सोमवार, मई 07, 2007

चिट्ठा-चर्चा मार्गदर्शन 1


सम्माननीय चिट्ठालेखकों व चिट्ठापाठकों!

एक बार फिर यह बहस सामने है कि हम चिट्ठाचर्चा क्यों करते हैं? किस कीड़े ने हमें काटा है जो हम अनवरत् बिना काम चिट्ठा चर्चा करते हैं - वह भी मोनोटोनस एक ही रंग में, एक ही अंदाज़ में, एक ही घिसी-पिटी स्टाईल में?

क्यों हम अपने चिट्ठाचर्चा में वेराइटी, रंगीनियाँ नहीं लाते हैं? क्यों वही बोरियत भरी चर्चा करते हैं? क्यों हम अपने-अपनों की ही चर्चा करते हैं और दूसरों की छोड़ देते हैं?

जाहिर है, आज मेरी बारी थी चिट्ठा चर्चा के लिए. परंतु जब मैं चिट्ठाचर्चा करने बैठा तो मुझे भी लगा कि मैं क्यों वही घिसे पिटे अंदाज में कभी व्यंग्य भरी तो कभी व्यंज़ल भरी चिट्ठा चर्चा करता हूँ? क्यों मैं लोगों को एक ही अंदाज में घिसापिटा, मोनोटोनस चिट्ठाचर्चा परोसता हूँ? सोचा कि चलो आज कुछ क्रांति की जाए. कुछ नया चिट्ठाचर्चा परोसा जाए.

पर, फिर ये याद आया कि कल को क्या होगा? दूसरे चिट्ठाचर्चाकारों का क्या होगा? कल की राकेशी कविताओं युक्त चर्चा की एकरसता कैसे खत्म होगी? उसके बाद कुण्डलिनी नुमा समीरी बयार युक्त चिट्ठाचर्चा में दूसरी सुगंध कहां से कैसे आएगी? उनका भी तो खयाल रखना पड़ेगा.

तो, चलिए, आज चिट्ठा चर्चा छोड़कर चिट्ठाचर्चाकारों के लिए एक नियमावली बनाते हैं. मार्गदर्शन तैयार करते हैं ताकि पाठकों की बोरियत दूर हो, पाठक चिट्ठा-चर्चा पढ़ें, चिट्ठों से पहले चर्चा पढ़ें, और हो सके तो सिर्फ चर्चा ही पढ़ें.

नियमावली हेतु निम्न आरंभिक सुझाव प्रस्तुत है. सुझावों की यह नियमावली निरंतर अद्यतन की जाती रहेगी. बल्कि पल प्रतिपल अद्यतन की जाती रहेगी ताकि इन नियमों को पढ़कर भी किसी को कहीं से भी कोई बोरियत नहीं महसूस हो, और चिट्ठाचर्चा में हर बार नया , नायाब , ताजा, अजूबा और इन्हीं किस्मों की चर्चा पाठकों को पढ़ने को मिलें. आप पाठकों से भी निवेदन है कि नियमावलियों के लिए अपने-अपने उत्कृष्ट सुझाव दर्ज करावें. आपके उत्कृष्ट सुझावों के उपलक्ष्य में अगली दफा चर्चा में आपके चिट्ठे की विशेष सम्मान सहित चर्चा की जाएगी.

नियम: 1 - चिट्ठाचर्चाकार मंडली तत्काल प्रभाव से भंग की जाकर नए चिट्ठाचर्चाकारों को एप्वाइंट किया जाए. भारतीय क्रिकेट टीम के सीनियरों की तरह कुछ तथाकथित स्वयंभू सीनियर चिट्ठाकार चिट्ठाचर्चाकार बने बैठे हैं वे सिर्फ ब्रांड मैनेजरी करते हैं उन्हें घर बैठाया जाए. नए यंग चिट्ठाचर्चाकारों को लाया जाए. जो घिसेपिटे चिट्ठाचर्चा करते हैं उन्हें पनिश किया जाए और जो बढ़िया मजेदार लिखते हैं उन्हें पुरस्कारों से नवाजा जाए. चिट्ठाचर्चा में भी पूरी एकाउन्टेबिलिटी लाई जाए.

