सोमवार, मई 14, 2007

मेरी दुनिया है मां तेरे आँचल में...



आइए, आज मातृ दिवस पर केंद्रित चिट्ठों की चर्चा करें.

यदि आप मल्टी टास्किंग कर सकते हैं - यानी कि चिट्ठे पढ़ते पढ़ते संगीत या वार्ता सुन सकते हैं तो आपके लिए ये हैं दो कड़ियाँ.

रेडियोवाणी पर मां के लिए कुछ बेहतरीन गीत हैं तो वहीं पॉडभारती पर मन को द्रवित करने वाली प्रस्तुति. या तो इन्हें पहले से डाउनलोड कर लें, या विनएम्प में इनके एमपी3 यूआरएल को एनक्यू में लगा दें (रेडियोवाणी के कुछ गानों को ऑनलाइन प्लेयर से ही सुनना होगा) और हो जाएं तैयार चिट्ठा चर्चा पढ़ने.

पसंद पर मां कुछ यूं पालना में झूले दे रही हैं -

फूलों का पालना सा,

लगता था तेरा आँचल।

तेरा हाथ फिरता सर पर,

देता था मन को ताकत।

दिशाएँ में मां की ममता की पावन बयार कुछ यूं बह रही है -

आओ आँगन मे हम खेलें

माँ का प्यार मुदित हम लेलें

माँ तुम दॊडों मै पकडूँगी

अथवा तुम संग मै झगड़ूँगी

खेलो ना इक बाजी

ओ माँ,तुम भी हो मतवाली।

मेरी मां की ममता मैंने कैसे जाना? पढ़िए मन पखेरू फ़िर उड़ चला में -

माँ बनकर ये जाना मैनें,

माँ की ममता क्या होती है,

सारे जग में सबसे सुंदर,

माँ की मूरत क्यूँ होती है॥

जब नन्हे-नन्हे नाजु़क हाथों से,

तुम मुझे छूते थे...

कोमल-कोमल बाहों का झूला,

बना लटकते थे...

मां - कितना छोटा मगर कितना महान है ये लफ़्ज. कुछ पल जिन्दगी जैसे... में कविता ये और बहुत कुछ बयान कर रही है-

इस लफ्ज़ में छुपी हैं

वो दो ऑंखें,

जो देखती हैं हमे हर पल,

जिनके सपनो में बसें है

हमीं पल पल

मां को आत्मा से आप कितने दिन परे रख सकते हैं? शायद एक पल भी नहीं. शब्दलेख सारथी के शब्दों में-

पल-पल मेरे दिल में बसने वाली माँ के लिए बस एक दिन ! मुझे लगता है कि पशिच्मी देशों की संस्कृति में जिस क़दर भौतिकता वाद का बोलबाला है उसको देखते हुए ऐसे दिनों की जरूरत पड़ती होगी। मैं नही जानता कि गलत हूँ या सही, पर मैंने अपने माता-पिता को अपने आत्मा से परे कभी नहीं माना, और मैंने अपने माता-पिता की उनके मुहँ पर कभी प्रशंसा नहीं की क्योंकि उनके संस्कारों ने ही मुझमें यह संकोच भरा है।। मैंने उनसे क्या सीखा कभी यह उन्हें बताया नहीं। मेरे पिता अब इस दुनिया में नहीं है पर हर हालत से जूझना, अपने कार्य को निष्ठा और लगन से करना और सदैव दूसरों की सहायता करना मैंने अपने पिता से ही सीखा है । माँ से सीखा है अपने धर्म में अगाध आस्था रखना और भगवान की भक्ती और सदैव सहज रहने का भाव। हालतों ने हमें अलग अलग शहरों में पहुंचा दिया पर इसी दौरान मेरे को यह पता लगा कि मैं अपने माता-पिता से सीखा क्या था-क्योंकि अकेले में उनका ज्ञान ही मेरा सारथी बना ।संघर्ष के पलों में मैं आज भी अपने पिता का स्मरण करता हूँ तो लगता है कि दिल में एक स्फूर्ति आ रही है....

मां के लिए एक ई-मेल फ़ॉरवर्ड-

जब आप 1 वर्ष के थे, उसने आपको दूध पिलाया, नहलाया धुलाया. आपने उसका धन्यवाद रात भर रो-रोकर दिया.

जब आप 2 वर्ष के थे, उसने उँगली पकड़ कर आपको चलना सिखाया. जब उसने आपको पुकारा तो आपने दूर भाग कर उसका धन्यवाद दिया.

जब आप 3 वर्ष के थे, उसने स्नेह पूर्वक आपके लिए पकवान बनाया. खाने से भरे अपने प्लेट को फर्श पर बिखेर कर आपने उसका धन्यवाद दिया.....

