शनिवार, मई 12, 2007

ये आज़माना है तो सताना किसको कहते है ....

पिछले शनिवार शनिदेव की किरपा से दुई चिट्ठाचर्चा हुई गयी। तब सोचे थे कि अगली बार देबू दा से पहिले ही बात कर लेंगे ताकि कंफूज़ ना हो। पर ब्लॉग जगत की माया देखो ,भूल गये और अब कोन्हू सा भी ऑनलाएन नही है। सो चलो कर ही दें चर्चा। वैसे ई-पन्ना प्रभो हमे गरिया के जने कहा लोप हुई गये और ई धुरविरोधी जी शानदार टिप्पनी चर्चा करिके हमारे किये धरे पर पानी फेर रहे हैं। सो हम सकुचा सकुचा के कुछ लिख रहे है

कमोडिटी मित्र बोले पीले हाथ ना होंगे हल्दी से [हमने जो सोचा उससे उलट पाया वे तो हल्दी के मार्केट की चिंता में हैं
घरेलू और निर्यात मांग के अभाव में हल्‍दी के दाम हाजिर बाजार में जहां घटते जा रहे हैं वहीं वायदा में यह अभी भी मजबूत बनी हुई है। इस विपरीत रुझान से कारोबारियों को समझ ही नहीं आ रहा है कि हल्‍दी में अब क्‍या होगा। फंडामेंटल्‍स के आधार पर बात की जाए तो हल्‍दी में अब तेजी के कोई आसार नहीं बनते क्‍योंकि 19 अप्रैल को अक्षय तृतीया के बाद घरेलू बाजार में मांग लगभग बंद हो जाती है और बाजारों में आने वाली हल्‍दी केवल स्‍टॉकिस्‍टों के गोदामों में जाती है।

पर फुरसतिया जी भतीजी के हाथ पीले कर दिये है और बाली उमिर में श्वसुर हुई गये है। उनका बधाई! पर एक पोस्ट् से चार् सिकार कर लिये हैं। ब्लागर मीट भी उहां कानपुर मे कर लिये मसिजीवे और राजीव टंडन जी के साथ।
मसिजीवी की जब हमने पहले रेलवे ट्रैक के पास वाली फोटो देखी थी तब लगता था कि ये महाराज कोई लम्बे शरीर के मालिक होंगे। इसके अलावा जो अभी कुछ दिन पहले की फोटो देखी थी जो इन्होंने अपने ब्लाग में लगायी थी उससे लगता था कि मसिजीवी कुछ ज्यादा ही सांवले हैं! आवाज का भी अंदाज था कि शायद कुछ धीर-गम्भीर सी आवाज होगी। लेकिन मुलाकात होने पर हमारे तीनों अनुमान हवा हो गये। मसिजीवी सामान्य कद के स्लिम-ट्रिम टाइप के जिसे लम्बा तो नहीं कह सकते, अपनी फोटो से कहीं ज्यादा खूबसूरत और आवाज भी मधुरता की तरफ़ झुकी हुयी। मुलायम टाइप की।

सुआमी जी को कुछ समझा दिये। और दो तीर और भी। अब आगे स्वयं पढिये। सब हम बताएँ का? लो जी हमारी मिठाई मार के बैठे है मसिजीवी और ब्लॉगर मीट मे उसकी गन्ध भी नही आने दे रहे। उन्हे तो फुरसतिया जी के उबटन लगे गोदी की कंम्प्यूटर पर पोस्ट बनानी थी।ये सज्जन हर स्थान पर एक पोस्ट ढूंढते हैं।