नियम: 2 - चिट्ठाचर्चाकारों को बढ़िया, अच्छा, पठनीय, अ-घिसीपिटी और अ-बोरियत वाली चर्चा लिखने के लिए उतनी ही बढ़िया और अच्छी कोचिंग की व्यवस्था की जाए. ताकि चर्चा बढ़िया, पठनीय और मजेदार रहे. प्रत्येक चिट्ठाचर्चाकार को इस हेतु कम से कम दो कोच उपलब्ध कराए जाएँ.

नियम: 3 - चिट्ठा चर्चा से जुड़े प्रत्येक कार्य के लिए कमेटियां बनाई जाएं. जैसे कि चिट्ठाचर्चा लिखी जाने के उपरांत कम से कम दस चिट्ठापाठकों की कमेटी से जांच कराई जाए कि चर्चा में किन अपनों का खयाल रखा गया है और किन बेगानों को चर्चा से दूर का रास्ता दिखाया गया है. चर्चा के न्यूट्रल पाए जाने की स्थिति में ही उसे चिट्ठाचर्चा में प्रकाशित किया जाए.

नियम: 4 - उपर्युक्त क्र. - 3 अनुसार एक अन्य दस चिट्ठापाठकों की कमेटी से जाँच कराई जाए कि चर्चा पठनीय है या नहीं. उसमें बोरियत का कितना अंश है. वह कितना घिसा पिटा है. एकरसता कितनी है. हर चर्चा को शून्य से दस स्केल में कम से कम आठ दशमलव नौ अंक तो प्राप्त करना ही होगा तभी वह चिट्ठा चर्चा में प्रकाशित हो पाए.

नियम: 5 - उपर्युक्त क्र. -3 के अनुसार, एक अन्य दस चिट्ठाचर्चाकारों की कमेटी द्वारा उस दिन के समस्त प्रकाशित चिट्ठों में से चर्चा हेतु चिट्ठों का चयन किया जाए. ताकि इस बात की कोई गुंजाइश न रहे कि अपने-अपनों के चिट्ठों की चर्चा की जाती है. यह कमेटी प्रत्येक महीने साठ प्रतिशत नए सदस्यों से बदली जाए.

नियम: 6 - प्रतिदिन कम से कम चार चिट्ठाचर्चा तैयार किए जाएं और फिर उपर्युक्त क्र. - 3 के अनुसार बनी दस चिट्ठाकारों की कमेटी पढ़कर यह तय करेगी कि उनमें से भी कौन सा सबसे ज्यादा पठनीय, नया, नायाब, मजेदार है. फिर वह चिट्ठाचर्चा प्रकाशित किया जाए.

नियम: 7 - चिट्ठाचर्चाकार टाइप्ड कतई न हो. याने कि वह एक ही तरीके से चर्चा न करे. एक बार अगर वह कवितामयी चिट्ठाचर्चा करता है तो दुबारा उसे ऐसा करने से बैन कर दिया जाए. अगर संभव हो तो चिट्ठाचर्चा में ही एक बार जिस तरीके से चर्चा की जा चुकी है तो वह तरीका ही बैन कर दिया जाए. नए-नए नायाब तरीकों से चर्चा करने के लिए नए तरीके खोजने के लिए उपर्युक्त क्र - 3 के अनुसार एक अन्य दस सदस्यीय कमेटी का गठन तत्काल प्रभाव से किया जाए.

नियमावली का तैयार करने का कार्य प्रगति पर है. आप सभी चिट्ठाचर्चापाठकों से गुजारिश है कि चिट्ठाचर्चा को बेहतरीन बनाने में इन नियमों को परिमार्जित करने व परिष्कृत करने हेतु अपने अमूल्य सुझाव अवश्य दें.

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12 टिप्‍पणियां:

  1. अब मुझे देखिये, मध्यान्ह चर्चा नहीं करता... वही कोफी कप वही धृतराष्ट्र . काहे बोर करें भाई.

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  2. हा हा हा हा हा... रविजी मस्त मारी है.
    :)

    आपने "बोरियत" और "घिसीपीटी" शब्दों का इतनी अधिक बार इस्तेमाल किया है कि मुझे ग्लानि सी होने लगी है.

