आभा
हम भारतीय अपना हर काम आराम से करते हैं। आभाजी ने अपने ब्लाग की पहली वर्षगांठ की केक-पोस्ट पूरे एक पन्द्रहिया बाद काटी। आभाजी छोटी-छोटी लेकिन संवेदनशील पोस्टें लिखती हैं। आलोक पुराणिक के अगड़म-बगड़म प्रचार (शादी के बाद प्यार का अंत हो जाता है ) के धुरउलट कहती हैं कि अपने साथी की तारीफ़ करनी चाहिये। वे लिखती हैं:
मैंने माना यही है जीवन यही है जीवन की सच्चाई...यही है सुख दुख का संघर्ष...जिसमें एक कैसी भी तारीफ एक उत्साह का शब्द भी आपको मैदान में लड़ने के लिए शक्ति दे सकता है और एक दुत्कार भरा संबोधन आपको हताशा और कुंठा से भर सकता है...।
इसके पहले की एक पोस्ट में बोधिसत्व के बारे में लिखते हुये लिखती हैं:
अपने हर जनम दिन पर यह बंदा लगभग बच्चों सा हो जाता हैं...भोला, जिद्दी और भावुक।
अजित वडनेरकर
रवीशजी ने कल शब्दों का सफ़र का जिक्र किया हिंदी दैनिक हिन्दुस्तान में। ब्लागपुरोहित साल भर के हो गये हमें पता ही नहीं चला।
अजित जी ने लोगों की शब्द संपदा बढ़ाने में योगदान देने के साथ-साथ बकलमखुद में तमाम लोगों के बारे में ब्लागजगत में लिखा-लिखवाया। बकलमखुद की जबरदस्त लोकप्रियता के बावजूद हमारे कनपुरिया राजीव टंडन इससे बहुत खुश नहीं हैं। वे कहते हैं इस काम के लिये कोई दूसरा ब्लाग बनाना चाहिये अजितजी को।
हम बधाई देते हैं शब्दों के सफ़र के पुरोहित को।
देवकी नन्दन बाजपेयी की आवाज इत्ती टनाटन थी इसका राज हमे कल्प पता चला। वे कनपुरिया थे। कनपुरिया आदमी झनाटन होता है जी। देवकी नन्दन पाण्डेयजी पर लिखा संजय पटेल का लेख पठनीय च उड़ानीय है। हम इसे अपने कानपुरनामा में डाल देंगे। जबरिया। देवकीनन्दन पाण्डेय के बारे में वे लिखते हैं:
देवकीनंदन पाण्डे समाचार प्रसारण के समय घटनाक्रम से अपने आपको एकाकार कर लेते थे और यही वजह थी उनके पढ़ने का अंदाज़ करोड़ों श्रोताओं के दिल को छू जाता था। उनकी आवाज़ में एक जादुई स्पर्श था। कभी-कभी तो ऐसा लगता था कि पाण्डेजी के स्वर से रेडियो सेट थर्राने लगा है। आज जब टीवी चैनल्स की बाढ़ है और एफ़एम रेडियो स्टेशंस अपने अपने वाचाल प्रसारणों से जीवन को अतिक्रमित कर रहे हैं ऐसे में देवकीनंदन पाण्डे का स्मरण एक रूहानी एहसास से गुज़रना है। तकनीक के अभाव में सिर्फ़ आवाज़ के बूते पर अपने आपको पूरे देश में एक घरेलू नाम बन जाने का करिश्मा पाण्डेजी ने किया। सरदार पटेल, लियाक़त अली ख़ान, मौलाना आज़ाद, गोविन्द वल्लभ पंत, पं. जवाहरलाल नेहरू और जयप्रकाश नारायण के निधन का समाचार पाण्डेजी के स्वर में ही पूरे देश में पहुँचा। संजय गॉंधी के आकस्मिक निधन का समाचार वाचन करने के लिये सेवानिवृत्त हो चुके पाण्डेजी को विशेष रूप से आकाशवाणी के दिल्ली स्टेशन पर आमंत्रित किया गया।
फिलहाल इत्ता ही। बकिया शाम को या फ़िर कभी। तब तक आपके पास टाइम हो तो कल वाली चर्चा दुबारा पढ़ लें- आसान हो रहा है कैंसर के साथ जीना
जमाये रहियेजी।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों पर दिखते हैं..
जवाब देंहटाएंलगातार लिखते रहिये, पढने वाले तैयार बैठे हैं.. :)
Jab tak aapke dwara ki gai chiththa charcha na padh le, maza nahi aata. Roz likha kariye. :)
जवाब देंहटाएंबहुत भले चिट्ठों की अच्छी सी चर्चा पढने मिली ! धन्यवाद अनूप जी !
जवाब देंहटाएंराजीव टंडन सही कहते हैं अनूप जी। उनके अलावा अनिताकुमार जी का भी यह सुझाव है। दिक्कत ये है कि बकलमखुद के लिए एक अलग ब्लाग बनाने की फिलहाल फुरसत नहीं है। फिर तमाम पोस्ट जो लगभग पचास की संख्या में हैं, इम्पोर्ट भी करनी पड़ेंगी । देखते हैं , अगस्त - सितंबर तक ये काम करने का विचार है। कुछ आपका सुझाव हो तो ज़रूर बताइयेगा।
जवाब देंहटाएंसमीक्षा हमेशा की तरह शानदार थी और सालगिरह की मुबारकां के लिए शुक्रिया।