ई देखिये पंगेबाज़ को भी कहिन नाही है। बिदेसी तरीका से भोजन करने के ढंग की ऐसी कम तैसी कर दी है।
१९.तरीका:-अपना एक हाथ साफ रखने की कोशिश करें, ताकि गिलास वग़ैरा उठाते समय उन पर निशान न पड़ेप्रयोग:-भाई हम खाना खा रहे है की कोई वारदात करने आये है काहे डरा रहे हो क्या बता रहे हो जरा साफ़ साफ़ बताओ ये इस तरह से खाना खाना कोई भारतीय संविधान की किसी धारा का उल्लंघन तो नही,जॊ यहा भी बाद मे फ़िंगर प्रिंट लेने पुलिस वाले आने का डर है
कल जब मुहल्ला वाले सोये रहे थे हम राजकिशोर जी के एक पुराने लेख के हवाले से पत्रकारिता की गैर ज़िम्मेदारी पर बाज़ार के सन्दर्भ मे बात कर रहे थे। सोचा था अविनाश जी जरूर अपने विचार बताएँगे पर वे नही आये अब चर्चा देखे तो जरूर टिपियायें। कमल जी भी गलत नीयत संपादको को कोस रहे हैं।

कुछ सुनदर ,सम्वेदंशील कविताएँ ,यहाँ जाकर टिपियाएँ ---शुभा की एक कविता, बूढी औरत का एकांत

बूढी औरत को
पानी भी रेत की तरह दिखाई देता है
कभी-कभी वह ठंडी सांस छोड़ती है
तो याद करती है
बचपन में उसे रेत
पानी की तरह दिखाई देती थी।

देवनागरी में पढिये गालिब के मेरे पसन्दीदा शेर यहाँ सच्चे मोती मिलते हैं। यही है आज़माना तो सताना किस को कह्‌ते हैं

अदू के हो लिये जब तुम तो मेरा इम्तिहां क्यूं हो (महबूब कभी कभी कहता है 'मैं तो तुम्हे आज़मा रहा था'. अगर वो रक़ीब का हो ही लिया, तो भला मेरा 'इम्तिहान' लेने का क्या मतलब?)

अंकित शायद अपने विवाह की आस में है और तीन कविताएँ लिख डाली है। मुलाहिज़ा फरमाएँ , पूरी पढने उनके ब्लॉग पर जाएँ----

है जुनून कि उनको मीत हम बनाएँगे....है यकीन वो मेरा गीत गुनगुनाएँगे....हर कदम
उनका साथ मिलने पायेगा....हर नज़र में विश्वास झिलमिलायेगा....माँ शादी का जोडा उनको
भिजवायेगी....उनकी रौशनी इस घर में जगमगायेगी....

आलोक पुराणिक अपने व्यंग्य लेख में पानीपत युद्ध मे मराठो की हार का करण समझा रहे हैं

पानीपत की तीसरी जंग की तैयारियां चल रही थी। सुपरटाप मोबाइल कंपनी के मोबाइल मराठा सरदारों को दिये गये थे। मराठा सरदारों को बता दिया गया था कि इस मोबाइल सर्विस में सब कुछ मिल जाता है। किसी भी किस्म की हेल्प चाहिए, तो 420 नंबर पर फोन करो। हेल्प फौरन हो जायेगी। आगे का किस्सा यूं है कि पानीपत में लंबे अरसे तक लड़ाई की तैयारी चल रही थी, लड़ाई नहीं हो रही थी। सैनिक बोर हो रहे थे। वो दिल्ली आ गये इंडियन टीम का कोई क्रिकेट मैच देखने, ताकि कुछ अलग तरह से बोर हो सकें।
उन्मुक्त एक पुस्तक के माध्यम से समझा रहे है प्रेम के मायने ---
इस कहानी को एक दूसरे रूप में, एरिक सीगल ने Love Story नामक पुस्तक में लिखा है। यह पुस्तक १९७० में छपी थी। यह ऑलिवर बैरेट और जेनी कैविलरी की प्रेम कहानी है। ऑलिवर अमीर, बहुत अच्छा खिलाड़ी, और हावर्ड में पढ़ता था। जैनी गरीब, संगीत से प्रेम रखने वाली, और रेडक्लिफ में पढ़ती थी।
प्रतीक टी वी सीरियलो पर कककककुपित है ---
ये सभी 'क' अक्षर से शुरू धारावाहिक वक़्त बर्बाद करने के लिए बेहतरीन ज़रिया हैं।
संजय बेंगाणी कहते है - अच्छे हिन्दी कैसे लिखु ।उनकी पोस्ट तो छोटी है टिप्पणियाँ 16 है।इससे पता लग्ता है -पर उपदेश कुशल बहुतेरे। वैसे उन्हे बिन्दास रहने की ही सलाह मिली है. ममता जी गोवा जा बैठीपर वहाँ भी गर्मी से राहत नही है -------
वैसे यहाँ का तापमान २८-३० डिगरी ही है पर उमस की वजह से ही सारी परेशानी होती है। और उस पर रोज सुबह बादल भी आ जाते है ,पर बरसते नही है। अंडमान मे भी गरमी ज्यादा होती है पर वहां बारिश हो जाती है जिस से गरमी का असर कुछ कम हो जाता है।
आसमान ने लोकोक्तियाँ अपने ब्लॉग पर छपी है। आपको जो भली लगे अपना लें----

