एनीमेशन - साभार पिम्प मायस्पेस
नौरंगी बारिश
अब साहित्य के नौ रससे रंगी ये बारिश .....
शांत रस बनकर टिप टिप कर बरस जाती है
श्रृंगार रस बन सज जाती है हरी चद्दरसी धरती का आँचल बन ...
गरज बादल की कोई लड़ाकेकी वीर रस की झलक दे जाती है
छिपकर किसी कौनेसे सूरज की नटखट किरन
बादल के केनवास पर मेघधनुषका अद्भुत नज़ारा दे जाती है .....
बचपन गूंजता है गलियोंमें शहर की हास्य रस बनकर
छापक छै करता बचपन नहाता है जब भरपूर सावनमें ....
तोड़ती है किनारों का बंधन ये बहती नदी
सैलाब बनकर इंसानकी आँखोंमें करुण रसमें भीगे अश्क ले आती है .....
बाकी के रंग आगे पढ़ें>>
बारिश : चार मन:स्थितियाँ
01-
कविता में क्या है-
शब्द ?
रूप ?
गंध ?
प्रकृति के कोरे कागज पर
बारिश लिख रही है छंद।
02-
बारिश आई
याद आई छतरी
याद आए तुम
याद आया घर।
ओह ! कितनी देर से
भटक रहा हूँ बाहर
इधर – उधर।
और दो मनःस्थितियाँ पढ़ें>>
आ कर छू लो कोरा है मन…
रिमझिम रिमझिम , बरसे सावन ।
तुमको पुकारे , अब मेरा मन ।
तुम बिन , सूना सूना सावन ।
दिल में आग लगा ही देगा , मौसम ये पुरवाई का ॥
दिल को अच्छी लगीं , फुहारें ।
गुलशन में आ गयीं , बहारें ।
धड़कन तेरा नाम , पुकारें ।
एक झलक दिखला दो अपनी , मस्ती भरी अंगड़ाई का ॥
इस बारिश में , भीग रहा तन ।
आकर छू लो , कोरा है मन ।
बिन सजनी के , कैसा साजन ।
आ भी जाओ फेंक के अपना , चोला ये रुसवाई का ॥
मन और भी कोरा है… आगे देखें >>
धरासार धरा पर…
इस छोर से उस छोर तक,
मेघों का श्यामल फैलाव।
पवन के प्रबल वेग से उड़े,
धरती को सरस करती छांव।
पल में घन उमड़-घुमड़ आते,
ज्यों बरसाती घास।
वारिद-विद्युत विभूषित व्योम,
मोह – जनित भव - दारुण।
प्रीति रस से भरा घनमाल,
रिमिर-झिमिर वर्षा, मृदु गर्जन।
मेघगीत का हर्षित स्वर है
जन-जन में विश्वास।
धरासार जारी है… >>
बारिश भी अखरती है…
बेइंतिहाँ मोहब्बत की है तुझसे मैने
इकरार तो करुँ, मगर जालिम जुबाँ अटकती है
आफ़ताब समंदर की चादर ढक कर सो गया है
मुलाकात जो कल खत्म हुई, वो आज खटकती है
वो जो चंद लम्हें, गुज़रे थे इक चादर मे
बरस गुज़र गये ,मगर चादर अब भी महकती है
वही पुराना अच्छा मौसम है, सिर्फ़ तुम नही हो
अब बहार अखरती है तो बारिश भी अखरती है
पूरा पढ़ें>>
बरसात की बात
मौसम के इस बदलते मिजाज से
हमारी बरसात से जुड़ी खुशियां बहुगुणित हो
किश्त दर किश्त मिल रही हैं हमें
क्योकि बरसात वैसे ही बार बार प्रारंभ होने को ही हो रही है
जैसे हमें एरियर
मिल रहा है ६० किश्तों में
मुझे लगता है
अब किसान भी
नही करते
बरसात का इंतजार उस व्यग्र तन्मयता से
क्योंकि अब वे सींचतें है खेत , पंप से
और बढ़ा लेते हैं लौकी
आक्सीटोन के इंजेक्शन से
बाकी की बरसाती बात में भीगें>>
कल ऐसी बरसात नहीं थी
झूले भी थे आंगन भी था तूफानों की बात नहीं थी
कल ऐसी बरसात नहीं थी।
भीगे आँचल में सिमटी सी बदली घर-घर घूम रही थी
आसमान के झुके बदन को छू कर बिजली झूम रही थी
घुटी हवाएं उमस भरे दिन और अँधेरी रात नहीं थी
कल ऐसी बरसात नहीं थी।
और, कल ऐसी बरसात होगी?>>
बरसात पर परवीन शाकिर की एक गजल
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ-साथ
