गुरुवार, अप्रैल 09, 2009

चुनाव...जूता...कविता....यही तो असली ब्लॉग मौसम है.

आज रामभक्त हनुमान का जन्मदिन है. बढ़िया तो यह होता कि आज की चर्चा बजरंगबली भक्त विवेक करते. लेकिन अब उन्हें कैसे कहें ऐसा करने को? अब नहीं कह सकते तो हमें ही करना पड़ेगा. तो हम शुरू करते हैं आज की चर्चा.

चुनाव सामने है. लगता है जैसे हमसब ब्लॉगर लोगों से कह रहा हो; " तीन महीने के लिए विषय को लेकर माथा खुजलाने की तुम्हारी दुविधा का निराकरण करने आया हूँ मैं. ये वोट-सोट तो होता रहेगा. सरकारें बनती रहेंगी. नेता मिलते रहेंगे. अलग होते रहेंगे. फिर मिलेंगे. हलफनामे दाखिल होते रहेंगे. असाढ़ और सावन की बौछारों से पहले गालियों की बौछार होती रहेगी. गुरु तुम्हारी तो चांदी. लिख डालो."

हम भी लिख रहे हैं. ब्लॉग-मौसम ऐसा ही होता है. हर मौसम को समेटे हुए.

इसी कड़ी में पढ़िए अजय सेतिया जी की पोस्ट. अजय जी ने आज नेताओं के चुनाव आयोग को दिए गए संपत्ति के व्यौरे पर बात की है. वे लिखते हैं;

"आडवाणी ने फ्लैटों की ताजा कीमत भरी। एनडीए राज में मिडिल क्लास सोच भी सकता । खरीद भी रहा था। पर अब एनसीआर में खरीदना मिडिल क्लास के बूते में नहीं। पर उधर राहुल-सोनिया की जायदाद देखिए। अपन जानते हैं महरौली में नौ लाख की सौ गज जमीन भी नहीं मिलती। पर राहुल बाबा का फार्महाऊस नौ लाख का। अपन जानते हैं इटली में 18 लाख का वन बैड रूम फ्लैट भी नहीं मिलता। पर सोनिया के घर की कीमत सिर्फ 18 लाख। असलियत से कितने दूर हैं हल्फिया बयान।"

मुझे लगता है जिसे 'बयान' कहा जाता है, वह ज्यादातर असलियत से दूर ही रहता है. बयान कह देने से उसे कानूनी मान्यता मिल जाती है. और जिस चीज को कानूनी मान्यता मिल जाए, उसके गलत होने के चांस बढ़ जाते हैं.

वही राग दरबारी में वर्णित प्रसंग कि; "दरोगा जी, कितना दिन हो गया आपने छापा नहीं मारा आपने. लोग हमें शक की निगाह से देखते हैं. एक बार छापा मार दें, तो हम भी चैन से अपना काम कर सकें." या कुछ ऐसा ही..तो जी हलफनामा कानूनी दस्तावेज है. ऐसे में......

रविश कुमार जी ने भी चुनावों के बारे में पोस्ट लिखी. वे लालू जी को मिसफिट नेता करार देते हुए लिखते हैं;

"लालू यादव को इस चुनाव में बोलते सुन रहा हूं। अब न तो वे हंसाते हुए लग रहे हैं न ही गुस्से में। एक मिसफिट नेता की तरह बिहार में घूम रहे हैं। जिन टूटी सड़कों से वे ग़रीबों को रैलियों में ठेलते रहे,वो सड़के अब बनने लगी हैं। बिहार बदला है तो लालू भी बदल गए हैं।"

बदलना तो चाहिए ही. हमेशा हंसाने के लिए आत्मविश्वास चाहिए. चुनावों के मौसम में नेता का आत्मविश्वास डगमगाता तो ज़रूर ही है. कितना भी बड़ा नेता हो, डर की रेखा न सिर्फ माथे पर दिखाई देती है बल्कि आवाज़ में सुनाई भी देती है. (डर की रेखा आवाज़ में कैसे सुनाई देगी, इसपर गुलज़ार साहब प्रकाश डाल सकते हैं...:-)

