एक घर वह थाबेचैन आत्मा पर बेचैन आत्मा प्रस्तुत कर रहे हैं सुंदर भाव लिए वर्तमान और अतीत को पिरोने वाली एक सुंदर कविता। जब आत्मा बेचैन होती है तब आदमी ऐसे ही सोचता है। देखिए ना एक दिन वह था
एक घर वह था
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पगडण्डीजज़्बात, ज़िन्दगी और मै पर Indranil Bhattacharjee ........."सैल" की गहरे विचारों से परिपूर्ण क्षणिकाएं पढिए। इसकी शैली चमत्कृत और प्रभावित करती है। सर्जनात्मकता के लिए विभिन्न बिम्बों का उत्तम प्रयोग अद्भुत प्रभाव उत्पन्न करता है। १ उसे बारिश में भींगना, पसंद है बहुत ! मुझे नहीं । बस इसी बात पे, हमारे बीच चमकती है बिजलियाँ । २ पहाड़ की पगडण्डी पर, तुम बढ़ गए थे आगे, और थोड़ी देर के लिए, सुस्ता कर, मैंने चुपके से सोख लिया था सन्नाटा । |
डॉ.) कविता वाचक्नवी की पाँच कविताएँआखर कलश पर नरेन्द्र व्यास जी प्रस्तुत कर रहे हैं।
न सोने वाली औरतो ! शीर्षक कविता अंधेरे ने छीन ली है भले आँखों की देख पर मेरे पास अभी भी बचा है एक दर्पण चमकीला।
सूर्य नमस्कार अंधेरी कोठरियों के वासी रहेंगे ठिठुरते ही काँपते ही तड़फड़ाते ही । हड्डियों तक बर्फ़ जमे लोग कैसे करें सूर्य-नमस्कार ?
छाँह में झुलसे जले कल्पदर्शी चक्षु का अविराम नर्तन तरलता के बीच पल-पल थिरकता है और छाया को तपन के ताड़नों से हेरता है।
बाँहें कल-कल करती ब्रह्मपुत्र के रूप विकराल में कलि-काल तिरती वांछाओं की छिदी नौकाएँ ले ढूँढता दो हाथ वाली मेरी बाँहें।
तू क्या रोंदे कीचती जाती हूँ और-और धुला-धुली में बहे जाती हूँ जल-धारा में गल-गल। कीचड़ खो-खो बह जाऊँ तो धुल जाऊँगी ? कहो, खिलाड़ी !
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“पाँव वन्दना” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")उच्चारण पर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक प्रस्तुत कर रहे हैं एक अनुपम रचना जो आशा का संचार करती है पूजनीय पाँव हैं, धरा जिन्हें निहारती। जो राम का चरित लिखें,
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अच्छा लगामनोरमा पर श्यामल सुमन जी की ग़ज़ल को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा। हाल पूछा आपने तो पूछना अच्छा लगा |
चिट्ठियांमेरे भाव अर मेरे भाव द्वरा लिखी गई चिट्ठियां बहुत भावात्मक कविता है। कागज का लघु अंश नहीं बैराग धरा है मीरा ने |
कुछ अटपटे कुछ चटपटे दोहेउमड़त घुमड़त विचार आ रहे हैं सूर्यकान्त गुप्ता जी के मन में तभी तो ये अटपटे हैं। चटपटे भी। ब्लॉग लेखन से क्या जुड़े, नित उमड़त रहत विचार जब तब फुरसत पाइके, लिख डारत आखर चार
प्रात खाट नित छोड़ि के, नित्य कर्म निपटाय योग करें, कसरत करें, या पैदल टहला जाय
ज्ञान सुमन सुरभित करे, धर्म ग्रन्थ साहित्य पठन मनन वाचन करें, अरु चिंतन लेखन नित्य
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चिन्नी- मंत्री पद की दावेदारीउड़न तश्तरी .... पर Udan Tashtari जी सुना रहे हैं एक गिलहरी कथा। लहते हैं, “अक्सर तो खाना खुद ही छिपा कर भूल जाती है फिर जगह जगह गढ्ढे करके ढूंढती है. बगीचा खराब हो सो अलग. नये नये पौधे लगाओ तो जमीन जरा पोली रहती है और वो समझती है कि नीचे उसका छिपाया खाना होगा इसलिए पोली जमीन है और लो, एक मँहगा पौधा उनकी कृपा से नमस्ते. है भोली, तो ज्यादा डांटा भी नहीं जाता.” और नहीं डांट डपट का नतीज़ा यह है कि, “जिस घर में पली, जिसके यहाँ साल भर प्रेम से खाना खाया, वहीं लूट मचा रखी है. पूरी चेरी खाने को तत्पर. जिस थाली में खाना सीखे, उसी में छेद. हार कर सब चेरी तोड़ लेना पड़ी. फिर भी उनके लिए कुछ गुच्छे छोड़ दिये हैं कि कहीं गुस्से में महारानी जी दूसरे पेड़ों को नुकसान न पहुँचाने लग जायें. टमाटर भी आने को ही हैं. एक बार आज उसने फिर न्यूसेन्स वेल्यू की वेल्यू साबित कर ही दी और यह भी स्थापित कर दिया कि जगह जगह का फेर कितना प्रभाव डालता है.”