ऐसी बरसातें कि बादल भीगता है साथ-साथ
बचपने का साथ है, फिर एक-से दोनों के दुख
रात का और मेरा आंचल भीगता है साथ-साथ
वो अजब दुनिया कि सब खंजर-ब-कफ फिरते हैं और
कांच के प्यालों में संदल भीगता है साथ-साथ
चंद और बरसाती शेर इधर>>
बरसात
घना फैला कोहरा
कज़रारी सी रात
भीगे हुए बादल लेकर
फिर आई है ‘बरसात’;
अनछुई सी कली है मह्की
बारिश की बूंद उसपे है चहकी
भंवरा है करता उसपे गुंजन
ये जहाँ जैसे बन गया है मधुवन;
बारिश की झड़ी जारी है>>
झाया बरसात
(I have tried to type in Hindi & I don’t know much about it, sorry for errors)
कुछ अरसे पहले की बात है,
जब हम अपने आपमें मदहोश रहते थे,
ज़माने की फ़िक्र तो हमे कभी न थी,
वोह वक़्त था,
जब हम सब नज़रअंदाज़ किया करते थे.
कुछ सपने हमने भी संजोये थे,
और उन्हीमें ज़िन्दगी ढूंडा करते थे,
बूंदाबांदी तोह तभी हुआ करती थी,
हम वोह नासमझ थे,
जो आपनी प्यास पानी से बुजाया करते थे.
बरसाती कहानी अभी जारी है>>
बरसात की एक शाम...
इस मौसम की सबसे जोरदार बरसात
अबके नहीं आई मुझे तुम्हारी याद ......क्यों?
क्या इसलिए
कि मै
अब तक
अपने घर के निचले तल से
पानी निकालने में व्यस्त था
या फिर अब तक
घर न लौटे भाई की
चिंता सता रही थी मुझे
या फिर…
बारिश जारी है और साथ में चिंता भी>>
सच बरसात का!
फ़लक पे झूम रही सांवली घटायें हैं,
बदलियां हैं या, ज़ुल्फ़ की अदायें हैं।
बुला रहा है उस पार कोई नदिया के,
एक कशिश है या, यार की सदायें हैं।
बाकी के बरसाती सच जानना नहीं चाहेंगे?>>
रिमझिम के तराने लेके आई बरसात
"आज फिर तेरी याद आई बारिश को देख कर,
दिल पर ज़ोर ना रहा अपनी बेक़सी को देख कर,
रोए इस क़दर तेरी याद में,
कि बारिश भी थम गई मेरी अश्कों के बारिश देख कर।"
"गिरती हुई बारिश के बूंदों को अपने हाथों से समेट लो,
जितना पानी तुम समेट पाए, उतना याद तुम हमें करते हो,
जितना पानी तुम समेट ना पाई, उतना याद हम तुम्हे करते हैं।"
"कल शाम की बारिश कितनी पुरनूर रही थी,
जो बूंद बूंद तुम पर बरस रही थी,
मुझे भी मधोश कर देने वाली तुम्हारी,
ख़ुशबू से महका रही थी,
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे
इस धरती पर अम्बर तले सितारों की हदों तक सिर्फ़
दो ही वजूद बस रह गए हैं,
एक मैं और एक तुम।"
शेष तराने सुनें और बारिश में झूमें>>
लो आया बरसात का मौसम
लो आया बरसात का मौसम
रूमानी जज़्बात का मौसम।
दिलवालों के साथ का मौसम
अंगड़ाई की रात का मौसम।।
मद्धम मद्धम बूंदा बांदी
प्रेम रंग में भीगी वादी
दो दिल नजदीक आ रहें
ये शीरी फ़रहाद का मौसम।
लो आया बरसात का मौसम।।
दूर हुई सबकी नासाज़ी
शुरु दिलों की सौदेबाज़ी
उसका ले लो अपना दे दो
फिर देखो क्या ख़ास है मौसम।
लो आया बरसात का मौसम।।
बरसात का मौसम अभी गया नहीं है>>
बरसात
जड़ चेतन सब झूम रहे है
मिल कर गाते मेघ मल्हारें
बिना रुके तुम बरसो बादल
छा जाओ मन मंडल पर
मन में आता है की पंक्षी सा हम खूब नहाये,
खेतों में फसलें लहलायें
कृषकों के चहरे मुसकाएं
झूमे गाँव आज फिर मस्ती में
और ख़ुशी भारत की हर बस्ती में
बरसात की फुहार में और भीगें>>
चुनरी भीगल, चोली भीगल… भीगे रे जुल्मी जवानी !
