अमेरिका
आजकल कश्मीर में बड़ा बबाल मचा है। लेकिन वहीं कुछ खुशनुमा दृश्य भी दिखते हैं। अफ़लातूनजी पीटीआई की खबर का हिंदी अनुवाद पेश करते हैं:
गत दस दिनों से कश्मीर घाटी से गुजरने वाले अमरनाथ यात्री ‘जमीन स्थानान्तरण विवाद’ के हिन्सक प्रतिरोध को शायद याद नहीं रखें , याद रखेंगे घाटी के मुसलमानों की गर्मजोशी भरी मेज़बानी को ।
हिंसा के कारण होटल और भोजनालय बन्द हैं फिर भी उन्हें भोजन और आसरे की तलाश में भटकना नहीं पड़ रहा । मुसलमानों ने उनके लिए सामूहिक रसोई और रात्रि विश्राम का प्रबन्ध कर रखा है ।
पवित्र गुफ़ा से लौट रहे जिन यात्रियों को पुलिस ने नुनवान और बालताल में रोका था उन्हें भी डलगेट और बूलेवार्ड के ‘लंगर’ देखने के बाद जाने दिया गया है ।
इस पठनीय,फ़ार्वडनीय पोस्ट पर नीरज दीवान ने अपना मौन तोड़ा और टिपियाया ।
नितिन बागला का कहना है:
मुझे लगता है कि हिन्दी चिट्ठाकारों से में कई लोगों में इस तरह का लिख पाने की संभवनाएं हैं। जिनकी भाषा और मुद्दे बहुत भारी नही होते, पढने-समझने में आसान होते हैं , आसपास की ज़िन्दगी से जुडे होते हैं। कई चिट्ठाकारों की कई पोस्ट्स इतनी बेहतरीन हैं कि उन्ही का संकलन कर के एक किताब छपवाई जा सकती है। तो बताइये, कैसा आइडिया है, और आप कब किताब लिखना शुरू कर रहे हैं।
महिलाओं से कुछ सवाल पूछे गये थे। सुजाता का जबाब महिलाओं के जबाब का प्रतिनिधित्व कर रहा है। सुजाता अपनी टिप्पणी में कहती हैं-
मेरी ओर से इतना कहना चाहूंगी कि आपकी पहली दो बातें अब तक की सारी जेंडर ट्रेनिंग का नतीजा है ।लड़के और लड़की को जैसे बड़ा किया जाता रहा है यह उसका आत्मसातीकरण है ।
इसके बाद सवाल पूछने वाले की प्रतिक्रिया बांचना भी जरूरी है:
और अगर लोगों को कुछ सवाल असुविधाजनक लग रहे हैं, तो यह कोई कारण नही हुआ की ये पूछे ही न जायें. कोई मजबूर थोड़े ही कर रहा है की बायोलोजी को ही अन्तिम सत्य मानो, नहीं मानना तो कोई मजबूर नहीं करेगा. गुनिया, झाड़-फूंक ,तावीज़ पर भरोसा रखने वाले अगर कहें की उन्हें मेडिकल साइंस पर विश्वास नहीं है, तो वो उसकी मर्ज़ी. कम से कम मैं रिवोल्वर की नोक पर किसी को आधुनिक शोधों को सच मनवाने पर भरोसा नहीं रखता. निश्चिंत रहिये.
समीरलालजी ने ऊड़नतश्तरी स्टाईल में आमलेट बनाया तो डा.अमर कुमार ने अपनी स्टाईल में कुछ मासूम सवाल पूंछे-
जान की अमान पाऊँ, तो मैं मूढ़मति भी कुछ पूछ लूँ ? कुछ बुनियादी सवाल है, मुर्ग़ी, बत्तख या शुतुरमुर्ग़ के अंडे से मेरा कोई बहस नहीं । अंडा तो अंडा, क्या हिंदू ..क्या मुसलमान ?
बस एक लघु सी शंका है, पहले वह निवृत करें !
