वागीशा
ब्लागजगत की कोई सच्ची-झूठी खबर सुनायें उसके पहले आपके लिये सूचना। सिद्धार्थ की बिटिया बागीशा का २० जुलाई को आठवां जन्मदिन पड़ता है। आप अपनी शुभकामनायें उसको ई-मेल करिये न। वह आपको शुक्रिया कहेगी। ई-मेल पता है:vagisha.tripathi@gmail.comआज ब्लाग जगत में क्षमायाचना का बोलबाला रहा। क्षमादिवस टाइप का। आपको लग रहा है हम ठेलुहई कर रहे हैं? अरे न जी। आप खुद देख लीजिये:
१.ज्ञानजी के कथन, "लेकिन समस्या यह है कि अभी लोग कविता ज्यादा ठेल रहे हैं पर नीरज गोस्वामी जी ने घनघोर आपत्ति जताई तो उन्होंने तड़ से क्षमा मांग ली- क्षमा याचना करता हूं नीरज जी। यह वास्तव में हल्के-फुल्के में गलती हो गयी। कृपया मुझे अन्यथा न लें। मैने पंक्ति काट दी है। आप कृपया देख लें।
२. दिल्ली में किताब की दुकान बुकवर्म बन्द हुयी तो उन्मुक्तजी की झुंझलाहट देखकर मसिजीवी ने उनसे पूरी दिल्ली की तरफ़ सेक्षमा मांग ली-आपको हुई इस वेदना के लिए मैं अपने शहर दिल्ली की ओर से आपसे क्षमा मांगता हूँ।
3. अजित वडनेरकर ने तो बाद का लफ़ड़ा ही नहीं रखा। अपने आज के सफ़र की शुरुआत ही क्षमा याचना से की।
मांगने को क्षमा मांग ली गयी। लेकिन किसी ने दी नहीं। ज्ञानजी से तो नीरज गोस्वामी ने अनुरोध किया- ऐसी बातें किया न करें। मसिजी्वी की क्षमा याचना दिल्ली तरफ़ से बिना लिफ़्ट मिले पड़ी है और अजित जी को तो दो लोगों ने रपटा लिया- आपको क्षमा मांगने की जरूरत क्या थी( हिम्मत कैसे हुयी :) )
ज्ञानजी का आज का सदविचार है -
बेवकूफी का सदुपयोग करना सीखें। बुद्धिमान लोग कभी कभी यह तुरुप का पत्ता खेलते हैं। कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब बुद्धिमत्ता इसमें होती है कि आप यूं दिखायें कि आप कुछ नहीं जानते। आप भोंदू न हों, पर आप में भोंदू का रोल प्ले करने की क्षमता होनी चाहिये।मैं सहज भोंदू की तरह सोच रहा हूं कि क्या सभी बुद्धिमान तुरुप का पत्ता खेल रहे हैं, क्षमा याचना कर रहे हैं। :)
--- बाल्तसर ग्रेसियों (१६०१-१६५८)
लेकिन आप इन बुद्धिमानों के पचड़े में न पड़िये और पढ़िये डा.गरिमा तिवारी की भोजपुरी कहानी। इसपर प्रतिक्रिया देते हुये कंचन ने लिखा है-
ए बबुनी तू हेरा कहाँ जालू... औ ई भूत परेत के कहानी जऊन सुनावताड़ू, जानेलू ना कि हम घरा में अकेले रहेनी अ अगर राति में डेरऊनी ना त तू समझि लीहा...
