बुधवार, जुलाई 09, 2008

आसान हो रहा है कैंसर के साथ जीना

अनुराधा
अनुराधा

अनुराधा कैंसर विजेता के नाम से जानी जाती हैं। वे कैंसर से लड़ीं और जीती भी। अपने अनुभवों पर किताब भी लिखी। शीर्षक है- "इंद्रधनुष के पीछे-पीछे"। किताब मैंने दो तीन बार पढ़ी है। इसमें कैंसर से जूझने के किस्से हैं, उस समय की मन:स्थिति का वर्णन है और उससे बचने के तरीके बताने का प्रयास है।

अनुराधा के ब्लाग का ध्येय है:

यह ब्लॉग उन सबका है जिनकी ज़िंदगियों या दिलों के किसी न किसी कोने को कैंसर ने छुआ है।


कैंसर के लड़कर जीतने के बाद अनुराधा ने अपना ब्लाग शुरु किया। इसमें कैंसर को पहचानने के सरल उपाय हैं। कैंसर से जुड़ी शायरी हैं और चुटकुले भी।

कल अनुराधा का लेख नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हुआ। अनुराधा आशान्वित होते हुये लिखती हैं:

लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब कैंसर को जड़ से मिटाने का इलाज मिल जाएगा। लेकिन इलाज की नज़र से बचकर शरीर में फैलने के इसके विलक्षण गुण को काबू करना आसान नहीं लगता। इसलिए विशेषज्ञ अब असाध्य कैंसर के मामलों में शरीर में मौजूद हर कैंसर कोशिका को खोजकर मारने के मुकाबले सुरक्षित और बर्दाश्त करने लायक तरीके से ट्यूमर की बढ़त को काबू में रखने को ज़्यादा अहम मानते हैं। इस तरह के इलाज में मरीज़ को दवाएं लगातार (कई बार जीवन भर) खानी होती हैं। इसमें मरीज़ के ठीक होने की अनिवार्यता की जगह उसका जीवन बेहतर बनाने की कोशिश को अहमियत दी जाती है। चिकित्सा समाज में यह बदलाव क्रांतिकारी है।


आप अनुराधा का ब्लाग देखें और उससे जुड़कर उनको नियमित लेखक बनाने की दिशा में प्रोत्साहित करें।

बालेंदु ब्लागजगत का जाना पहचाना नाम है। उनके कादम्बिनी में छपे लेख ने हिंदी छापे की दुनिया कों हिंदी ब्लाग की विस्तार से जानकारी दी। अपना नया ब्लाग शुरू किया है बालेंदु ने। उनको देखें और लाभान्वित हों/करें।

ब्लागजगत के बारे में बकिया फ़िर। अभी चंद एक लाइना:

इस जुल्फ के क्या कहने .........!: कह तो दिया जो कहना था।


चूहे और कौए का संघर्ष : रोमांचक दौर में।


मैं वही, वही बात, नया दिन, नयी रात..: वही ब्लाग, वही बात, वही लात लेकिन एक नयी शुरुआत।

अच्छा लिखने से कही बेहतर है अच्छा इन्सान होना: खबर पढ़कर अच्छे लिख्खाड़ों के चेहरे लटके। उनका काम बढ़ा!


कार्बन टेक्स और कार्बन क्रेडिट : में क वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास की छटा दर्शनीय है।

यादों की वादियों में… संस्मरण: बरामद!


तुम्हें छोड़कर : यादें समेट लीं। हल्की होती हैं न!


यो, झींगा लाला: गड़बड़ झाला, लाओ ताला।

थप्पड़ जड़ने की जटिलता : को अजित वडनेरकर ने आसान बनाया।


जीवन अपने आप में अमूल्य है: भाव तो बताओ यार!

मेरी पसन्द

बंद है तो और भी खोजेंगे हम

रास्ते हैं कम नही तादाद में-२

आग हो दिल में अगर मिल जायेगा
हस्तरेखाओं में खोया रास्ता
बंद है तो और भी खोजेंगे हम
रास्ते हैं कम नही तादाद में-२

मुठ्ठियों की शक्ल में उठने लगे
हाथ जो उठते थे कल फरीयाद में
पहले तो चिनगारियां दिखती थी अब
हर तरफ़ है आग का इक सिलसिला


बंद है तो और भी खोजेंगे हम
रास्ते हैं कम नही तादाद में-२


टूटती टकराहटों के बीच से
इक अकेली गूंज है ये ज़िन्दगी
ज़िन्दगी है आग फूलों में छिपी
ज़िन्दगी है सांस मिट्टी में दबी

बन्द हैं तो और भी खोजेंगे हम
रास्ते हैं कम नहीं तादाद में

बनके खुशबू फूल की महकेंगे वे
जो किरण बन मिल गये हैं खाक में
बंद है तो और भी खोजेंगे हम
रास्ते हैं कम नही तादाद में|

रचयिता: देवेन्द्र कुमार आर्य

ठुमरी से साभार

इसे सुनने के लिये यहां जायें।

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1 टिप्पणी:

  1. केंसर विजेता का ब्लॉग अच्छा लगता है। और उनके बारे में बताना और भी अच्छा।

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