यह तो बताया नहीं कि अंडे कच्चे रहेंगे या उबाल कर लिये जायें ।यदि उबाल कर प्रयुक्त करें, तो पहले उबाल कर छीलें या छील कर उबालें ?
मैंने पैन वगैरह तैयार कर रखा है,बस आपकी प्रतीक्षा है । क्या करें, बेसिक से शुरु करने की ट्रेनिंग मिली हुई है, सो पूछने का साहस कर रहा हूँ !
प्रमोदजी कल टोकियो जाते-जाते तो रुक गये लेकिन विरहाकुल हैं। उनका विरहाकास्ट सुनियेगा तो आप भी मनोरमे-मनोरमे पुकारने लगियेगा।
ज्ञानजी ने आज लिंक कथा कही। अगर देखा जाये तो चिट्ठाचर्चा करने के चलते सबसे बड़े लिंकर तो हम हैं। लेकिन ज्ञानजी को ऊ सब नहीं दिखता। काहे से कि ..... अब छोड़िये क्या कहें? लेकिन ईस्वामी की टिप्पणी जरूर देखिये। वे कहते हैं:-
हमारे ज्यादातर हिंदी वाले सामूहिक ब्लाग इस मामले में पिछडे हुए हैं और कई बार आपस में लड पडते हैं फ़िर सब की हिट काऊंट प्रभावित होती है।
अगर कोई रोज़ लिखे और बेकार लिखे तो किस काम का? ठीक वैसे ही कोई थोक के भाव टिप्पणियां बांटता हो तो वो टिप्पणी कम नेटवर्किंग कर्म अधिक लगता है।
भला हो अभय का उनकी टिप्पणी ने स्वामीजी को फ़िर से लिखने के लिये उकसाया। वे कहते हैं:-
चिरकुटाई और टाईम-पास का बोल बाला है. स्थितियों पर नियंत्रण का अभाव और दिशाहीनता का भाव ही उसकी मूल वजह है. इस तरह के लेख पेरेलल सिनेमा की तरह होते हैं! फ़िर खयाल आता है की इस पलायनवाद को छोडे बिना गंभीर विमर्श संभव नहीं है.
अमेरिका में जो लावण्याजी ने देखा वो आपको भी दिखा रही हैं। देखिये दिलकश नजारे।
गौरव सोलंकी की कहानी सुनिये जिसके बारे में प्रत्यक्षाजी का कहना है-सबसे अच्छी कहानी ..बताना मत ..लिखते रहना
अगर न पढ़ें तो इसको जरूर पढिये:
ठोंकि लऽ कपार ए बाबू, बीबी हो गैलि बेकाबू।
मेहरी हो गैलि बेकाबू, ठोंकि लऽ कपार ए बाबू॥
चाहे लऽ घर के ई लछिमी हऽ जइसे
घर के भी मन्दिर बना देई वइसे
सांझो सबेरे के दीया आ बाती
संस्कार सुन्दर बढ़ाई दिन राती
बाकिर ई बोलेले- बाय - बाय डार्लिंग…
“दीज़ सिली कस्टम्स आइ कान्ट डू”
(These silly customs I can’t do)
ठोंकि लऽ कपार…
नये ब्लागर साथी:
कल कुल आठ नये लोगों के चिट्ठे जुड़े। अम्बाला के डा.नफ़स कहते हैं:
सारा आलम बुझा सा लगता है,
वक़्त कितना थका सा लगता है।
हो गया जब से वो जुदा मुझसे,
हर कोई बेवफा सा लगता है।
उन्नीस साल के दीपक पुर्बिया अपनी उमर के सालों से केवल चौदह कम बोले तो पांच ब्लाग के स्वामी हैं। वे अपने उत्साह बढ़ाने वाले ब्लाग में सूक्तियां लिखते हैं। हमारे काम की है:
यदि आप आलसी हो , तो अकेले मत रहो ,
यदि आप अकेले हो , तो आलसी मत रहो
समीत झा अफ़ीम और अफ़गानिस्तान के चक्कर में पड़ गये तो राजेश भैंस कथा सुनाने लगे। बलविन्दर ने जब बताया कि पेट्रोल के अमेरिका में क्या हुआ तो प्रजापति जी गुलाबी हो गये। :)
अब चंद एक लाइना
:1.लड़कियाँ सिर्फ़ सामान हैं तुम्हारा :उनके लिये प्रेम और काम अकरणीय हैं।
2.अपने हिस्से की छोटी सी खुशी.... :पल में गुस्सा पल में हँसी!