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के.के.सिंह 'मयंक'को साहित्य हिन्दुस्तानी पर alka sarwat जी पेश करती हैं। बताती हैं गज़ल की दुनिया के लोग के.के.सिंह 'मयंक' से खूब वाकिफ हैं. देश ही नहीं, सात समन्दर पार तक मयंक जी की गजलें धूम मचा रही हैं. गज़ल के अलावा गीत, रुबाई, क़तआत, हम्द, नात, मनकबत, सलाम, भजन, दोहे पर भी आपकी अच्छी पकड़ है. अभी मयंक जी का एक नया रूप देखने को मिला. उन्होंने हास्य-व्यंग्य पर हाथ लगाया और कुछ रचनाएँ जन्म ले गईं. एक साहित्य हिन्दुस्तानी के हत्थे चढ़ गई जो यहाँ पेश है: |
“इस रचना का किसी से भी सम्बन्ध नही है!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)ऐसा भी क्या उच्चारण किया आपने डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी कि ये सब कहना पड़ रहा है। मुझसे बतियाने को कोई,
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धोनी की शादी में, दीवाना मीडिया !Samvedana Ke Swar पर ये सम्वेदना के स्वर नहीं हैं। कुछ तीखा, कुछ तल्ख। पर है कोई इनकी सुनने वाला। कहते हैं ये लोग बेशर्मी से अपना और देश का समय बरबाद करते हुए दिखाते रहे...कभी शादी में जाने वाली घोड़ी को, कभी घोड़ीवाले को, स्टूडियो में बैठे भाड़े के ज्योतिषियों को, एक चैनेल वाले तो भाड़े की दुल्हन भी पकड़ लाए कि उत्तरांचल की दुल्हन के लिबास में धोनी की दुलहन ऐसी लगेगी. देहरादून के उस होटल से जब धोनी अपनी नवविवहिता के साथ उड़न छू हो गया तब भाई लोग बेवकूफों की तरह होटल में घुस गए और बताने लगे कि यह देखिये यहाँ धोनी की शादी हुई थी, इनसे मिलिए ये हैं होटल के वेटर...जी हाँ! हमारे दर्शकों को बताइये क्या हुआ था?
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गाली का आनंद!!चला बिहारी ब्लॉगर बनने पर चला बिहारी ब्लॉगर बनने गाली का आनंद ले रहे हैं बता रहे हैं कि बिहार के हर सादी में लड़का वाला लोग जब बरात लेकर लड़की के दरवाजा पर जाता है, त दुल्हा को छोड़कर, सब को गाली सुनने को मिलता है, लड़की वाला के तरफ से. आगे कहते हैं केतना बार लड़का वाला लोग चलाकी से अपना सही नाम नहीं बताकर लड़कीए वाला पार्टी का नाम बता देता है. बस गाली चालू होते ही सब लोग ठठाकर हँस देता है, तब पता चलता है कि अपने अदमिया को गाली दिया जा रहा था.