हिन्द युग्म में - मां को समर्पित ग़ज़ल : वो सिर्फ मां है -

ममता की गहराई से हार गया समन्दर भी

देख तेरी मुस्कान, जी रही तुम्हारी "माँ" है

तेरे कदमों की आहट से बढ़ जायेगी धड़कनें,

जाने कब से इंताजर में बैठी तुम्हारी "माँ" है

मां - छुपा लो ना मुझे अपने ही आँचल में कहीं... बिटिया का मां को लिखा पत्र :

नये ख्वाबों की नयी मंज़िल सामने देख

तुमने हाथ पकड़ कर मुझे चलना सिखाया होगा

मुझे बार बार गिरते देख,

तुम्हारा दिल भी दर से कंपकापाया होगा

और अपने प्यार भरे आँचल में छुपा कर

कई ज़ख़्मो से मुझे बचाया होगा

मातृदिवस पर गीतकलश का गीत -

दर्द की तुम दवा

पूर्व की तुम हवा

चिलचिलाती हुई धूप में छाँह हो

कष्ट की आह में

कंटकी राह में

तुम सहारे की फैली हुई बाँह हो

और, मां के लिए एक मुक्तक:

कोष के शब्द सारे विफ़ल हो गये भावनाओं को अभिव्यक्तियाँ दे सकें

सांस तुम से मिली, शब्द हर कंठ का, बस तुम्हारी कॄपा से मिला है हमें

ज़िन्दगी की प्रणेता, दिशादायिनी, कल्पना, साधना, अर्चना सब तुम्हीं

कर सकेंगे तुम्हारी स्तुति हम कभी, इतनी क्षमता न अब तक मिली है हमें

ममता टीवी में मां का स्वरूप कुछ यूं दिख रहा है -

उसको नही देखा हमने कभी ,पर उसकी जरुरत क्या होगी

ए माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी.

एक मां की अपनी खुद की मां के लिए ये हैं कुछ पंक्तियाँ:

माँ की कुछ बातें आज तुमको बताऊँ,

पहले प्रभु के शीश माँ को झुकाऊँ!

वो सब याद रखती, जो मैं भूल जाऊँ,

वो मुझको सम्हाले, जो मैं डगमगाऊँ!

वो सब कुछ है सुनती, जो भी मैं सुनाऊँ,

वो चुप रह के सहती, अगर मैं सताऊँ!

भूखी वो रहती, जो मैं खा न पाऊँ,

रातों को जागती, जो मैं सो न पाऊँ!

वही गीत गाती, जो मैं गुनगुनाऊँ,

संग मेरे रहती, जहाँ भी मैं जाऊँ!

ईश्वर से एक ही मैं मन्नत मनाऊँ,

हर एक जनम में यही माँ मैं पाऊँ!!!

मां : तीन रूप -

1-

सूरज एक नटखट बालक सा

दिन भर शोर मचाए

इधर उधर चिड़ियों को बिखेरे

किरणों को छितराये.....

2-

बेसन की सोंधी रोटी पर

खट्टी चटनी जैसी माँ

याद आती है चौका-बासन

चिमटा फुकनी जैसी माँ....

3-

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार

दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार

छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार

आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार...

मां क्या है? मां की परिभाषा:

अपने आगोशोँ मेँ लेकर मीठी नीँद सुलाती माँ

गर्मी हो तो ठंडक देती ,जाडोँ मेँ गर्माती माँ

जब बच्चे चीखेँ चिल्लायेँ एक खिलोना दे देती

बच्चोँ की किल्कारी सुनकर फूली नहीँ समाती माँ

हम जागेँ तो हमेँ देखकर अपनी नीँद भूल जाती

घंटोँ ,पहरोँ जाग जाग कर लोरी हमेँ सुनाती माँ

पहले चलना घुटनोँ घुट्नोँ और खदे हो जाना फिर

बच्चे जब ऊंचाई छूते बच्चोँ पर इठ्लाती माँ

वो लम्हा जब मेरे बच्चे ने मां कहा मुझको:

वो लम्हा जब मेरे बच्चे ने मां कहा मुझको

मैं एक शाख से कितना घना दरख्त हुई

अपने बच्चे के लिए चिंतित मां का एक रूप यह भी:

ताबीज घर में लाकर बहुत मुतमइन है मां

बेटा बहू की बात में हरगिज न आएगा

मां अपने दैवीय रूप में - मां बमलेश्वरी :

माँ बम्लेश्वरी सबकी इच्छाएं पूरी करती है। हर समस्या का निदान मां के चरणों में है। सभी धर्म और आध्यात्मिक गुरुओं ने ये स्वीकार किया है कि "आराधना और प्रार्थना अद्भत तरीके से फलदायी होती है। या तो यह मानसिक तौर पर प्रार्थना करने वाले को संबल प्रदान करती है या फिर चमत्कार करती है।"

दैवीय स्वरूपा मां का एक और रूप:

जय माँ बमलेश्वरी

तोला सुमरंव बारम्बार हो,

मोर देवी भवानी, जय होवय तोर,

मोर माता भवानी,जय होवय तोर।

तोर लीला अपरंपार हो,

जय मां बम्लेश्वरी जय होवय तोर,

टीप पहाड़ म तोर मंदिरवा,

दिखय चारों ओर।

मोर माता भवानी जय होवय तोर।

दैवीय स्वरूपा मां का एक और रूप:

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

और, अंत में-

मां तुझे सलाम...!