3. कम्प्यूटर कविता लिखेंगेलैपटाप तालियां बजायेंगे।
4. कृष्ण चन्दर, अमृता प्रीतम, आलू और प्याज: सबको एक तराजू में तौलवा के निकल लिये प्रेत विनाशक महाराज!
5.कौन से अनुबंध कंट्रेक्ट हैं? :आपै बताओ महाराज!
6.अरे, मुझे तो लगा था की लौ नहीं है यहां! : लेकिन यहां तो चार ठो मोमबत्ती जल रही हैं।
7.पोरस का राजोचित आत्मविश्वास : ई-स्वामी की टिप्पणी में तो जान है खास!
8. प्रीपेड श्रद्धांजलि …:रिचार्ज कूपन यहां मिलते हैं।
9.शहंशाह से बब्बन, अब अय्यार : क्या के रे हो यार!
10.कै घर , कै परदेस ! : जै घर तै परदेश।
11.आखिर कब तक होती रहेगी भारतीय सम्पदा की चोरी इस तरह? : जब तक भारतीय सम्पदा रहेगी।
12.भारत में हलचल, अमेरिका में डूब रही नाव : नदी बड़ी गहरी है।
13.होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा :या फ़िर सारा टाइम ब्लागिंग में गंवाया होगा।
14. एक गधे की दुःख भरी दास्ताँ:सुनिये रामपुरिया ताऊ से।
15.इमरान खान से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत :रियलिस्टिक और नैचुरल है जाने तू ..
मेरी पसन्द
रस्सी पर लटके कपड़ों को सुखा रही थी धूप.
चाची पिछले आँगन में जा फटक रही थी सूप।
गइया पीपल की छैयाँ में चबा रही थी घास,
झबरू कुत्ता मूँदे आँखें लेटा उसके पास.
राज मिस्त्री जी हौदी पर पोत रहे थे गारा,
उसके बाद उन्हें करना था छज्जा ठीक हमारा.
अम्मा दीदी को संग लेकर गईं थीं राशन लेने,
आते में खुतरू मोची से जूते भी थे लेने।
तभी अचानक आसमान पर काले बादल आए,
भीगी हवा के झोंके अपने पीछे-पीछे लाए.
सब से पहले शुरू हुई कुछ टिप-टिप बूँदा-बाँदी,
फिर आई घनघोर गरजती बारिश के संग आँधी.
मंगलू धोबी बाहर लपका चाची भागी अंदर,
गाय उठकर खड़ी हो गई झबरू दौड़ा भीतर.
राज मिस्त्री ने गारे पर ढँक दी फ़ौरन टाट.
और हौदी पर औंधी कर दी टूटी फूटी खाट.
हो गए चौड़म चौड़ा सारे धूप में सूखे कपड़े,
इधर उधर उड़ते फिरते थे मंगलू कैसे पकड़े.
चाची ने खिड़की दरवाज़े बंद कर दिए सारे,
पलंग के नीचे जा लेटीं बिजली के डर के मारे.
झबरू ऊँचे सुर में भौंका गाय लगी रंभाने,
हौदी बेचारी कीचड़ में हो गई दाने-दाने.
अम्मा दीदी आईं दौड़ती सर पर रखे झोले,
जल्दी-जल्दी राशन के फिर सभी लिफ़ाफ़े खोले.
सबने बारिश को कोसा आँखें भी खूब दिखाईं,
पर हम नाचे बारिश में और मौजें ढेर मनाईं.