फिल्मों में बरसात का चित्रांकन पैसे, समय व तकनीक के लिहाज से सदैव चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है, असली बरसात में गाना या दृश्य फिल्माना तकनीकी दृष्टिकोण से मुश्किल रहा है चुनांचे फिल्म वाले इसके लिए कृत्रिम बारिश करवाते हैं, पर भोजपुरी निर्माताओं के लिए यह मशीनी बारिश करवाना इतना आसान नहीं क्योंकि इसमें काफी पैसे, समय व तकनीक की जरूरत होती है और हिंदी फिल्मों की तरह यहां धन भी कम ही बरसता है, संभवत: इसीलिए भोजपुरी फिल्मों में भी गिने-चुने बारिश के गीत या दृश्य हैं, पर इनमें से भी कुछ गाने तो अद्भुत बन पड़े हैं जो मन में कोमल भाव जगाने के लिए काफी हैं
बाकी बरसाती शूटिंग के लिए कैमरा रोल कर रहा है. इधर>>
जीत
गड़ गड़ गड़ गड़ गड़. आवाज़ सुनकर अचानक लल्ला डर गया. फिर संभलकर मुस्कुराया और बोला- क्युटू! तुझे पता है ये किसकी आवाज़ है??
तुझसे ज्यादा पता है, तेज़ तर्रार क्युटू ने जवाब दिया.
तो बताओ क्या पता है?
बादल गरज रहे हैं, उल्लू!!
बादल क्यों गरजते हैं??
अरे तुझे नहीं पता? जब कोई खेलते वक्त चीटिंग करता है ना भगवान् जी उसको बहुत सारे मुक्के मार्ते है, इसलिए वो आवाज़ बादल गरजने जैसी होती है उल्लू!!
अरे तो छिपकली ये भी बता दे फिर बरसात कैसे होती है?
बरसाती कहानी आगे पढ़ें>>
वर्षा मंगल तरही मुशायरा
बड़ी ही शोख तेरी मस्त ये अदाएं हैं
इसी में डूब के महकी हुई हवाएं हैं
न जाने कितने दिन के बाद भींगा मौसम है
हरी-हरी-सी लगी बाग़ की लताएँ हैं
तुम्हारा प्यार बरसता अषाढ़ बनकर के
हरेक बूँद में जैसे तेरी सदाएं हैं
मचल रहा है मेरा दिल किसी से मिलने को
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएँ हैं
तुम्हारे प्यार में पागल हुआ है दिल मेरा
मेरी दिवानगी की अब कई कथाएँ हैं
न जाओ दूर, करो तुम न ऐसी बतियाँ भी
विरह की बात मुझे हर घड़ी रुलाएं हैं
तुम्हारे पास है दौलत फरेब की लेकिन
हमारे पास बुजुर्गों की बस दुआएं हैं
तेरी वफ़ा को नज़र ना लगे ज़माने की
यहाँ तो नाच रही हर तरफ ज़फाएं हैं
तुम्हारा साथ मिला इसलिए लगा पंकज
हमेशा दूर रही मुझसे हर बलाएँ हैं
बरसाती मुशायरा अभी तो शुरू ही हुआ है>>
अबके सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई -------
मनवा में , आज कुछ बातें मौसम की आप कहेगें की मन की बात करने वाला " मनवा " आज मौसम की क्यों बात करने लगा - दोस्तों बात दरअसल मन की ही है बस शुरू मौसम से करते हैं आप सभी बरसात के इंतजार में है लेकिन बादल ना जाने क्यों रूठे हुए है वो आते तो है किसी आतुर प्रेमी की तरह बरसने के लिए लेकिन ना जाने क्यों इस धरती को अपनी झलक दिखा कर दरवाजे से ही लौट जाते है मानो कह रहे हों आज समय नहीं है ज़रा काम में व्यस्त है फिर कभी देखेगे और धरती फिर इक बार बादलों की इस चतुराई और सयाने पन को समझ कर मुस्कुरा देती है वो जानती है ये बादल जरुर कहीं न कहीं बरसने ही गए है लेकिन धरती के किस टुकड़े को मेघों की कितनी जरुरत है ये बादल कभी जान ही नहीं पाते हैं…
बरसात की शरारत खत्म नहीं हुई है अभी
बरसाती ग़ज़ल
मेरी आँखों में छाए घटा शर्म की
तेरी आँखों में रिमझिम है बरसात है
..
