शनिवार, जुलाई 21, 2007

काव्यचर्चा बनाम चिट्ठाचर्चा ..

कविताओ‍ से चाहे लोग जितेन्द्र जी की तरह भागे भागे फ़िरते हो‍ और भले ही समीर जी से बात करते हुए हमे पकड कर कविता सुना दिए जाने का डर लगता हो :)पर सत्य यह है कि कविता आज के प्रदूषण के युग में यान्त्रिकता से बचाती है और मानवीय सम्वेदनाओं की रक्षा करती है ।सुनने में बडे बोल लगते है‍ ,यह भी लगता है कि कविता की उपयोगिता क्या है ।गद्य तो विचार का वाहक है ।फ़िर भी न मानें तो परमजीत की यह कविता देखे जो उन्होने
"चीख" लेख से प्रेरितहोकर लिखी -----
कर्ज तो चुकता करो ऐ आदमी
किस्तों मे ही हो भले अदायगी
मर रही तिल-तिल तुझे दिखता नही
इन्सान है या जानवर, तू कौन है
कविता किसी जाति [जाति व्यवस्था वाली नही]की सघनतम और सर्वोत्तम भाषिक अभिव्यक्ति है ।
सारथी पर शानू की कविता यह देखिये ---

फ़िर एक दिन,
अचानकआकर्षित करता है,
अहसास दिलाता है,मुझेअपनी मौजू़दगी का
,एक हल्की सीठोकर खाकर
मै
पुकारती हूँ जब नाम तेरा
अखबार कैसे मुकम्मिल हो सकती है ? पर हादसों से भरा अखबार जब परेशां करता है तो भी कैसे कविता में अभिव्यक्ति लेता है
कोशिश करता हूं
अख़बार के पन्नों में
एक मुकम्मिल अख़बार ढूंढने की
लेकिनहर बारमुझे मिलता है
खून से लथपथएक निकम्मा तंत्र
जिसका हरेक पुर्जा बिकाऊ है।

नाता टूटने का दर्द बयां है रचना सिंह के यहां -
ज़िन्दगी की इस दौड़ मे
टूटा तुम्हारा नाता अच्छाइयों से
और मेरा नाता तुमसे
अफ़सोस नहीं हें
क्यो टूटा मेरा नाता तुमसे
पर बहुत अफ़सोस है
क्यो टूटा तुम्हारा नाता अच्छाइयों से
हिन्द युग्म पर देखिये श्रीकान्त शर्मा कान्त की कविता--
धूप-धूप चलते-चलते
सब झुलस चुकी है काया
फूट चुके हैं पग छाले सब
धीरज भी चुक आया
पथ कंटकाकीर्ण है फिर भी
तू चलता हर्षित मन
फिर भी बहता जीवन

अभिव्यक्ति का भदेस रन्ग मोहल्ला पर नवोदित कवि मे देखिये ।हालांकि इस पर टिप्पणी नही करून्गी कि फ़ेन्स के उस पार की यह भाषा अभिव्यक्ति की क्या दिशा तय करती है पर सही है कि ज़रा रस्‍ता देना भइया हमें विकास की जल्‍दी है

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8 टिप्‍पणियां:

  1. नाता बना रहे आप सब का मेरे शब्दो से , धन्यवाद्

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  2. श्रीकांत शर्मा की कविता की आखिरी लाईन फिर भी बहता जीवन हमारे चिट्ठाकारों के लिए बहुत प्रेरणास्पद है. चर्चा चलती रहे.

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  3. यह भी खूब चर्चा रही. बधाई.

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  4. बहुत ख़ूब ई चिटठा चर्चा तो पूरी काव्य चर्चा बनती जा रही है भाई. हमारे तथा और कवियों के लिए तो ठीक है, लेकिन पाठकों के लिए ये लच्छन ठीक नहीं हैं भाई.

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  5. मित्रो आपसे विनम्र निवेदन है कि मुझे श्रीकान्त मिश्र 'कान्त' से श्रीकान्त शर्मा 'कान्त' न बनायें

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  6. आपका यह प्रयास सराहनीय है। इसकी जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है। हो सके तो इसमें मेरे तीन चिटठों (http://hamrahee.blogspot.com,
    http://baal-man.blogspot.com, http://z-a-r.blogspot.com)को भी शामिल करें।

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  7. यह पुराना दस्तावेज फिर कहाँ से निकाला गया...:)

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  8. यह पुराना दस्तावेज फिर कहाँ से निकाला गया...:)

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