मंगलवार, जुलाई 10, 2007

खादिम, सारा दिन

राकेश जी की संक्षिप्त चर्चा के बाद, अब एक अति संक्षिप्त चर्चा.

तो सत्ते की तिकड़ी बीत जाने के बाद भी संसार कायम है इसलिए अध्याय वहां से शुरू करते हैं जहां शास्त्री जे सी फिलिप की दक्षता पर रश्क किया गया. और इस रश्क पर मुश्क यह कि जे सी फिलिप किताब लिखेंगे. अपनी तरह लोगों को भी सक्रिय बना देंगे. फिर चिट्ठाजगत के सक्रियता क्रमांक का क्या होगा? कुछ नहीं होगा. हिन्दी हैं, हम वतन हैं, हिन्दोस्तां हमारा. अब कोई सवाल उठाये कि क्या हिन्दी के चिट्ठाकार बेकार की चर्चा ज्यादा करते हैं तो जवाब भी वहीं मिलता है- सही है. यह मूल्यवान टिप्पड़ी किसकी हो सकती है, अंदाज लगाईये...... मैंने तो समीरलाल नाम लिया नहीं, आप हर बात के लिए नाहक ही उनपर शक करते हैं. आजकल उनका कार्य बड़े-बड़े आकार ले रहा है. उनको फुर्सत कहां है.

सक्रियता बढ़ी है यह बात सारे पैरामीटर कह रहे हैं. विषयों का विस्तार हुआ है विविधता भी आयी है. किसी ने रपट तैयार की कि ताज के नाम पर देश लुटा तो किसी ने कहा ताज को वोट न देकर क्या तीर मार लिया. बाकी ताज चर्चा के सारे लिंक यहीं मिल जाएंगे. हम क्यों टाईम खोटी करें? वैसे ताज चर्चा से मितली आये और थकान का अहसास हो तो ननिहाल में गरमी की छुट्टियां बिता आइये. क्या कहा, आप नहीं जाना चाहते? यहीं खाट बिछाकर लेटेंगे, बैठेंगे, आराम करेंगे. जरूर करिए. मुझे तो ड्यूटी पूरी करनी है इसलिए आगे चलता हूं.

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर नहीं रहे. चिट्ठाकारों ने अपने-अपने स्तर पर श्रद्धांजली दी. किसी ने उन्हें असहमति की राजनीति में मुखर आवाज कहा तो किसी ने कहा कि उन्हें गुजरात के फाफड़े बहुत पसंद थे. उनके जाने से संसद की सबसे मुखर आवाज खामोश हो गयी है. चंद्रशेखर जी को हमसभी ब्लागरों की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि.
वैसे इसी आपदकाल में एक आवाज कलकत्ते से मुखर हुई है. उस आवाज ने कहा है कि फुरसतिया जी वहां गये थे, लेकिन जो लौटे वे फुरसतिया नहीं थे. फिर कौन थे? आना फुरसतिया का, जाना एक मित्र का. वैसे राजस्थानवाले भैया ने भी सूचना भेज दी है कि वे फिर आ गये हैं? बड़े दिनों बाद महाशय भी जगह-जगह टिप्पड़ी करते पाये जा रहे हैं. उम्मीद है जल्द ही इनके लेख भी आने शुरू हो जाएंगे. क्या कहा इस विरह पर कविता हो जाए. तो लीजिए दो पंक्तियां इनके चिट्ठे से हाजिर हैं-

नज़रें थक गई, आँखें भर आई।
पर फीर भी वह नज़र न आई॥

कविता में वर्तनी दोष ढूंढ लिया. भाई इसे तो मैंने जस का तस रख दिया है. वैसे हिमाचल में बारिश से जनजीवन अस्त-व्यस्त है इसलिए घूम-फिर कर लौट आये ब्लागरों से अनुरोध है कि हिमाचल न जाएं, बल्कि यहीं से एक दक्ष पत्रकार की तरह समीक्षा करते रहें. फिलहाल चिट्ठाजगत में स्वस्थ बहस का सक्रिय विषय है पूजा का प्रतिरोध फिल्मी है या वास्तविक?

आप बहस में हिस्सा लीजिए, मैं तो चला चंदा जुटाने. मुझे टिप्पड़ियां जो खरीदनी है.
एक मिनट
कौन बोला?
क्या?
पंगेबाज का नाम क्यों नहीं लिया?
अच्छा. बहुत पंगेबाजी करते हो. वह पंगेबाज तो तुम फंदेबाज.
कुछ भी कर लिया जाए ये सुधरनेवाले नहीं है.

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4 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया मस्तिया अंदाज में चर्चा पसंद आई. बधाई. करते रहें. लगा ही नहीं कि प्रथम चर्चा है.

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  2. बहुत अच्छा। अब नियमित लिखिये।

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  3. स्‍वागत है मंडली में। अब नियमित चर्चा करें। ताकि चर्चा भी कुछ नियमित हो जाए।

    अच्‍छी चर्चा।

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