आप रविश जी की पोस्ट पढ़िए और बिहार के चुनावी माहौल के बारे जानिए

विस्फोट पर महासंग्राम २००९ के नाम से चुनावों और उसे जुडी घटनाओं का विश्लेषण हो रहा है. वहां पर पढ़िए;

तीसरे मोर्चे में शामिल नहीं हूं - शरद पवार

कौन से मोर्चे में हैं, यह बताने की स्थिति में शायद नहीं है. कह रहे थे;

"चुनाव के बाद की परिस्थितियां तय करेंगी कि क्या होगा. उन्होंने कहा कि पार्टी ने अपने सारे रास्ते खुले रखे हैं. "
रास्ते खुले रहे वही अच्छा है. आने-जाने में सुभीता रहता है. रास्ता बंद करके वैसे भी क्या मिलना है?

अमित पाण्डेय जी के दोस्त उनसे पूछते रहते हैं कि;

इस पार्टी को क्यों वोट दें?इनके तो साथी बजरंग दल और विहिप वाले हैं.

सवालिया दोस्त!!!

वैसे इस सवाल का जवाब दिया है अमित पाण्डेय जी ने. वे लिखते हैं;

"बात तो सही है। हमारे बजरंगी भाई कभी-कभी ऐसा करते तो हैं। इसके लिए मैं यह दलील भी नहीं दूंगा कि वे किसी क्रिया की स्वभाविक प्रतिक्रिया के तौर पर ऐसा करते हैं। कोई दलील दिए बगैर मैं मानता हूं कि वे गलत करते हैं।"



और भी कई कारण गिनाये हैं उन्होंने. अगर ये सवाल आप भी करते हैं तो आप सारे कारण उनके ब्लॉग पर जाकर पढ़ सकते हैं.



चुनाव के अलावा जो चीज हम ब्लागरों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दर्शाने को प्रोत्साहित कर रही है वह है जूता. कल तक जूता काण्ड पर ज्यादातर ब्लॉग पोस्ट में गद्य छाया रहा. वैसे आज भी ऐसा ही है. लेकिन कुछ पोएट्री भी लिखी गई.

श्यामल 'सुमन' जी ने जूता-काण्ड पर कुछ दोहे लिखे हैं. वे लिखते हैं;

जूता की महिमा बढ़ी जूता का गुणगान।
चूक निशाने की भले चर्चित हैं श्रीमान।।

निकला जूता पाँव से बना वही हथियार।
बहरी सत्ता जग सके ऐसा हो व्यवहार।।

भला चीखता लोग क्यों क्यों करते हड़ताल।
बना शस्त्र जूता जहाँ करता बहुत कमाल।।


बाकी के दोहे आप श्यामल जी के ब्लॉग पर पढ़िए.

जूता-काण्ड पर कुछ और पोस्ट हैं;

आखिर ये जूता क्यों चला...

जूता गाथा

इतना 'गरम जूता',और सीबीआई का 'ढंडा बस्ता'

जरनैल का जूता और कांग्रेस का कट्टर 'हिन्‍दू दिल'

अभिव्यक्ति का नया माध्यम - जूता

नया पादुका पुराण

जूतामार पत्रकारिता नहीं चलेगी

कॉफी विद कुश का नाम बदलकर टोस्ट विद टू होस्ट पहले ही रखा जा चुका था. इंतज़ार था तो इसके सीजन टू के पहले एपिसोड का. मेहमान थे डॉक्टर अमर कुमार. बहुत इंतज़ार के बाद यह एपिसोड कल प्रकाशित हुआ. कुश और डॉक्टर अनुराग ने गजब का प्रस्तुति की है.

आप यह पोस्ट ज़रूर पढें और डॉक्टर अमर कुमार को नज़दीक से जानें. सवाल और जवाब की एक बानगी देखें;

कुश : सबसे पहले तो आप उस सवाल का जवाब दीजिए जिसने मुझे बहुत परेशान किया .. शायद और लोगो को भी किया हो.. आख़िर आपके कितने ब्लॉग है?

