- आम तौर पर दूल्हों को मालूम नहीं होता कि कितनी देर घोड़ी पर बैठे। आजतक ने बताया कि धोनी पांच मिनट तक घोड़ी पर बैठे। रवीश कुमार
- संवाददाता : तो आप देख ही रहे हैं कि यह घोड़ी, कितनी खुश है धोनी को मंडप तक पहुंचा कर.. हिन् हिन् बोलते वक्त कैसे इसके सरे दाँत दिख रहे थे, मानो खुशी से पागल हुई जा रही हो यह घोड़ी.. कैसी सजी-धजी घोड़ी है, यह आप देख ही रहे हैं..
घोड़ी से, "क्या आप बता सकती हैं कि धोनी ने उस वक्त किस तरह के कपडे पहन रखे थे?"
घोड़ी : हिन् हिन् हिन् हिन् हिन् हिन् !!!! पीडी - “तुम्हारे मरने से सारी समस्याएँ हल नहीं हो जायेंगी और ना दुनिया रुक जायेगी, बस तुम्हारा नुक्सान होगा. इतनी प्यारी चीज़ तुमसे छिन जायेगी और दोबारा कभी नहीं मिलेगी … तुम्हारी ज़िंदगी.” उसके बाद मैंने आत्महत्या के बारे में कभी नहीं सोचा… वो ऐसे ही थे.आराधना
- लेकिन मैंने भी दर्शक-दीर्घा से जिद कर-कर के उनसे अपनी पसंदीदा वो "भ्रमर कोई कुमुदिनी पर" वाला मुक्तक पढ़वा ही लिया। दर-असल ये मुक्तक प्रेम में बौराये और विरोध झेले हुये हर युवामन का संताप समेटे हुये है। तीन साल पहले जब मैंने पहली बार उस कैडेट से ये पंक्तियाँ सुनी थी तो बड़ा अफसोस हुआ था कि ये और दो साल पहले क्यों नहीं सुना मैंने कि मेरे प्रेम-विवाह की घोषणा से नाराज माँ-पापा को सुना पाता तब ये मुक्तक तो शायद उन्हें मनाना तनिक और आसान हो जाता :-)। गौतम राजरिशी
- गाँवों में कई कहाँनिया...कई बातें....कई गोपन छिपे होते हैं.....आराम कर रहे होते हैं.....जिन्हें यदि खुलिहार दिया जाय तो ढेर सारी बातें उघड़कर सामने आ जांय ..... मानों वह बातें खुलिहारे ( छेड़े) जाने का ही इंतजार कर रही हों। सतीश पंचम
- मैंने कई बार ऐसी पोस्ट लिखी जिसमें तमाम महान लोगों को दो कौड़ी का बताया. कई बार तो मैं गाँधी जी को भी बेकार घोषित कर चुका हूँ. मैं चाहता हूँ कि मेरे पुत्र मेरे इस काम को भी आगे बढायें. महीने में कम से कम एक पोस्ट ऐसी लिखें जिसमें किसी महापुरुष को बेकार बतायें. ऐसी पोस्ट लिखने से खूब नाम होता है.ब्लॉगर हलकान विद्रोही बजरिये शिवकुमार मिश्र
- अमेरिका जैसे देश से कोई भी चीज़ नामुमकिन नहीं.
वह चाँद पर पहुँच भी सकता है,
और
चाँद पर पहुँचने का फ्राड भी कर सकता है. जीशान जैदी - आप किसी भी मूलभूत सिद्वान्तों को लेकर चलें, उनमें कुछ इस तरह के कथन अवश्य निकल आयेगें जो न कि सही साबित किये जा सकते है न गलत। सुसंगत गणित सम्भव नहीं है ... प्रत्येक व्यवस्था अपूर्ण है। प्रख्यात तर्कशास्त्री गर्डल का कथन उन्मुक्त जी की पोस्ट का अंश
- ब्लॉगर संजीत त्रिपाठी को चौथा सृजन गाथा सम्मान आरंभ
- 5 जुलाई को सत्ता के दलालों ने आम जनता को न्यौता दिया है - भारत को बन्द करो ! आप से अनुरोध है कि इस वाहियात न्यौते पर अमल न लाइए। काम कीजिए। इस दिन दो के बजाय चार फाइलें निपटाइए। रुके हुए पेमेंट कराइए। दुकान पर ग्राहकों से थोड़ा और प्रेम से बतियाइए। कोई रुका हुआ फैसला ले लीजिए। ... उन्हें बताइए कि भारत बन्द नहीं हो सकता! गए वो ज़माने !! अब यह देश चल पड़ा है। दौड़ने को कहो दौड़ेगा, रुकने को कहोगे तो तुम्हें रौंदेगा। नौटंकी अब गली गली नहीं रंगशालाओं में ही होगी और कायदे की होगी - भँड़वागीरी नहीं चलेगी।
गिरिजेश राव - निजी तौर पर मुझे ये बदलाव बहुत बड़ा दिखता है , जहां रोमन सम्राटों के पसंदीदा अ'रीना , बड़े बड़े राष्ट्रों में तब्दील गये हों और 'एम्परर' 'लोकशाहों' का मुखौटा पहन कर अभिनय कर रहे हों ! तब के परिजनों के बच्चे दासों की शक्ल में बिकते और अब के बच्चे , नौकर / कर्मचारियों की शक्ल में ! खरीदार तब भी इंसान थे, खरीदार अब भी इंसान हैं ! कुछ छोटे, कुछ बड़े, कुछ चिल्लर और कुछ थोक व्यापारी ! व्यापार की टर्म्स एंड कंडीशन्स में बड़ा फर्क दिखता है अभी...तब माल की कीमत एकमुश्त चुकाई जाती थी अब रकम माहवाराना किश्तों में तय होती है ! जिस तरह से बर्बरियत के उस युग में सभी दास ग्लेडियेटर्स नहीं हुआ करते थे लगभग उसी तर्ज़ पर आज भी सभी नौकर ग्लेडियेटर्स नहीं हुआ करते ! उम्मतें