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भीतर की खुरचनये है अनामिका की सदाएं। खोखली दिवारों के खाली मकान में रहती हूँ मैं. खाली बर्तन की तेज़ आवाज़ सी झूठी हंसी में .. खनकती हूँ मैं . साथ ही यह भी कहती हैं कि कुरेदो ना इस से ज्यादा मेरे भीतर की खुरचन को.. कब ना जाने खोखली दिवार सी ढह जाऊ मैं ...
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जन्मकुंडली में स्थित स्वक्षेत्री ग्रहों का प्रभावगत्यात्मक ज्योतिष पर संगीता पुरी जी समझा रही हैं फलित ज्योतिष में स्वक्षेत्री ग्रहों को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। पुराने शास्त्रों के अनुसार यदि किसी जन्मकुंडली में एक दो स्वक्षेत्री ग्रह हों , तो वह भाग्यवान होता है। किंतु 'गत्यात्मक ज्योतिष' के हिसाब से बात ऐसी नहीं है। प्रत्येक जन्मकुंडली में 12 खाने होते हैं , जो 12 भावों का प्रतिनिधित्व करते हैं। किसी ग्रह के किसी एक खाने में आने की संभावना 1/12 होगी , जबकि सूर्य और चंद्र को छोडकर बाकी ग्रहों के आधिपत्य में दो दो खाने होते हैं , इसलिए उनके स्वक्षेत्री होने की संभावना 1/6 होगी।
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पोस्टर कविताएंसुना रहे हैं बिगुल बजा कर राजकुमार सोनी जी। बच्चा चलाने दो देखना एक दिन सूरज हमारे हिस्से आएगा कितने ग्राम उजाला
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तेरी होंद ..मुहब्बत...और ...ज़ख़्मी सांसें......महसूस कीजिए Harkirat Haqeer पर हरकीरत ' हीर' के शब्दों से। मुहब्बत इक ऐसा खूबसूरत ख्याल है जिसे.... सिर्फ लफ़्ज़ों से भी महसूस किया जा सकता है ....मैंने वो तमाम लफ्ज़ जो कभी जुबाँकी दहलीज़ न लाँघ सके ....इन नज्मों में पिरो दिए हैं ....इसमें सांसें तो हैं पर रंगत नहीं ....नूर नहीं ....बस एहसास है ....क्या जीनेके लिए इतना काफी नहीं .......?
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बहुत सुंदर चर्चा .. आभार !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर और विस्तृत चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रही चिट्ठा-चर्चा!
जवाब देंहटाएं--
सभी कुछ तो समेट लिया आपने इसमें!
चर्चा उत्तम है ... रचना शामिल करने के लिए आभार ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही जबरदस्त चर्चा
जवाब देंहटाएंआपने मेरी पोस्ट को इस काबिल माना इसके लिए भी आपका धन्यवाद
आदरणीय मनोज भाई साहब!शुक्रिया,हमारी कविता को भी चर्चा मंच मे स्थान देने के लिये। सबसे अच्छा लगा प्रस्तुतीकरण का तरीका। अच्छे अच्छे लिंक मिले पढ़ने को।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज भाई साहब ! शुक्रिया,हमारी रचना को इस मँच पर न स्थान देने के लिये । सबसे अच्छा लगा सामान्यीकरण का तरीका । लाल, पीला, नीला, हरा.... बड़े अच्छे रँगे हुये लिंक ठोंकें हैं पढ़ने को ।
क्षमा करें, यह रह गया था ।
जवाब देंहटाएं:) :) :)
bahut achchha sankalan...badhai sweekarein
जवाब देंहटाएंसुन्दर और विस्तृत चर्चा ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा .
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा और सुन्दर चर्चा की है………………चर्चा की जाये तो ऐसे जैसे आप करते हैं।
जवाब देंहटाएंमनोज जी! आप त गुन ग्राही आदमी हैं... जेतना जतन से आप छाँट छाँट कर लाते हैं चिट्ठा सब, ऊ नमन करने जोग्य है. असली सेवा त आप कर रहे हैं!!