डा अमर : पहले तो आप मेरे सवाल का ज़वाब दीजिये कि मैं धमाकेदार कहां से दिख रहा हूं, ब्लाग जगत में एक से एक धमाके पहले से ही है और मेरी शख्सियत तो महज़ कुछेक टेराबाईट डाटा और सिगनल में ही अँट जाती है !

वैसे अपुन के नवाबी हरम में ५ ब्लागी फटीचर -बेगम होती थीं, पर अब तीन बच रही हैं, आजकल निठल्ले जी कुछ तो जी को बाहर से समर्थन दे रहे हैं । अपने शहीद को उपेक्षा के इन्क्यूबेटर से निकाल रहा हूँ.. तेरे को तकलीफ़ ? ऎई अनुराग, यूँ क्यों देखे जा रहा है ? मुझे सरम लगती है, तू भी जितनी चाहे बटोर ले न ? मोफ़त का माल है, इस हरम की बेगमें



डॉक्टर महेश परिमल जी ने सूचना दी है कि;

इंटरनेट पर हिन्दी साहित्य के एक लाख पृष्ठ होंगे उपलब्ध

यह महत्वाकांक्षी योजना है महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय वरधा की. सूचना के अनुसार;

"हिन्दी नवजागरण के अग्रदूत भारतेंदु हरिशचंद्र की रचनाओं से लेकर अब तक के संपूर्ण श्रेष्ठ हिन्दी साहित्य के एक लाख रिपीट 100000 पृष्ठ इंटरनेट पर डाले जा रहे हैं ताकि देश-विदेश के हिन्दी प्रेमी घर बैठे पुस्तकों को पढ सकें। महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की मदद से पहली बार यह महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है जिससे हिन्दी का संपूर्ण श्रेष्ठ साहित्य कम्प्यूटर पर क्लिक करते ही उपलब्ध हो जाएगा। "


सचमुच एक बहुत बढ़िया पहल है. यह प्रयास इन्टरनेट पर हिंदी साहित्य को बहुत बड़ी जनसँख्या तक पहुंचाने में मदद करेगा.

आशीष कुमार 'अंशु' जी ने अपने ब्लॉग पर कार्टूनिस्ट शिरोमणि आर के लक्ष्मण के कुछ कार्टून पब्लिश किये हैं. आप ज़रूर देखिये और आशीष जी को इस पोस्ट के लिए साधुवाद और बधाई दीजिये.

हमारे प्रिय कार्टूनिस्ट कीर्तीश भट्ट जी का कार्टून भी ज़रूर देखिये. उन्होंने पत्रकारों की काबिलियत पर प्रकाश 'डलवाया' है.

प्रतिभा कटियार जी ने आज गैब्रियल गार्सिया मार्खेज के बारे में लिखा है. बहुत बढ़िया पोस्ट लगी मुझे. आप भी पढें. वे लिखती हैं;

"गैब्रिएल गर्सिया मार्खेज को पढ़ा है? उन्हें नहीं पढ़ा तो क्या पढ़ा? व्हॉट अ पावरफुल राइटिंग....यह कनवर्सेशन किन्हीं दो लोगों के बीच का था. जिन लोगों के बीच की यह बातचीत है, उनमें से किसी का भी न नाम याद है, न चेहरा. लेकिन बचपन की यादों में यह कनवर्सेशन भी कहीं दर्ज हो गया. क्यों न होता आखिर मार्खेज नाम की दुनिया का रास्ता उन्हीं संवादों से खुला था."


सुशील कुमार जी की कविता 'भीड़तंत्र' पढ़िए. उनका ब्लॉग कॉपी प्रोटेक्टेड है. ऐसे में कविता के अंश नहीं दे पा रहा हूँ. लेकिन आप कविता ज़रूर पढें.

वंदना जी कविता 'उसी का नाम दुनियाँ है,' पढ़िए. इनका ब्लॉग भी कॉपी प्रोटेक्टेड है. लिहाजा अंश पढ़वाना मुश्किल है. वैसे भी कविता के अंश पढ़कर क्या मिलेगा? पूरी कविता ही पढ़िए न. उनके ब्लॉग पर जाइये और कविता पढ़कर उन्हें बधाई दीजिये.

