डील
कल चिट्ठाजगत ने अपने इनाम घोषित किये। एक जनवरी से २६ जनवरी तक के लेखों में निम्न लेखों को पुरस्कार के लिये चुना गया। इनाम और उनके विवरण यहां पर हैं। सभी को बधाईयां।
प्रथम पुरस्कार:
दम बनी रहे , घर चूता है तो चूने दो
द्वितीय पुरस्कार - २
देशभक्तिके लिये मदरसों को कांग्रेस की रिश्वत
ज्ञानजी! दिमाग में भी एक जठराग्नि होती है
तृतीय पुरस्कार - ३
खुदमोलखरीदा जाने वाला एक शैतान ...
दानवीर कर्ण अफ्रीकामें जन्मे थे!
डर पर हावीलालच
पंचों द्वारा इन पाँच लेखों का विशेष उल्लेख भी किया गया है-
वो काले छः दिन
और वो डरी सहमी सी चुपचाप बैठी थी
टाटा की कार औरमेरे कार-टून
पुरस्कार, विवाद और राखी सावंत
यौन शिक्षा और भारत का भविष्य
ज्ञानजी ब्लागमय हो गये हैं। हर चीज को ब्लागिंग के तराजू से तौल के वजन निकालते हैं। कल संसद में सरकारकी जीत पिरिक जीत हुयी तो अपनी ब्लागिंग को भी पिरिक सफ़लता बताया। यह जांच का विषय है कि ब्लागिंग को कभी वे अपना पर्सोना बदलने वाला माध्यम बताते हैं और कभी आत्म रूपान्तरण का औजार और आज वो बेचारा पिरिक हो गया। कोई स्थायित्व नहीं है जी कहीं भी।
विजय शंकर चतुर्वेदी साफ़ दिल वाले हैं। जो हुआ उनके साथ वो ठ्सक के कहते हैं:-
काम ख़ुद उन बुरा किए साले
नाम मेरा बता दिए साले
धुन में रम्मी की बीडियाँ पी के
मेरा बिस्तर जला दिए साले
खेत की देखभाल तो छोडो
बाड़ रहे सो जला दिए साले
शकुन्तलायें आजकल अगूंठियां नहीं मोबाइल धारण करती हैं और वही खोता है। आलोक पुराणिक आज शकुन्तला कथा सुना रहे हैं।
सोमनाथजी को उनकी पाल्टी ने निकाल दिया। अनिल रघुराज ने इस पर संक्षिप्त चिंतन किया-अक्ल मगर लेफ्ट को नहीं आती |
कल पंगेबाज ने एक डाक्टर का प्रेम पत्र लिखा और उसका अनुवाद पेश किया शिवकुमार मिश्र ने। देखिये और मिलाइये कहीं आपकी बातें तो नहीं खोल दीं।
अरुन्धती राय का एक इंटरव्यू जो कि हंस के अप्रैल २००८ के अंक में छपा है पेश कर रहे हैं रियाजुलहक़।
एक सवाल कि आजका साहित्य सामाजिक सरोकार से कटता जा रहा के जबाब में वे कहती हैं:-
...अब स्थितियां बहुत ही जटिल हैं...अभी तक लेखकों और कलाकारों का काम था स्थितियों को सामने लाने का...अब चीजें साफ हो गयी हैं...जिसको जानना था उसने जान लिया है और अपना पक्ष भी चुन लिया है...अब मुझे यह नहीं लगता कि मैं लोगों से यह कह सकती हूं कि वे कैसे लडें...मैं छत्तीसगढ के आदिवासियों को नहीं बोल सकती कि आप उपवास पर बैठो...गांधीवादी बनो या माओवादी...यह निर्णय वे खुद लेंगे...मैं नहीं कह सकती...मैं नहीं बता सकती...यह मेरा काम नहीं है...मैं सिर्फ लिख सकती हूं....कोई सुने या न सुने...मैं वही कर सकती हूं...वही करूंगी....क्योंकि मैं कुछ और नहीं कर सकती.
डा.अमर कुमार दुखी हैं न जाने क्यों। वे कहते हैं:
तीन राजनयिकों की व्यक्तिगत महात्वाकांक्षा, उनकी नाक की लड़ाई ने, कुछ दिनों के लिये पूरे देश को कई घड़ों में बाँट दिया था ।
विजेताओं को बधाई
जवाब देंहटाएंसजीव सारथी
www.podcast.hindyugm.com
जमाए रहिए
जवाब देंहटाएंसमस्त विजेताओं को बधाई और अनेकों शुभकामनाऐं. चर्चा बढ़िया रही, यह क्रम बना रहे..भले ही घर चूता है तो चूने दो. :)
जवाब देंहटाएंअनूप भाई,
जवाब देंहटाएंअरे, थोड़ा दुःखियै तो हैं , और कुछ तो नहीं हैं।
ई तो असहायता का दुःख है, चलो आपने बाँट लिया ।
पर है तो बरकरार , बाकायदा अपनी जगह पर !
' घर चूता है तो चूने दो ' के जनक के अवसान पर दुःख हुआ, का कर लिया किसी ने ?
अब ई सब छोड़िये, स्व. अशोक जी के चश्में से वर्तमान परिदृश्य पर एक आलेख दीजिये,
तो मेरा दुःख कुछ हल्का हो जाय । वह इसे कैसे लेते ?
यह आग्रह है, आदेश नहीं । फ़ुरसत मिलने पर ध्यान रखें, बस इतना ही तो..
बहुत बढ़िया। विजेताओं को बधाई।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
विजेताओं को बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाईयाँ इन्हें साथ ही ठूस ठूस खाएँ मिठाईयाँ मेरी ओर से.....
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई जी, आपको और अन्य विजेताओं को।
जवाब देंहटाएंविजेताओं को बधाई।
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