मुद्दतों पहले माधुरी ने किया था लेकिन वक्त बदला और अब हिन्दुस्तानी भी करने और कहने लगे १-२-३, अरे रे रे इससे पहले की आप पंगेबाज की तरह इधर उधर की कशमकश में फंस जायें, हम ये क्लियर कर ही देते हैं कि बात की जा रही है परमाणु करार की, थाली के बैंगनों ने यहाँ वहाँ उलट उलट के देश कहो या थाली का संतुल ही बिगाड़ के रखा है -
काश, हमारे नेताओं का सरोकार वाकई भारत के भविष्य से होता तो कोई समस्या ही नहीं होती।
मेला तो मेला ही है अब चाहे आने वाले दिनों में संसद में लगे या किसी चाय की दुकान पर, अंदर की सोच और दुख वही है -
खूब चढ़ावा उनके
गुरुओं के पास आ रहा है
अपने यहां नहीं आ रहा धेला
आखिर कब तक हम फ्लाप आश्रम चलायेंगे
अपने अपने दुख है, अब यही देख लीजिये हम अब तक समझे थे क्रिकेट का खेल अनोखा है लेकिन इन जनाब का कहना है राजनिति का खेल है बड़ा अनोखा, अब कहते हैं दर्पण झूट ना बोले इसलिये मान लेते हैं कि ऐसा ही होगा।
ब्लोगजगत में ढपली वाले ढपली बजा गाने की जरूरत ही नही है क्योंकि सभी यहाँ अपनी अपनी ढपली और अपना अपना राग बजा रहे हैं लेकिन ये एक ब्लोगर अनुराग मिश्र बकायदा ढपली का टैग अपने नाम कर ढपली बजा रहे हैं और देखिये क्या ढपली बजायी है -
पत्नी धर्म सीता ने अन्तिम सांस तक निभाया
परन्तु अकारण राम ने उसे वन में था पठाया
द्रोपदी के वीर पति थे उसके सिर का ताज
पर भरी सभा में उसकी लगी दांव पर लाज
कलियुग में लगाई जाती सरे-राह उसकी बोली
कोई खींचता है आँचल कोई तार करे चोली
जिस जननी ने जन्म दे इस दुनिया को बसाया
अनेकों बार कोख में गया उसको ही मिटाया
बेटी का जन्म आज भी नज़रों को है झुकाता
है बाँधती वो घर को पर पराई कहा जाता
वो जमाने गये जब किसी को मारने के लिये बंदूक, चाकू का इस्तेमाल होता था आजकल तो मारने के लिये बस मंहगाई काफी है अगर यकीन ना आये तो खुद देख लीजिये।
हर जगह और क्षेत्र का मौसम अलग अलग होता है और उसी हिसाब से वहाँ के आसमान पर लगने वाले बादल। यहाँ कल रात जब बादल लगे तो बारिश हुई, झमाझम पानी बरसा यही बादल मध्यपूर्व में भी लगे हैं ऐसा ब्लोगजगत के एक विशेष संवाददाता का कहना है लेकिन इनका मानना है कि वहाँ पानी नही बल्कि कुछ और बरसेगा।
फिल्म दीवार का वो डायलॉग तो आप भूले नही होगे जिसमें छोट अमिताभ के हाथ में कुछ लिख दिया गया था, कुछ इसी तरह की हकीकत आज भी असल जिंदगी में सांसे ले रही है और कुछ ऐसी वैसी इबारत इस छात्रा के चेहरे पर भी लिख दी गयी।
ओलंपिक शुरू ही होने वाले हैं और इन खेलों में हमेशा ही हमें सोने के तमगे हासिल करने में परेशानी आती है, चांदी पीतल भी सिर्फ बालीवुड के गीतों में सुनकर खुश हो लेते हैं, ऐसे में अगर इन शब्दों में कुछ सच्चाई है तो इन्हें कुछ ट्रैनिंग दी जाये तो क्या पता कुछ बात बन जाये, किन शब्दों में? इन शब्दों में -
इन का निशाना इतना सटीक होता होता है कि पानी के भीतर तैरती मछलियों को भी अपने तीर से भेद देते है
अखबार में पढ़ी खबर हमेशा सच नही होती अब चाहे वो बालीवुड से संबन्धित हो या ब्लोगवुड से, लेकिन ये बात इतनी जल्दी जो समझ आ जाये तो फिर बात ही क्या। कुछ ऐसे ही दुख से रूबरू हो सतीश का दर्द कुछ यूँ उमड़ आया है -
हर ब्लाग पर अपने अपने ग्रुप बने हुए हैं, जो हमले से बचने और दूसरे से मुकाबला करते हैं , और यह सभी स्वनामधन्य साहित्यकार और मशहूर पत्रकार हैं जिनसे सब कोई डरते हैं, यह वो हैं जो दावा करते हैं कि देश को कभी सोने नहीं देंगे .....हर एक ब्लाग बेहतर प्रदर्शन करने के लिए नए हथकंडे आजमा रहा है, और जो ब्लाग टॉप पर हैं वे एक दूसरे कि टांग खींचने पर लगे हैं