गौतम राजरिशी जी की शानदार गजल पढ़िए. अब कैसे लिखूँ कि 'वे लिखते हैं...'. असल में गौतम जी का ब्लॉग भी सुरक्षित है. आप पूरी गजल उनके सुरक्षित ब्लॉग पर ही जाकर पढ़िए.

राकेश खंडेलवाल जी कविता हमेशा ही कविता का रूप साकार कर देती है. ( कोई अनूठी भाषा तो नहीं लिखा गयी?) अब कविताओं की बात चल रही है तो ऐसा हो ही सकता है.

राकेश जी लिखते हैं;

पता नहीं क्यों आज रोशनी छुप कर रही गगन के पीछे
पता नहीं क्यों चन्दा सूरज बैठे रहे पलक को मींचे
पता नहीं क्यों आज नीर की गगरी छलकी नहीं घटा की
पता नहीं क्यों रश्मि भोर की, उषा रही मुट्ठी में भींचे

सोच रहा था जब मैं ये सब, बता गया यह एक झकोरा
क्योंकि न तुमने पलकें खोलीं अपनी, रहा जगत भी सोया


चाहता तो पूरी कविता ही कॉपी कर सकता था. राकेश जी का ब्लॉग सुरक्षित नहीं है. लेकिन पूरी कविता आप राकेश जी के ब्लॉग पर ही पढ़िए.

हिमांशु पाण्डेय जी की कविता पढ़िए. उनकी कविता के अंश भी दे रहा हूँ. उनका ब्लॉग भी सुरक्षित नहीं है. हिमांशु जी अपनी कविता, 'महसूस करता हूँ, सब तो कविता है' में लिखते हैं;

मैं रोज सबेरे जगता हूँ
दिन के उजाले की आहट
और तुम्हारी मुस्कराहट
साफ़ महसूस करता हूँ ।
चाय की प्याली से उठती
स्नेह की भाप चेहरे पर छा जाती है ।

फ़िर नहाकर देंह ही नहीं
मन भी साफ़ करता हूँ,
फ़िर बुदबुदाते होठों से सत्वर
प्रभु-प्रार्थना के मंद-स्वर
कानों से ही नहीं, हृदय से सुनता हूँ ।
अगरबत्ती की नोंक से उठता
अखिल शान्ति का धुआँ मन पर छा जाता है ।


कवि मन ऐसा ही होता है. कितना कोमल, कितना सरल, कितना निश्छल....केवल कवि ही नहाकर देंह ही नहीं मन भी साफ़ कर सकता है.

आदित्य आज बता रहा है कि; "वह क्या-क्या पहचान सकता है". बहुत मजेदार अंदाज़ में आदित्य ने यह बात बताई है. हमेशा की तरह फोटो खिंचाकर. यह पोस्ट ज़रूर पढ़िए. आप की शाम बहुत मजेदार हो जायेगी.

आज के लिए इतना ही.

अंत में एक बात कहना चाहता हूँ.

कल शाम को मैंने कुछ एक लाइना लिखकर चिट्ठाचर्चा में पोस्ट कर दी थीं. टिप्पणियां आईं. कुछ ब्लॉगर बन्धुवों को एक लाइना ठीक लगी. कुछ को कम ठीक लगीं. सबकी अपनी-अपनी राय हो सकती है. हमें तो टिप्पणियां मिल रही हैं न. एक ब्लॉगर को और क्या चाहिए?

लेकिन उनमें से एक टिपण्णी Gagagn Sharma, Kuchh Alag sa जी की आई. उन्होंने लिखा;

क्या आप एक लाईन के लायक भी नहीं हैं?
नहीं, आप एक लाईन के लायक नहीं हैं।

मुझे लगा उनके टिपण्णी की पहली लाइन मुझे चिढ़ा रही है. मैं 'एक लाइन के लायक भी नहीं हूँ' पढ़कर मुझे लगा जैसे Kuchh Alag sa जी के हिसाब से "मैं न सिर्फ एक लाइना लिखने लायक नहीं हूँ बल्कि कुछ भी करने लायक नहीं हूँ."

