रविवार, अगस्त 26, 2007
द साईलेंस इज़ डेफनिंग
चर्चाकारः
debashish
जी हाँ आपने "खामोशी की आवाज़" जैसे जुमले सुने होंगे पर उदाहरण ज्यादा न देखे होंगे। तो पढ़िये अशोक जी चक्रधर की नवीनतम पोस्ट जो उन्होंने न्यूयॉर्क में संपन्न विश्व हिन्दी सम्मेलन पर लिखा। और शायद ये हिन्दी ब्लॉगजगत की पहली ऐसी पोस्ट है जिसे बिना कुछ लिखे टिप्पणियाँ मिलीं। फुरसतिया ध्यान दें ;)
शनिवार, अगस्त 25, 2007
बया में रवीशी, अजदकी और अनामदासिया बयां
चर्चाकारः
रवि रतलामी
बया के नवीनतम अंक में हिन्दी ब्लॉगजगत् के बारे में अरविन्द कुमार का आलेख आपने संभवतः पढ़ा होगा. इसी अंक के संपादकीय में कहीं पर यह लिखा है
"...ग़ौरतलब है कि प्रस्तुत व्यंग्य कथाओं में से तीन हिन्दी के ब्लौगों से प्रिंट माध्यम में पहली बार आ रही हैं."ये व्यंग्य कथाएँ कौन सी हैं, ये हैं -
- रवीश की मुंशी प्रेमचंद की पहली विदर्भ यात्रा
- प्रमोद सिंह की बुरी हिन्दी कैसे लिखें और,
- अनामदास की सुविधा की फांस और अभाव की आजादी.
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शुक्रवार, अगस्त 24, 2007
चोरी भी करते हैं लेकिन शान से
चर्चाकारः
राकेश खंडेलवाल
यों तो चिट्ठों पर चर्चा के काबिल अधिक नहीं मिल पाता
आखिर कब तक रवि रतलामी, फ़ुरसतिया, समीर को गाता
कितने दिन आलोक पुराणिक या सागर की बात करूँ मैं
या दुहाई मेरे पन्ने की , बोलो कितनी देर लगाता
इसीलिये चर्चा का दामन छोड़ दिया कर एक बहाना
जितना पढ़ूँ लिखूंगा उतना, ये भी मुश्किल था कह पाना
किन्तु यहां पर जब देखी है सरे आम घनघोर डकैती
तो हो गया असंभव मुझको अब बिल्कुल भी, चुप रह जाना
तो मुलाहिजा फ़रमाइये
वह चोरी जब करते हैं, करते हैं सीना तान के
लिखना आता नहीं उन्हे है, हमने देखो मान लिया
और न तुकबन्दी ही सीखी, ये भी सच है जान लिया
भाव पास कुछ नही, चाह है शायर पर कहलाने की
इसीलिये ही राहजनी करवे करें उन्होंने ठान लिया
दूजों का हक हथियाते् हैं सदा बपौती मान के
चिट्ठों पर सोचा है कोई उनके जितना पढ़ा नहीं
वे लेखक हैं और कोई भी उनसे ज्यादा बड़ा नहीं
उनका हक है चाहे जिसकी रचना कह अपनी छापें
कोई उनके जितना ऐसे पैडस्टल पर चढ़ा नहीं
सारे शिष्टाचार पी गये ठंडाई में छान के
हर अच्छी कॄति इनकी होती और किसी का नाम नहीं
नीति और ईमान किसी से इनको कोई काम नहीं
ये है सच्छी बात पुतेगी गर्द समय की चेहरे पर
पंथ प्रगति का कभी चूमने पाता इनके पांव नहीं
बज़्मे अदब में, खरपतवारी पौधे हैं ये लान के
आखिर कब तक रवि रतलामी, फ़ुरसतिया, समीर को गाता
कितने दिन आलोक पुराणिक या सागर की बात करूँ मैं
या दुहाई मेरे पन्ने की , बोलो कितनी देर लगाता
इसीलिये चर्चा का दामन छोड़ दिया कर एक बहाना
जितना पढ़ूँ लिखूंगा उतना, ये भी मुश्किल था कह पाना
किन्तु यहां पर जब देखी है सरे आम घनघोर डकैती
तो हो गया असंभव मुझको अब बिल्कुल भी, चुप रह जाना
तो मुलाहिजा फ़रमाइये
वह चोरी जब करते हैं, करते हैं सीना तान के
लिखना आता नहीं उन्हे है, हमने देखो मान लिया
और न तुकबन्दी ही सीखी, ये भी सच है जान लिया
भाव पास कुछ नही, चाह है शायर पर कहलाने की
इसीलिये ही राहजनी करवे करें उन्होंने ठान लिया
दूजों का हक हथियाते् हैं सदा बपौती मान के
चिट्ठों पर सोचा है कोई उनके जितना पढ़ा नहीं
वे लेखक हैं और कोई भी उनसे ज्यादा बड़ा नहीं
उनका हक है चाहे जिसकी रचना कह अपनी छापें
कोई उनके जितना ऐसे पैडस्टल पर चढ़ा नहीं
सारे शिष्टाचार पी गये ठंडाई में छान के
हर अच्छी कॄति इनकी होती और किसी का नाम नहीं
नीति और ईमान किसी से इनको कोई काम नहीं
ये है सच्छी बात पुतेगी गर्द समय की चेहरे पर
पंथ प्रगति का कभी चूमने पाता इनके पांव नहीं
बज़्मे अदब में, खरपतवारी पौधे हैं ये लान के
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गुरुवार, अगस्त 23, 2007
साहित्य जीवन के स्वांग का भी प्रतिबिंब होता है
चर्चाकारः
अनूप शुक्ल
हम एक बार फिर आलोक पुराणिक जी के दबाव में आ गये। वे पाठकीय ठसक के साथ बोले ! यह नियमित क्यों नहीं हो है जी।
हमने जबाब देना ठीक नहीं समझा। सोचा पाठक तो राजा होता है। राजाजी जब कह रहे हैं तो एकाध घंटा उनके कहे पर होम कर देते हैं।
सीधे बिना कुछ कहे सुनी वनलाइनर चर्चा करके फूट लेना कुछ ऐसा लगता है जैसे सबेरे-सबेरे अखबार वाला अखबार फेंककर चला जाये। इसलिये कुछ बतकही भी होती रहनी चाहिये।
कल रात जब हम पंगेबाज का लेख पढ़ रहे थे उसी समय उन्होंने उसका लिंक भी थमा दिया। आनलाइन! देखिये कि एक टिप्पणी के बदले में कित्ता बड़ा पोस्ट रिटर्न दे दिया अरुण अरोरा ने देबाशीष को। ज्ञानदत्त जी उनकी इस मेहनत को चौचक बताते हैं।
बात निकलती है तो दूर तक तो जाती है लेकिन दूर तक जाने के चक्कर में कभी-कभी वहां तक नहीं जा पाती जहां के लिये निकलती है। कुछ ऐसा ही पत्यक्षाजी की इस कैमाफ़्लाज्ड पोस्ट के साथ हुआ। इस पर उनका कहना था-
भव्य श्रीवास्तव पेशे से पत्रकार हैं। आपको नगर-नगर डगरा रहे हैं। आज उनके साथ एटा शहर घूमिये जहां रेल तक नहीं जाती। इसके बारे में लिखते हुये बताते हैं-
अनिल रघुराज ने बात शुरू की थी एक धांसू सवालिया डायलाग से कविता हमारे समय का सबसे बड़ा फ्रॉड है? लोगों की जिज्ञासायें और अपनी बात साफ़ करने की नीयत से वे मुक्तिबोध के पास गये और उनकी साहित्यिक डायरी से तमाम प्रमाण बटोर लाये। पेश भी कर दिये। आप देखिये न! वे क्या कहते हैं-
इलाहाबाद में ब्लागर मिलन हुआ तो रामचन्द्र मिसिर जी ने सबकी फोटो खैंच ली। आप भी देखियेगा ? ये देखिये।
अब आइये कुछ वन लाइनर हो जायें। लेकिन पहले ये वाला समाचार पढ़ लीजिये। इसमें भोपाल में होने वाली हिंदी चिट्ठा कार्यशाला के बारे में जानकारी दी गयी है:-
१. खुदा किस तरफ़ है? : ये तो कहो खुदा को भी न पता हो। वैसे कल निर्मलमन के यहां दिखा था। बड़ा जबर मन है भाई!
२.जो खायें ट्रिपल उखर्रा पूड़ी बुश उर्फ कविता : उसे मिल सकता है ट्रिपल उखर्रा पूड़ी वाला सम्मान। आलोक पुराणिक उर्फ़ खाकसार को मिला है भाई!
३.तेरी खुशबू : मुझमें बसी है तुमको पता है कि नहीं !
४.अजनबियों के बीच सालगिरह.. :मनायें क्योंकि हम लगातार ‘बुलबुले-सी ज़िन्दगी’ की ओर बढ़ रहे हैं जहां परिचितों, मित्रों से कटे हम अपने एकांतिक खोह में मगन रहते हैं! बुलबुले फूटना बहुत जरूरी है।
५.तेरह छड़िकायें :चन्दा मामा और पुए वाली!
६.चिडी के बादशाह और हुकम के गुलाम : यानी कि जहाँ हुआ इशारा वहीं पत्थर फैंके !
७.अरे अभी मत खींचना से हां अब खींच लो तक पसरा फोटो ब्लाग
८.बांग्लादेश: छात्र संघर्ष और कर्फ्य : लगे हैं एक दूसरे के पीछ!
९. आदमी उमर भर अनजान रहता है: इसलिये उमर भर आदमी आंखों की भाषा को नहीं पढ़ पाता है! बाद में चश्मा चढ़ जाता है!
१०.रिश्ता तलवार की धार और कविता का :अगर यही कविता है तो रोज़ सोते-जागते थोक के भाव कविताएं लिखी जा सकती हैं। लिखी ही जा रही हैं आप देखते नहीं का!
११.कसाई है हम कसाई : लेकिन हम मास्साब के चहेते शिष्यों मे से हो गए।
१२. अब क्या समझायें:वोह तो अपनी आत्म प्रशंशा मे मुग्ध हैं!
१३.प्रियतम बिचारा, गड्ढों का मारा : इसे पिलाओ हमदर्द का टानिक सिंकारा!
१४.दुर्लभ वन्य-दृश्य : आपके कम्प्यूटर पर! देखिये तो सही।
१५.नगर नगर एक सफर :साथ में रहिये घुमायेंगे, बतायेंगे।
१६.विश्वास भरी पाती :ना फेलाओ प्रदुषण!
१७. सात साल का नाई........हिट है भाई !: आपने अभी तक हजामत नहीं बनवाई! बनवा लो भाई!
१८.विजेट ही विजेट :
करें! समझने के पचड़े में न पड़ें।
१९.आदिवासी महिलाएं ज्यादा सुखी हैं :फिर पता नहीं क्यों लोग आदिवासियों को शहरी बनाने पर तुले हैं। दूसरों का सुख देखा नहीं जाता!
२०.आलोचनाएं सुनीं तो अब सफाई भी सुन लें : व्रर्ना हम कविता लिखने लिखने लगेगें बताये देते हैं हां!
२१. गाली दो वाहवाही लो...: चलिये शुरू करिये भाई!
