रविवार, मई 06, 2007

चिट्ठाचर्चा इस्‍टेशन पर इतवारी खोमचा

भई जे तो बहुत नाएंसाफी है हमारे साथ ! आप तो मनावें छुट्टी और हम बैठे करें चिट्ठाचरचा ! बाल बच्चे पति को ब्रेड खिलाकर हम सुबह सबेरे जुट जाऎं चिट्ठों का सनीचरी लिफाफा खोलके , लिखें और दें लिंक पे लिंक और इस चरचा के पाठक अपने अपने घरों में संडे मनाऎ ! भई बहुत जलता है दिल फिर आप लोंगों का प्यार दुलार ही है जो हमसे संडे के संडे करवाता है ये चरचा ! खैर आप खांऎ पिएं निश्चिंत और पढें ये पर भाई लोगों घूमने निकलने से पहले जरा वक्त निकालकर टिप्पनी जरूर दे देवें ! कसम से कोई तो लालच हो अगली बार के लिए ! .....
तो जनाब कल के सारे चिट्ठों के लिंक अगर न देखे हों तो य़हां देख लें !
हां तो हम कह ये रहे थे कि अब छुट्टियां आ रही हैं रेल से आप सफर कर कहीं जा आ रहे होंगे सो बता दूं कि स्टेह्सन पर ठंडी बेंचों पर रात कैसे काटें आप !जब आप रात काट रहें हों तो हो सकता है आस पास की पटरियों पर गदहे ढेंचू – ढेंचू कर रहे हों ! कोई चिंता नहीं जी भोजपुरी कहावतों का कोश हम आपको गिफ्ट कर देंगे ले जाना साथ में , कोई न कोई कहावत तो होगी जो गधे को सरमिंदा करेगी जैसे गधों के सींग नहीं होते टाईप ! वैसे मेरे भरोसे न बैठना हो तो बुरी हिंदी का कोई काव्यांश गा देना अजदक जी से सीख के !

वैसे आप बाहर घूमने जाऐं तो सन स्क्रीन बाम लोशन ले जाना नत भूलना बाहर की धूप अच्छी नहीं होती सनबर्न , घुर्रियों सरीखी कुछ भी अनहोनी हो सकती है सो मेकअप करके असली चेहरे को छिपा लें तो बेहतर होगा ! मैंने तो देखा है कि कई बार बाहर जाकर घर की याद मुई ऎसी सताती है कि सारा मजा किरकिरा जाता है अब हमारे ज्ञानदत्त जी को देखो नऑस्तेल्जिक होकर हमें भी सेंटी कर रहें हैं –जा पहुंचे हैं स्टीम एंजन के जमाने में ! सफर काटाऊ + घर की याद भगाऊ स्टोरियों के गढइता पांडेय जी ने समीर को पूरी कहानी पढवा दीन्ही और देखिए सस्पेंस ऎसा कि ससुरे टी वी चैनलों वाले भी सरमा जाएं !




फिर वो पार्ट मिले की नहीं--यह खबर तो आप न्यूज चैनल की तरह दबा ही
गये. इस चक्कर में हम पूरा लेख पढ़ गये. :)



अब हमारी रेल यात्राऎ तो जनाब लंबी लंबी होती हैं कब तक सस्पेंस चलेगा खिड्की से झांकते झंकते मन अगर दर्सन वर्सन करने लगे तो ऎसे में मेरी कालजयी इच्छा या फिर काल चिंतन करने पर उतारू भी हो सकता है ! आप अहा जिंदगी की एक प्रति स्‍टेशन से ले बांच सकते हैं या आप सोच सकते हैं कि पेड़ बरगद का कोई ढहने को बाकी न रहा ---




पेड़ बरगद का कोई ढहने को बाकी न रहा,
बूढ़े घुटनों की कसक सहने को बाकी न रहा,

पीली गौरैया के घर के सारे बच्चे उड़ गए,
घोसलों में आदमी रहने को बाकी न रहा,

वैसे कई घर गिरस्ती वाले सवाल मन उठते रहना ऎसी रेल यात्राओं में कामन होता है कोई चिट्ठाकार यदि यह सफर काट रहा हो तो चाहे वह खिड्की से बाहर तक रहा या कि अपनी बर्थ पर पसरा पडा हो ऎसी ही कुछ कुछ बातें सोचेगा न ----

1 मेरा नन्हा लाड़ला कंप्यूटर मेरे पीछे से ठीक तो रहेगा न
2 चिट्ठाकारी से पैसा कब कमा पाउंगा / पाउंगी मैं
3 यार सबके चिट्ठों पर नौटंकी हो रही है मेरे वाले पे कब होगी
4 इन बेनाम भाइयों को क्या कहूं कि वो सामने आ जाएं और उनकी सारी पोल पट्टी खुल जाए

हम चैन से सो तक नहीं पाते कि कौन अनाम अश्वत्थामा हमारे सोते बच्चों को
मौत का मुफ्त दान कर जाए । भाई हमें तो फसलों के ऊपर उड़ते जुगनुओं से भी डर लगता है। हम बीड़ी पीने के लिए जलाई गई तीली से भी हिल उठते हैं बेनाम भाई हमारे ऊपर कृपा करो झलक दिखला जाओ । एहसान होगा । पुरखों की आत्मा तृप्त हो जाएगी।

5 (बेनाम भाई का दिमाग सोच रहा होगा ) यार सच कहता हूं सामने आकर तो साले मारने दौडते हैं...

वैसे बता दें आपको कि हम तो 12 को जा रहे हैं घूमने सो दो यक्ष सवाल और छोडे जा रहे हैं आपके सोचने के लिए (वैसे उन सवालों पर सफर के दैरान मैं भी सोच सकती थी या फिर मसिजीवी जी को सोचने पर मजबूर कर सकती थी पर क्या करें हम तो रेल से नहीं कार से जा रहे हैं कोई गारंटी नहीं कि कि दिमाग इतना गंभीर चिंतन कर पाए) ! खैर सवाल हैं -

अविनाश जी का अगला कथादेशीय लेख किन मसलों पे होगा
जमाल भाई को इंटरनेटोनिया नहीं हो सकता क्या


ये नीचे का टीवी रविजी के चिट्ठे से से उधारी लिया है।

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4 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामीमई 06, 2007 3:40 pm

    अगर आपने हमारा आज की चिट्ठाचर्चा पर पोस्ट पढ ली होती तो शायद चिट्ठाचर्चा मे कछ बदलाव आजाता । फिर थोडी मसाले दार तो है आपकी चिट्ठाचर्चा । लेकिन पति ओर बच्चो का ख्याल जरुर रखियेगा

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  2. चलो, अब टिपिया दिये हैं और घूमने जाते हैं. बढ़िया चर्चा.

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  3. जो घूमने नहीं जा रहे वे टिप्पणी कर सकते हैं क्या ?
    घुघूती बासूती

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  4. आप् ऐसे ही लिखती रहें! पाठकों का प्यार-दुलार तो मिलता ही रहेगा!

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