देखिये मेरा कहना यही है कि दूर बैठे किसी के बारे में तपाक से कोई धारणा नहीं बनानी चाहिए. मेरा प्रोफेशनल कम्पीटेंस क्या है, यह बात कोई भी मुझसे मिले बिना नहीं जान सकता. आप जब कमेन्ट करें तो मेरे लेखन के अच्छे या खराब पहलू पर करें. मैं किस बात के लायक हूँ और किस बात के लायक नहीं हूँ, इसका अनुमान लगाना आपके लिए उतना ही मुश्किल है, जितना मेरे लिए आपके बारे में अंदाजा लगाना.

और वैसे भी, अगर आप यह कहते हैं कि आपने मेरी एक लाइना लिखने के बारे में ही कमेन्ट किया था तो मैं यही कहूँगा कि; "काने व्यक्ति को काना तो नहीं कहा जाता."

या फिर कहा जाता है?

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26 टिप्‍पणियां:

  1. मिश्र जी
    बहुत ही बढ़िया सार्थक चिठ्ठा चर्चा लगी . ब्लागरो की पोस्टो को खूबसूरती से चिठ्ठा में उकेरा है . आभार.

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  2. शिव जी,
    आपने अर्थ उल्टा ले लिया। वो टिप्पणी मैंने अपने उपर लिखी थी। बहुत बार हम अपनी रौ में लिखते चले जाते हैं। अपनी मनोदशा में लगता है कि बात सबकी समझ में आ ही जाएगी, पर कभी-कभी उल्टा हो जाता है। किसी की ऐसी आलोचना करने की तो मैं सोच भी नहीं सकता।
    मन में किसी भी तरह का दुराव ना रखें।

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  3. वाह, क्या इत्तेफ़ाक है ?
    नित्य की तरह आज भी सुबह चर्चा को टटोला..
    देखा कि बदमाश पिंकी खड़ी खड़ी जम्हुँआ रही है, दूसरी चर्चा आये और वह आर्काइव में जाकर आराम करे !
    अभी क्लिनिक से आते ही देख रहा हूँ, गर्मागरम चर्चा पहले से तैयार ! थैंक यू जी, मेरा धन्यवाद लो, मेन्शन नाट शिवभाई !

    कल यह टिप्पणी मैंने भी देखी थी.. पर ’ अलग सा ’ मान कर ख़ारिज़ की जा सकती है, सो ऎसा ही करने की संस्तुति की जाती है !

    यहाँ आने से पता लगा किसी अमर कुमार का इंटरव्यू कुश-अनुराग द्वय ने दी है..
    वह ग़रीब मैं ही हूँ, जिसकी रायल्टी हज़म कर के दोनों ने ढिढाई से इंटरव्यू प्रकाशित कर दिया है !
    चर्चाकार जन इसका संज्ञान लें, और प्रार्थी को उचित न्याय दिलायें !

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  4. बहुत विस्तृत चर्चा रही आज की. धन्यवाद.

    रामराम.

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  5. क्या अपन एक लाईन के लायक भी नहीं हैं?
    नहीं, आप एक लाईन के लायक नहीं हैं।

    -----
    यही; यही चिठ्ठाचर्चाकार को महत्वपूर्ण बनाता है। असल में पहले - काफी पहले जब मैने चिठेरी प्रारम्भ की थी तो यह मंच बड़ा कौटुम्बिक था। और हम उसके बाहर की चीज हुआ करते थे। और मैं देखता था कि कई यूजलेस थेथर पोस्टें और ब्लॉगर घूम फिर कर चर्चित होते रहते थे।
    और मैं सोचता था - टू हेल विथ दिस चिच।
    आज भी बहुत से चिठेरे यह सोच सकते हैं।
    असल में इस चिच की जरूरत ही न हो, अगर लोग एक दूसरे के ब्लॉग पढ़ें, बात आगे बढ़ायें और लिंक करने में मुक्तहस्त हों। असल में कुछ अलग सा जी को यह देखना चाहिये कि उन्होंने कितने हाइपर लिंक/लिंक बनाये बनिस्पत यह देखने के कि कितना बढ़िया साहित्य (?!) ठेला!

