नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार सोमवार की चर्चा लेकर हाज़िर हूं। शनिवार को तरुण जी आ रहे हैं। तो अब से मैं सोमवार को ही आया करूंगा।
तो आइए चर्चा शुरु करते हैं।
अबूझमाड़ के आदिवासिओ के बीच बिताये पल
भड़ास blog पर Akhilesh जी की एक चित्रात्मक पोस्ट है, जो नक्सलवाद के चलते भोले-भाले अबुझ्मद के आदिवासी विषम परिस्थितियो में कैसे जीवन बिता रहे है, उसको बहुत ही सजीवता से प्रस्तुत करती है।. अखिलेश जी ने विगत दिनों इन आदिवासिओ के बीच एक दिन बिताया। और आज वो प्रस्तुत कर रहे हैं उनके जीवन की कुछ तस्वीरें। एक तस्वीर मैं यहां दे रहा हूं, बाक़ी आप उनके पोस्ट पर देखिए।
स्वयं उतारी ताड़े और सल्फी पीकर आनंद में मस्त रहते है।
यह पोस्ट उस आदिवासी इलाक़े का टोटल प्रभाव उत्पन्न करता है।
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डोली पर बैसल कनिया ( Bride going to her husband's house )
आपको मैथिली आती हो या नहीं इस पोस्ट को ज़रूर देखें। यह Kohbar पर Jyoti Chaudhary की प्रस्तुति है। इसमें एक छवि है जिसमें डोली पर बैठी दिल्हन को चित्र के द्वारा दिखाया गया है। मधुबनी या मिथिला चित्रकला शैली में बनाया गया है यह चित्र। पहले दुल्हन की विदाई महफा(डोलॊ) पर होती थी। साथ में रास्ते के लिए पानी आदि दिया जाता था। चित्र को देखिए और सराहे बिना न रह पाएंगे आप।
है ना अद्भुत! इन सब लोक कलाओं को जीवित रखना हमारा फ़र्ज़ है।
इंसानियत कि पाठशाला व संस्थान कि आज इस देश को सख्त जरूरत है ....क्या आप खोलना चाहेंगे ऐसी पाठशाला....?
यह प्रश्न पूछ रहे हैं honestyprojectrealdemocracy पर honesty project democracy जी। कहते हैं “हमारे देश और समाज कि अवस्था बेहद दर्दनाक व भयानक होती जा रही है | सामाजिक परिवेश इस तरह दूषित हो चुका है कि ह़र कोई विश्वास का गला घोंटकर अपना स्वार्थ साधने को अपनी काबिलियत व योग्यता समझने लगा है|”
आगे कहते हैं,
इन सारी बातों को देखते हुए आज जरूरत है हर शहर में इंसानियत के पाठशाला और संस्थानों कि जो सच्ची इंसानियत कि पाठ पढ़ाने का दुष्कर कार्य को अंजाम दे सके ,क्या आप खोलना चाहते हैं ऐसी पाठशाला व संस्थान ..? मैंने तो सोच लिया है ऐसा एक पाठशाला या संस्थान चलाने कि इसमें हमें सरकारी सहायता कि आशा तो नहीं है लेकिन सच्चे और इमानदार इन्सान के हार्दिक सहयोग कि मुझे पूरी आशा है |
इरादा नेक है। आपको सफलता मिले।
बदल जाएगा तकनीकी शिक्षा का चेहरा!
बता रहे हैं भाषा,शिक्षा और रोज़गार पर शिक्षामित्र। कहते हैं कि तकनीकी पेशेवरों की फौज तैयार करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय कई नए कदम उठाने की तैयारी में है। इसके लिए परंपरागत रूप से दी जा रही तकनीकी शिक्षा का चेहरा बदलने की कोशिश की जा रही है। अभिभावकों और छात्रों को स्कूली शिक्षा से तकनीकी शिक्षा की तरफ शिफ्ट करने की कोशिश की जा रही है।
आगे बता हैं
एक पहल तकनीकी शिक्षा के लिए साइंस की पढ़ाई की अनिवार्यता खत्म किए जाने की तैयारी हो रही है। यानी किसी भी पेशेवर कोर्स में प्रवेश के लिए भविष्य में न्यूनतम शैक्षिक योग्यता में पढ़ाई के कुल वर्ष देखे जाएंगे न कि 11-12वीं में पढ़े गए विषय।
बहुत ही रोचक जानकारी प्रस्तुत किया है आपने।
आवारा हूँ ...
