मजदूर दिवस के दिन लिखे सारे चिट्ठे आप यहाँ देख सकते हैं
शब्द की टांग टूटने का दर्द तो यूँ गायब हुआ जब हमने पढ़ा बत्तख का कलेजा आहिस्ता निकालो, हमारे साथ मसीजिवी का दर्द भी कुछ यूँ निकला -
वीर संघवी को और मुझे भी यह बड़ा बत्तख तर्क लगता है कि जी बत्तख का कलेजा ऐसे निकालना उसके साथ क्रूरता है, अरे भई या तो सारा माँसाहार क्रूरता है नहीं तो कुछ भी नहीं।
बात सोलह आने सच है, अभी कुछ सोचते उससे पहले ही अमित ने हांक लगा के बोला, बत्तख को छोड़ो और ये देखो चाईनीज खाने की बढ़िया जगह। हमें भी लगा बात में दम है एक का दोष सबके सिर क्यों जिसे खाना है खाये जिस ना खाना ना खाये। लेकिन जब जाकर देखा तो पाया "और भी बातें हैं खाने के सिवा", अपूर्व मियां वास्तव में कम्पनी की बातें कर रहे थे -
कई बार हम कहते हैं कि फलां कम्पनी में काम नहीं करेंगे, वही कम्पनी बहुत खराब है। और कई बार किसी कम्पनी की तारीफ करते नहीं अघाते। सवाल उठता है कि कोई कम्पनी खराब कैसे हो सकती है। खराब होना व्यक्ति के स्वभाव में है, व्यवस्था का गुण नहीं है।
हम भी कहाँ कि बातों उलझ बैठे वहाँ गीतकार गुनगुनाने में लगा है - "चमन ही हुए लुटेरे आज, कली को कैसे उमर मिले" कली अपनी उमर का रोना रोने में लगी थी तो मस्ती की बस्ती में दिखाया जा रहा था नेता का विराट स्वरूप। बगैर रीढ़ हड्डी का तो देखा सुना था ये हमारे लिये बिल्कुल नयी बात थी तो जा पहुँचे बस्ती में, पहुँचे तो पाया -
हे भक्तजनों! नेता सर्वव्यापी है, वह राष्ट्र के कण-कण में व्याप्त है। राजधानी से लेकर गाँव-देहात तक की गली-मौहल्ले की हर ईंट के नीचे वह विद्यमान है। हृदय निर्मल होना चाहिए घट-घट में नेता के दर्शन संभव हैं।
यही नही ये भी पता चला कि
सर्व-विवादित यह गुण है उसका स्वरूप। आदिकाल अर्थात जब से सृष्टि में नेता नाम के जीव का उद्भव हुआ है, तभी से उसके स्वरूप को लेकर विवाद है। कहा जा सकता है कि नेता और उसका स्वरूप विवाद, दोनों का उद्भव व विकास साथ-साथ ही हुआ है।
उस विराट स्वरूप में कहीं खो ना जायें हम तो चुपचाप निकल लिये वहाँ से और जा पहुँचे डिजिटल डिवाइड के उस पार, वहाँ का नजारा देख के तो हमारी उफ्फ निकल पड़ी, पुराने दिन याद आने लगे -
डिजिटल डिवाइड के चलते जिन लोगों को कम्प्यूटर का ज्ञान नहीं है उनकी कितनी बुरी हालत है. एटीम पर वीडियो गेम खेलता हुआ वो शख्स इसलिए अटका हुआ था क्योंकि
आगे हम नही बतायेंगे आप भी जरा उस पार जाकर देखिये। कहते हैं इतिहास अपने आप को दोहराता है लेकिन यहाँ ब्लोगर ब्लोगर को दोहरा रहा है यानि कि एक बार फिर आपको आगाह किया जा रहा है अपना माल बचाके रखने का, इस बार प्रतीक ये बता रहे हैं।
अनामदास का कहना है कि आपके शब्द बताते हैं आपकी हैसियत
शब्द और विचार एक दूसरे से अलग नहीं किए जा सकते, विचारों में जितनी विविधता जितनी जटिलता होगी उन्हें व्यक्त करने के लिए आपको उतने ही बहुविध शब्दों की ज़रूरत होगी. अगर जीवन में घूमने-फिरने-खाने-पीने-देखने-सुनने-लिखने-पढ़ने-अनुभवी लोगों से मिलने-जुलने के अनुभव कम हैं तो आपके पास शब्द भी कम होंगे
आप लोगों से अनुरोध है इस चर्चा में उपयोग में लाये शब्दों को देख हमारी हैसियत मत देखने लग जाना बल्कि अपने गिरेबान में झांक कर देखने वाली बात हमेशा याद रखना।
अब चलते चलते एक राज की बात आपको बताते चलें, पंकज बोले "मुझे प्रेरणा दीजिये किसी भी कीमत पर" हम अभी सोच ही रहे थे कि ये प्रेरणा कौन है लेकिन तभी अभय जी ने बड़े निर्भय हो कर पंकज को प्रेरणा दे डाली, उन्होंने साफ साफ बता दिया कि मैं एक मजदूर और आप भी।
लालू कहिन अब हम क्या बतायें कि क्या कहिन बड़बोले हैं कुछ ना कुछ कहते ही रहते हैं, इस बार क्या कह रहे हैं खुद देख लीजिये लेकिन जीतू का कहना है कि गर्मियां आ रही हैं इसलिये लालू को छोड़ो और ये सोचो गर्मी की छुट्टियाँ आ रही है, कहाँ जाएं?।
टेमा बोले टैं, मतलब समझ आया क्या? हमें भी नही आया, अगर मतलब समझना है तो उस विकास से पूछो जो मतलब समझने बैठा और टैं बोल गया। रात बहुत हो गयी है और अगर हम यू ही चर्चा करते रहे तो हमें भी अपने टैं बोलने का डर लगने लगा है इसलिये हमें दीजिये इजाजत।
जाने से पहले एक महत्वपूर्ण सूचना क्या आपके पास निरंतर के पुराने अंक हैं? क्यों वो आप यहाँ जाकर देख लीजिये क्यों?
समीक्षा सही है।
जवाब देंहटाएंचर्चा में उपयोग में लाये शब्दों को देख हमारी हैसियत मत देखने लग जाना बल्कि अपने गिरेबान में झांक कर देखने वाली बात हमेशा याद रखना।
जवाब देंहटाएं---हा हा, याद रख ली.
इतने कम समय में बहुत बेहरीन चर्चा. बहुत धन्यवाद.
तरुण भाई, बढ़िया चर्चा की है आपने। बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सटीक चर्चा. करते रहिये
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