मेरे आंगन जो बरसे फ़क़त आब है
तेरे आंगन जो बरसे वो बरसात है
बरसात के बाद के चंद शेर और भी हैं>>
दिल्ली में छपाक.. छई..
दिल्ली शहर में जब बारिश हुई तो झमाझम हुई.. बदरा बरसे तो जी भरकर बरसे.. आसमान में काली घटा ऐसी छाई, कि फिर तो रातभर बारिश ने मूसलाधार रूप अख्तियार कर लिया... बादलों ने तन और मन भिगो कर रख दिया.. लेकिन इस शहर और अपने गांव में यही फर्क है, कि यहां बारिश का मज़ा लेने के बजाए लोग चाहरदीवारी में ही कैद होकर रह जाते हैं।
और एक अपना गांव है, जहां बारिश में जमकर भीगो, कोई रोक-टोक नहीं... दिल्ली में बारिश झमाझम हो रही थी.. लेकिन ये क्या... एक घंटे बाद टीवी ऑन किया, तो हर चैनल पर डूबती-उतराती दिल्ली की तस्वीरें नज़र आ रही थी... शहर में कई-कई फुट पानी भर चुका था, गाड़ियों की लंबी-लंबी कतारें लगी थीं, दिल्ली जाम से दो-चार हो रही थी, और दिल्ली वाले बारिश से तरबतर। राजधानी की हालत पर तरस आ रहा था.. लेकिन क्या करें, बदहाली के लिए भी हम लोग ही ज़िम्मेदार हैं.. घर में नहीं हैं दाने और अम्मा चली भुनाने की तर्ज़ पर लोन लेकर गाड़ियों का अंबार लगाने पर तुले हैं.. और फिर जब घुटनों पानी से मशक्कत करके घर पहुंचते हैं, तो सरकार को कोसते हैं... सड़कें भी आखिर क्या करें... फैलकर बड़ी तो नहीं हो सकती न...
दिल्ली की छपाक छई जारी है>>
बहाने बनाता बरसता शेर
प्यासी धरती मांग रही कब से थोड़ी बारिश लेकिन,
मेघों की साहूकारी में सिर्फ बहाने मिलते हैं.
बाकी के उफनती नदी जैसे शेर>>
सरकारी बरसात
झिंगुरों से पूछते, खेत के मेंढक
बिजली कड़की
बादल गरजे
बरसात हुयी
हमने देखा
तुमने देखा
सबने देखा
मगर जो दिखना चाहिए
वही नहीं दिखता !
यार !
हमें कहीं,
वर्षा का जल ही नहीं दिखता !
एक झिंगुर
अपनी समझदारी दिखाते हुए बोला-
इसमें अचरज की क्या बात है !
कुछ तो
बरगदी वृक्ष पी गए होंगे
कुछ
सापों के बिलों में घुस गया होगा
सरकारी बरसात पर अनुदान मिल रहा है>>
ब्लॉग बरसात जारी है… बाढ़ आने की पूरी संभावना है. सावधान रहें…
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