जवाब देंहटाएंआदतन, रविवार को यहाँ होता हूँ, सच पूछिए तो दिन की शुरुआत ही यहीं से होती है... एक साथ, एक जगह इतनी सारी रचनाएँ पाकर दिन बन जाता है... मनोज जी आपकी इस सेवा को प्रणाम!!
जवाब देंहटाएंchitthacharcha par kafi sare blogger ko padhne ka suawsar mila ! achha sanyojan hai ... kuch blogger naye hain aur kam padhe jaate hain unhe shamil karke aap achha karte hain... jaise mere bhav ... unki kavita achhi hai ! rajkumar soni ji ki kavita bhi bahut achhi hai.. bechain aatma to manje hue blogger hain aur unki har rachna shashakt hoti hai ! badhiya sanyojan ke liye hardik badhai
जवाब देंहटाएंमनोज जी आप काफ़ी खोजबीन करते रहते हैं,जो इतने सारे चमकीले नामों के बीच मेरे जैसे व्यक्ति की रचना तक पहुँच गए !
जवाब देंहटाएंस्नेह बनाए रखें। सदाशयता के लिए आभारी हूँ।
सार्थक चर्चा ... बहुत से नए चिट्ठों के लिंक मिले । धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंविस्तृत चर्चा के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंअरे डागदर साहब ई मरदूद लोग आपकी क्या चर्चा करेंगे? बस मोडरेशनवा लगा के बैठ जात हैं अऊर अपने अपने लोगन की चर्चा लिंक फ़साय देत हैं? फ़साये जावो..फ़साये जावो..हमहूं देख रही हैं.
जवाब देंहटाएंडागदर साहब अब इसमा स्माईली लगाय के बहुते अच्छा किया. ई नालायक अनूपवा पर हंसा ही जा सकत है. ई सुधरने वाला नही हिअ आप चाहे जित्ता कोशीश कर ल्यो.
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जवाब देंहटाएं@ अम्मा जी
महोदय / ज़नाब / मिस्टर / किन्नर वगैरहा वगैरह
मेरी अम्मा जी मेरी ज़ानिब बैठीं हैं, ब्लॉगर पर आप एक नयी अम्मा जी शाया हुई हैं.. आपका खैरम कदम ! लेकिन पिछले कुछ दिनों से आप मेरी गैर-वाज़िब लल्लो-चप्पो वा हिदायत करती दिखती हैं, चुनाँचे यहाँ आपके वक़ालत में मेरी रजामँदी का गुमान होता है ।
मालूम हो कि, मेरे इल्म में मेरे वालिद मरहूम ने कुल एक अदद निकाह कुबूल किया था । आप अपने को सौतेली होने का इस कदर दावा न करें । पेश्तर इसके कि मेरी मादरे-असल को आपकी पोशीदा शख़्सियत से तक़लीफ़ पहुँचें, मैं आपके वज़ूद ओ वकालत से अपनी नाकाफ़ियत का ऎलान करता हूँ ।
ज़नाब अनूप कुमार शुक्ला से अपनी ज़ाती रँज़िश का निपटान आप अपने घर से करें तो बेहतर, तबादला-ए-ख्यालात के इस नायाब फ़ोरम को हरिमोहन झा की ’ मिसिर की घिसिर पिसिर ’ न बनायें । उम्मीद है कि आपको पहचान न सही लेकिन एक मेल-बक्सा ( घर ) ज़रूर मयस्सर होगा !
मैं लाख़ निट्ठल्ला सही, लेकिन आपकी पैरवी का मुँतज़िर नहीं, और इस सुहानी सुबह को यह नाचीज़ अपने पूरे होशो-हवास में आपके वज़ूद वल्दियत ओ वसीयत से अपनी गैर ज़ानकारी इस मुकाम पर दर्ज़ कराता है, ताकि सनद रहे व वक्त-ए-ज़रूरत काम आवे ।
जवाब देंहटाएंनोट :
आपने अगर न पढ़ा हो तो मैथिल लेखक हरिमोहन झा की ’ मिसिर की घिसिर पिसिर ’ ज़रूर पढ़ें ।
आपको नयी रोशनी मिलेगी !