जी ये एक आलसी का चिठ्ठा है गिरिजेश राव द्वारा प्रस्तुत किया गया है। जब कोई यह ऐलान करेगा कि आवारा हूं तो यह तो कहेगा ही कि आवारगी हमेशा बुरी नहीं होती। तब जब ब्लॉग जगत में यूँ ही निरुद्देश्य घूमा जाय तो यह बहुत अच्छी हो जाती है। हिन्दी सिनेमा को गिरिजेश जी निरर्थक मनोरंजन की एक विधा मानते थे।
पूर्वग्रह जब मस्तिष्क पर काई सा बैठ जाय और पसरता हुआ जड़ जमा जाय तो घातक रोग में तब्दील हो जाता है।
भीड़ और फ़ितरत
संवादघर पर संजय ग्रोवर प्रस्तुत कर रहे हैं एक लघुकथा।
मुझे देखकर उन डूबती निगाहों में उम्मीद और विश्वास की जो चमक कौंधी, उसने मुझे बदल डाला।
मैं कूद पड़ा दरिया में। भंवर मुझे तैरना सिखाने लगा। लहरें बोलीं मामूली काम है, डरते क्या हो ! तूफ़ान ने पैग़ाम भेजा कि तुम अपना काम कर लोगे तभी मैं उस तरफ़ आऊंगा। मैंने उसे बचा लिया।
भीड़ के चरित्र पर अच्छा कटाक्ष है इस लघुकथा में!
संडे के दिन पत्नी के बजाय जब मैंने डोसा बनाया... कुछ रोचक राजनीतिक अनुभव हुए .....जाना कि डोसा बनाना भी एक कला है....आखिर देश एक तवा जो ठहरा.........सतीश पंचम
सफ़ेद घर में सतीश पंचम जी बताते हैं कि आज sunday वाली छुट्टी के दिन जब घर में डोसा बनाया जा रहा था तब उसी वक्त पीने का पानी भी आ गया। अब या तो डोसा बनाया जाय या पानी भरा जाय यह दुविधा थी। ऐसे में पत्नी को उन्होंने कहा कि आज तुम पानी भरो और मैं डोसा बनाता हूँ।
यह देश एक डोसा मेकिंग एक्टिविटी की तरह है....नीचे से आँच तो नेता लोग लगाते ही रहते हैं.....लेकिन हर मसला समय बीतने के साथ या तो खुद ब खुद सुलझ जाता है या सख्त होकर कभी न सुलझने के लिए काला पड़ जाता है ।
अब जब डोसे बनाने में आपको देश दिखने लगने लगा, देश देख लीजिये, हालात साँभर जैसी है।
मॉडर्न भौतिकी और सुंघनी
मानसिक हलचल: विफलता का भय पर ज्ञानदत्त पाण्डेय जी कहते हैं वे जवान और गम्भीर प्रकृति के छात्र हैं। विज्ञान के छात्र। मॉडर्न भौतिकी पढ़ते हैं और उसी की टमिनॉलॉजी में बात करते दीखते हैं। अधिकांशत: ऐसे मुद्दों पर बात करते हैं, जो मुझे और मेरी पत्नीजी को; हमारी सैर के दौरान समझ में नहीं आते। हम ज्यादातर समझने का यत्न भी नहीं करते – हमें तो उनकी गम्भीर मुख मुद्रायें ही पसन्द आती हैं।
अगर भारत समृद्ध होता और उन्हें सिविल सेवाओं की चाहत के लिये विवश न करता तो भारत को कई प्रीमियर वैज्ञानिक मिलते – कोई शक नहीं। पर उसे मिलेंगे सेकेण्ड-ग्रेड दारोगा, तहसीलदार, अध्यापक और कुछ प्रशासनिक सेवाओं के लोग।
गुरू पूर्णिमा पर ओशो नमन !!
कर रहे हैं Samvedana Ke Swar पर सम्वेदना के स्वर।
मैं चाहता हूं तुम्हें निर्भार करना -
ऐसे निर्भार कि तुम पंख खोल कर
आकाश मे उड़ सको.
मैं तुम्हें हिन्दू,मुसलमान, ईसाई, जैन, बौद्ध
नहीं बनाना चाहता
मैं तुम्हे सारा आकाश देता हूं.
मैं गुरु इस मायने में ही हूं
कि मेरी साक्षी में तुमने
स्वयम् को जानने की
यात्रा आरम्भ की है,
इससे आगे मुझसे उम्मीद मत रखना.
ओशो की बात ही निराली है! उनकी व्याख्या गुरु पूजा के कुछ नये आयाम खोलती है ! गुरु को समर्पित आपकी पोस्ट सच में कमाल है ! गुरु पर्व की बहुत बहुत बधाई!!
