शुक्रवार, अगस्त 03, 2007

एक हबड़-तबड़ चिटठाचर्चा

ज्ञानदत्त पाण्डेयजी ने दो दिन पहले हमारी एक पोस्ट पर टिपियाया-बढ़िया है यह अतीतकालीन चिठ्ठा चर्चा! वर्तमानकालीन चिठ्ठाचर्चा से सहस्त्रगुणा बेहतर! इस चपत से सर झनझना गया।

चिट्ठाचर्चा की पहली पोस्ट अगर देखें तो हमने लिखा था
यह भी सोचा गया कि हम सभी भारतीय भाषाओं से जुड़ने का प्रयास करें.
इसी परिप्रेक्ष्य में शुरु किया जा रहा है यह चिट्ठा.दुनिया की हर भाषा के किसी भी चिट्ठाकार के लिये इस चिट्ठे के दरवाजे खुले हैं.यहां चिट्ठों की चर्चा हिंदी में देवनागरी लिपि में होगी. भारत की हर भाषा के उल्लेखनीय चिट्ठे की चर्चा का प्रयास किया जायेगा.अगर आप अपने चिट्ठे की चर्चा करवाना चाहते हैं तो कृपया टिप्पणी में अपनी उस पोस्ट का उल्लेख करें.यहां हर उस पोस्ट का जिक्र किया जा सकता है जिसकी पहले कभी चर्चा यहां नहीं हुयी है.चाहे आपने उसे आज लिखा हो या साल भर पहले हम उपयुक्त होने पर उसकी चर्चा अवश्य करेंगे.

तो कहां तो दुनिया भर के चिट्ठों की चर्चा का बीड़ा उठाया था। कहां हिदी के ही नहीं बैपर पा रहे हैं। बहरहाल प्रयास में क्या हर्ज!

आप देखिये ये आलोक पुराणिक और ज्ञानदत्त पाण्डेयजी का क्या गजब ब्लाग गठ्बंधन है। दोनो महापुरुष लगभग आगे पीछे अपना ब्लाग पोस्ट करते हैं। लगता है जैसे संजय दत्त को पूणे की यरवदा जेल की तरफ़ बढ़ती पुलिस वैन के पीछे उनकी मित्राणी मान्यता की कार लगी हो

यह गठबंधन वाली बात सिर्फ़ पोस्ट में ही नही टिप्पणी तक में जारी है। दोनों लगभग एक साथ अपनी टिपियाते हैं| आज की पाण्डेयजी की पोस्ट पर पहली टिप्पणी में आलोक पुराणिक कहते है
-मार्मिक कहानी है।
पानी के जरिये लूट मचाने को बिसलेरी टाइप कंपनियां ही काफी हैं, छोटे लुटेरे भी पानी के जरिये लूट मचायेंगे, तो फिर तो आम आदमी के लिए आफत है.
और आज के विचार तो वाह ही वाह हैं। धांसू च फांसू तो हैं ही, कुछ नया करने के लिए ठेलक और प्रेरक भी हैं।
आलोक पुराणिक के धांसू च फ़ांसू अंदाज में ही ज्ञानजी भी हैरान परेशानश्च होना पसंद करते हैं-
पुराने जमाने में खेती के यंत्र हल/बैल/ट्रेक्टर हुआ करते थे. अब मंत्री और संत्री की जंत्री से खेती होती है. जिसे यह बोध नहीं है वह हैरान परेशानश्च होगा ही!