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  6. इस मंच को एक नया आयाम देते हुये
    " डा. अमर कुमार जी जब... "
    पर यहाँ मेरी टिप्पणी दर्ज़ की जाये, कि..


    " व्यंग्य और तंज़ मेरे लेखन के स्तंभ हैं, इनको घुसने से कैसे रोका जा सकता है ?
    जिस किसी ने भी यह कोड बनाया है, उसे position: no-repeat fixed right bottom; का विकल्प रखना ही नहीं था ।
    position: no-repeat fixed top right ; करने में मुझे कोई बुराई नहीं दिखती !
    अपने ’ देश ’ का मैंने ऎसा अपमान देखा है, कि अपने झंडॆ के प्रति सदैव ही संवेदी रहूँगा !
    मुझे कोई खेद नहीं है !
    क्योंकि वाकई यह बतंगड़ बनाने वाली बात ही नहीं है !
    और मेरी मंशा ऎसी थी भी नहीं.. "

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  7. टोस्ट विद टू होस्ट

    इस इंटरव्यू मे एक एहसास बहुत शिद्दत से हुआ " its all a mans world in hindi blogging " शायद दोनों होस्ट से कुछ ज्यादा ही उम्मीद थी । लेकिन किसी भी महिला ब्लॉगर को विडियो कांफ्रेंसिंग पर ना लेना केवल और केवल इतेफाक मे शामिल नहीं करुँगी ।

    ये सही हैं की ब्लॉग लेखक /मालिक की इच्छा है की वो क्या और कैसे लिखे पर एक पाठक के अधिकार से मै अपनी बात कह सकती हूँ और वो भी इस लिये क्युकी इस इंटरव्यू मे ही इस प्रश्न को रखा गया हैं

    quote
    अनुराग : आपको नही लगता कि इंग्लिश ब्लॉग में कोई सीमा रेखा नही है ...स्त्री चेतना या अभिव्यक्ति ज्यादा मुखर है ..अच्छे -बुरे दोनों रूपों में ...हिन्दी ब्लॉग में सरोकार सीमित है ?"
    unquote

    जब "टोस्ट विद टू होस्ट " ब्लॉग पोस्ट इस विचारधारा से प्रभावित हैं तो दुसरो से क्यूँ उम्मीद करे की वो समानता की बात करे और सब को साथ लेकर चले

    क्युकी ब्लॉग स्वतंत्र अभिवक्ति का साधन हैं इस लिये कुश के ब्लॉग पर नहीं चर्चा के ब्लॉग पर इस प्रश्न को रख रही हूँ । चर्चा का मंच एक ओपन हाउस डिस्कशन की तरह हैं और यहाँ जो भी कमेन्ट करता हैं वो किसी का पैरोकार या चाचा और मौसी नहीं हैं ।


    हिन्दी ब्लोगिंग को संबंधो की जंजीरों से आजाद करके पढे
    सम्बन्ध बनाये पर इस लिये नहीं की एक गुट बन जाए बल्कि इस लिये क्युकी आप को सम्बन्ध बनाना अच्छा लगता हैं । पर संबंधो की कसौटी पर लेखन को ना कसे ।

    आप का ये कहना की हर बात को "रचना" नारी - पुरूष भेद भाव से क्यूँ जोड़ती हैं ? मेरे सर माथे क्युकी ये भेद भाव इतना गहरा हैं की हम जाने अनजाने इसका शिकार होते ही हैं । जैसे कुश के ब्लॉग पर हुआ । जरुरी नहीं हैं की किया गया पर हुआ , और हिन्दी ब्लोगिंग मे और भी बहुत से ब्लोग पर होता हैं ।

    कभी कभी लगता हैं की जैसे बहुत से ब्लोगर ये मानते हैं की ब्लोगर , मे जो महिला हैं वो शायद केवल और केवल ताली बजाने , सराहना करने और कविता कहानी कहने के लिये ही ब्लोगिंग करती हैं ।