मां को आप कितना चाहते हों.....हो सकता है आप बता न पाएं या फिर अपने दोनों हाथों को पीठ पीछे ले जाएं और दिखाएं इतना....लेकिन इतना तय मानिए आपकी मां का प्यार आपके लिए इससे कई गुना होगा । वो भी तब जब आपका प्यार, प्रेम या श्रद्धा अकेले सिर्फ अपनी मां पर केंद्रित हो रहा होता है लेकिन आपकी मां का प्यार, यदि आप अकेली संतान नहीं हैं तो सभी संतानों के लिए समान बरसता है। इतना मुश्किल संतुलन एक मां के ही वश की बात है।

//*//

चित्र - डेस्टिनेशन से

मां विषय पर केंद्रित कोई चिट्ठा यदि छूट गया हो तो कृपया मुझे क्षमा करें व अपनी टिप्पणियों के द्वारा अवश्य सूचित करें, ताकि पाठकों के लिए सारी कड़ियाँ यहीं उपलब्ध हो सकें.

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9 टिप्‍पणियां:

  1. रविरतलामी जी,माँ की सभी रचनाएं एक जगह देख कर मन प्रसन्न हो गया। बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुति की है।बधाई।

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  2. बहुत अच्छा लगा पढ़कर क्यूंकि कल हम कुछ नही पढ़ पाए थे पर आपकी पोस्ट पर उन सभी को एकसाथ पढ़ लिया, धन्यवाद।

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  3. सभी मोतीयों को आपने पीरो लिया.

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  4. बेहद सुंदर ढंग से लिखा है
    जो कल रह गया था पढ़ने से आज इस के कारण
    वो भी पढ़ा गया .....शुक्रिया

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  5. रविजी, नमस्कार।
    मां पर केन्द्रित आपका संयोजन मन को छू गया। वैसे तो मां के बारे में बताने को शब्दों में सामर्थ्य नहीं है। फिर भी साथियों की रचनाओं से मां की गोदी में थपकी लेने का अहसास हुआ।

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  6. रवि जी बहुत सुंदर चिट्ठा-चर्चा रही है,..
    सुनीता(शानू)

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  7. खूब बढ़िया चर्चा रही। लेकिन एक बात बताओ भाई लोग हमारा इधर बायकाट हो गया क्या अर्सा हो गया अपन ने बहुत कुछ लिखा, कोई चर्चा नहीं। जरा उधर भी चक्कर लगा लिया करो भाई। :)

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  8. बहुत बढ़िया कार्य- मातृ दिवस की समस्त रचनाओं का संकलन तैयार हो यह तो. वाह!!

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  9. माँ तुम्हें प्रणाम
    तुम्हीं मिटदquot; मेरी उलझन
    कैसे कहूं कि तुम कैसी हो
    कोई नहीं सृष्टि में तुम सा
    माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो ।

    ब्रह्मा तो केवल रचता है
    तुम तो पालन भी करती हो
    शिव हरते तो सब हर लेते
    तुम चुन चुन पीड़ा हरती हो
    किसे सामने खड़ा करूँ मैं
    दquot;र कहूं फिर तुम ऐसी हो।
    माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो ।।

    ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिन सूखे
    सारे देव भक्ति के भूखे
    लगते हैं तेरी तुलना में
    ममता बिन सब रूखे रूखे
    पूजा करे सताये कोई
    सबके लिये एक जैसी हो।
    माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो ।

    कितनी गहरी है अदभुत सी
    तेरी यह करुणा की गागर
    जाने क्यों छोटा लगता है
    तरे आगे करुणा सागर
    जाकी रही भावना जैसी
    मूरत देखी तिन्ह तैसी हो।
    माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो ।

    मेरी लघु आकुलता से ही
    कितनी व्याकुल हो जाती हो
    मुझे तृप्त करने के सुख में
    तुम भूखी ही सो जाती हो
    सब जग चदला मैं भी बदला
    तुम तो वैसी की वैसी हो।
    माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो ।

    तुम से तन मन जीवन पाया
    तुमने ही चलना सिखलाया
    पर देखो मेरी कृतघ्नता
    काम तुम्हारे कभी न आया
    क्यों करती हो क्षमा हमेशा
    तुम भी तो जाने कैसी हो।
    माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो ।

    शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

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