    क्योंकि मैने एक सज्जन की पोस्ट पर इसी तरह की टिप्पणी की थी कि मुझे "चिट्ठाचर्चा घिसीपीटी लगती है और बोरियत होती है".


    खैर मैने तो मन की बात कही थी. :) आज भी अपने शब्दों पर कायम हुँ.

    लेकिन, एक बात स्पष्ट है, चिट्ठाचर्चा करना कोई आसान काम नहीं है. जितने भी चर्चाकार सदस्य हैं, वे जितनी मेहनत करते हैं, वह तारीफ के काबिल है. मैने भी गुजराती चिट्ठों की 5-6 बार चर्चा की है, लेकिन फिर छोड दी.

    चिट्ठाचर्चा होनी चाहिए, मेरे जैसे तीन चार लोगों के कुछ भी सोचने से और कहने से और पढने ना पढने से कोई फर्क नहीं पडता. :)

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  3. कह तो आप सही रहे हैं रवि जी, लेकिन मुझे लगता है कि चिट्ठाचर्चा करना इतना आसान काम नहीं है जितना कि अधिकतर लोग सोचते होंगे, आसान काम नहीं है कि दिन भर के चिट्ठों को पढ़ना फ़िर उन सबकी ऐसी चर्चा करना कि उनका उल्लेख भी जरुरी है।

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  4. भाई मै तो यू कहू अक इस्की जरुअत कोनी पर फ़ेर बि तम्णै लिक्ख्ण वास्ते ठाण रक्खि सै तो फ़ेर इस्णै चौथे पाच्वे पेज पै छापा करो इस्णै देक्खण वास्ते जो जागा दस/बारा ओरण नै बी पढ कै आगा अर जिस्का जिकर करे करो वाणै मेल करदी थम तो वैसैई घणे समझदार दिखो हो मन्णै होर के बताउ
    अच्छा ताउ राम राम सै अर ताई तै बी म्हारि राम राम कह दीजो

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  5. लोगों को बोलने दो जी। आज भी जब ऑनलाइन होता हूँ तो चिट्ठाचर्चा को रोज देखना नहीं भूलता।

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  6. इस चर्चा के लिखने के बाद आप महान टिप्प्णीकार और भूतपूर्व चिट्ठाकार और भू.पू.चिट्ठाचर्चाकार श्री श्री सागर की पिछले पाँच दिनों के बाद एक महान टिप्प्णी के हकदार हो गये।
    इतनी लम्बी भूमिका के बाद यही कहूंगा कि -
    कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना....

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  7. ढूँढ़ रहे है आप कमेटी में दस दस लोगों का साथ
    और देखिये यहाँ टिप्पणी दस न लगीं आपके हाथ
    जिन चिट्ठों में सार नहीं है उनकी चर्चा करना क्या ?
    जो होते पठनीय सदा ही हम करते हैं उनकी बात

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  8. मैं भी सहमत हूं कि चिट्ठा चर्चा हो और रोज हो . मै खुद कई चिट्ठे , चिट्ठा-चर्चा के बाद ही पढ़ता हूँ . लेकिन सचमुच चिट्ठाचर्चा कोई आसान काम नहीं है . मैं सप्ताहांत में (जब घर पर अमूमन खाली ही रहता हूं) तब कोई दो आधी-अधूरी चर्चा करता हूँ और पूरा का पूरा दिन बीत जाता है.

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  9. नियमावली निरंतर अद्यतन की जाएगी वो तो ठीक है पर पहले एक दस चिट्ठापाठकों की समिति बनाकर जांच कराई जाए कि इस नियमावली को कैसे आपने अपनी मर्जी से बना डाला....अपने हिंत के नियम रखे और बाकी छोड़ दिए। :)

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  10. एक तो इतना कठिन काम, ऊपर से ये नियम :)

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  11. अब हम क्या कहें.हम तो नियम १ के तहत ही बाहर हो गये. फिर आगे पढ़ने की हिम्मत ही नहीं हुई. :०

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  12. mai chitta charcha ke saath apne blog ko jodna chati hu....
    muje es ke liye kya karna hoga...
    Mera blog....
    www.jeduniya.blogspot.com
    www.mereaaspaas.blogspot.com
    kya je charcha mai shaamil ho sakta hai

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