ज्ञानजी की हालिया पसंदीदा पोस्टें उनके ब्लाग के नीचे दिखती हैं। वहीं से हमने बोधिस्तव जी का टंच संस्मरण पढ़ा
-
टंच जी की सुर सिद्धि गजब की थी और वे खुद को तुकाचार्य भी कहते थे। पानी भी मांगते तो तुकों में। बात करते तो लगता कि गा रहे हैं। किसी किशोरी से प्रणयावेदन करते तो वह कविता समझ कर खिल पड़ती। कभी टंच जी को कविता के लिए कंटेंट का टोटा नहीं पड़ा। कभी उनको काव्य वस्तु खोजते नहीं पाया। वे पहले तुक बैठाते फिर लिखते। लिखते क्या वे गा-गा कर अपनी कविता पूरी कर लेते थे। उनकी एक कविता जो आज भी मुझे याद है, वह कुछ यूँ थी-

मैं हूँ सुंदर तुम हो सुंदरि,
तुम हो सुंदर जग से सुंदरि
हम दोनों हैं सुंदर सुंदरि
आओ प्यार करें
नैना चार करें।

आज जब सबेरे सात बजे हमने यह चर्चा शुरू की थी तो सोचा था कि काम भर के चिट्ठे-चर्चित कर देंगे। लेकिन दोस्तों को कुछ और ही मंजूर था। एक तरफ़ रामचंद्र मिश्र इटली से इलाहाबाद आकर नमस्ते कर रहे थे दूसरी तरफ़ देबाशीष एक मेल में कह रहे थे अनूप आप भी कमाल कर देते हैं :) वाटर वाटर कर दिया मुझे...

एक तरफ़ राजीव टंडन बगल के मोहल्ले में सोने जाने से पहले ब्लाग सेटिंग की आनलाइन कोचिंग दे रहे थे। दूसरी तरफ़ कनाडा से समीरलाल माननी च उलाहिना नायिका की रूठे-रूठे से पूछे रहे थे-काहे नहीं पढ़ रहे हमें नाराज हो क्या? वे साथ में हमें वे बताते जा रहे थे पिता जी आपको डूब कर पढ़ रहे है आजकल पुराने पुराने लेख पढ़ कर हमसे ही पूछते है कि यह पढ़ा पीला बसंतिया चांद।

इधर से पत्नीजी कह रही हैं आज फिर हड़बड़ाते हुये आफिस जाने का मन है क्या। चाय ठंडी कर दी फिर बोलोगे कि चाय में मजा नहीं आया। उधर बगल के कमरे से टेलीविजन पर संजय पुराण चल रहा है- संजय दत्त को एक दिन में मजदूरी मिली बारह रुपये पचहत्तर पैसे। चर्चा में मशगूल हम निर्मोही न वाऊ कह पाये न हाऊ सैड। अभी तक मन कचोट रहा है।

अब बताइये ऐसे में क्या चर्चा होगी। जो होगी वो इसी तरह होगी।

लेकिन आप देखिये कि हम प्रयास तो कर रहे हैं और यह भी बता रहे हैं कि नये लोग जुड़ रहे हैं उनमें से एक हैं डॉ. कविता वाचक्नवी|

आप इनको और दूसरे लोगो को पढिये हम फ़िर आयेंगे आपके पास। इतने पास की आपको अपनेपन का होगा झमाझम अहसास । फिलहाल तो हम लेते हैं आपसे एक अल्पावकाश। बताइये कैसा है हमारा यह प्रयास! :)

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4 टिप्‍पणियां:

  1. इस चिट्ठाचर्चा से यह समझ में आ रहा है कि दो चिट्ठाकार शेष हैं बाकी अशेष.
    नो कमेन्ट्स.

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  2. संजय तिवारी>..इस चिट्ठाचर्चा से यह समझ में आ रहा है कि दो चिट्ठाकार शेष हैं बाकी अशेष.
    नो कमेन्ट्स.


    शेष माने खल्लास! अशेष माने जिनमें सम्भावनाये है! :)

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  3. ठीक है साहब, जैसी हरि इच्छा. थोड़ा हमारे लेख का लिंक ठीक कर दें.

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  4. समीर भाइ की चिट्ठा चरचा ,और हमारा जिक्र तक नही ...हम विरोध के दो दिन और नही लिखेगे..:)

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