पृथ्वी पर जनसंख्या का नहीं, पापियों का भार होता है। नम्रता सदगुणों की सुदृढ़ बुनियाद है। दुनिया में रहो,दुनिया को अपने में मत रहने दो।

सुरेश चिपलूनकर अनजान जी के गीत के माध्यम से कहते है---
मादकता भी पवित्र हो सकती है और अश्लील हुए बिना भी अपने मन की बात बेहद उत्तेजक शब्दों में कही जा सकती है
सत्य की वादी को बताएँ कि आप ब्लॉगिंग क्यो करते है। रामचरित मानस के कुछ अद्वितीय प्रसंग बत रहे है लक्ष्मी गुप्ता
।१। वाटिका प्रसंगः धनुषयज्ञ के पूर्व सीता जी गौरीपूजन के लिये पुष्पवाटिका में आती हैं और राम लक्ष्मण वहीं पूजा के लिये पुष्पचयन करने के लिये आते हैं। यहाँ पर वे दोनों ही एक दूसरे को देखते हैं और राम अपने विचलित मन के बारे में लक्ष्मण को बताते हैं। गोस्वामी जी ने बड़ी कुशलता से सीता और राम की मनोदशा के चित्र खींचे हैं।
अज़दक जी के विनम्र निवेदन के बाद भी वहाँ कोई टिपियाया नही। बुरी बात जाकर पढिये।

समीर जी ने 11 मई को नही लिखा है :) और किसी की जगा दी है बहन जी ने उम्मीदें --

ई पन्ना जी को यह ढंग ठीक लगा हो तो कृपया टिपियाएँ :)

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8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दिन बाद चर्चा पढ़ने का सुख मिला! बहुत अच्छा लगा! बधाई!

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  2. चर्चा पढ़ने का सुख तो मिला... पर लगता है हमारी काँव काँव आप तक नहीं पहुंची. वैसे अच्छा लिखा गया.

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  3. बड़ी खुशी हुई कि मोर्चा आपने सम्हाल लिया वरना हम तो सारा सप्ताहांत गिल्टी गिल्टी फीलते रहते। बढ़िया चर्चा! HTML में बिना पूछे कुछ सुधार कर रहा हूं, बुरा ना मानें :)

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  4. ये हुई न चर्चा. बहुत आभार. आज पहली बार कुछ न लिखने पर शर्म आई वरना तो लिख लिखा कर शर्माते थे. बहुत बढ़िया. बधाई. हा हा :)

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  5. आपने सभी के साथ इंसाफ़ किया है,..
    बहुत अच्छा चिट्ठा चर्चा रही।
    सुनीता(शानू)

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  6. अच्छी लगी आपकी चिठ्ठा चर्चा।

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  7. " ई धुरविरोधी जी शानदार टिप्पनी चर्चा करिके हमारे किये धरे पर पानी फेर रहे हैं। "
    लोज्जी, आप आये, हम गायब (एक मुहल्ले में एक ही रहेगा ना)

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  8. बनिया हूँ, जहाँ जितनी जरूरत होती है, उतना ही खर्चता हूँ. शब्द भी. इसलिए मेरी पोस्ट हमेंशा छोटी रहती है.
    आपकी चर्चा अच्छी रही.

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