आ कर छू लो कोरा है मन ( गठरी ब्लाग)
गठरी पर अजय कुमार की प्रस्तुति।
तन्हां तन्हां मैं रहता हूं ,आलम है तन्हाई का ।
आती है आवाज ,तुम्हारी यादों में शहनाई का ॥
रिमझिम रिमझिम , बरसे सावन ।
तुमको पुकारे , अब मेरा मन ।
तुम बिन , सूना सूना सावन ।
दिल में आग लगा ही देगा , मौसम ये पुरवाई का ॥
इस बारिश में , भीग रहा तन ।
आकर छू लो , कोरा है मन ।
बिन सजनी के , कैसा साजन ।
आ भी जाओ फेंक के अपना , चोला ये रुसवाई का ॥
भाषा की सादगी, सफाई, प्रसंगानुकूल शब्दों का खूबसूरत चयन, भाषिक अभिव्य्क्ति में गुणात्मक वृद्धि करते हैं।
(title unknown) पंजाबी कहानी - पठान की बेटी - सुजान सिंह
संस्कृति सेतु पर समवेत स्वर द्वारा कहानी श्रृंखला – 8 के अंतर्गत इस पंजाबी कहानी की अनुवादक हैं नीलम शर्मा ‘अंशु’।
ग़फूर पठान जब भी शाम को अपनी झोपड़ी में आता तो उन झोंपड़ियों में रहने वाले बच्चे ‘काबुलीवाला’ - ‘काबुलीवाला’ कहते हुए अपनी झोंपड़ियों में जा छुपते। एक छोटा सा सिक्ख लड़का बेखौफ वहाँ खड़ा रहता और उसके थैले, ढीली-ढाली पोशाक, उसके सर के पटे और पगड़ी की तरफ देखता रहता। गफ़ूर को वह बच्चा बहुत प्यारा लगता था। एक दिन उसने लड़के से पठानी लहज़े वाली हिंदुस्तानी ज़बान में पूछा - ‘तुमको हमसे डर नहीं लगती बाबा ?’
पठान कह रहा था - ‘ज़ालिम को बच्ची नहीं देने का। बचाओ! बचाओ! ये लोग मार डालेगा। मेरा बेटी को, ये जालिम.....कसाई।’
थानेदार कड़क कर बोला, ‘तो तू इसको बचाने के लिए उठा कर ले गया था?’ चारों तरफ हंसी का ठहाका गूंज उठा। कोई कह रहा था, ‘शैदाई है।’ कोई कह रहा था, ‘बनता है।’ परंतु ग़फूर रोए जा रहा था।
एक बहुत ही अच्छी प्रस्तुति। सरस अनुवाद।
सरकारी अनुदान
बेचैन आत्मा पर बेचैन आत्मा की कविता।
झिंगुरों से पूछते, खेत के मेंढक
बिजली कड़की
बादल गरजे
बरसात हुयी
हमने देखा
तुमने देखा
सबने देखा
मगर जो दिखना चाहिए
वही नहीं दिखता !
यार !
हमें कहीं,
वर्षा का जल ही नहीं दिखता !
एक झिंगुर
अपनी समझदारी दिखाते हुए बोला-
इसमें अचरज की क्या बात है !
आपकी बैचेनगी काफी तीखे व्यंग करती है। बरगदी वृक्ष और साँप के बिल के माध्यम से जो आपने व्यंजक अर्थ दिए हैं गजब हैं। 'सरकारी अनुदान' नाम की यह रचना भविष्य में हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा गया तो उसमें इस रचना का उल्लेख किया जाना अवश्य चाहिए।
कलरफ़ुल चर्चा है। वाह जी वाह!
जवाब देंहटाएंभाषा,शिक्षा और रोज़गार की पोस्ट को शामिल करने के लिए शुक्रिया। जिन पोस्टों को लिया गया है,वे सब महत्वपूर्ण मालूम होते हैं। अभी देखता हूं खोलकर।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार लिंक्स ...आभार ..!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा | आभार।
जवाब देंहटाएंसमीक्षा के साथ प्रस्तुत अच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंमनभावन चर्चा!
जवाब देंहटाएंआभार्!
bahut badhiya.
जवाब देंहटाएंअलग अलग रंग हैं आज की चर्चा में आपकी.
जवाब देंहटाएंye tippani post kyon nahi hoti
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार/////////
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंलिंक्स देख रहा हूँ
सच में रंगीन चर्चा ... अच्छे लिंक हैं ....
जवाब देंहटाएंअच्छा विश्लेषण ।
जवाब देंहटाएंनये लिंक्स के साथ बेहतरीन चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा | आभार।
जवाब देंहटाएंचर्चा देखी ......आभार!!
जवाब देंहटाएंचर्चा अपने आप में बहुत कुछ लिये है ।
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