ये इक्कीस टिप्पणी का प्रसाद चढ़ा कर हम आज का दिन शुरू करते हैं। आप भी मौज करें। दुनिया में कुछ धरा नहीं है। सच कह रहे हैं आपसे। :)
आज के बाकी सारे चिट्ठे यहां पढ़ लीजियेगा।
हमने जबाब देना ठीक नहीं समझा। सोचा पाठक तो राजा होता है। राजाजी जब कह रहे हैं तो एकाध घंटा उनके कहे पर होम कर देते हैं।
सीधे बिना कुछ कहे सुनी वनलाइनर चर्चा करके फूट लेना कुछ ऐसा लगता है जैसे सबेरे-सबेरे अखबार वाला अखबार फेंककर चला जाये। इसलिये कुछ बतकही भी होती रहनी चाहिये।
कल रात जब हम पंगेबाज का लेख पढ़ रहे थे उसी समय उन्होंने उसका लिंक भी थमा दिया। आनलाइन! देखिये कि एक टिप्पणी के बदले में कित्ता बड़ा पोस्ट रिटर्न दे दिया अरुण अरोरा ने देबाशीष को। ज्ञानदत्त जी उनकी इस मेहनत को चौचक बताते हैं।
बात निकलती है तो दूर तक तो जाती है लेकिन दूर तक जाने के चक्कर में कभी-कभी वहां तक नहीं जा पाती जहां के लिये निकलती है। कुछ ऐसा ही पत्यक्षाजी की इस कैमाफ़्लाज्ड पोस्ट के साथ हुआ। इस पर उनका कहना था-
अफसोस है कि इस लेख में जो तंज़ है वो सचमुच टैजेंट चला गया । बात चाहे गंभीरता से कही गई हो या तंज़ से ...समझने वाले न समझना चाहें , जानते बूझते तो चाहे बात एकदम लोवेस्ट डिनामिनेटर की भी की जाय ,हँसी में उडाई जाती है। बिरादरी या तो पैट्रोनाइज़िंग हो जाती है या फिर पुरुष सहोदरता वाली बात हो जाती है , जैसा कि प्रत्यक्ष हुआ शिल्पा और मेरी लेख पर की टिप्पणियों से और ज्ञानदत्त जी के लेख टिप्पणियों से ।
इस लेख में किसी पर आक्षेप लगाने की कोशिश नहीं की गई सिर्फ एक मानसिकता को रेखांकित करने का छोटा सा प्रयास भर था , ये भी साफ साफ जानते बूझते कि इसका हश्र क्या होगा । बस , मेरी तरफ से प्रोटेस्ट लॉज़ करना था ऐसे मुद्दे पर जिसके भुक्त भोगी अलग अलग परतों पर हम सब हैं ..धर्म , जाति , सोशल स्टैटस , कितने स्टीरियोटाईप्स हैं । औरतें जेंडर बेसिस पर इनके आलावे भी भुगतती हैं ।
ये बहस और विमर्श का मुद्दा है ,हंसी का नहीं ।
भव्य श्रीवास्तव पेशे से पत्रकार हैं। आपको नगर-नगर डगरा रहे हैं। आज उनके साथ एटा शहर घूमिये जहां रेल तक नहीं जाती। इसके बारे में लिखते हुये बताते हैं-
एटा में जो सबसे प्रचलित शब्द है, वो है पकड़। यानि माल जब्त करना नहीं। बल्कि आपका अपहरण। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी जिलों में अपराध ज्यादा है। वजह जमीन और राजनौतिक हस्तियों की दखल है। मैने एक जानने वाले से जाना कि पकड़ की कीमत क्या है। यानि फिरौती का हिसाब क्या है।
चौंकिएगा नहीं। क्योंकि ये आपके जीडीपी या पर कैपिटा इनकम से नहीं समझ आएगा। आपको इसके लिए देश के गांवों में जाकर एक समय का राशन खरीद कर खाना होगा। या शहर में दिहाड़ी पर जीते लोगों का जीवन समझना होगा। पकड़ एटा में आए दिन का बात है और पकड़ से छूटने की कीमत भी आम दिन की जद्दोदजहद के बराबर। यानि किसी पकड़ की कीमत दो हजार है तो किसी की एक साइकिल या भैंस।
अनिल रघुराज ने बात शुरू की थी एक धांसू सवालिया डायलाग से कविता हमारे समय का सबसे बड़ा फ्रॉड है? लोगों की जिज्ञासायें और अपनी बात साफ़ करने की नीयत से वे मुक्तिबोध के पास गये और उनकी साहित्यिक डायरी से तमाम प्रमाण बटोर लाये। पेश भी कर दिये। आप देखिये न! वे क्या कहते हैं-
काव्य में प्रकट उनके व्यक्तित्व में मानवीयता का स्पर्श अल्प होता है। उसमें किसी ऐसे भव्य रूप के दर्शन भी नहीं होते जो हमारे सामान्य जनों की भव्य मानवीयता में हमें दिखाई देते हैं। आध्यात्मिक टुटपुंजियापन आज की कविता का महत्वपूर्ण लक्षण है।
इलाहाबाद में ब्लागर मिलन हुआ तो रामचन्द्र मिसिर जी ने सबकी फोटो खैंच ली। आप भी देखियेगा ? ये देखिये।
अब आइये कुछ वन लाइनर हो जायें। लेकिन पहले ये वाला समाचार पढ़ लीजिये। इसमें भोपाल में होने वाली हिंदी चिट्ठा कार्यशाला के बारे में जानकारी दी गयी है:-
१. खुदा किस तरफ़ है? : ये तो कहो खुदा को भी न पता हो। वैसे कल निर्मलमन के यहां दिखा था। बड़ा जबर मन है भाई!
२.जो खायें ट्रिपल उखर्रा पूड़ी बुश उर्फ कविता : उसे मिल सकता है ट्रिपल उखर्रा पूड़ी वाला सम्मान। आलोक पुराणिक उर्फ़ खाकसार को मिला है भाई!
३.तेरी खुशबू : मुझमें बसी है तुमको पता है कि नहीं !
४.अजनबियों के बीच सालगिरह.. :मनायें क्योंकि हम लगातार ‘बुलबुले-सी ज़िन्दगी’ की ओर बढ़ रहे हैं जहां परिचितों, मित्रों से कटे हम अपने एकांतिक खोह में मगन रहते हैं! बुलबुले फूटना बहुत जरूरी है।
५.तेरह छड़िकायें :चन्दा मामा और पुए वाली!
६.चिडी के बादशाह और हुकम के गुलाम : यानी कि जहाँ हुआ इशारा वहीं पत्थर फैंके !
७.अरे अभी मत खींचना से हां अब खींच लो तक पसरा फोटो ब्लाग
८.बांग्लादेश: छात्र संघर्ष और कर्फ्य : लगे हैं एक दूसरे के पीछ!
९. आदमी उमर भर अनजान रहता है: इसलिये उमर भर आदमी आंखों की भाषा को नहीं पढ़ पाता है! बाद में चश्मा चढ़ जाता है!
१०.रिश्ता तलवार की धार और कविता का :अगर यही कविता है तो रोज़ सोते-जागते थोक के भाव कविताएं लिखी जा सकती हैं। लिखी ही जा रही हैं आप देखते नहीं का!
११.कसाई है हम कसाई : लेकिन हम मास्साब के चहेते शिष्यों मे से हो गए।
१२. अब क्या समझायें:वोह तो अपनी आत्म प्रशंशा मे मुग्ध हैं!
१३.प्रियतम बिचारा, गड्ढों का मारा : इसे पिलाओ हमदर्द का टानिक सिंकारा!
१४.दुर्लभ वन्य-दृश्य : आपके कम्प्यूटर पर! देखिये तो सही।
१५.नगर नगर एक सफर :साथ में रहिये घुमायेंगे, बतायेंगे।
१६.विश्वास भरी पाती :ना फेलाओ प्रदुषण!
१७. सात साल का नाई........हिट है भाई !: आपने अभी तक हजामत नहीं बनवाई! बनवा लो भाई!
१८.विजेट ही विजेट :
करें! समझने के पचड़े में न पड़ें।
१९.आदिवासी महिलाएं ज्यादा सुखी हैं :फिर पता नहीं क्यों लोग आदिवासियों को शहरी बनाने पर तुले हैं। दूसरों का सुख देखा नहीं जाता!
२०.आलोचनाएं सुनीं तो अब सफाई भी सुन लें : व्रर्ना हम कविता लिखने लिखने लगेगें बताये देते हैं हां!
२१. गाली दो वाहवाही लो...: चलिये शुरू करिये भाई!
ये इक्कीस टिप्पणी का प्रसाद चढ़ा कर हम आज का दिन शुरू करते हैं। आप भी मौज करें। दुनिया में कुछ धरा नहीं है। सच कह रहे हैं आपसे। :)
आज के बाकी सारे चिट्ठे यहां पढ़ लीजियेगा।
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बुधवार, अगस्त 22, 2007
मंगलवार, अगस्त 21, 2007
एक चर्चा ये भी है
चर्चाकारः
अनूप शुक्ल
1.विश्वास करें पर सतर्कता के साथ:जब समाज के यही हालत हैं तो यकीन किस पर किया जाय?
2.कुछ चेकिंग-ऊकिंग करने के लिए पोस्ट है, क्योंकि खोमचा शिफ्ट होने वाला है:हां भई नानैसेंस है पोस्ट!
3.लेखक वरिष्ठ पत्रकार है:क्या सच में ऐसा होता है? कहीं आप मजाक तो नहीं कर रहे हैं रवीशजी?
4.महाशक्ति मनाऐगा महार्षि अरविन्द का जन्मोत्सव:पढ़ा तो दुख भी हुआ।
५.‘भूचुनौना’ का इंडिया टीवी:होम करते ही हाथ जले और चैनल खुलते ही मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।
6.कृष्णसखा:एक माला में बुनकर!
7.अखबार की बातें:हत्या लूट डकैती चोरी!
8.हेब्रॉन, सिंघाड़ा और नगा चटनी:का जायज़ा लेकर लौटै पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव के रिपोर्ट!
9.क्या भारतीय कम्यूनिस्ट चीनी हितों के लिए काम कर रहे हैं:कुछ गिव एंड टेक रहा ही होगा !
10.किसी को छोटा कह हम कैसे बड़े हो जाते हैं:सोचते हैं!
11.कविता हमारे समय का सबसे बड़ा फ्रॉड है?:वाक्य मेरा नहीं, बल्कि नक्सल आंदोलन के बड़े नाम विनोद मिश्रा का है।
12.बात इतनी है आदमी शाइर, या तो होता है या नहीं होता:बलंडर ऑन यूजर पार्ट !
13.78 बच्चों का पिता 100 पूरे करना चाहता है: अपना सहयोग प्रदान करें पर होगा 115 डॉलर का जुर्माना!
14.गम का साथी:अकेला सा महसूस करता है!
15.माया कि माया: जो जमीन सरकारी है , वो जमीन हमारी है।
16.पवार साहेब तो पू-रे युधिष्ठिर निकले!:अपने किसान होने की विश्वसीनता का फायदा उठा रहे हैं।
17.बाढ़ का कहर और देश का विकास:आज ज़रूरत है ऐसी ही दीर्घकालीन योजनाओं की!
18.गाँधारी का श्राप और प्रभु श्री कृष्ण का श्राप स्वीकारना :ऐसा मत कहो माता
19.फ़ुरसतिया कहां से हो लें?..: घबरायें नहीं आप जहां भी हैं वहीं से शुरू कर दें मंजिल मिलेगी।
20.हम होगें कामयाब एक दिन...ही...ही...ही..: मिलना हो तो आइये भूत बंगले।
21.एक चर्चा ये भी है:रचना करती है एक नये हिंदी चिटठा समुदाय की!
22.हटिये,अब हमें नहाने दीजियेएक लंबी लड़ाई के लिये!
2.कुछ चेकिंग-ऊकिंग करने के लिए पोस्ट है, क्योंकि खोमचा शिफ्ट होने वाला है:हां भई नानैसेंस है पोस्ट!
3.लेखक वरिष्ठ पत्रकार है:क्या सच में ऐसा होता है? कहीं आप मजाक तो नहीं कर रहे हैं रवीशजी?
4.महाशक्ति मनाऐगा महार्षि अरविन्द का जन्मोत्सव:पढ़ा तो दुख भी हुआ।
५.‘भूचुनौना’ का इंडिया टीवी:होम करते ही हाथ जले और चैनल खुलते ही मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।
6.कृष्णसखा:एक माला में बुनकर!
7.अखबार की बातें:हत्या लूट डकैती चोरी!
8.हेब्रॉन, सिंघाड़ा और नगा चटनी:का जायज़ा लेकर लौटै पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव के रिपोर्ट!
9.क्या भारतीय कम्यूनिस्ट चीनी हितों के लिए काम कर रहे हैं:कुछ गिव एंड टेक रहा ही होगा !
10.किसी को छोटा कह हम कैसे बड़े हो जाते हैं:सोचते हैं!
11.कविता हमारे समय का सबसे बड़ा फ्रॉड है?:वाक्य मेरा नहीं, बल्कि नक्सल आंदोलन के बड़े नाम विनोद मिश्रा का है।
12.बात इतनी है आदमी शाइर, या तो होता है या नहीं होता:बलंडर ऑन यूजर पार्ट !
