने और मूर्खता के माध्यम से अपनी होशियारी दिखाते रहने से अधिक अच्छा और कुछ नहीं ।
अमित श्रीवास्तव ने भी पहले फ़ेसबुक पर सवाल किया -मूर्ख दिवस कैसे मने !! 'कालिदास' तो बहुत हैं , 'विद्योतमाएं' ही नहीं मिलती अब । बाद में अपने ब्लॉग पर विद्योत्तमा का आह्वान करते हुये बोले-
अब आ भी जाओ
तुम एक बार
शाख टूटने से पहले
मेरी जिन्दगी में
बन ’विद्योत्तमा
बस एक बार।
अब देखना है कि विद्योत्तमा उनकी पुकार सुनती हैं कि मटिया देती हैं। हाल दो-चार दिन में पता चल जायेंगे।
देवेंद्र पाण्डेय जी ने साल पहले के बनारस में हुये महामूर्ख मेले के बारे में बताया था उसमें उन्होंने बनारस के बुजुर्गों की फ़ितरत की जानकारी दी थी:
मत उलझना कभी बनारस के इन बड़े-बूढों सेइस पोस्ट में बनारस में हुये महामूर्ख मेले में हुये कवि सम्मेलन की रिकार्डिंग भी लगाई है। सुनिये। मस्त ।
ये सुपाड़ी तक फोड़ देते हैं अपने चिकने मसूढों से।
बनारसी बुजुगों से उलझने से बचने की सीख पर अमल करना करना मुश्किल काम नहीं लेकिन ऐसे बुजुर्गों का क्या कहा जाये जिनके लिये कहा गया है:
एक ढूंढो तो हजार मिलते हैं,ऐसे ही एक बनारसी बुजुर्ग हैं -वैज्ञानिक चेतना संपन्न चिरयुवा डा. अरविन्द मिश्र जी। कल , बकौल राग दरबारी के ड्राइवर साहब -"ऊंची बात कह दी शिरिमानजी ने।"बात जो हुई वो आपके लिये यहां पेश है:
बच के चलो तो टकरा के मिलते हैं।
- DrArvind Mishra आज के दिन केवल एक मतलब होता है -सिद्धार्थ जी सुन रहें हों तो बतायें शुकुल महराज को !
- Anup Shukla सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी तो अपने वाले DDO में जुटे होंगे। हम उत्पादन से जुड़े लोगों के यहां वो सब व्यस्तता नहीं होती। हमारे यहां आज छुट्टी है। बाबू लोग और सब हिसाब करके कब के घर जा चुके कि क्या बना ,क्या बचा। आप अभी तक उसई फ़ेर में हैं क्या? DrArvind Mishra
- मिसिरजी ने मेरी सलाह मान ली और अपना दुखड़ा अपने ब्लॉग पर आकर ठेल दिया- हंसी /मजाक, हल्का फुल्का, हास परिहास का लेवल लगाकर।वैसे आपको सच्ची बतायें कि जब मिसिर जी ने लिखा-"ये देखो अनूप जी DDO का मतलब नहीं जानते"तो मुझे PSPO पंखे के विज्ञापन के 0.15 वें मिनट में चिल्लाता वो सांवला लड़का याद आया जो हलक फ़ाड़कर कहता है- अरे वो PSPO नहीं जानता। दूसरा जिस समय मैं मिसिरजी से बात कर रहा था उसी समय गूगल पर DDO सर्च किया तो बाबाजी ने 0.18 सेकेंड में 16,300,000 परिणाम बताये।आजकल अपने जस्टिस काटजू साहब काफ़ी चर्चा में हैं। ऐसे में अपने ब्लॉग संवाददाता चंदू चौरसिया का मन हुड़क गया उनका इंटरव्यू लेने के लिये। पहुंच गये काटजू साहब के पास। अब देखिये उनसे क्या बातचीत हुई। यहां नहीं जी जहां पोस्ट हुई है वहीं देखिये। यहां दिखाने में खतरा है कि कहीं काटजू साहब गुस्सा न हो जायें।
उधर विवेक सिंह मूर्खों की अच्छाई बयान करते हुये लिखते हैं:
यह आम धारणा है कि पति पत्नी में से कोई एक मूर्ख हो तो गृहस्थी बड़े आराम से चलती है । मूर्खों के बीच तलाक होता हुआ शायद ही किसी ने देखा होगा । तेज लोगों के बारे में मित्र पहले ही आगाह कर देते हैं कि फलाँ आदमी बहुत तेज है जरा सँभलके रहना । जो लोग बहुत चालाक होते हैं वे किसी के काम आते हुए कम कम ही देखे जाते हैं । आमतौर पर जिनके बाल जल्दी सफेद हो जाते हैं तत्पश्चात खोपड़ी चिकनी हो जाती है और आँखों पर चश्मा चढ़ा रहता है वे मूर्ख नहीं समझे जाते । लेकिन शरीर बेचकर होशियारी का तमगा हासिल करने वालों पर तरस आता है ।
इस सब ताम-झाम से अलग सोनल रस्तोगी अपनी अलग कहानी सुनाती दिखती हैं:
ज़मीन पर बिखरे पीले निराश पत्ते ..जानते थे मौसम के साथ उनका भी यही हश्र होना है पेड़ों ने भी उनकी विदाई का शोक मनाया कुछ दिन पर ज़िन्दगी रुकी नहीं ..फूट पड़ी मोटे डंठलों में ,कठोरता को भेद कर मखमल से चमकीले पत्ते ...
