हिन्दी चिट्ठों में अब नए, नायाब और विशिष्ट प्रयास हो रहे हैं. बाल सजग इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है.
बाल सजग के बारे में चिट्ठे पर लिखा गया है -
“बाल सजग एक हकीकत भरा प्रयास... जिसके लिए हम सभी बच्चे कोशिश में लगे हैं...हमारे सपने... हमारी उमंगें हमको भी चाहिए एक जमीन जो हमारी हो...जिसके लिए किसी का मुहँ न देखना पड़े...हम भी लिखना चाहते हैं...सोचना चाहते हैं और घिसी-पिटी पढाई को छोड़ नया कुछ पढ़ना चाहते हैं...जो हमारे दोस्तों ने लिखा हो...जो हमने लिखा हो... बाल सजग एक ऐसा ही प्रयास है... हम सभी ईट-भठ्ठों पर काम करने वाले प्रवासी मजदूरों के बच्चे हैं... हमारे बचपन का अधिकतर समय ईट की पथाई में गुजरा है...दहकतियों भठियों में झुलसा है...भाठ्ठों की तपिश में न मालूम मासूम बचपना कहाँ खो गया...हमको नहीं मालूम की जांत- पात, उंच - नीच क्या होती ...हम जानना भी नहीं चाहते हैं ... हम जानना चाहते हैं कि शेर खीरा ककड़ी क्यों नहीं खाता... आसमान के तारों पर कौन रहता है...हम सब कुछ जानना चाहते हैं जो हमारे मन में आते हैं...तमाम ख्वाब आपके हैं... पर कुछ हमारे भी है...हम अपने खवाबों को आपके साथ जीना चाहते हैं.....”
बाल सजग में बच्चे फरवरी 2009 से लगातार अपनी रचनाएँ प्रकाशित कर रहे हैं. रचनाओं में वैसे तो बाल-कविताओं की भरमार है, मगर गाहे बगाहे लेख और कहानियाँ भी बच्चों ने लिखी हैं. पिछले वर्ष 169 रचनाएँ बच्चों ने लिखीं और इस वर्ष अब तक आंकड़ा 131 तक पहुँच चुका है.
बच्चों ने हर संभावित विषय पर अपनी लेखनी चलाई है. जून के महीने में गर्मी पर तो जुलाई की बरसात में बरसात पर. बच्चों ने चप्पल पर भी कविता लिखी है तो साबुन पर भी.
बरसात पर कक्षा 7 के सागर कुमार की कविता पोस्ट हुई है -
बरसात का मौसम
बरसात का मौसम बड़ा सुहाना ।
देता शीतल हवा और ठंडक ॥
बरसात का अब मौसम आया ।
बादल गरजा बरसा पानी ॥
खूब मजे से बच्चे नहाए ।
बरसात का मौसम बड़ा सुहाना ॥
देता शीतल हवा और ठंडक ।
पानी बरसा हरियाली फैली ॥
घर-घर में खुशहाली आयी ।
बरसात का मौसम बड़ा सुहाना ॥
कक्षा 6 के आदि केशव ने चप्पल पर ये कविता लिखी है -
प्यारी चप्पल
कितनी प्यारी चप्पल है
रबर की बनी होती है
कोई होती काली और कोई पीली
लेकिन सब होती एक जैसी
जो चप्पल नही पहनते
उनके पैर में लगते है कांटे
जो चप्पल जूते पहनते
उनके पैर में कभी नही लगते कांटे
कितनी प्यारी चप्पल है
वह रबर की बनी होती है
इधर आदित्य पांडे ने मजेदार हास्य कविता ‘नेताजी के मुँह में मच्छर’ लिखी है -
नेता जी के मुंह में मच्छर
आज सुनी मैंने गजब ख़बर।
नेता के मुंह में अटक गया मच्छर॥
नेता जी भागे खांसते - खांसते।
दौड़े पतली गली के रस्ते॥
पहुँच गए डाक्टर घसीटे के पास।
उसने सोचा दिन है मेरा खास॥
तभी नेता जी टप से तब बोले।
जल्दी से अपना मुंह खोले॥
मुंह के अन्दर मेरे मच्छर।
फंस गया है वो उसके अन्दर॥
पकड़ा डाक्टर ने चिमटे से मच्छर।
जोर लगाया उसने कसकर॥
निकल गया फ़िर गले से मच्छर।
फ़िर भी मच्छर रहा सिकंदर॥
डंक टूट गया गले के अन्दर।
नेता जी फ़िर बन गए बन्दर॥
खांस - खांस कर हुए बेहाल।
याद आया उनको ननिहाल॥
और, ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं बाल सजग में.
ब्लॉग पर बाजू पट्टी में पिकासा का स्लाइड शो गॅजेट भी लगा हुआ है जिसमें बच्चों के बनाए पेंटिंग के चित्र प्रदर्शित होते हैं. ऊपर का चित्र इसी एलबम का है.
तो, आइए, क्यों न आज छुट्टी का दिन बाल सजग पर, बच्चों के साथ बिताएँ?
वाह सुंदर प्रयास. प्रभु सफल करे.
जवाब देंहटाएंbahut badhiyaa
जवाब देंहटाएंदिल खुश कर दिया आपने.. बहुत ही सुन्दर प्रयास॥
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा....सुन्दर प्रयास
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रयास्।
जवाब देंहटाएंकल (19/7/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
baal mzduri pr aapki rchnaa saahsik kaary he saahsik isliyen ke is maamle mn srkaar ke bnaay gye qaanun paalna nhin hone se bemaani saabit hue hen fir bhi aapkaa yeh abhiyaan is deh men nyi kraanti kaa pryaas he is kaam men men bhi aapke sath hun jb chaaho pukaar lenaa . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा व सराहनीय प्रयास |
जवाब देंहटाएंबहुत ज़रूरी विषय पर केन्द्रित की हैआपने यह चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा....सुन्दर प्रयास
जवाब देंहटाएंयह चर्चा तो बहुत ही अच्छी है...
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