मंगलवार, मई 22, 2007

टोरंटॊ में मिले महारथी

शुरू कहाँ से करूँ आज की चिट्ठा चर्चा सोच रहा हूँ
खबर छपी है महारथी दो, मिले चाय की प्याली पर
एक आस की डोरी लेकर कहीं छटपटाहट होती है
एक कहानी लिखने की कोशिश अब भी है जारी पर

हिन्दी के प्रेमी का परिचय ? हुआ शहर में कवि सम्मेलन
गीता गांधी, गप की बातें, और देश का पूरा चित्रण
जीने का विश्वास जगाती पुन: घुघूती बासूतीजी
पांडेयजी का चिट्ठे के बारे में होता आत्म विलोड़न

हैं जुगाड़ की लिन्क यहाँ पर, यहाँ चौदवीं रात
किसे गली में रहे पुकारी दर्द भरी आवाज़ ?
जोगलिखी भाषा की गुत्थी सुलझाने की कोशिश
और कराची ने देखा है किस कवि का अंदाज़

प्रगतिशील मित्रों की अद्भुत होती हैं निनाद गाथायें
देशप्रेम का नारा देते गीत सुनहरे आ चिट्ठे पर
आज हुआ आरंभ मगर कविता तीनों रह गईं अधूरी
पीनी चाय अगर तो जायें अब गोरखपुर की सड़कों पर

चलते चलते देखा दिन भी फ़िरे गधे के आखिर
उड़नतश्तरी पर सवार हो दौड़े घोड़ा बन कर
सहन नहीं कुछ होता अब तो ये अनामजी कहते
प्रियदर्शी की रचना लाये रचनाकार पकड़कर

मुक्त विचारों का संगम, फिर भी उन्मुक्त कहाता
देखें अरुण अरोड़ा नस्ती में डूबा क्या गाता
तरकश का मंतव्य पढ़ें या पौराणिक गाथायें
और देखिये झाड़ू सब पर आकर कौन लगाता

यों तो चिट्ठे ढेर यहाँ हैं, किस किस की हो चर्चा
राजनीति के, खबरों वाले, कोई कुछ न कहता
धन्यवाद का एक चित्र है, आप यहां पर देखें
इससे ज्यादा चर्चा आगे आज नहीं कर सकता

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4 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. भाई राकेश जी

    काफी हिस्सा हमसे उड़ गया....क्षमा करियेगा. कल कवर करने की कोशिश कर लूंगा. :)

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  3. बहुत बढ़िया !
    घुघूती बासूती

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  4. काफ़ी अच्छी तुकबन्दी है। वैसे ये अन्दाज़ लोगों को पसन्द आयेगा।

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