आखिर कब तक रवि रतलामी, फ़ुरसतिया, समीर को गाता
कितने दिन आलोक पुराणिक या सागर की बात करूँ मैं
या दुहाई मेरे पन्ने की , बोलो कितनी देर लगाता
इसीलिये चर्चा का दामन छोड़ दिया कर एक बहाना
जितना पढ़ूँ लिखूंगा उतना, ये भी मुश्किल था कह पाना
किन्तु यहां पर जब देखी है सरे आम घनघोर डकैती
तो हो गया असंभव मुझको अब बिल्कुल भी, चुप रह जाना
तो मुलाहिजा फ़रमाइये
वह चोरी जब करते हैं, करते हैं सीना तान के
लिखना आता नहीं उन्हे है, हमने देखो मान लिया
और न तुकबन्दी ही सीखी, ये भी सच है जान लिया
भाव पास कुछ नही, चाह है शायर पर कहलाने की
इसीलिये ही राहजनी करवे करें उन्होंने ठान लिया
दूजों का हक हथियाते् हैं सदा बपौती मान के
चिट्ठों पर सोचा है कोई उनके जितना पढ़ा नहीं
वे लेखक हैं और कोई भी उनसे ज्यादा बड़ा नहीं
उनका हक है चाहे जिसकी रचना कह अपनी छापें
कोई उनके जितना ऐसे पैडस्टल पर चढ़ा नहीं
सारे शिष्टाचार पी गये ठंडाई में छान के
हर अच्छी कॄति इनकी होती और किसी का नाम नहीं
नीति और ईमान किसी से इनको कोई काम नहीं
ये है सच्छी बात पुतेगी गर्द समय की चेहरे पर
पंथ प्रगति का कभी चूमने पाता इनके पांव नहीं
बज़्मे अदब में, खरपतवारी पौधे हैं ये लान के
http://aapkamitrgss.blogspot.com/2007/07/few-english-poems.html
जवाब देंहटाएंone more here
आपने अच्छा किया जो यह कहा! कहते रहिये!
जवाब देंहटाएंआगाह करके संभलने का मौका तो देते भाई...वैसे ऐसी सब बातों को वो अपने ब्लॉग से मिटा देते हैं तो कैसे कोई आगाह भी करे. शायद भविष्य में संभलें.
जवाब देंहटाएंमेरा तो मानना है कि कुछ भी नया नही है सब कुछ कहा जा चुका है. बस कहने का अन्दाज नया होता है.
जवाब देंहटाएंhttp://sarathi.info/archives/495
जवाब देंहटाएंhttp://hubpages.com/hub/Nai_Subah
i have pointed it out so many times
i am requesting every blogger to visit these pirated copied sites and keep posting comments
the link in your post above does not work now
कहने का अंदांज
जवाब देंहटाएंनया हो मौलिक हो
तो उस पर अधिकार
ओरिजनल लेखक का है
अब वर्ण माला तो पुरानी
ही है ले - ख़ाक हो रहा है लेखक