13.78 बच्चों का पिता 100 पूरे करना चाहता है: अपना सहयोग प्रदान करें पर होगा 115 डॉलर का जुर्माना!
14.गम का साथी:अकेला सा महसूस करता है!
15.माया कि माया: जो जमीन सरकारी है , वो जमीन हमारी है।
16.पवार साहेब तो पू-रे युधिष्ठिर निकले!:अपने किसान होने की विश्वसीनता का फायदा उठा रहे हैं।
17.बाढ़ का कहर और देश का विकास:आज ज़रूरत है ऐसी ही दीर्घकालीन योजनाओं की!
18.गाँधारी का श्राप और प्रभु श्री कृष्ण का श्राप स्वीकारना :ऐसा मत कहो माता
19.फ़ुरसतिया कहां से हो लें?..: घबरायें नहीं आप जहां भी हैं वहीं से शुरू कर दें मंजिल मिलेगी।
20.हम होगें कामयाब एक दिन...ही...ही...ही..: मिलना हो तो आइये भूत बंगले।
21.एक चर्चा ये भी है:रचना करती है एक नये हिंदी चिटठा समुदाय की!
22.हटिये,अब हमें नहाने दीजियेएक लंबी लड़ाई के लिये!
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शनिवार, अगस्त 18, 2007
फक्त तुझ्याचसाठी
चर्चाकारः
Sanjay Tiwari
लो जी ब्लागवाणी का नया संस्करण. मराठी में. और यह संदेश है कि कृपया आमचा व्यापर करा. मेरे लिए तो बहुत मजा हो गया. मराठी भूल रहा था अब रवां हो जाएगा. और चिट्ठाचर्चा में जल्द ही मैं मराठी चिट्ठों को भी शामिल करना शुरू कर दूंगा.
क्या सुझाव है आपका?
क्या सुझाव है आपका?
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शुक्रवार, अगस्त 17, 2007
मोहल्ले में भाषा कर्मी अरविन्द कुमार
चर्चाकारः
रवि रतलामी
दोस्तों,
यदि आपने मोहल्ले पर प्रकाशित अरविंद कुमार के इस लेख को अब तक नहीं पढ़ा है तो अवश्य पढ़ें. अरविन्द कुमार ने हिन्दी चिट्ठाजगत् में सृजित हो रहे हिन्दी शब्दों के बारे में अपने चिरपरिचित अंदाज में पर, नए कोण से लिखा है.
यदि आपने मोहल्ले पर प्रकाशित अरविंद कुमार के इस लेख को अब तक नहीं पढ़ा है तो अवश्य पढ़ें. अरविन्द कुमार ने हिन्दी चिट्ठाजगत् में सृजित हो रहे हिन्दी शब्दों के बारे में अपने चिरपरिचित अंदाज में पर, नए कोण से लिखा है.
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गुरुवार, अगस्त 16, 2007
एक लाइन की चर्चा
चर्चाकारः
Jitendra Chaudhary
लो जी, हम भी आ पहुँचे, जैसा कि आदेश हुआ कि चिट्ठा चर्चा के सभी चर्चाकारों को एक लाइन की चर्चा करनी जरुरी है तो लो जी, झेलो। देखो भाई, पसन्द आए तो कमेन्ट करना और ना पसन्द आए तो टिप्पणी करना। पहला प्रयास है, अगर इसको बन्द करवाना है तो कमेन्ट करना जरुरी होगा। तो भाई झेलो, नारद पर शामिल १५ अगस्त २००७ के चिट्ठो की चर्चा।
जुगाड़ी लिंक : तुम्हरा जुगाड़ तुम्हारे काम नही आया, देखो हिंदी की जगह का दिखा रहा है?
मेरी चिंताएं :शुकु्ल की लम्बी पोस्ट पढना।
लोहे का स्वाद :कैल्शियम सैंडोज मे। अब बड़े पैक मे।
ठीक नही आपका इतना मुस्कराना : क्योंकि सफ़र अभी बाकी है
स्वतन्त्रता दिवस की बधाई : लेट तो नही हुए.. बीत गया पंद्रह अगस्त
कंडोम सांग इन तेलगू : अनुवाद करके सुनाओ ना।
क्या तरक्की है हाउसवाइफ़ की : हाँ सचमुच मानना पड़ेगा, क्योकि मै अभी भी जिन्दा हूँ।
साठ साल की आजादी आपके लिए क्या मायने रखती है? : सफ़ेद कुर्ता-पायजामा और टोपी पहनने का बहाना।
टैक्नोराटी के मोर्चे पर चिट्ठाजगत ने नारद को पछाड़ा : गलती से मिस्टेक हो गया....भूल चूक लेनी देनी।
आगरा : हथिया लिया ताज मोमेंटो : गनीमत समझो, ताजमहल वहाँ छोड़ दिया, बहनजी के आदेश का पालन करते तो.....
बिलीव इट आर नाट : अंग्रेजी के टाइटिल मे दम होता है।
स्वतंत्रता आज भी कुछ मांग रही है? : ले लो तिरंगा प्यारा ।
मुझे ये कापी लग रही है : हाँ, फोटो कापी तो ले ली, पैसे दिए बिना भाग गया।
हम लोग : अब ब्लॉग लिखेंगे।
मनमोहन जी कैसे करिएगा शिक्षा क्रांति? : मैडम से पूछ कर बताएंगे।
एक करोड़ का इनाम टीम इंडिया को : ये वही टीम है, जिसको करोड़ो लोगो ने जूतों की माला पहनाई थी। पहले जूते, अब रुपए..वक्त बदलते देर नही लगती...
हिंदी टूलबार के चिट्ठे पर आपका स्वागत है: ह्म्म! हैडर मे टूलबार का स्क्रीन शाट तो लगाओ भाई।
राष्ट्रगान मे ये भारतभाग्य विधाता कौन है? : एल्लो, इत्ता भी नही पता? हमको भी नही पता।
राम भरत मिलाप : ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार।
ज़िन्दगी एक सफर है सुहाना.. : हाँ, यहाँ कल क्या हो किसने जाना?
अब भाई, बाकी लोग जो छूट गए हो, वो यहाँ टिप्पणी करें (जानबूझ कर छोड़े है, इसी बहाने, कम से कम चार पाँच टिप्पणियां तो आएंगी), टिप्पणी मिलते ही चर्चा कर दी जाएगी।
जुगाड़ी लिंक : तुम्हरा जुगाड़ तुम्हारे काम नही आया, देखो हिंदी की जगह का दिखा रहा है?
मेरी चिंताएं :शुकु्ल की लम्बी पोस्ट पढना।
लोहे का स्वाद :कैल्शियम सैंडोज मे। अब बड़े पैक मे।
ठीक नही आपका इतना मुस्कराना : क्योंकि सफ़र अभी बाकी है
स्वतन्त्रता दिवस की बधाई : लेट तो नही हुए.. बीत गया पंद्रह अगस्त
कंडोम सांग इन तेलगू : अनुवाद करके सुनाओ ना।
क्या तरक्की है हाउसवाइफ़ की : हाँ सचमुच मानना पड़ेगा, क्योकि मै अभी भी जिन्दा हूँ।
साठ साल की आजादी आपके लिए क्या मायने रखती है? : सफ़ेद कुर्ता-पायजामा और टोपी पहनने का बहाना।
टैक्नोराटी के मोर्चे पर चिट्ठाजगत ने नारद को पछाड़ा : गलती से मिस्टेक हो गया....भूल चूक लेनी देनी।
आगरा : हथिया लिया ताज मोमेंटो : गनीमत समझो, ताजमहल वहाँ छोड़ दिया, बहनजी के आदेश का पालन करते तो.....
बिलीव इट आर नाट : अंग्रेजी के टाइटिल मे दम होता है।
स्वतंत्रता आज भी कुछ मांग रही है? : ले लो तिरंगा प्यारा ।
मुझे ये कापी लग रही है : हाँ, फोटो कापी तो ले ली, पैसे दिए बिना भाग गया।
हम लोग : अब ब्लॉग लिखेंगे।
मनमोहन जी कैसे करिएगा शिक्षा क्रांति? : मैडम से पूछ कर बताएंगे।
एक करोड़ का इनाम टीम इंडिया को : ये वही टीम है, जिसको करोड़ो लोगो ने जूतों की माला पहनाई थी। पहले जूते, अब रुपए..वक्त बदलते देर नही लगती...
हिंदी टूलबार के चिट्ठे पर आपका स्वागत है: ह्म्म! हैडर मे टूलबार का स्क्रीन शाट तो लगाओ भाई।
राष्ट्रगान मे ये भारतभाग्य विधाता कौन है? : एल्लो, इत्ता भी नही पता? हमको भी नही पता।
राम भरत मिलाप : ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार।
ज़िन्दगी एक सफर है सुहाना.. : हाँ, यहाँ कल क्या हो किसने जाना?
अब भाई, बाकी लोग जो छूट गए हो, वो यहाँ टिप्पणी करें (जानबूझ कर छोड़े है, इसी बहाने, कम से कम चार पाँच टिप्पणियां तो आएंगी), टिप्पणी मिलते ही चर्चा कर दी जाएगी।
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बुधवार, अगस्त 15, 2007
जश्न-ए-आजादी मुबारक हो..!
चर्चाकारः
अनूप शुक्ल
आज आजादी का दिन है सो एक बार फिर हाजिर हैं। बोलने की आजादी है सो थोड़ा सा बतिया भी लें।
हमने चिट्ठाचर्चा इस रूप में शुरू किया इसके पीछे आलोक पुराणिकजी का आग्रह मुख्य है। हमारे चिट्ठाचर्चा के तमाम साथी अपनी विभिन्न व्यस्तताऒं के चलते इसमें योगदान नहीं कर पा रहे हैं। आशा है वे फ़िर खाली होंगे और चर्चा का बक्सा भरेंगे।
साथियों में अनुरोध है कि वे जब समय मिले तब चर्चा करें। जिस रूप में मन आये करें। बस करते रहें। पाठक ही तय करेंगे कि उनकी चर्चा का स्तर और अस्तर क्या है।
समय की कमी के कारण कभी-कभी सभी चिट्ठों की चर्चा नहीं हो पाती। इसे अपने लिखे के प्रति अनादर और उपेक्षा के रूप में लेकर अपने प्रति अन्याय करने से बचें।
हमारी चर्चा का मूल स्वर मौज-मजे का है। किसी को चोट पहुंचाना या खिल्ली उडाना इसमें कहीं से शामिल नहीं है। फिर भी जिन साथियों को मौज-मजे से परहेज है वे संकेत दे देंगे तो उनकी ब्लाग-पोस्ट की चर्चा से परहेज किया जायेगा ताकि उनको कष्ट न हो। हम भी अपने अनुभव से सावधान रहने का प्रयास करेंगे। :)
आज के चित्रों में पहला चित्र वीरेंद्र विज की पोस्ट से और दूसरा चित्र संगीता मनराल की पोस्ट से लिया गया। आभार सहित भाई!
आज चौदह अगस्त के चिट्ठों की टाइटिल चर्चा हुई। सारे लेख आप यहां पढ़ सकते हैं।
१.जी. टी. रोड - चौक - घंटाघर - इलाहाबाद - GT Road -Chowk - ClockTower - Allahabad : सब एक दाम, हिंदी अनुवाद साथ में! आइये मिसिरजी की दुकान पर!
२.पढूं या सोच : दोनों ही काम लेटे-लेटे हो जायेंगे। न हो तो सिक्का उछाल लें।
३.देखिये :ख़ून के आंसू क्यों रोता जा रहा है आदमी!
४.सुन के देखो :मजा आ जायेगा
५.धूम्रपान के शौकीनों की संख्या में इजाफा :सच क्या है यह तो पीने वाला ही जाने लेकिन यह बात सरासर गतल है।
६.धन्नो का देशप्रेम :जरा , आंख मे भर लो पानी।
७.शब्दों की वापसी : स्वागतम, अथ स्वागतम!‘आओ’ ,’जाओ’,’खाओ’,’नहाओ’!
८.न जाने कैसी आज़ादी……? : अपनों के ज़ुल्म देखकर, रूह थर्राई है….!