कंचन के डर को दूर करते हुये कहानी लेखिका ने कहा-
हे दी दी, हम नु केनियो नईखी हेराईल दिने भर मिली जाईब, तु ही नईखु लौकत, सब ठीक-ठाक बा नु? अरू डेरा मत.. ई कहानी के बुत प्रेत खाली ओ गाँव मे रहल हा एजुगा ना आई, अईबो करी तो हमरा के बोल दिह, भुतवा के भगाई देम।
गरिमाजी जीवन ऊर्जा ब्लाग में मधुमेह से बचने के तरीके बताये।
आप महेन्द्र मिश्रा के ब्लाग पर ये चित्र देखिये। मजा न आये तो टाइम वापस। साथ में ये वीडियो भी देखिये जिसे कहते हैं कि हर भारतीय को देखना चाहिये।
अनिल की यह पोस्ट उनके दिल है हिंदुस्तानी जज्बे का पता देती है।
मंगलेश डबराल की कविता केशव अनुरागी उनकी आवाज में सुनिये। अच्छा लगेगा।
अब बांचिये कुछ एक लाइना:
१.घूस देने में उपजती संभावनाएं : लेने वालों के चेहरे खिले।
२. न्यूकिलाई सौदे का राष्ट्रीय हित: से कांटा भिड़ा है। मुकाबला जोरदारी का है।
३.ब्लॉग अल्मारी में पोस्ट की सजी पोशाकें : जिनको पहनने का मन नहीं करता।
४.जिन्हे कष्ट नहीं है : मंहगाई का।
५.रंग बिरंगे तन वालों का, सच ये है मन खाली है : अब जो है उसी से काम चलाओ।
६. मां और मीडिया:एक हकीकत
७.संसद - बढ़ती गर्मी महसूस हो रही है! : झमाझम नोट बरसने ही वाले हैं।
८. अंतस में खोजो: खोजते रह जाओगे।
९.घोड़े से बातचीत : करवा रहे हैं आलोक पुराणिक
१०.क्यों नहीं जाते डाक्टर गावों में: गांववाले सब गांव छोड़कर शहर आ रहे हैं न इसलिये।
११. "व्यथा-एक कहानी चोर की": सुना रहे हैं वे जिनका सामान चोरी गया।
१२. शब्दों के अक्सर अर्थ बदल जाते हैं : लेकिन कम से कम शब्द तो वही रहते हैं।
१३.निम्न मध्यवर्गीय चौमासे का एक अध्याय :अपनी सुहानी यादें छापकर हमें न जलाएँ!
१४.स्मार्ट नेता बन, ब्लॉगर्स का भेजा चूस!: लेकिन जा पहले बिक के आ, अच्छे दाम लगे हैं।
मेरी पसन्द
ये जहाँ मेरा नहीं है
कोई भी मुझसा नहीं है
उसकी बातें मेरी बातें
कुछ भी तो इक सा नहीं है
मेरे घर के आइने में
अक्स क्यों मेरा नहीं है
आंखों में तो कुछ नहीं फिर
पानी क्यों रुकता नहीं है
दिख रही है आँख में जो
बात वो कहता नहीं है
सीने में इक दिल है मेरा
तेरे पत्थर सा नहीं है
एक ढेला मिट्टी का भी
मेरा या तेरा नहीं है
मानसी
इसी पोस्ट का इन्तजार लगा था...वरना बिना चिट्ठाचर्चा के जिल्ले ईलाही नाराज हो जाते हैं, यह तो आपको पता ही है.
जवाब देंहटाएंहम खुश हुए...यह लो एक टिप्पणी अशर्प्फ़ी का ईनाम. खुश रहो..कल फिर आना..फिर इनाम मिलेगा. :)
समीर जी अशर्फ़ी सोने का है? है तो मै भी चिट्ठा चर्चा मे भाग ले लेती हुँ :P
जवाब देंहटाएंअनुप जी चर्चा मे मेरे पोस्ट्स को जगह देने के लिये शुक्रिया :)
इन क्षमायाचनाओं की कड़ी में एक मेरी भी क्षमायाचना जोड़ ली जाये, सुकुल जी ! आज्ञा है ?
जवाब देंहटाएंयह ज्ञानजी क्यों इतना छाये हुये हैं, आप पर, इन दिनों ?
अब बस भी करिये, और भी ज्ञान हैं ज़माने में ज्ञानजी के सिवा....
मध्यान्ह न कर पाने के लिए क्षमा कर दें.... :)
जवाब देंहटाएंडा अमर जी की तरह मेरी भी क्षमा याचना ले लें और बैंक में रख ले ताकि भविष्य में भी कोई गलती हो तो फिर फिर क्षमा क्षमा .... न कहना पड़ ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंक्षमा करें, यह चिठ्ठाचर्चा की पोस्ट हमें बहुत अच्छी लग रही है! :)
जवाब देंहटाएंआदरणीय अनूप अंकल, प्रणाम।
जवाब देंहटाएंआपने अपनी पोस्ट में मेरी तस्वीर लगायी और ढेर सारा प्यार दिया इससे मुझे बड़ी ख़ुशी मिली। मुझे सबकी ओर से मिलने वाला स्नेह और आशीर्वाद मेरा सबसे बड़ा birthday gift बन गया। बहुत-बहुत धन्यवाद। (वागीशा)
क्षमा मांगने का मौसम चल रहा है तो हम भी उसका मजा ले लेते हैं जी, वागीशा बिटिया को देर से बधाई देने के लिए क्षमा मांगते हैं। आप के चिठ्ठे पर देर से आने के लिए क्षमा,
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बहुत ही रोचक पोस्ट और कविता का तो जवाब ही नहीं धन्यवाद का मौसम शुरु कर रहे हैं