नये चिट्ठाकारों में एक नाम और जुड़ गया है, मुकेशजी सोनी अपनी चटपटी शैली में चिट्ठाजगत को चटपटा बना देने का प्रयास कर रहें है, उनके चिट्ठे पर “कागलो” पढ़िये, राजस्थानी भाषा में है, समझ ना आये तो टिप्पणी कर पूछ लिजियेगा, दो फायदें होगें, एक तो आपके राजस्थानी ज्ञान में वृद्धि होगी दूसरा नये चिट्ठाकार की हौसला अफ़जाई। अतुल भाई तो उनका स्वागत कर ही चुके हैं, साथ ही नसिहत भी दे आयें की नारद पर पंजीयन करवा लो, अतुल भाई! चर्चाकारों का तो ख्याल किया करो। अनामदास जी आज अपने चिट्ठे पर लेख़न और खेलन में फ़र्क समझाते पाये गये, मगर खरी-खरी कहने से नहीं चुके –तरह-तरह के प्रगतिशील, अप्रगतिशील, तुक्कड़-मुक्कतड़, जनवादी-मनवादी आदि-आदि लेखक संघों का वर्चुअल कन्फ़ेडरेशन है नारद. इसके बाद आप कुछ रियल बना लीजिए, पर्चे छापिए, नए लोगों को प्रोत्साहन दीजिए, वाह-वाह करिए, बीस-तीस लोगों को आप लेखक कहिए, बीस-तीस लोग पढ़कर या बिना पढ़े आपको लेखक होने का सर्टिफ़िकेट दे देंगे, हो गया काम.
शिरिल मैथिली गुप्त अंतरजाल पर अपने अनुभवों को आपके समक्ष लेकर हाज़िर हैं, अब आप सीख लें कि कैसे गधों को सम्मान देना है और कैसे धन्यवाद देना है?
राजस्थान जल रहा है, ऐसे में ज्ञानदत्तजी को मानसिक हलचल ना हो, संभव नहीं है, वे आहत हैं कि जब पटरियाँ उखाड़ी जा रही है तो उनकी ट्रेन कहाँ चलेगी, क्या कहना है उनका इस पूरे घटनाक्रम पर, देखिये उन्ही के चिट्ठे पर। अपनी मौजुदगी का एहसास करवाने के बाद अचानक गायब हुए अशोकजी अब पुन: लौट आयें है और घर-घर दस्तक देकर अपने लौटने का समाचार सुना रहे हैं, आप भी सुन लिजिये।
आज की सबसे बड़ी ख़बर, जिससे सम्पूर्ण चिट्ठाजगत आश्चर्य में डूबा है, “पंगेबाज ने आज कोई पंगा नहीं लिया” रही, वे आज राजनितिज्ञों को आवाज देते रहें तो गुरूदेव आज अपने अनुज अभिनव शुक्ल की प्रस्तुती “हास्य-दर्शन” की समीक्षा में व्यस्त दिखें, अच्छा लगा, “गुरूदेव! कभी हम पर भी नज़र मारों ना...”
अब आप जल्दी से चटपट को अपने चिट्ठे से लिंकित कर लें, नया चिट्ठाकार है, अभी जोश में भी होगा, क्या पता जोश में आकर आपको लिंकित कर लें, लिंकित होने का मतलब काकनरेश अर्थात काकेशजी ही बेहतर बता सकते हैं, सुना है कि वे आजकल इसी विषय पर पी.एच.डी. कर रहें है।
हिन्द-युग्म पर कवि गौरव सौलंकी अपने युग को अपनी शैली में बयां कर रहें है –
शब्द पावन, धुन भी पावन
गीत सब नापाक हैं
चेहरे हैं चंचल सभी
पर हृदय अवाक हैं
मौन है मानवता सारी
सर्वहित तो स्वार्थ हैं
स्निग्ध भावों वाले तो
अब अनिच्छित मार्ग हैं
चलिये अब थोड़ा दार्जिलिंग घूम आते हैं अभिषेक ओझा के संग, अच्छा है कि दार्जिलिंग जाने का रास्ता दौसा होकर नहीं जाता, वरना मैं तो घूमने की सोच भी नहीं पाता, बहुत पंगा है, होना भी चाहिये, भारतीयता की सच्ची पहचान ही पंगा और जुगाड़ है, ये दोनों नहीं हो तो लगता है कि हम भारतीय ही नहीं है, देखिये ना, अभिनव शुक्लजी के शब्दों में -
ये जानना कठिन है कि मासूम कौन है,
हम सब ही गुनहगार हैं लाठी उठाइए,
नन्दी का ग्राम हो भले दौसा के रास्ते,
आवाम पे बेखौफ हो गोली चलाइए,
राजस्थान में इतनी आग लगी है कि बेचारी धूल भी उड़ने से कतरा रही है, क्या मालूम हवा में भी जाम लगा हो, खेर माया के राज में लगता है यूपी में धूल पर कोई रोक नहीं, वह आराम से उड़ सकती है, भले ही रचना सिंह को परेशानी होती हो।
हिन्द-युग्म पर काव्य-पल्लवन का तृतीय अंक प्रकाशित हो गया है, इस बार स्मिताजी और शैलेशजी को नेट गच्चा दे गया, सभी कवियों को कृतियों को रंगीन नहीं बनाया जा सका। तुषार जोशी (वही, नागपुर वाले) के विषय “परिवर्तन का नाम ही जिन्दगी” पर कवियों का यह प्रयास कैसा रहा, देखियेगा।
दर्द में आज रूस्तम शहगल वफ़ा जी की ग़ज़ल – “क्या ख़बर थी इस तरह से वो जुदा हो जायेगा”
रेडियो-वाणी पर एस.डी. बर्मन साहब के गाये गीतों पर आधारित श्रृंखला की दूसरी कड़ी आ चुकी है।
ममता टीवी पर ताज़ा ख़बर – “फिसड्डी से नम्बर वन”
गुगल का नया धमाका “गुगल गियर क्या है?” जान लें और चलते-चलते आज का जुगाड़ भी देख लें।
(बहुत से चिट्ठे रह गयें है, उन्हें कल संजय भाई कवर करेंगे)