९.आज़ादी को सलाम :अभी भी कई सारे मसले हैं जिनकी तरफ देखकर यही अहसास होता है कि हम अब भी आज़ाद नहीं है! इसलिये सलाम वापस! :)
१०.स्वतन्त्रतादिवस की पूर्व सन्ध्या पर : तस्लीमा को भारत की नागरिकता दी जाये
११. आगरा की तस्वीरें:बहुत बढिया पर तस्वीरो को चोरी से बचाए रखे।
१२.123 एग्रीमेन्ट और सांसदो/विधायकों की समझ :अच्छा खासा कामेडी का कार्यक्रम है!समझे या आप भी सांसद/विधायक हैं!
१३.झंडा ऊंचा रहे हमारा : ये तो टेढे़ हैं, एक दूसरे से बंधे हैं ऊंचे कैसे होंगे!
१४.वैदिक संस्कृत स्वर चिह्नों का यूनिकोड मानकीकरण :इस सम्बन्ध में अभी तक हुई प्रगति तथा कुछ तकनीकी जानकारी देने का प्रयास किया जा रहा है।
१५ हीन से हीनतर की धारा: हम तो इसी धारा के साथ बहेंगे।
१६.कुण्डलिनी ध्यान :
किसी कैसेट को चालू कर लें. जो संगीत आपको पसंद हो उसे लगा लें. और पंद्रह मिनट उस संगीत की धुन पर नाचिए. बस हो जायेगा!
१७.राष्ट्र वन्दना : करें मन को आराम मिलेगा। सारी खिचखिच दूर!
१८.राजनीति के ’पिंजर’ में फंसा लोकतंत्र :पिंजरा खोलते ही लोकतंत्र उड़ जायेगा!
१९.
१४ अगस्त, मंगलवार :श्री भोपाला राम पुत्र मूला राम माली निवासी प्रतापजी प्रोल बाड़मेर ने चोटे आना आदि धारा २७९, ३३७ भा० द० स० के तहत पुलिस थाना कोतवाली पर मुकदमा दर्ज करवाया।
२०.जश्न-ए-आजादी : मुबारक हो..!
२१.इस जालचोरी के पीछे क्या है राज ?? : राज को राज रहने दो।
२२.मां का आंचल :यह गीत अपने बच्चों को सिखायें !
२३.देश उर्फ विंडोज 1947 :अंधेरे और उजाले का फ्यूजन ही फ्यूजन है, फ्यूजन क्या विकट कनफ्यूजन है।
२४.खूब मनाओ जश्न आजादी का पर :पर देख लो कोई छूटा तो नही है!
२५.ये बच्चा किसका बच्चा है.... :सबका है क्योंकि इस जग में सबकुछ रब का है, जो रब का है वो सबका है।
२६.रिक्शा चलाया प्यार में :ये प्यार दिन दूना रात चौगुना बढ़े!
२७. दम दमा दम इन्डिया: लगे रहो मुन्ना भाई!
२८.आज़ादी के साठ बरस : गलत मत कहो..!
२९.गधा आजाद है चरने को : हम भी साथ लग लिये। आप भी आप न!
३०. मैं, मुक्तिबोध, राजेश जोशी और आसमान की सैर:यह चांदनी भी बडी मसखरी है. तिमंजिले की एक खिडकी में बिल्ली के एक सफेद धब्बे सी चमकती हुई!
३१.ब्लॉगवाणी में अपने ब्लॉग को लेकर मैं धर्मसंकट में :इसका अर्थ है कि मुझे अपना लिखा स्वयं पसन्द नहीं है ।
३२. दांत गया:अब मैं खाना कैसे खाऊंगा ।
३३.कहीं से नहीं आए जहाँपनाह, हम यहीं थे और हमारे ज़ख्मों से खून रिस रहा है आलमपनाह
३४.जन-गण-मन की धुन किसने बनाई :राम सिंह ठाकुर ने!
३५.तब तक सब प्रश्न अनुत्तरित होंग : मेरी ही तरह किनारे खड़े होंगे!
३६.15 अगस्त की कुछ यादें : ठंडे बस्ते से।
३७.60 साल की स्वतंत्रता : हो गयी अब तो पी के गायेंगे आजादी के गाने!
३८.एक मर्म, जो दिल को छूता है : महफिल में सब वाह-वाह कर उठे।
३९. भारत में एक अदद भारतीय की खोज: हम हिंदुस्तानी ...
४०.बुंदेलखंडी मज़दूरों के गाने :और उन तक अब पहुंचना असंभव है!
४१.
60 साल का भारत....क्या सचमुच? : हां भाई आपको क्या विश्वास नहीं होता। देखिये न सब तरफ़ सठियाये लोग टहल रहे हैं।
४२.नोकिया फोन प्रयोग करने वालों के लिये जरूरी सूचना :फट सकती है नोकिया की बैटरी!
४३. कितने पिये है दर्द: दीवानगी में कट गए मौसम बहार के/अब पतझड़ों के खौफ से दामन बचाऊं क्या?
४४.स्वतन्त्रता दिवस यानी आजादी : फ़िर आ गया स्वतंत्रता का सरदर्द
४५.जिन वेगस नहीं वेख्या... : वे दूसरे की रक्षा क्या करेंगे
४६.लिखते हुए कभी नहीं डरना कि दो बार अवतरित होते-होते रह गए बुद्ध
४७.तकदीर ले आना मेरी थोड़ा काम है उससे!
४८.शैशव’ पर अतिक्रमण और शैशव की ताकत : राज्य सभा में चर्चा - एड्स में कमी
४९. बैकअप जो लिया होता …..: तो सेकेट्री किसी के साथ भागती नहीं!
५०. इसका गुलशन फूंक दूं उसका शबिस्तां फूंक दूं: जो करना हो करो लेकिन पहले फ़ायर ब्रिगेड बुला लो।
५१.हाथ धोने की औपचारिक नोटिस : मेरा बकवास है!
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विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
चर्चाकारः
अनूप शुक्ल
आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की मंगलकामनायें।
सुबह-सबेरे चाय की चुस्की के बीच हाजिर हैं आज के मुख्य समाचार!
१. अमर शहीदों के नाम : पैगाम के अलावा और क्या हो सकता है!
२.पुस्तक मित्र -बनेंगे? :सोचेंगे। लेकिन तब तक पुस्तक से बोलो हमारे ब्लाग पर टिप्पणी करे।
३.भाषा एक पहचान है और एक परदा भी : परदे में रहने दो परदा न उठाओ, परदा जो उठ गया तो भेद खुल जायेगा।
४.योग्य दामाद प्रतियोगिता: अभी उत्पादन बंद है।
५.अकेलापन :तो बहुत बड़ी भूल है ।
६.दिगलीपुर मे रॉस एंड स्मिथ :हम कभी नही गए क्यूंकि जंगल और जंगल मे सांप और अन्य जानवरों से हम डरते जो है।
७. गीता: भी मैं कर्म में ही बरतता हूं।
८. (हल): बूझिये कि यह किस चीज का छायाचित्र है — 7:पहेलियां बुझाते-बुझाते बड़े हुये अब हल कैसे बुझायें!
६.हैलो हाय न बोलिये...वंदेमातरम फ़िज़ाँ में घोलिये !: एक ग्लास फ़िजां में कित्ते चम्मच बंदेमातरम मिलाना है?
७.
मज़दूर होने की आज़ादी? : में ही हमारी स्वतंत्रता की असलियत छिपी है।
८. कोई भी ब्लॉगर मित्र इस चित्र को अपने ब्लोग पर डाल सकता है ।: फिलहाल चित्र का हिंदी अनुवाद उपलब्ध नहीं है।
९.जहाजघर :इतना सपाट हैसे है, लगता है जैसे किसी ने आरी ले कर पहाड़ की चोटी काट कर सपाट बना दिया हो।
१०.पति-पत्नी : और वो कहां हैं? उनको बुलाओ नहीं तो ये डरते ही रहेंगे।
११.पति-पत्नी-और-चोर : के गठबंधन से कविता की रचना पूरी हुई।
१२.मेरी कविता :सब रबिश हैं।इसे मत छीनो मुझसे।
१३.हशमत की पाती :हशमत आपकी आतंकवादी घुस्सा-घुस्सम, गुत्था-गुत्थम की सराहना करते हैं।
१४.साइकिल : में हवा भरवा लें चलाने के पहले।
१५.देख के सावन झूमे है मन :तो ये सावन आपको झूमा रहा है !!
१६.कितने मीरजाफर :गिनती जारी है। हर साल नये मीरजाफरों की खोज होगी और देश को विदेशियों के हाथ गिरवी रखने के लिए किये जा रहे उनके कार्य को सम्मानित किया जाएगा।
१७.सठिया गया है देश चलो जश्न मनायें :मत बजाओ थाली, बच्चों बजाओ ताली।
१८.फिल्म समीक्षा - ‘चक दे इंडिया’ : 100 मे से 99 अंक ।
१९.आजादी से क्या बदला है :सच अब भी लंगडा कर चलता है। कोई अच्छा हड्डी का डाक्टर है निगाह में?
२०.रोगी की दशा उत्तम है : लेकिन फिर भी मैं तो भटक ही गया हूं!
२१.धीरे-धीरे कलाई लगे थामने : रिपोर्ट लिखाइये वर्ना मामला आगे बढ़ जायेगा।
२२.इसके सिवा क्या है :नामुराद सवालों के सिवा कुछ भी नहीं।
२३.
कौन कह रहा है कि विरोध नहीं हुआ :विरोध के बिना हम भला कैसे रह सकते हैं!
२४.हिंदी भाषियों की हत्या : यह घटनाएं भारत के लिए खतरा होगा।
२५.भारतीय विद्वानों ने की न्यूटन से पहले गणित की महत्वपूर्ण खोज :ये तो कहो न्यूटन सागर के उस पार जन्में नहीं तो सेव भी उनसे पहले कोई दूसरा गिराता।
२६. स्वादनमकीन क्यूँ है??इसमें तेरे आँसू मिले हैं या टाटा का आयोडीन युक्त नमक!
२७.बहार आई नेह की :बैठाओ उसे अभी आते हैं। अब तो चार हों नयन!
२८.औरतों की जेब क्यों नहीं होती : इस बारे में हमें भी कुछ करने की ज़रूरत है क्या?
२९.अखण्ड भारत पर विचार : में हमारा नेतृत्व फंसा।
३०.दशरथ की अन्त्येष्टि : तेहरवीं भी हो गयी। सब अच्छे से निपट गया।
३१.कम्युनिस्टों का मुसलमानो के बीच क्या आधार है ? : आधार पता चले तो ऊंचाई से गुणा करके मार्क्सवाद का आयतन निकाला जाये। जल्दी डाटा लाओ भाई, तुम तो क्रांति की तरह लेट हो रहे हो।
फिलहाल इतने में ही मजा लें। अब हम चलते हैं झंडा फ़हराने। बाकी फिर जल्दी ही। तब तक अगर आपना मन करे तो आप इस पोस्ट के शीर्षक गीत विजयी विश्व तिरंगा प्यारा के रचयिता के बारे में जानना चाहें यो ये लेख पढ़ें।-विजयी विश्व तिरंगा प्यारा। पूरा गीत और रचयिता का परिचय मुफ़्त में। स्वतंत्रता दिवस उपहार!
मेरी पसंद
फुहार पड़ी मेह की,
ब्यार करे छेड़ सी,
खिल उठा चमन-चमन,
बहार आई नेह की!
घटा है काली छा रही,
बिजलियाँ गिरा रही,
सोंधी माटी की सुगंध,
सब को है लुभा रही,
अधीर क्यों न हो ये मन,
बहार आई नेह की!
मंद-मंद सी पवन,
लगाए मीठी सी अग्न,
सिहराए मेरा रोम-रोम,
भीगा-भीगा सा बदन,
अब तो चार हों नयन,
बहार आई नेह की!
सात रंग प्यार के,
पी के मनुहार के,
मंत्रमुग्ध सा ये मन,
गीत गाये प्यार के,
होगा जाने कब मिलन,
बहार आई नेह की!
डा0अनिल चडड़ा
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मंगलवार, अगस्त 14, 2007
नौकर की कमीज़ में कटहल का पेड़
चर्चाकारः
अनूप शुक्ल
1.बुद्ध को पैदा होने से रोक लेंगे?: पक्का नहीं है लेकिन ट्राई मारने में कौनौ हर्जा है? रुक गया तो कहेंगे रोक लिया भये प्रकट कृपाला हुये तो बोलेंगे- स्वागतम!