पीपल सुलग रहा है ....खिड़की के ठीक सामने पीपल के जुड़वां पेड़ अचानक अपना रूप बदल के अचंभित कर रहे है ...वे हरे ...भूरे ना वे सुनहले हो उठे है अनूठे सच में बेहद अनूठे, सुबह उनको निहारना क्योंकि गर्म सुबहों में वे काई के रंग को लपेट लेंगे और ये स्वर्णिम आभा लुप्त हो जायेगी ...
अपने राकेश खण्डेलवाल जी के गीत कलश के नये गीत का यह अंश देखिये;
हो गईं हैं बन्द बजनी घंटियाँ सब फोन वाली
डाक बक्से में कोई भी पत्र अब आता नहीं हैमौसमों की करवटें हर बार करती हैं प्रतीक्षाकिन्तु शाखा पर कोई पाखी उतर गाता नहीं हैज़िन्दगी का पंथ मंज़िल के निकट क्यों है विजन वन
आज मन यह लग गया है आस्था से प्रश्न करने.
मेरी पसंद
अवसाद की इस गहरी बावड़ी में
घूमती हुई उतरती हैं,
इस यकीन की सीढ़ियाँ
कि नीचे इतना पानी जरूर होगा
जिसमें डूबा जा सके ।
प्यार ,मरने तक
चुपचाप मरते रहने के लिए
जिंदा रहने की कोशिश का नाम है ।अरुण मिसिर सीतापुर और अंत मेंआज के लिये फ़िलहाल इतना ही। बाकी फ़िर कभी।नीचे का चित्र ज्ञानदत्त जी की फ़ेसबुक दीवार से। ऊपर की पेंटिंग प्रत्यक्षा की फ़ेसबुक दीवार से। कार्टून क्रमश पवन,काजल और सुदर्शन जी के यहां से -साभार!
घूमती हुई उतरती हैं,
इस यकीन की सीढ़ियाँ
कि नीचे इतना पानी जरूर होगा
जिसमें डूबा जा सके ।
प्यार ,मरने तक
चुपचाप मरते रहने के लिए
जिंदा रहने की कोशिश का नाम है ।अरुण मिसिर सीतापुर और अंत मेंआज के लिये फ़िलहाल इतना ही। बाकी फ़िर कभी।नीचे का चित्र ज्ञानदत्त जी की फ़ेसबुक दीवार से। ऊपर की पेंटिंग प्रत्यक्षा की फ़ेसबुक दीवार से। कार्टून क्रमश पवन,काजल और सुदर्शन जी के यहां से -साभार!
बढ़िया चिठ्ठा चर्चा .... आभार
जवाब देंहटाएंचौचक चर्चा!
जवाब देंहटाएं"PSPO पंखे के विज्ञापन के 0.15 वें मिनट में चिल्लाता वो सांवला लड़का याद आया जो हलक फ़ाड़कर कहता है- अरे वो PSPO नहीं जानता।"
बहुत सही पकडे -हमारा फोकस वाकई यही था !
दो विद्वान् पंडितों के बीच हुई ज्ञान वार्ता बहुत लाभदायक और जानकारीपूर्ण रही। :)
जवाब देंहटाएंचिटठा चर्चा में मूर्खता और ज्ञान का मीठा खट्टा स्वाद
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