रविवार, अगस्त 26, 2007
द साईलेंस इज़ डेफनिंग
चर्चाकारः
debashish
जी हाँ आपने "खामोशी की आवाज़" जैसे जुमले सुने होंगे पर उदाहरण ज्यादा न देखे होंगे। तो पढ़िये अशोक जी चक्रधर की नवीनतम पोस्ट जो उन्होंने न्यूयॉर्क में संपन्न विश्व हिन्दी सम्मेलन पर लिखा। और शायद ये हिन्दी ब्लॉगजगत की पहली ऐसी पोस्ट है जिसे बिना कुछ लिखे टिप्पणियाँ मिलीं। फुरसतिया ध्यान दें ;)
5 टिप्पणियां:
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इस के पीछे क्या राज़ है, कौन जानता है?
जवाब देंहटाएंपर एक पोस्ट पहले भी आई थी ऐसी..
http://tooteehueebikhreehuee.blogspot.com/2007/06/blog-post_12.html
चक्रधर तो इस सम्मेलन की हस्ती रहे है। उनसे तो लगता है गलती से कुछ छूट गया और भाई लोग मेरे मजाक को ले उड़े।
जवाब देंहटाएंदेबाशीष तो हर बात में पहला ढूंढने के चक्कर में रहते हैं अभय भाई। इससे पहले इरफान के अलावा और भी कई पोस्ट आचुकी हैं
अभिनयः अवव्ल तो हर चीज़ को इतनी गंभीरता से लेने की कोई तुक नहीं है। ये आप भी जानते हैं और मैं भी कि शायद प्रकाशन की किसी तकनीकी त्रुटि से ये काम हो गया। आपकी टिप्पणी से रिक्त पोस्ट के भी मायने निकल आये तो हमने उसकी मौज लेते हुये चर्चा कर दी जो इस जालस्थल का काम है। इस प्रसंग में इससे अधिक महत्व प्रविष्टि लेखक और टिप्पणीकार का नहीं है। चुटकी लेती पोस्ट में फिर भी मैंने "शायद" लफ़्ज़ का इस्तेमाल किया है। इस बहाने मुझ पर तंज कसने का भावार्थ में समझ नहीं पाया, विशेषतः तब जब आप मुझे जाल पर और व्यक्तिगत तौर जानते भी नहीं। मेरी "आदतों" से आप इतना वाकिफ़ कैसे हो गये अवश्य जानना चाहुंगा।
जवाब देंहटाएंकोई भी काम पहली बार करने वाला खुश होता ही है और बोलता भी है, ज़रा वर्ल्ड्स फर्स्ट गूगल करेंगे तो आप को पता चलेगा कि कितनी वेबसाईट्स पहली बार कोई काम करने का दावा करती रही हैं। निरंतर पर मैंने जो दावा किया वो सौ फीसद सही है और मैं उस पर अब भी कायम हूँ। बुरा लगे या भला, जो है सो है।
अभय: आप जिस पोस्ट का ज़िक्र कर रहे हैं वो कोई कोरी पोस्ट नहीं है। ब्लॉगर पर ये सुविधा है कि आप पोस्ट की टाईटल को एक कड़ी बना सकते हैं। तो जाने या अनजाने इरफ़ान नारद की एक पोस्ट को लिंक कर रहे थे।
जवाब देंहटाएंये तो मौज मजे की बात है। बस इससे ज्यादा कुछ नहीं। :)
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