मत पढ़िये इन ब्लोगस को, ये पढ़-सुन कर आप दूसरों के ब्लोग भले ही पढ़ें या ना पढ़े हमारा ब्लोग जरूर पढ़ते रहियेगा क्योंकि हमारा ब्लोग ना अच्छों की श्रेणी में आता है ना ही अखबार में छपा है इसलिये जब आप बिना कोई उम्मीद लिये आयेंगे तो उनके टूटने का भी खतरा नही रहेगा। हमेशा की तरह मुफ्त की सलाह इन्हें भी कई साथियों ने चेप डाली हैं, इन सलाहों का असर तो आने वाले वक्त में ही दिखेगा इसलिये अभी टेंशन काहे को लें।
लेकिन अगली पोस्ट जब देखने गये तो हमें टेंशन हो ही गया, एक लाईन की अमित की इस पोस्ट ने वैसा ही टेंशन दिया है जैसा किसी जमाने में बिहारी के दोहे दिया करते थे - देखन में छोटे लगे, घाव करे गंभीर। अगर १ साल पहले ये हमें बताया जाता तो शायद हम भी iPhone नही खरीदते, अब ये सलाह हमारे काम की नही लेकिन आप एक नजर मार सकते हैं।
बस जी अब ये टेंशन हमें कुछ और नही लिखने दे रहा कहीं ऐसा ना हो कि ज्यादा लिखने पर फुरसतिया को ये टेंशन ना होने लगे कि लंबी लंबी पोस्ट लिखने का टाईटिल उन से ना छिन जाय। और आप लोगों को ज्यादा टेंशन ना हो इसलिये हमने अपनी लिखी पोस्टों को भी चर्चा से दूर रखा है। इसके बावजूद भी अगर रत्ती भर टेंशन हो चला है तो खुद उड़ते रहने वाली उड़नतश्तरी को पतंग उड़ाते हुए देखिये, वो भी रंग बिरंगी नही बल्कि काली सफेद।
ये पोस्ट दिन में लिख कर Schedule रख छोड़ी थी इसलिये काफी नये लिखे चिट्ठों की चर्चा इसमें नही हो पायी।
जवाब देंहटाएंअरे वाह, तरुण बाबू भी आ गये. अब से आप और भाई फुरसतिया जी एक एक दिन बाँट लो और संजय भाई को मध्यान दे दो और इसे नियमित रखो. क्रम टूटना मुझे अच्छा नहीं लगता, यह आपको, संजय और फुरसतिया जी को ध्यान रहे. :)
जवाब देंहटाएंसही है। आज का दिन अच्छा शुरू हुआ। चाय और स्वादिष्ट लग रही है। समीरलाल जी भी कोई दिन बांटेंगे कि खाली कनकौवे उडा़ते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंसमीर जी, ठीक है ऐसा करते हैं कि थैंक्सगिविंग का दिन मैं अपने लिये रख लेता हूँ, क्रिसमस के दिन अनुपजी कर लेंगे, मध्यान यानि जुलाई ४th का दिन संजय भाई के लिये रख लेते हैं और बाकि के दिन आप संभाल लीजिये। अवार्ड ही बटोरते रहेंगे या कुछ काम भी करेंगे ;)। बड़ती उम्र के साथ मेहनत का काम करना बहुत जरूररी हो जाता है ध्यान रहे ;)
जवाब देंहटाएंआप सब काम से बहुत जी चुराते नजर आ रहे हैं. :)
जवाब देंहटाएंऔर समीरलालजी काम के मामले में डाकू मोहरसिंह बनें हैं, बिना मूंछ के। :)
जवाब देंहटाएंचिठ्ठाचर्चा पर टिप्पणी-चोंचबाजी! सही जा रही है!
जवाब देंहटाएंहा हा!! ज्ञान जी को भी इनर सर्किल में लाया जाये, ऐसी मेरी हार्दिक इच्छा है. पालन किया जाये!! :)
जवाब देंहटाएंअरे आप ख़ामाख़्वाह क्यो टेन्षन ले रहे है.. हमसे कह दीजिए.. हम ठहरे मजदूर आदमी.. बस शाम को एक अदद संतरे का इंतेज़ाम कर दीजिएगा.. हम सब लिख देंगे
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा ब्लाग और अच्छा विषय है, आप लोग बहुत अच्छा लिखते हैं, आशा है निष्पक्ष रहेंगे ! इस शानदार योगदान के लिए शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंइत्ती सीरियस बात ना किया कीजिये, शुबहा होने लगता है कि आपकी तबीयत खऱाब हो गयी है , या कवियों की सोहबत में हैं।
जवाब देंहटाएंसतीशजी निष्पक्षता का उतना ही पूराना नाता है जितना यह ब्लॉग स्वयं है, अनूपजी पर विश्वास रखें और पढ़ते रहें.
जवाब देंहटाएंज्ञान जी के ज्ञान के बिना तो चिट्ठाचर्चा में मज़े की हलचल नहीं हो पायेगी ।
जवाब देंहटाएंज्ञान जी अपना ज्ञान बाँटिये, भाई ।
आपकी बात की तह में डूब जाने फिर निकल भी आने की क्षमता से सभी परिचित हो चुकें हैं,
किंतु यहाँ के पाठक वंचित हैं ।
ध्यान दिया जाये, ज्ञान जी !
aise hi bakvaason k karan to blog lekhan badnaam ho raha hai. sachmich nahin padhana chahiye tha.
जवाब देंहटाएंअच्छा है अब आप रोज चिंतन कर रहे है.....वैसे हिम्मत है प्रभु......ढेरो ब्लॉग पढ़ना .....
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