मेरी पसंद
कल्पवृक्ष की शाखा-सी
भुजा
होती यदि मेरी
कल्प-कल्पांतर में
काल के भाल को
अलकनंदा की गोद में भर
बना लेती अपना
रावी और ताप्ती के अजस्र प्रवाह में
पखार देती
काल के गतिमान पाँव।
कल-कल करती ब्रह्मपुत्र के
रूप विकराल में
कलि-काल
तिरती वांछाओं की छिदी नौकाएँ ले
ढूँढता दो हाथ वाली
मेरी बाँहें।
डॉ कविता वाचक्नवी
और अंत में
फ़िलहाल इतना ही। काजल कुमार का पहला वाला कार्टून देखकर लगा कि कार्टूनिस्ट की निगाह कवि से कम नहीं होती। आपका सप्ताह शुभ हो। दिन चकाचक बीते!
हम तो चलते हैं गिरिजेश राव की आज्ञा का पलन करने। आप भी निकलिये।
सटीक चर्चा
जवाब देंहटाएंkya charcha hai.. waah !
जवाब देंहटाएं:)
"धोनी दी शादी दा जवाब नईं" :))
जवाब देंहटाएंविहंगम चर्चा.
Ha,ha,ha! Dhoni ki ghodi kaa jawab hamesha yaad rahega!
जवाब देंहटाएंmajedar
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंइँटरनेटवा घरहिं में है, तो ऑफ़िस जाने की ज़रूरतै क्या है,
हम तो आज दो की जगह दो दर्ज़न पोस्ट पढ़ेंगे,
टिप्पणी का करियेगा, आज भारत बँद है !
धोनी हमारी घोड़ी के लिये बड़ा नऽ परिशान थे,
ईहाँ त पईसा पर मामला अटक गया रहा, तुम्हरा धोड़ी कितने में पटी हो, पी.डी. ?
खास अनूपिया चर्चा .उन्मते बढ़कर दिल खुश हुआ........गिरिजेश का आईडिया धांसू है ..... किसी देश में .शायद ..(..चीन में या जापान में- सिर्फ काली पट्टी लगाकर कामगार हड़ताल वाले दिन काम करते है ........वैसे बंद का विश्व रिकोर्ड बंगाल के नाम पर है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जी...
जवाब देंहटाएंधोनी के शादी की ऐसी रिपोर्ट 'कि घोड़ी खुश है या कितनी देर घोड़ी पर धोनी बैठे,... देने वाले क्या हम आप जैसे इसी धरती के सामान्य बुद्धि वाले इंसान हैं?
जवाब देंहटाएंकभी कभी शक होता है .
अनूप भाई शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा..
जवाब देंहटाएंक्या चर्चा है!! शानदार लिंक मिले, धन्यवाद. कविता जी की कविता बहुत कठिन है मुझे इतनी कठिन कवितायें समझ में नहीं आतीं :(
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा |अक से बढ़कर अक पोस्ट पढने को मिली |
जवाब देंहटाएंहँसते हँसते पढ़ी आज की चर्चा अनूप भाई ! धोनी की शादी से होके आने के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंआपको पढ़ना अच्छा लग रहा है. मेरी बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंबढ़िया लगा यह सब । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंआपकी पसंद मेरी भी पसंद बन गई...
जवाब देंहटाएंवाह! क्या पारखी नजर है..!
बहुत अच्छी चर्चा है। जय हो।
जवाब देंहटाएंकविता को सम्मिलित कर मान देने के लिए धन्यवादी हूँ।
जवाब देंहटाएंदिए गए लिंकों में से कुछ को पढ़ा , कुछ को देखा भर , कुछ को पढूंगा फिर !
जवाब देंहटाएंआराधना जी की प्रविष्टियाँ जहां भावुक करती हैं , वहीं गिरिजेश जी की पोस्ट
सोचुवाती है ! अलबत्ता राजरिशी जी की पोस्ट पर कुछ बक-बका आया हूँ !
यमक में कहूँ तो कविता जी की कविता सुन्दर है !
आभार !
बहुत बढ़िया जी !!
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा..!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा..
जवाब देंहटाएंयार ये घैम डण्डे हमारी समझ से बाहर है। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंयार ये घैम डण्डे हमारी समझ से बाहर है। धन्यवाद
जवाब देंहटाएं