    अन्याय करने वाले से ज्यादा अन्याय सहने वाला दोषी होता हैं । महिला हो कर भी जो महिला की बात को आगे ना लाए जाऊं तो क्या फायदा ।

    स्त्रीलिंग पर किया हुआ ये अन्याय ही सबसे बड़ा होता हैं की किसी लायक ना समझा जाए । आने वाली पीढी के ब्लॉगर शिद्दत से महसूस करेगे हिन्दी ब्लोगिंग की इस कमी को । सोच कर देखियेगा की हिन्दी ब्लोगिंग व्यसक क्यों नहीं हो रही हैं ??

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  8. वाकई, जूतों का मौसम है--
    दो ने चुनाव से पहले खा लिए...
    कई चुनाव के बाद खायेंगे...
    लेकिन, बाज नहीं आयेंगे...
    हर चुनाव में यूं ही फिर सर उठाएंगे.

    जवाब देंहटाएं
  9. हर जगह जुता.. हर तरफ जुता.. फैंका एक लगा अनेक जगह... ब्लोगिग के लिये मुद्दों की कोई कमी नहीं..यह मौसम ब्लोग का है.. सही है..

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  10. क्या मैं तिबारा अंदर प्रवेश कर सकता हूँ ?
    टिप्पणियों की सदस्यता लेने में ये ईच लफ़ड़ा है..
    मेल बाक्स में रचना जी, अपने ऎतराज़ के साथ हाज़िर !

    उनके ही ब्लाग से "अपनी एक टिप्पणी " यहाँ रखना चर्चा असंगत तो नहीं ?
    अभी यह इतना अस्वस्थ मंच भी नहीं कि एक 1857 यहाँ भी दिखने लगे..
    वह टिप्पणी अविकल रूप में इस प्रकार है, कि
    " कुश का ज़वाब ठीक हो सकता है..
    पर.. मेरे संग तो अलग तरह की असमंज़स है..
    एक तो यह ब्लागर हैं
    और दूसरे यह हिन्दी ब्लागर हैं..
    नारी हैं, यह एक बायलोज़िकल घटना है
    पैदा होने पर पुकारे जाने की टैगिंग में एक नाम मिला..
    समाज़ ने एक उपनाम भी थोपा ही होगा..
    नाम तो मैं नहीं बताना चाहता,
    कल को कोई चाँद और ए,आर.रहमान सरीखा बदल ही ले तो ?

    बहुत सारे लोग हैं, जो प्रचार के अनिच्छुक हैं, या उत्पात मचाने को ही सही.. पर नाम को छुपाये रखना चाहते हैं !
    सभी का अपना योगदान ही उसकी पहचान है..
    लेखन की शैली और तेवर ही उनका नाम है !

    इस प्रकार पाठकों को आकर्षित करने से
    मुझे हिन्दी ब्लागिंग में दूरगामी दुष्परिणाम दिख रहे हैं..
    अतएव इस असंगत टिप्पणी को वहन करें..
    मैं भी तो अमर कुमार नहीं हूँ..
    अब बताइये.. का कल्लेंगी ?

    " साभार: हिन्दी ब्लागिंग की देन "

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  11. साभार: हिन्दी ब्लागिंग की देन "
    is blog par wahii chitr daaley jaatey haen jo profile mae haen agarr profile mae chitr nahin haen to nahin daala jayaegaa . chitr unkae daaley jaa rahey haen jinsae yaa to virodh ki koi umeed nahin haen , yaa jo bahut apnae haen yaa phir wo jo khushi sae apne chitr ko bigadvaana chahtey haen

    aap ka yae kament daekh liya thaa par jwaab daenae ki jarurat nahin mehsoos ki kyuki kewal ek pratkriyaa swarop liyaa thaa

    kyaa kar lungi yae tab daekhkhugi jab khud mehsoos karugi
    charach par is blog ko laane kae liyae thanks to keh hi dun

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  12. महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की महत्वाकांक्षी योजना के बारे में जानकर अच्छा लगा । काश यह अमल में आये ।

    अमर जी का इंटरव्यू निश्चय ही लाजवाब है ।
    आपकी इस विस्तृत चर्चा के लिये धन्यवाद ।

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  13. चर्चा अच्छी रही.