2.मुन्नाभाई व्हाईटहाऊस में: गांधीगिरी करेंगे।
3.गुलाम तो बच्चा है:ठीक है लेकिन कोई कब तक बच्चा बना रहेगा भाई!
4. क्या हिन्दी कभी राज करेगी ?:हां काहे नहीं! वैसे अभी भी राज तो हिंदी वालों का ही है। खाली बोल-चाल लिखा-पढ़ी और जरूरी कामकाज के अंग्रेजी इस्तेमाल कर लेते हैं।
5.गाँव पुकारता है... :हमें साफ़ सुनाई दे रहा है। ताज्जुब है जो पुकार हमें जवानी गये तक गांव के नजदीक रहते सुनाई दी वो यहां आते ही सुन पा रहे हैं। कुछ तो लफ़ड़ा है।
6.सफ़ेद दाग और होम्योपैथी- आशा की एक किरण : होम्योपैथी के प्रयोग से सफ़ेद दाग आशा की किरण दोनों गायब! :)
7.गवर्नर का फरमान - १५ अगस्त - वाशिंगटन प्रदेश में "इंडिया डे":भारत माता की जय।पिताजी किधर गये, दिखे नहीं!
8. फ़ुलंगी :का नशा बेकार हैं। कोई दूसरा आजमायें!
9.अब अक्सर चुप चुप से रहे हैं !!! :बोलने पर लोग मुंह तोड़ देंगे।
10. बलिहारी गुरू आपकी, कोर्स कम्प्लीट दियो कराए : इससे खुश मत हो बच्चा अभी इम्तहान तो बाकी है।
11.दिल्ली ब्लॉगर भेंटवार्ता : होकर रहेगी। अपने-अपने मुद्दे साथ में लायें। लफ़ड़े के लिये आयोजकों पर भरोसा मत करें।
12. यादें किशोर दा कीः पचास और सत्तर के बीच का वो कठिन दौर कुछ तो लोग कहेंगे....तुम भी कह लो।
13.पेट में कब्रिस्तान : अपनी कब्र खोंदे, लेट जायें।
14. नहीं दबेगी तसलीमा की आवाज: लगता फ़ैलती जायेगी, इस आवाज में जान है।
15. स्वतन्त्रतादिवस की पूर्व संध्या पर :नेहरु उठे व जा कर लताजी को गले लगा लिया!
16. 60 साल के आजाद भारत के नेता :गुंडे, लुच्चे लफंगे होते हैं। और, विधानसभा तक एक दूसरे से गाली-गलौज-मारपीटपर आमादा हो जाते हैं।
17.हमारे समाज का रोग :इसके लिए पूरे समाज की धमनियां साफ करनी होंगी, उसका रक्त बदलना होगा।
18. कैमरा भी कर सकता है रिपोर्टर : खूबसूरत है।
19.कोयला :का तो बैंड बाजा उसी दिन बज गया था जिस दिन कि मेरी प्रेमिका ने मुझे धोखा दिया था।
20.दो मिनट का ध्यान : सबको ढीला कर दें, सिवाय घड़ी के।
21.नौकर की कमीज़ में कटहल का पेड़ : कमीज भी फ़ाड़ ली, कटहल अभी वहीं लटका है।
आगे फिर शायद आज ही।
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रविवार, अगस्त 12, 2007
इस ब्लागिंग के चक्कर ने निकम्मा हमें बनाया...
चर्चाकारः
अनूप शुक्ल
एक धांसू च फ़ांसू शेर है-
आदत हो गयी है अब तो इसकी। गाहे-बगाहे पत्थरबाजी होती रहती है। आज का पत्थर उड़नतश्तरी से था। मुस्कराते हुये उलकापिंड पर लिखा था-यह स्टाईल बेहतरीन है, जारी रखें. और भी अच्छा कर सकते हैं आप यदि बंदे की पोस्ट भी कवर करें. शुभकामनायें.
अब बंदे का टाइटिल कवर करें, उसकी पोस्ट कवर करें। कल को आप बोलोगे- बंदे को भी कवर करो, उसके घर वालों को भी कवर करो। किसको-किसको कवर करें भाई! ई हमसे न होगा समीर भाई! आप करके दिखाइये, हम फ़ालो करने का
असफ़ल प्रयास करेंगे। आपकी सुविधा के लिये टाइटिल चर्चा को सामूहिक जगह पर ले आये हैं। मुलाहिजा फ़रमाया जाये।
१.एडिसन, न्यू जर्सी 'इंडिया-डे परेड' में उर्मिला मातोंडकर: क्या कर रही हैं?
२.ये हैं हिन्दुस्तान के असली हीरो ! : इनको आदर देना शुरू करें क्या!
३.गायब गोल्डन चिड़िया : आलोक पुराणिक के यहां बरामद! श्रीश ने सुकून से मरने की पेशकश की।
४.चूसने चखने का चस्का :आम और खास सब इसके लपेट में।
५.आईफोन के ऐसे प्रयोग… : करने से बचें।
६.पत्रकारिता जनता से दूर होती जा रही है :दूरी बढ़ती जा रही है। जनता (पत्रकारिता के) विरह में करवटें बदल रही है।
७. इंटरनेट बना हर मर्ज की दवा: दर्द बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की।
८.सांसद को पकड़वाएं, ढाई हज़ार रुपये पाएं:इत्ते में कैसे होगा भाई, कुछ पैसे बढ़ायें।
९.स्टेटस सिम्बल पार्ट-३ : स्टेटस सिम्बल के टुकड़े-टुकड़े हो गये। ये तीसरा है। संभालो।
१०.इतवारी टाइटल चर्चा : छुट्टी में तो बख्सो यार। ठेलते रहते हो जबरिया, हर दिन हर वार!
११.अम्मा जी :भाग : वर्ना आपका सम्मान हो जायेगा।
१२.अमरीका में अखबार :बहुत स्वस्थ होते हैं। लगता है वे भी पिज्जा खाते हैं, ऐडियाते हैं।
१३. जंगल में लोकतंत्र:राजा की मति फिर गयी है।वह जोर-जोर से हंस रहा था।
१४. जीवन और कहानी: एक ही पैक में।
१५.राइनाइटिस ऍलर्जी का आयुर्वेदिक उपचार : तुरन्त शर्तिया फ़ायदा। फ़ायदा न होने पर टिप्पणी करें।
१६.ब्लू अम्ब्रेला : नीली छतरी वाले सिनेमा घर की सबसे अच्छी फ़िल्म है।
१७.राह देख देख कर कही ऐसा न हो.: कि बैठे बैठे आंख नम हो जायें, काली रात भी रंगीली लगे,हिन्दी से एक बार फिर प्यार हो जाये,जिन्दगी पीछे छूट जाये ..।
१८.एक अनकही बात :अभी तो मुझे चुराने हैं,कुछ रंग इन,रंगबिरंगी तितलियों से। वैधानिक चेतावनी:- चोरी संज्ञेय अपराध है।
१९. बारिष आयी: जो आया है सो जायेगा, राजा रंक फ़कीर।
२०.स्वार्थी पुत्र :अपनी मां को डांटता है। निस्वार्थी दूसरों की मां को ?
२१.किस-किस की नींद असहज हो रही है? : जहालत के अंधेरे से। जबकि अभी तक हमारी लज्जा कोरी है। पता नहीं वह काली है या गोरी है।
२२. 60 साल भारत: युवा पीढी को क्या मिला?:हाथों में लैपटॉप और हाथों मे सिगरेट। माडल और ब्रांड भी बताना मांगता क्या?
२३.हिंदी टूलबार के बारे में विस्तार से : अपने आइने में देखें। मुंह सामने की तरफ़ रखकर भाई!
२४.ये बुर्जुवा सरकार कब समझेगी ? : समझेगी भाई, समझ भी जायेगी। अभी तो आप खुद ही बता रहे हैं कि सरकार कपडे उतार कर नाच रही है ।
२५.सास-बहू का सीरियल और झगडा :सास-बहू में कोहराम मचा हुआ था। डर लग रहा था। इसीलिये ये कविता लिख डाली। बुरा मत माने प्लीज!
२६.आशंका है किसी दिन यूं ही मार डाली जाऊंगी : ऐसा नहीं है तस्लीमाजी, आपके लिये बेहतर इंतजाम करेंगे। इलाहाबाद में आपके वक्तव्य का प्रोग्राम कैंसल किया न!
२७.दिल्ली की लड़कियां संकोची नहीं थी।बात करते करते उनका हाथ दोस्तों के कंधे तक चला जाता। अरे सच भाई, रवीश ने खुद देखा है।
२८.हरेली : हमारे लिये बेकार है क्योंकि हरेली का अर्थ या हरेली क्या है यह वही जान समझ सकता है जिसने छत्तीसगढ़ में कुछ साल गुजारें हों और यहां के लोक-व्यवहार का अध्ययन किया हो। हम कभी रहे नहीं न वहां धान के कटोरे में।
२९.चक दे इंडिया - ‘भारत माता’ की जय : कहानी लड़कियों की, जय माताजी की। सब तरफ़ घपला है भाई!
३०.पुनर्जन्म हो यदि मेरा ! : तो ब्लाग यही मेरा मिल जाये।
३१.गंगा और रामचरितमानस से मुक्ति का क्रूर प्रसंग :बुढ़ापे में भी जवान लड़कियों का स्तन पकड़ लेने वाला राजेन्द्र यादव,चार्ल्स शोभराज द्वारा चंद्र शेखर आज़ाद को गाली। विषय प्रवर्तन -मसिजीवी।
३२.हँसना जरूरी है - आखिर क्यों ? :क्योंकि बीवी और टीवी में कोई अंतर नहीं है दोनों चार्ज होने पर चलती है।
३३.एक पत्रकार की दुखद मौत, हमारी श्रद्धांजलि : बहुत याद आओगी ठकुराइन...
१.टिप्पणी:तकनीकी लोचे अपनी जगह हैं और ग्राहक की भाषा का 'चौड़ापन' अपनी जगह लेकिन उसके बाबजूद दुकानदार के चौड़ेपन पर भी विचार करें- पहले ही आप और जीतू की ऐंठ ने हिंदी अंतर्जाल से उसकी ऐ जीवंत चौपाल लगभग छीन ही ली है।ये आपकी ही पोस्ट का लिंक है केवल एक बार पढें और देखें कि कहीं आप अपने ही कहे का विरोध तो नहीं कर रहे हैं- सुनील नारद तक कंटेंट ला रहे हैं यानि ग्राहक हैं- बाकी आपकी दुकान है उसे उजाड़ने से हम आपको कैसे रोक सकते हैं- मसिजीवी।
प्रतिटिप्पणी
मसिजीवी
आपके बारे मे कुछ कहने को बचा ही नही, आपने आकर हिन्दी चिट्ठाजगत मे जो द्वेष/नफ़रत को फैलाया है वो सर्वविदित है, मै आपके तमाशे चुपचाप देख रहा हूँ, लेकिन शायद अब पानी सर से ऊपर हो रहा है। जीतेंन्द्र चौधरी।
दोनों यहां हैं।
छः महिने की छुट्टी लेकर हम तो बहुत पछताये,
दो हफ़्ते में ही देखो लौट के बुध्दू घर को आये...
सिगरेट,कोकीन के जैसे ही ब्लागिन ने नशा चढा़या
इस ब्लागिन के चक्कर ने निकम्मा हमें बनाया...
जाकर ऑफ़िस में जब बैठे, लेखन का ही ध्यान रहा
बिजिनेस मीटिंग में भी ,कविता का ही भान रहा...
चाय के सब ऑडर हमने उलट-पलट कर डाले
मैनेजर,क्लर्क सभी को कविता पर भाषण दे डाले...
छोड़ काम-धाम सभी जब बैठे तुकबंदी करने
एक-एक कर लग गये सभी कविता लिखने...
कुछ ना पूछो भैया सबने कैसा हुड़दग मचाया
अच्छे खासे ऑफ़िस को कवि-बंदर-छाप बनाया...
दो हफ़्ते की इस दूरी ने कितना हमे रूलाया
भूले बिजिनेस हम ,जब ख्याल कविता का आया...