मैदानों में भागे दौड़े मारी बहुत छलांगें,
तब ही वापस घर आए जब थक गईं दोनों टाँगें।
सफ़दर हाशमी की कविता कर्मनाशा ब्लाग से साभार
हर बड़ी मंदी में खुद से कुछ कम बड़ी मछलियों को उन से बडी़ मछलियां खा जाती है और उन के आहार क्षेत्र पर कब्जा कर लेती हैं। सब से छोटी मछलियों को तो आहार ही बनना है। खाने वाली मछली सबसे बड़ी हो या उस से छोटी। खाए जाने के बाद तो वह कहने आने से रही कि देखो मुझे सब से बड़ी मछली ने खाया।
जवाब देंहटाएंचिट्ठा चर्चा naa keh kar chittahkar charcha kahey to badia hogaa
जवाब देंहटाएंवाह जी सर जी एक साथ ढेर सारा मटेरिअल दे दिया आपने...कुछ पर नजर डाली थी कुछ पर नही.......आपका शुक्रिया.....ओर अंदाजे बयाँ खूब है.
जवाब देंहटाएंजमाये रहियेजी
जवाब देंहटाएंनिसंदेह अफलातुनजी वाला लेख का जिक्र अनिवार्य था. यहाँ लिंक देने के लिए साधूवाद.
जवाब देंहटाएंकश्मीर पर लिखे गए दुसरे पहलू के लेखो को गोल कर जाने का मतलब?
यह आरोप नहीं पीड़ा है, भारतीय मानसिकता पर.
आज चिठ्ठाचर्चा में तो आपने बहुत मेहनत की। इतना समेटना तो बड़ा विलक्षण काम है।
जवाब देंहटाएंकहां से लाते हैं इतनी ऊर्जा!
बहुत दमदार है यह चर्चा।
ठोंकि लऽ कपार ए बाबू, बीबी हो गैलि बेकाबू।
जवाब देंहटाएंये गाना कहीं से सुना जा सकता है? कोई लिंक विंक दें तो मजा आए...
इस चर्चा से मुझे क्या लाभ ?
जवाब देंहटाएंकोई माकूल ज़वाब तो मिला नहीं,
कम से कम, मैं अंडा रूपी ताकत के पिटारे का बना आमलेट तो चख ही लेता ।
या समीर भाई यही गा देते कि
तेरे मासूम सवालों से परेशाँ हूँ, मैं...
लेकिन नहीं ? राजनीति खेल गये...गोलमगोल ज़वाब ठेल दिया !
जब मुझे भूख लगेगी तो कनाडा से फ़्लाईट पकड़ेंगे, भई वाह !
अरे वाह ...मेरे लिये चित्र को आज चिठ्ठा चर्चा पे देख कर खुशी हुई ! :)आप टीप्पणी ना करते होँ पर देख लिया और यहाँ भी दे दिया
जवाब देंहटाएंलिन्क, वही बहुत बडी बात हो गई जिसके लिये आपका बहुत बहुत आभार !
-लावण्या
बहुत बढ़िया रही चिट्ठाचर्चा...अफलातून जी बढ़िया अनुवाद करते हैं.
जवाब देंहटाएंachchi chittha charcha...bahut si achchi post padhne ko mili.
जवाब देंहटाएंमजेदार कविता…:) डा अमर के प्रश्न भी बड़िया हैं आगे से पाक विधि बताने वाले बेसिक से शुरु करेगें , फ़िर बनेगा साग या होगी चिकन की चीर फ़ाड़ ये तो राम जाने लेकिन हमें डा अमर की बेसिक ट्रेनिंग वाली पाक विधि का इंतजार है , जान की अमान पाये हों तो …:)
जवाब देंहटाएंइसे चटखारा लेना कहूँ या आप का हुनर मानकर आपकी तारीफ़ में एक कविता लिख डालूँ! बताइए ना, अब बता भी दीजिए, शरमाइए मत!
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