चिट्ठा चर्चा फिर भी अक्रनी, कैसे हो ये बड़ा अजायब
तंग आ चुके तो साहिर की गज़लों को फिर पढ़कर देखा
कोई कहता उसकी लाइफ़ हुई महासागर में नायब
कितनी बार गई दुहराई, जो रोटी की एक कहानी
एक बार फिर दुहराते सत्येन्द्र कथा हो गई पुरानी
अच्छी बातें बतलाते हई, कभी कभी करते हंगामा
शादी के बाजारों की चर्चा मनीश की सुनें जुबानी
किसके कदम सफ़लता चूमे, बतलाते हैं फ़ुरसतियाजी
लाये रचनाकार यहाँ वीरेन्द्र जैन की छह रचनायें
उनसे परिचय तीस वर्ष से, जब वे रहे भरतपुर में थे
भाई रतलामीजी, सोचा बात आपको यह बतलायें
कविता कोश निरन्तर गतिमय, नये नाम जोड़े जाता है
अपने गम का मुझे कहाँ गम, ये फ़िराक़ की रही बयानी
जिन्हें न लिखना आता, वे भी कुछ न कुछ लिखते रहते हैं
चिपलुनकरजी सुना रहे हैं, मजेदार इक और कहानी
हम तो लिखते आप, मगर वे लिख कर लाये तुम के नग्मे
और कौन हो तुम इसकी परिभाषायें बस पढ़ कर जानो
कुछ चिट्ठे जो छूट गये हैं, उन्हें आप पायें नारद पर
हमको घड़ी कह रही उठ कर चलो और अब लम्बी तानो
मेरी उम्मीद के विपरीत, वाह, आपने अपनी छूट्टी के दिन भी चर्चा का समय निकाल ही लिया..वरना यहाँ छुट्टियां मिल कब पाती हैं. बहुत साधुवाद...छोटी मगर छुट्टी के दिन के हिसाब से बड़ी..चर्चा संपूर्ण रही क्यूंकि हम कवर हो गये. :)
जवाब देंहटाएं