न जायेंगे अब छोड़ तुम्हे ए कविता,
कहते है गुड़ खाके...
रहे सलामत अपनी ब्लागिन
करें टिप्पणी बरसाके...
सुनीता(शानू)
मेरे सहन( आंगन) में उस तरफ़ से पत्थर आये,
जिधर मेरे दोस्तों की महफ़िल थी।
आदत हो गयी है अब तो इसकी। गाहे-बगाहे पत्थरबाजी होती रहती है। आज का पत्थर उड़नतश्तरी से था। मुस्कराते हुये उलकापिंड पर लिखा था-यह स्टाईल बेहतरीन है, जारी रखें. और भी अच्छा कर सकते हैं आप यदि बंदे की पोस्ट भी कवर करें. शुभकामनायें.
अब बंदे का टाइटिल कवर करें, उसकी पोस्ट कवर करें। कल को आप बोलोगे- बंदे को भी कवर करो, उसके घर वालों को भी कवर करो। किसको-किसको कवर करें भाई! ई हमसे न होगा समीर भाई! आप करके दिखाइये, हम फ़ालो करने का
असफ़ल प्रयास करेंगे। आपकी सुविधा के लिये टाइटिल चर्चा को सामूहिक जगह पर ले आये हैं। मुलाहिजा फ़रमाया जाये।
१.एडिसन, न्यू जर्सी 'इंडिया-डे परेड' में उर्मिला मातोंडकर: क्या कर रही हैं?
२.ये हैं हिन्दुस्तान के असली हीरो ! : इनको आदर देना शुरू करें क्या!
३.गायब गोल्डन चिड़िया : आलोक पुराणिक के यहां बरामद! श्रीश ने सुकून से मरने की पेशकश की।
४.चूसने चखने का चस्का :आम और खास सब इसके लपेट में।
५.आईफोन के ऐसे प्रयोग… : करने से बचें।
६.पत्रकारिता जनता से दूर होती जा रही है :दूरी बढ़ती जा रही है। जनता (पत्रकारिता के) विरह में करवटें बदल रही है।
७. इंटरनेट बना हर मर्ज की दवा: दर्द बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की।
८.सांसद को पकड़वाएं, ढाई हज़ार रुपये पाएं:इत्ते में कैसे होगा भाई, कुछ पैसे बढ़ायें।
९.स्टेटस सिम्बल पार्ट-३ : स्टेटस सिम्बल के टुकड़े-टुकड़े हो गये। ये तीसरा है। संभालो।
१०.इतवारी टाइटल चर्चा : छुट्टी में तो बख्सो यार। ठेलते रहते हो जबरिया, हर दिन हर वार!
११.अम्मा जी :भाग : वर्ना आपका सम्मान हो जायेगा।
१२.अमरीका में अखबार :बहुत स्वस्थ होते हैं। लगता है वे भी पिज्जा खाते हैं, ऐडियाते हैं।
१३. जंगल में लोकतंत्र:राजा की मति फिर गयी है।वह जोर-जोर से हंस रहा था।
१४. जीवन और कहानी: एक ही पैक में।
१५.राइनाइटिस ऍलर्जी का आयुर्वेदिक उपचार : तुरन्त शर्तिया फ़ायदा। फ़ायदा न होने पर टिप्पणी करें।
१६.ब्लू अम्ब्रेला : नीली छतरी वाले सिनेमा घर की सबसे अच्छी फ़िल्म है।
१७.राह देख देख कर कही ऐसा न हो.: कि बैठे बैठे आंख नम हो जायें, काली रात भी रंगीली लगे,हिन्दी से एक बार फिर प्यार हो जाये,जिन्दगी पीछे छूट जाये ..।
१८.एक अनकही बात :अभी तो मुझे चुराने हैं,कुछ रंग इन,रंगबिरंगी तितलियों से। वैधानिक चेतावनी:- चोरी संज्ञेय अपराध है।
१९. बारिष आयी: जो आया है सो जायेगा, राजा रंक फ़कीर।
२०.स्वार्थी पुत्र :अपनी मां को डांटता है। निस्वार्थी दूसरों की मां को ?
२१.किस-किस की नींद असहज हो रही है? : जहालत के अंधेरे से। जबकि अभी तक हमारी लज्जा कोरी है। पता नहीं वह काली है या गोरी है।
२२. 60 साल भारत: युवा पीढी को क्या मिला?:हाथों में लैपटॉप और हाथों मे सिगरेट। माडल और ब्रांड भी बताना मांगता क्या?
२३.हिंदी टूलबार के बारे में विस्तार से : अपने आइने में देखें। मुंह सामने की तरफ़ रखकर भाई!
२४.ये बुर्जुवा सरकार कब समझेगी ? : समझेगी भाई, समझ भी जायेगी। अभी तो आप खुद ही बता रहे हैं कि सरकार कपडे उतार कर नाच रही है ।
२५.सास-बहू का सीरियल और झगडा :सास-बहू में कोहराम मचा हुआ था। डर लग रहा था। इसीलिये ये कविता लिख डाली। बुरा मत माने प्लीज!
२६.आशंका है किसी दिन यूं ही मार डाली जाऊंगी : ऐसा नहीं है तस्लीमाजी, आपके लिये बेहतर इंतजाम करेंगे। इलाहाबाद में आपके वक्तव्य का प्रोग्राम कैंसल किया न!
२७.दिल्ली की लड़कियां संकोची नहीं थी।बात करते करते उनका हाथ दोस्तों के कंधे तक चला जाता। अरे सच भाई, रवीश ने खुद देखा है।
२८.हरेली : हमारे लिये बेकार है क्योंकि हरेली का अर्थ या हरेली क्या है यह वही जान समझ सकता है जिसने छत्तीसगढ़ में कुछ साल गुजारें हों और यहां के लोक-व्यवहार का अध्ययन किया हो। हम कभी रहे नहीं न वहां धान के कटोरे में।
२९.चक दे इंडिया - ‘भारत माता’ की जय : कहानी लड़कियों की, जय माताजी की। सब तरफ़ घपला है भाई!
३०.पुनर्जन्म हो यदि मेरा ! : तो ब्लाग यही मेरा मिल जाये।
३१.गंगा और रामचरितमानस से मुक्ति का क्रूर प्रसंग :बुढ़ापे में भी जवान लड़कियों का स्तन पकड़ लेने वाला राजेन्द्र यादव,चार्ल्स शोभराज द्वारा चंद्र शेखर आज़ाद को गाली। विषय प्रवर्तन -मसिजीवी।
३२.हँसना जरूरी है - आखिर क्यों ? :क्योंकि बीवी और टीवी में कोई अंतर नहीं है दोनों चार्ज होने पर चलती है।
३३.एक पत्रकार की दुखद मौत, हमारी श्रद्धांजलि : बहुत याद आओगी ठकुराइन...
टिप्पणी/प्रति टिप्पणी:
१.टिप्पणी:तकनीकी लोचे अपनी जगह हैं और ग्राहक की भाषा का 'चौड़ापन' अपनी जगह लेकिन उसके बाबजूद दुकानदार के चौड़ेपन पर भी विचार करें- पहले ही आप और जीतू की ऐंठ ने हिंदी अंतर्जाल से उसकी ऐ जीवंत चौपाल लगभग छीन ही ली है।ये आपकी ही पोस्ट का लिंक है केवल एक बार पढें और देखें कि कहीं आप अपने ही कहे का विरोध तो नहीं कर रहे हैं- सुनील नारद तक कंटेंट ला रहे हैं यानि ग्राहक हैं- बाकी आपकी दुकान है उसे उजाड़ने से हम आपको कैसे रोक सकते हैं- मसिजीवी।
प्रतिटिप्पणी
मसिजीवी
आपके बारे मे कुछ कहने को बचा ही नही, आपने आकर हिन्दी चिट्ठाजगत मे जो द्वेष/नफ़रत को फैलाया है वो सर्वविदित है, मै आपके तमाशे चुपचाप देख रहा हूँ, लेकिन शायद अब पानी सर से ऊपर हो रहा है। जीतेंन्द्र चौधरी।
दोनों यहां हैं।
मेरी पसंद
छः महिने की छुट्टी लेकर हम तो बहुत पछताये,
दो हफ़्ते में ही देखो लौट के बुध्दू घर को आये...
सिगरेट,कोकीन के जैसे ही ब्लागिन ने नशा चढा़या
इस ब्लागिन के चक्कर ने निकम्मा हमें बनाया...
जाकर ऑफ़िस में जब बैठे, लेखन का ही ध्यान रहा
बिजिनेस मीटिंग में भी ,कविता का ही भान रहा...
चाय के सब ऑडर हमने उलट-पलट कर डाले
मैनेजर,क्लर्क सभी को कविता पर भाषण दे डाले...
छोड़ काम-धाम सभी जब बैठे तुकबंदी करने
एक-एक कर लग गये सभी कविता लिखने...
कुछ ना पूछो भैया सबने कैसा हुड़दग मचाया
अच्छे खासे ऑफ़िस को कवि-बंदर-छाप बनाया...
दो हफ़्ते की इस दूरी ने कितना हमे रूलाया
भूले बिजिनेस हम ,जब ख्याल कविता का आया...
न जायेंगे अब छोड़ तुम्हे ए कविता,
कहते है गुड़ खाके...
रहे सलामत अपनी ब्लागिन
करें टिप्पणी बरसाके...
सुनीता(शानू)
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शनिवार, अगस्त 11, 2007
तो हो जाए एक चिट्ठा वर्कशाप?
चर्चाकारः
Sanjay Tiwari
ब्लागर मीट तो होती रहती है. क्यों न एक वर्कशाप की जाए? ऐसे नये चिट्ठाकारों को एक जगह ले आया जाए जहां पुराने चिट्ठाकार उनकी समस्याओं का समाधान करें. तकनीकि पहलुओं पर आ रही समस्याओं का निदान करें. एकाध प्रेजेन्टेशन हो जाए. एक दिन का वर्कशाप हो तो कैसा रहेगा?
केवल अच्छा विचार कहने से बात नहीं बनेगी. अपना सुझाव दीजिए और क्या सहयोग कर सकते हैं, यह भी बताईये.
केवल अच्छा विचार कहने से बात नहीं बनेगी. अपना सुझाव दीजिए और क्या सहयोग कर सकते हैं, यह भी बताईये.
