दरअसल चर्चा पतनशील नहीं है जो चिट्ठा आज चर्चा के लिए लिए चुना है वह लेखक द्वारा घोषित पतनशील गद्य है। पर उससे पूर्व सारी पोस्टें देखें यहॉं पर और यहॉं पर।
प्रमोद अब जमे जमाए गद्यकार हैं तथा अपने पतनशील साहित्य के टैग के तहत वे अक्सर पतन को खूब मार्क करते हैं। उनका एकदम नई पोस्ट संडे के फंडे और भगवानजी का अज्ञान एक जरूरी किस्म की पोस्ट है जिसे पढ़ते हुए अंदर का सुविधाप्रिय इंसान, जो मंथन के पचड़े से बचना चाहता है बार बार कह उठता है कि आखिर क्यों लिखा है इस लेखक ने यह। इसके बिना भी तो काम चल रहा था- प्रेम की बात करें मार पीट के बिना भी तो काम चल ही रहा है न। प्रमोद ने क्यों लिखा ये तो फ्रेंचेस्का ही जानें, उन्होंने ही दुनिया के इस हिस्से में प्रेम का इतिहास लिखा है या जाने भगवान जो अज्ञानी है। खैर प्रमोद ने लिखा है और परेशान कर देने वाला लिखा है - आलोक धन्वा चिट्ठे पता नहीं पढ़ते हैं कि नहीं इसलिए उन तक तो बात पहुँचने से रही। बाकी कवि बिरादरी को लगेगा कि ये बेबात में लिख दिया किसी पर कीचड़ उछाली जा रही है, भगवान पर भी।
शादी सचमुच जी का जंजाल है. ये है कि बैठे-बिठाये दो वक़्त का खाना मिल जाता है, और लेटे-लेटे दूसरी चीज़ें भी मिलती रहती हैं (अगर मन में औरत के प्रति मितली न पैदा हो रही हो), मगर ज्यादा समय तो इसका चिल्ल-बिल्ल चलता ही रहता है. सत्यनरायन की कथा. चुप्पै नहीं रहती. गूंगी होती ज्यादा अच्छा होता?
क्रांति बेहतर जानती होंगी। जाने दो अगर आप अकारण विचालित हो अपना संडे मंडे खराब नहीं करना चाहते, मानते हैं कि परिवार में सब अच्छा ही अच्छा है तो इस पोस्ट को जानें दें, बाकी चाजें पढें और समीर भाई को जन्मदिन की शुभकामनाएं दें, बारंबार। एक बार दें, दूसरी बार दें, बार बार दें
एक और पोस्ट की चर्चा की जानी जरूरी लगती है वह है अंतर्ध्वनि पर नीरज द्वारा निरपेक्ष सोच प्रचार और आम आदमी एक गंभीर किसम का चिंतनपरक लेख जो शब्दों की सीमाएं सुझाते हुए इस डगर पर चलने में बरते जाने वाली सावधानियों का संकेत करता है-
ओर अंत में चने के नारियल के झाड़ पर शास्त्रीजी देखें
चित्र के लिये एवं चुटकी लेने के लिये आभार! केरल नाम केरा (नारियल) से बना है. औसत अच्छे उपजाऊ पेड की ऊंचाई 15 से 25 फुट होती है. चित्र में जो पेड है उसका शीर्ष 40 फुट ऊचा है, एवं मै मकान की तीसरी मंजिल के ऊपर जाकर इसके शीर्ष के पास पहुंच सका. कुल ऊचाई 50 फुट से ऊपर है. (चित्र में पहले गलती से दुमंजिला मकान कह गया था. अब ठीक कर दिया है). मैं ने 80 फुट तक के नारियल के पेड देखे हैं. लोग इसके शीर्ष तक चढ कर ही नारियल तोड पाते हैं -- शास्त्री जे सी फिलिप
जवाब देंहटाएंहिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
हमारा यही कहना है कि सही है। इतवार की चर्चा सोमवार के पहले हो गयी।
जवाब देंहटाएंबधाई !
जवाब देंहटाएंआरंभ
क्या मेरी चर्चा में किसी अन्य का लाया जाना ज़रूरी था? क्या पंकशील साहित्य की कमलिनी-प्रगतिशील समीक्षा नहीं हो सकती? एफ़ अक्षर के साथ-साथ आपने क्रांति व भगवान जैसे शब्दों को भी लपेट लिया है, आपको अंदाज़ है इससे एक वर्ग विशेष, माने बारह लोगों के हृदय में कैसा-कैसा वज्रपात हो सकता है?..
जवाब देंहटाएंख़ैर, श्रद्धेयों का नमन व उनका अनुगमन करता हुआ अंत में यही कहूंगा कि पतन व प्रगति के बीच एक बड़ी महीन रेखा है(सावन भादों व उमराव जान की हिरोइन रेखा नहीं).. और ये कि सही है कि इतवार की चर्चा सोमवार के पहले हो गयी. हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है(सचमुच?). और बधाई.
बेहतरीन चर्चा. बधाई.
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं के लिये सभी का आभार.
मेरा कहना है कि चर्चा है अच्छी तो होगी ही. वैसे आपने सिर्फ शास्त्री जी की फोटो दी थी जानकारी वाला अभाव वे पूरा कर गये. मैंने नाम लिया है, मेरे पास भी उनका ई-मेल आता ही होगा. धन्य है उनकी सक्रियता.
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