    देख लीजिये हमको भी एक लाइन के लायक नहीं समझा गया. अब हम भी झंडा उठाने जा रहा हूँ. रही बात आप किस लायक हैं तो चर्चा कीजिये दो चार साल फिर निर्णय लिया जायेगा.

    -कौतुक

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  14. विस्तृत चर्चा अच्छी लगी।

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  15. मस्त चर्चा है जी। आज मुझे ऐसा कुछ नहीं कहना है जिससे बात का बतंगड़ ्बनने की गुंजाइश हो। शुक्रिया।

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  16. चर्चा जायकेदार तो है ही ...चंद टिप्पणियों ने अलग से तड़का भी लगा दिया...
    बहुत खूब

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  17. कवि मन ऐसा ही होता है. कितना कोमल, कितना सरल, कितना निश्छल....केवल कवि ही नहाकर देंह ही नहीं मन भी साफ़ कर सकता है. इसीलिये कहा गया है -जहां न जाये रवि, वहां जाये कवि। रवि मन तक नहीं जा पाता कवि पहुंच जाता है।

    चर्चा मजेदार है। टिप्पणियां उनमें मजा जोड़ रही हैं। मौजा ही मौजा।

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  18. "मुझे लगता है जिसे 'बयान' कहा जाता है, वह ज्यादातर असलियत से दूर ही रहता है"
    यह तो केवल नेताओं का बयाना होता है।
    >आजकल लोग हर चर्चा में गुटबाज़ी देख रहे हैं...!!!!! या इलाही ये माजरा क्या है ?:)

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  19. "काने व्यक्ति को काना तो नहीं कहा जाता."

    या फिर कहा जाता है?

    आपने सही कहाँ काने को काना नहीं कहाँ जाता
    ये अच्छी बात नहीं है
    मगर जो दोनों आँख से देख सकता हो उसको काना कहना तो और भी बुरा है

    venus kesari

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  20. आज की चर्चा की सरसता पर मोहित हूँ
    सच बधाई का ट्रक किस पते पे भेज दूं भाई साहब

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  21. चर्चा उतनी ही जानदार है जितनी कल की एक लाइना थी.. ज्ञान जी का कमेन्ट बिलकुल सही है.. मैं पूर्णतया सहमत हु उनसे..

    गगन शर्मा जी ने भूल सुधार कर ही ली है तो फिर बात यही ख़त्म होती है..

    चर्चा को टिप्पणियों ने ऑर दिलचस्प भी बनाया है..

    @रचना जी से
    क्या लिखू ये तो तब सोचूंगा जब जैसा आपने लिखा वैसा महसूस करूँगा..
    चर्चा पर इस ब्लॉग को लाने के लिए थैंक्स तो कह ही दू :)

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    ब्लॉग काफ़ी विद कुश के मेहमानों की लिस्ट
    काफ़ी विद कुश का पहला ही एपिसोड * पल्लवी त्रिवेदी (महिला)
    दूसरा एपिसोड * डा अनुराग आर्य (पुरुष)
    तीसरा एपिसोड * पारूल जी (महिला)
    चौथा एपिसोड * समीर लाल 'ऊडनतश्तरी' (पुरुष)
    पांचवा एपिसोड * रंजना भाटिया (महिला)
    छंटा एपिसोड * अरुण अरोड़ा 'पंगेबाज' (पुरुष)
    सांतवा एपिसोड * लावन्या शाह (महिला)
    आँठवा एपिसोड * नीरज गोस्वामी (पुरुष)
    नौंवा एपिसोड * अनोनिमस (लिंग निर्धारण नहीं)
    दसवा एपिसोड * शिव कुमार मिश्रा (पुरुष)

    सीजन टू
    पहला एपिसोड * अमर कुमार जी (पुरुष)

    जनहित में जारी

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  22. kush mae guest list ki baat nahin kar rahee hun mae equal particpation in discussion ki baat kar rahee hun

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