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रविवार, अगस्त 05, 2007
रविवारी मूड और चर्चा
चर्चाकारः
note pad
रविवार छुट्टी का दिन है ,इसलिए सब मौज-मज़े के मूड में हों तो समझ आता है । पर चर्चा के लिए आज नारद देखा तो हैरानी हुई कि शनिवार को भी लोग संडे वाले मूड में थे [लिखने वाले नही,पढने वाले] लगभग 10-11 चिट्ठे शून्य हिट पर व इतने ही मात्र एक हिट पर थे । रोचक यह था कि ब्लॉगवाणी पर वे ही अनहिट चिट्ठे 14,21,25,31 बार पढे गये ।खैर ,यह क्रम किसी किसी चिट्ठे में उलट भी हो सकता है । स्वाभाविक है । कोई निष्कर्ष निकालना मकसद नही है । सिर्फ इतना भर कि पहले सोचा था कि शून्य और एक हिट वाले चिट्ठों की चरचा करने का विचार था , यह सोच कर कि चर्चा में ही उन्हे स्थान मिल जाए । पर् वे पढे गये हैं ,यह विश्वास होने के बाद पसन्द के चिट्ठे ही है ।
कल के सारे चिट्ठे यहाँ देख सकते हैं ।
भ्रूण हत्या पर एक सम्वेदनशील प्रस्तुति तस्वीर की आवाज़ में विपुल जैन द्वारा
।एक दिल दहलाने वाला चित्र ।
भारत में यौन शिक्षा पर एक स्वस्थ चर्चा ज़रूरी है । इस विषय पर विचार करते हुए शास्त्री जे सी फिलिप् निम्न निष्कर्ष पर पहुँचे हैं
आप विचार करते हुए संडे के खाली वक़्त को सार्थक कीजिए और चूरमा के स्वादिष्ट लड्डू भी खाइए ,बशर्ते कि आपको उन्हे बनाने से भी परहेज़ न हो
और हाँ आज मै चिट्ठाचर्चा क्योँ ? तो यह जुर्माना है नीलिमा जी और मसिजीवी के यहाँ सप्ताहांत मनाने के लिए आने का :)
कल के सारे चिट्ठे यहाँ देख सकते हैं ।
भ्रूण हत्या पर एक सम्वेदनशील प्रस्तुति तस्वीर की आवाज़ में विपुल जैन द्वारा
।एक दिल दहलाने वाला चित्र ।
भारत में यौन शिक्षा पर एक स्वस्थ चर्चा ज़रूरी है । इस विषय पर विचार करते हुए शास्त्री जे सी फिलिप् निम्न निष्कर्ष पर पहुँचे हैं
यौन-शिक्षा पूरी तरह से असफल एक पश्चिमी अवधारणा है जिसने पश्चिम को बर्बाद कर दिया है अत: इसकी जरूरत हिन्दुस्तान को नहीं है ।अंग्रेज़ी हिन्दी के बीच उत्पन्न वैमनस्य की दीवारें काल्पनिक है या वास्तविक यह सोव्हा जाए पर साथ ही ध्यान रखा जाए कि कमसे कम ब्लॉग जगत पर यह सह-अस्तित्व में दिखाई दें ।रचना जी की टिप्पणी-हिंदी को आगे लाए जाने के लिये इंग्लिश का बहिष्कार ना करके उसका उपयोग करें तो ज़्यादा बेहतर होगा-को उद्धृत करते हुए मसिजीवी विचार करते हैं-----
चिट्ठाकारी में इसकी शायद कोई जरूरत ही नहीं, क्योंकि यहॉं अंग्रेजी विरोधलेकिन शासक और शासित की भाषा वाला फंडा भी है जो कई मनों में पैठा है ।भाषा और सत्ता के गहरे सम्बन्धों को हम भाषा की संरचना में ही देख सकते हैं । हाँ एक बडा पहलू यह भी है।भाषा भाव से नही शक्ति से चलती है । अनामदास अंग्रेज़ी के कुचक्र में फँसी हिन्दी के विषय् पर सवाल उठा रहे है और जवाब भी तलब कर रहे हैं-
कोई स्वाभाविक बीमारी की तरह लोगों के मन में जमा नहीं बैठा है, कम से कम उस तरह
तो नहीं ही जैसा कि अंग्रेजी के चिट्ठाकारों में इस 'फिल्थी' हिंदी जमात के लिए
रहा है। *** दरअसल प्रिंट या विश्वविद्यालयी दुनिया में जो भी हो पर अंतर्जाल की
दुनिया में हिंदी के लोग अंग्रेजी भाषा के प्रति दुराग्रह से पीडि़त नहीं है या कम
पीडित हैं इसलिए आपकी नेकनीयती सरमाथे पर कुछ सलाहें अंग्रेजी वालों को भी
दें।
कुचक्र है कि क्रयशक्ति बिना अँगरेज़ी के सिर्फ़ गुंडागर्दी से आती है. यह कुचक्र
कब और कैसे टूट सकता है इसके बारे कुछ सोचिए, बोलिए और बताइए
आप विचार करते हुए संडे के खाली वक़्त को सार्थक कीजिए और चूरमा के स्वादिष्ट लड्डू भी खाइए ,बशर्ते कि आपको उन्हे बनाने से भी परहेज़ न हो
और हाँ आज मै चिट्ठाचर्चा क्योँ ? तो यह जुर्माना है नीलिमा जी और मसिजीवी के यहाँ सप्ताहांत मनाने के लिए आने का :)
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शनिवार, अगस्त 04, 2007
एवरी वन लव्स ए गुड चर्चा
चर्चाकारः
note pad
व्यंग्य की विधा बडी मनोरंजक और मारक होती है ।उसके पाठक हर तरह के होते हैं ।कमअक्ल पाठक मज़ाक समझ कर हँस लेते हैं और मज़ेदार सी टिप्पणी कर के खिसक लेते हैं ।समझदार पाठक उसमेँ निहित व्यंग्यार्थ तक पहुँच जाते हैं । बीच के पाठक संत की सी हँसी हँस कर-कि देखो दुनिया में त्राहि त्राहि हो रहे है और इन्हे बचकानी बातें सूझ रही हैं -- या मुँह बिचकाते हुए निकल जाएँंगे मानो सोच रहे हो-अरे यार क्या सोच कर आये थे क्या मिला ।
जो भी हो ;व्यंग्य अधिक लोकप्रिय विधा है ।हाशिया पर अरुन्धती राय का लम्बा सा आलेख पढने की बजाय लोग कहीं हास्य-पुराण पर टिपियाते नज़र आयेंगे ।
वैसे व्यंग्य के माध्यम से अपनी बात कहना भी सबके बस की बात नही ।कडी बात को चासनी में लपेटने के समान है ।यह ‘सूरी ऊपर नट विद्या’ के समान है ।
समीर जी इसके पक्के खिलाडी हैं ।उनकी उडंतश्तरी कल्पना की ऊँची उडान भरती है ।भारत यदि अमरीका बन जाए तो क्या-क्या होगा पर तीखी –मज़ेदार रचना ----
जो भी हो ;व्यंग्य अधिक लोकप्रिय विधा है ।हाशिया पर अरुन्धती राय का लम्बा सा आलेख पढने की बजाय लोग कहीं हास्य-पुराण पर टिपियाते नज़र आयेंगे ।
वैसे व्यंग्य के माध्यम से अपनी बात कहना भी सबके बस की बात नही ।कडी बात को चासनी में लपेटने के समान है ।यह ‘सूरी ऊपर नट विद्या’ के समान है ।
समीर जी इसके पक्के खिलाडी हैं ।उनकी उडंतश्तरी कल्पना की ऊँची उडान भरती है ।भारत यदि अमरीका बन जाए तो क्या-क्या होगा पर तीखी –मज़ेदार रचना ----
इसी कड़ी में एक और घटना होगी कि लादेन लाख कोशिश कर लें, उसके जवान बिना स्टाईल बदले शहीद नहीं हो पायेंगे. वो हवाई जहाज हाई जैक करके बिल्डींग में घूसने की तैयारी करेंगे तो अव्वल तो उतनी ऊँची बिल्डींग मिलेगी ही नहीं, जिसमें हवाई जहाज घूस जाये. और गर मिल भी जाये, तो सुबह सुबह ९-१० बजे दफ्तर में होगा कौन? गिरा लो बिल्डींग. कोई मरा ही नहीं. कई बार तो मुझे लगता है कि बिल्डींग में हवाई जहाज घुसे, उसके पहले ही हवाई जहाज की इत्ती तेज आवाज से ही बिल्डींग गिर जायेगी और हवाई जहाज उड़ते हुये दूसरी तरफ निकल जायेगा. लो फिर हवाई जहाज का भी कोई नहीं मरा.
आपदाओं में सुअवसर तलाशते नेताओं,ब्यूरोक्रैटस, पत्रकारों पर मसिजीवी ने व्यंग्य-बाण छोडा है ।अगला मैगस्ऐसे मिलेगा जिस किताब को उसका नाम होगा –एवरीवन लव्स ए गुड फ्लूद ....सारी....फ्लस....ओह..सॉरी फ्लड कीबोर्ड सही टाइप नही कर रहा –
वैसे बाढ़ सबके लिए आनंद लाती है- नेता, नौकरशाह पत्रकार तो चलो भौतिक कारणों से खुश होते हैं और बच्चे जो बच जाएं वो इस बात से खुश हो जाते हैं कि इस बहाने नौका विहार का आनंद मिलता है, स्कूल नाम की कोई चीज हो तो उससे छुट्टी मिलती है। बड़े
इसलिए खुश हैं कि गंगा/यमुना/ब्रह्मपुत्र मैया या जो भी मैया हो वह घर आकर दर्शन देती है। तो कुल मिलाकर ये कि बाढ़ मैया को हम कोई पसंद करता है- एवरीबॉडी लव्स ए गुड फ्लड।
अमिताभ बच्चन की खैर खबर ली है आलोक जी ने ---
मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती-यह गीत एक जमाने में किसान भाईयों के लिए गाया जाता था। पर बाद में इस गीत पर अमल किया प्रापर्टी डीलरों ने। हर जगह जमीन कब्जिया ली इस उम्मीद में कि थोड़े दिनों बाद सोना उगलेगी। सच भी है कि इस देश की धरती ने सोना उगला है, प्रापर्टी डीलरों के लिए, नेताओं के लिए।
अपनी चकल्लस में चक्रधर जी बचपन में पढी’भेडे और भेडिये ‘ वाली कहानी कहानी का व्यंग्य कविता मेँ उडेल लाए हैं ।
शिवकुमार मिश्र और ज्ञनदत्त जी ने “ अखिल भारतीय निंदक महासभा”का गठन किया है ।निन्दक और निन्दक नियर राखिये वाले लोग मेम्बर हो सकते हैं।
अब थोडा गैर रूमानी गैर व्यंग्य यानी विचारात्मक लेख ।
मोहल्ला पर कभी कभी कुछ सार्थक भी मिल जाता है ।दीपक मंडल क लेख अच्छा है ।हिन्दी-सेवा का दम्भ वाले ज़रूर पडें...सॉरी...पढें।
हिंदी में ज्ञान का क़ारोबार नहीं होगा, लेकिन उसी हिंदी में मनोरंजन बिकेगा। मनोरंजन चैनलों में भी मनोरंजन बिकेगा और न्यूज चैनलों में भी मनोरंजक ही बिकेगा। इस मायने में हिंदी अगर अंग्रेज़ी बनने की कोशिश करेगी तो नाक़ामयाब हो जाएगी।काशीविश्वविद्यालय पर बनारस के प्रसंग पढ सकते है वैयक्तिक विश्लेषणात्मक टिप्पणियों के साथ ।
गंगा में लम्बे समय तक डुबकी लगाने के आदि शम्भू को एक बार कुँए में डूबे व्यक्ति की लाश निकालने के लिए कुदाया गया और पत्थर से टकरा कर उनकी मौत हो गयी
और अंत में एग्रीगेटर्स के बारे में ।अब चड्डी पहन कर चार फूल खिल चुके हैं हिन्दी के बियाबाँ में तो ग्राफ ऊपर-नीचे भी होंगे ही ।नीलिमा जी के शोध के परिणामोँ पर ही एक चर्चा चल रही है टिप्पणियों में ।
देख लीजिए खुद ही ---
भाए विपुल और आलोक गीमेल...सॉरी जीमेल पर चैटिया काहे नही लेते :)
सिद्ध हुआ कि ब्लाग चर्चा का सार्थक मन्च है ।
आप भी जाकर अपना स्टैट काउन्टर देखो और टपिया कर यहां का स्टैट बढाओ जी !!
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शुक्रवार, अगस्त 03, 2007
एक हबड़-तबड़ चिटठाचर्चा
चर्चाकारः
अनूप शुक्ल
ज्ञानदत्त पाण्डेयजी ने दो दिन पहले हमारी एक पोस्ट पर टिपियाया-बढ़िया है यह अतीतकालीन चिठ्ठा चर्चा! वर्तमानकालीन चिठ्ठाचर्चा से सहस्त्रगुणा बेहतर! इस चपत से सर झनझना गया।
चिट्ठाचर्चा की पहली पोस्ट अगर देखें तो हमने लिखा था
तो कहां तो दुनिया भर के चिट्ठों की चर्चा का बीड़ा उठाया था। कहां हिदी के ही नहीं बैपर पा रहे हैं। बहरहाल प्रयास में क्या हर्ज!
आप देखिये ये आलोक पुराणिक और ज्ञानदत्त पाण्डेयजी का क्या गजब ब्लाग गठ्बंधन है। दोनो महापुरुष लगभग आगे पीछे अपना ब्लाग पोस्ट करते हैं। लगता है जैसे संजय दत्त को पूणे की यरवदा जेल की तरफ़ बढ़ती पुलिस वैन के पीछे उनकी मित्राणी मान्यता की कार लगी हो
यह गठबंधन वाली बात सिर्फ़ पोस्ट में ही नही टिप्पणी तक में जारी है। दोनों लगभग एक साथ अपनी टिपियाते हैं| आज की पाण्डेयजी की पोस्ट पर पहली टिप्पणी में आलोक पुराणिक कहते है
ज्ञानजी की हालिया पसंदीदा पोस्टें उनके ब्लाग के नीचे दिखती हैं। वहीं से हमने बोधिस्तव जी का टंच संस्मरण पढ़ा
आज जब सबेरे सात बजे हमने यह चर्चा शुरू की थी तो सोचा था कि काम भर के चिट्ठे-चर्चित कर देंगे। लेकिन दोस्तों को कुछ और ही मंजूर था। एक तरफ़ रामचंद्र मिश्र इटली से इलाहाबाद आकर नमस्ते कर रहे थे दूसरी तरफ़ देबाशीष एक मेल में कह रहे थे अनूप आप भी कमाल कर देते हैं :) वाटर वाटर कर दिया मुझे...
एक तरफ़ राजीव टंडन बगल के मोहल्ले में सोने जाने से पहले ब्लाग सेटिंग की आनलाइन कोचिंग दे रहे थे। दूसरी तरफ़ कनाडा से समीरलाल माननी च उलाहिना नायिका की रूठे-रूठे से पूछे रहे थे-काहे नहीं पढ़ रहे हमें नाराज हो क्या? वे साथ में हमें वे बताते जा रहे थे पिता जी आपको डूब कर पढ़ रहे है आजकल पुराने पुराने लेख पढ़ कर हमसे ही पूछते है कि यह पढ़ा पीला बसंतिया चांद।
इधर से पत्नीजी कह रही हैं आज फिर हड़बड़ाते हुये आफिस जाने का मन है क्या। चाय ठंडी कर दी फिर बोलोगे कि चाय में मजा नहीं आया। उधर बगल के कमरे से टेलीविजन पर संजय पुराण चल रहा है- संजय दत्त को एक दिन में मजदूरी मिली बारह रुपये पचहत्तर पैसे। चर्चा में मशगूल हम निर्मोही न वाऊ कह पाये न हाऊ सैड। अभी तक मन कचोट रहा है।
अब बताइये ऐसे में क्या चर्चा होगी। जो होगी वो इसी तरह होगी।
लेकिन आप देखिये कि हम प्रयास तो कर रहे हैं और यह भी बता रहे हैं कि नये लोग जुड़ रहे हैं उनमें से एक हैं डॉ. कविता वाचक्नवी|
आप इनको और दूसरे लोगो को पढिये हम फ़िर आयेंगे आपके पास। इतने पास की आपको अपनेपन का होगा झमाझम अहसास । फिलहाल तो हम लेते हैं आपसे एक अल्पावकाश। बताइये कैसा है हमारा यह प्रयास! :)
चिट्ठाचर्चा की पहली पोस्ट अगर देखें तो हमने लिखा था
यह भी सोचा गया कि हम सभी भारतीय भाषाओं से जुड़ने का प्रयास करें.
इसी परिप्रेक्ष्य में शुरु किया जा रहा है यह चिट्ठा.दुनिया की हर भाषा के किसी भी चिट्ठाकार के लिये इस चिट्ठे के दरवाजे खुले हैं.यहां चिट्ठों की चर्चा हिंदी में देवनागरी लिपि में होगी. भारत की हर भाषा के उल्लेखनीय चिट्ठे की चर्चा का प्रयास किया जायेगा.अगर आप अपने चिट्ठे की चर्चा करवाना चाहते हैं तो कृपया टिप्पणी में अपनी उस पोस्ट का उल्लेख करें.यहां हर उस पोस्ट का जिक्र किया जा सकता है जिसकी पहले कभी चर्चा यहां नहीं हुयी है.चाहे आपने उसे आज लिखा हो या साल भर पहले हम उपयुक्त होने पर उसकी चर्चा अवश्य करेंगे.
तो कहां तो दुनिया भर के चिट्ठों की चर्चा का बीड़ा उठाया था। कहां हिदी के ही नहीं बैपर पा रहे हैं। बहरहाल प्रयास में क्या हर्ज!
आप देखिये ये आलोक पुराणिक और ज्ञानदत्त पाण्डेयजी का क्या गजब ब्लाग गठ्बंधन है। दोनो महापुरुष लगभग आगे पीछे अपना ब्लाग पोस्ट करते हैं। लगता है जैसे संजय दत्त को पूणे की यरवदा जेल की तरफ़ बढ़ती पुलिस वैन के पीछे उनकी मित्राणी मान्यता की कार लगी हो
यह गठबंधन वाली बात सिर्फ़ पोस्ट में ही नही टिप्पणी तक में जारी है। दोनों लगभग एक साथ अपनी टिपियाते हैं| आज की पाण्डेयजी की पोस्ट पर पहली टिप्पणी में आलोक पुराणिक कहते है
-मार्मिक कहानी है।आलोक पुराणिक के धांसू च फ़ांसू अंदाज में ही ज्ञानजी भी हैरान परेशानश्च होना पसंद करते हैं-
पानी के जरिये लूट मचाने को बिसलेरी टाइप कंपनियां ही काफी हैं, छोटे लुटेरे भी पानी के जरिये लूट मचायेंगे, तो फिर तो आम आदमी के लिए आफत है.
और आज के विचार तो वाह ही वाह हैं। धांसू च फांसू तो हैं ही, कुछ नया करने के लिए ठेलक और प्रेरक भी हैं।
पुराने जमाने में खेती के यंत्र हल/बैल/ट्रेक्टर हुआ करते थे. अब मंत्री और संत्री की जंत्री से खेती होती है. जिसे यह बोध नहीं है वह हैरान परेशानश्च होगा ही!
ज्ञानजी की हालिया पसंदीदा पोस्टें उनके ब्लाग के नीचे दिखती हैं। वहीं से हमने बोधिस्तव जी का टंच संस्मरण पढ़ा
-
टंच जी की सुर सिद्धि गजब की थी और वे खुद को तुकाचार्य भी कहते थे। पानी भी मांगते तो तुकों में। बात करते तो लगता कि गा रहे हैं। किसी किशोरी से प्रणयावेदन करते तो वह कविता समझ कर खिल पड़ती। कभी टंच जी को कविता के लिए कंटेंट का टोटा नहीं पड़ा। कभी उनको काव्य वस्तु खोजते नहीं पाया। वे पहले तुक बैठाते फिर लिखते। लिखते क्या वे गा-गा कर अपनी कविता पूरी कर लेते थे। उनकी एक कविता जो आज भी मुझे याद है, वह कुछ यूँ थी-
मैं हूँ सुंदर तुम हो सुंदरि,
तुम हो सुंदर जग से सुंदरि
हम दोनों हैं सुंदर सुंदरि
आओ प्यार करें
नैना चार करें।
आज जब सबेरे सात बजे हमने यह चर्चा शुरू की थी तो सोचा था कि काम भर के चिट्ठे-चर्चित कर देंगे। लेकिन दोस्तों को कुछ और ही मंजूर था। एक तरफ़ रामचंद्र मिश्र इटली से इलाहाबाद आकर नमस्ते कर रहे थे दूसरी तरफ़ देबाशीष एक मेल में कह रहे थे अनूप आप भी कमाल कर देते हैं :) वाटर वाटर कर दिया मुझे...
एक तरफ़ राजीव टंडन बगल के मोहल्ले में सोने जाने से पहले ब्लाग सेटिंग की आनलाइन कोचिंग दे रहे थे। दूसरी तरफ़ कनाडा से समीरलाल माननी च उलाहिना नायिका की रूठे-रूठे से पूछे रहे थे-काहे नहीं पढ़ रहे हमें नाराज हो क्या? वे साथ में हमें वे बताते जा रहे थे पिता जी आपको डूब कर पढ़ रहे है आजकल पुराने पुराने लेख पढ़ कर हमसे ही पूछते है कि यह पढ़ा पीला बसंतिया चांद।
इधर से पत्नीजी कह रही हैं आज फिर हड़बड़ाते हुये आफिस जाने का मन है क्या। चाय ठंडी कर दी फिर बोलोगे कि चाय में मजा नहीं आया। उधर बगल के कमरे से टेलीविजन पर संजय पुराण चल रहा है- संजय दत्त को एक दिन में मजदूरी मिली बारह रुपये पचहत्तर पैसे। चर्चा में मशगूल हम निर्मोही न वाऊ कह पाये न हाऊ सैड। अभी तक मन कचोट रहा है।
अब बताइये ऐसे में क्या चर्चा होगी। जो होगी वो इसी तरह होगी।
लेकिन आप देखिये कि हम प्रयास तो कर रहे हैं और यह भी बता रहे हैं कि नये लोग जुड़ रहे हैं उनमें से एक हैं डॉ. कविता वाचक्नवी|
आप इनको और दूसरे लोगो को पढिये हम फ़िर आयेंगे आपके पास। इतने पास की आपको अपनेपन का होगा झमाझम अहसास । फिलहाल तो हम लेते हैं आपसे एक अल्पावकाश। बताइये कैसा है हमारा यह प्रयास! :)
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बुधवार, अगस्त 01, 2007
नये फुरसतिया का जन्म
चर्चाकारः
Sanjay Tiwari
आज अक्षरग्राम में आलोक ने गणितीय गणना कर बताया है कि किस तरह हिन्दी चिट्ठे लगातार बढ़ रहे हैं. सक्रिय चिट्ठाकारों की संख्या में भी अच्छी खासी बढ़ोत्तरी हुई है. अभी तक न पढ़ा हो तो यहां से वहां तक का सफर हो सकता है. पाठकों की आवाजाही के बारे में जानना हो तो विपुल बता रहे हैं कि चिट्ठाजगत पर आवाजाही कैसे बढ़ी है.
दोनों ओर से अच्छे संकेत मिल रहे हैं. लेकिन यह खबर तो आप पढ़िये ही. मैं चर्चा किसी और कारण से कर रहा हूं. एक नये फुरसतिया का जन्म हुआ है. नहीं समझे? भइया/बहिनों वर्डप्रेस पर एक नया ब्लाग दिख रहा है. नाम है फुरसतिया. प्रथम दृष्टया ये कानपुरी फुरसतिया तो लगते नहीं. लेकिन हैं कौन अपनी पहचान भी नहीं छोड़ गये हैं. नये चिट्ठाकार हैं. इसलिए इस चर्चा में शामिल हो गये हैं. कुछ और नये चिट्ठाकार जो इस महीने में सक्रिय दिखें वे इस तरह हैं-
1. किश्तों की जिन्दगी
2. विनीत उत्पल
3. हिन्दी टीवी मीडिया
4. निस्मार्ग
5. सूर्य आत्मा
6. उम्दा सोच
7. आयुर्वेद
8. बेस्ट आफ हिन्दी
इसके अलावा भी बहुत से नये चिट्ठे बने हैं जैसा कि आलोक जी अपने विश्लेषण में बता रहे हैं. मैं तो मुश्किल से आठ-नौ ही खोज पाया. आपकी नजर में कोई आया हो तो अपनी टिप्पणी के साथ उसका नाम जोड़ सकते हैं.
दोनों ओर से अच्छे संकेत मिल रहे हैं. लेकिन यह खबर तो आप पढ़िये ही. मैं चर्चा किसी और कारण से कर रहा हूं. एक नये फुरसतिया का जन्म हुआ है. नहीं समझे? भइया/बहिनों वर्डप्रेस पर एक नया ब्लाग दिख रहा है. नाम है फुरसतिया. प्रथम दृष्टया ये कानपुरी फुरसतिया तो लगते नहीं. लेकिन हैं कौन अपनी पहचान भी नहीं छोड़ गये हैं. नये चिट्ठाकार हैं. इसलिए इस चर्चा में शामिल हो गये हैं. कुछ और नये चिट्ठाकार जो इस महीने में सक्रिय दिखें वे इस तरह हैं-
1. किश्तों की जिन्दगी
2. विनीत उत्पल
3. हिन्दी टीवी मीडिया
4. निस्मार्ग
5. सूर्य आत्मा
6. उम्दा सोच
7. आयुर्वेद
8. बेस्ट आफ हिन्दी
इसके अलावा भी बहुत से नये चिट्ठे बने हैं जैसा कि आलोक जी अपने विश्लेषण में बता रहे हैं. मैं तो मुश्किल से आठ-नौ ही खोज पाया. आपकी नजर में कोई आया हो तो अपनी टिप्पणी के साथ उसका नाम जोड़ सकते हैं.
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