सोमवार, मई 28, 2007

मैं जलकुकड़ी


दोस्तों, इन संकलित चिट्ठों की ख़ासियत ये है कि इनमें से अधिकतर नारद से जुड़े नहीं हैं, हिन्दी में नए नवेले हैं और प्रायः दूसरी भाषाओं - मसलन अंग्रेज़ी से हिन्दी लेखन की ओर नए-नए आकर्षित हुए हैं. आपसे गुज़ारिश है कि इनकी हौसला आफ़जाई अपनी धुआंधार टिप्पणियों के माध्यम से करें. हां, हो सकता है इनमें से कुछ की हिन्दी शोचनीय या शौचनीय जैसा कुछ हो (लिखते पढ़ते वे शीघ्र सीख जाएंगे - यकीन मानिए, कोई भी व्यक्ति शौकिया रूप से गलत भाषा में नहीं लिखता) परंतु आइए, उनके प्रयासों की सराहना करें.


ये नए नवेले हिन्दी चिट्ठे मुझे कहाँ से मिले? मेरे टंबलर से! ये टंबलर क्या है ? जल्दी ही आपको बताता हूँ!, तब तक आप मेरा टंबलर देखें.

शब्द सागरना किनारे...

भाषाई दीवार ढहती हुई -

उन के देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक़
वह समझ्‌ते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

તે મારી સામે જુવે છે અને મારા ચહેરા પર ચમક આવી જાય છે, અને તેઓ સમજે છે કે આ બિમારની હાલત હવે સારી છે.

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द इनरमोस्ट फ़ीलिंग...

एक गांव में एक स्त्री थी । उसके पती आई टी आई मे कार्यरत थे । वह आपने पती को पत्र लिखना चाहती थी पर अल्पशिक्षित होने के कारण उसे यह पता नहीं था कि पूर्णविराम कहां लगेगा । इसीलिये उसका जहां मन करता था वहीं पुर्णविराम लगा देती थी ।उसने चिट्टी इस प्रकार लिखी--------

प्यारे जीवनसाथी मेरा प्रणाम आपके चरणो मे । आप ने अभी तक चिट्टी नहीं लिखी मेरी सहेली कॊ । नोकरी मिल गयी है हमारी गाय को । बछडा दिया है दादाजी ने । शराब की लत लगा ली है मैने । तुमको बहुत खत लिखे पर तुम नहीं आये कुत्ते के बच्चे ।.... आगे यहाँ पढ़ें


लस्ट फ़ॉर लाइफ़

होती है मुझे ईर्ष्या !!

उन हवाओं से,

जो तुम्हारे बाल सहलाती हैं,

उन खुशबुओं से,

जो तुम्हारे करीब आती हैं ।

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सृजन

आज फ़िर...

आज फ़िर हमने एक सपना देखा,

हो जायेगा पूरा, वो अरमान है सोचा ।

खुश हो जाये दिल का हर एक कोना,

फ़िर आरजू की कलियो को खिलता देखा ॥

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मैं जलकुकड़ी (जेलसमी)

हेल्लो!! क्या चल रहा है?? सब मस्त?

मेरा नाम आरुशी है!!

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चदुवरि

अब हिंदी मे भी लिख सकते है। लेकिन ए सुविधा तेलुगु भाषा केलिये कब आयेगी?

जल्दी ही आएगी, तब तक आप भोमियो का इस्तेमाल कर सकते हैं!

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अग्नि की खोज

आप पूछोगे कि यह आदमीयों कि ज़मात मे गधा कहा से आ गया?

इसका जवाब अपने रामलाल जी शरमाते-लजाते-मुस्कराते हुए देते हैं। कहते है " अजी गधा भी तो आख़िर आदमी होता है।" तो हाज़रीन रामलाल जी का गधा कोई मामूली गधा नही-वो तो शेर है अपने दरवाज़े का, अब चुंकि राम्लाल्जी के लिए बकौल शायर आस्मान छत और धरती ठिकाना है, गधे को दरवाज़े कम ही मिलते हैं और बेचारा अपनी मनमोहन जी जैसे शेर होके भी गधे वालो काम चलाऊ सर्कार कि जिन्दगी जीं रहा है।

लेकिन इन सारी बातों का शायरी से क्या वास्ता? तो जनाब शायरी से मेरा ही कौन सा बहुत वास्ता है, मैं तो बस सुहाने मौसम और भीगी भीगी शाम के लपेटे मे आ कर भावुक हो उठा था, जैसे जंगल का मोर हो उठता है।....

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ऑक्शन

अपको एबय से कैसे पैसा कमाना है ये सीकना है?

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स्प्लैटक्रैश

फिर आज मुझे तुमको

...बस इतना बताना है,

हंसना ही जीवन है, हंसते ही जाना है।

यह शब्द सुनके मेरको पहले सुख मिलता था, मैं सोचती थी की सब कुछ ठिक हो जायगा, पर अब लगता है, की जिंदगी में केवल दुख है, और खुशियाँ सब एक सपना।

हसीं का कुछ मतलब था, और हसीं मजाक में समय निकल जाता था, बिना सोचे ना समझे, पर अब यह तो चलता ही नहीं, ना तो मन माने ना तो जी समझे। सब दोस्तों के साथ ऐसा क्यों होता है। समझ में ही नहीं आता की हम क्या कर सकते है, सच समझे तो कुछ नहीं हो सकता है, बस इंतजार। पर कब तक इंतजार करे, जबतक, सब दोस्त अपने अपने घम में गुम ही जाये? क्या यह ही जीवन है, बस इतनी ही कोशिश?...

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हाल-ए-दिल

धड़कन है साँसे हैं ,

पर वो जिन्दगी नहीं

मेरा चांद आज मेरे साथ है,

पर वो चांदनी नहीं

मुद्दत से चाहा है उनको,

कभी छीना भी नहीं

नशे में गम को भुला दे,

ऐसा वफाई सीना भी नहीं...

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इनफ़ोविनिटी

एक बार हमें शादी करने का ख्याल आया।

हमने तुरन्त जाकर पिता जी को बताया।

पिता जी ने अगले दिन ही;,

बिना दहेज के शादी के लिए

अखबार में इश्तिहार छपवाया।

महीने भर तक घर पर कोई नहीं आया।

तब पिता जी ने अपनी समस्या

एक प्रार्पटी डीलर को बताई।

उसने तुरन्त एक तरकीब सुझाई।

बोला

झुमरी तलैया में दूल्हों की सेल लगी है।

वहां लड़कियों की बहुत लम्बी लाईन लगी है।

आप तुरन्त वहां चले जाइए।

जैैसी चाहें वैसी वधू पाइए।

पिता जी बोले

पर मुझे दहेज नहीं लेना।

वो बोला लड़की तुम रख लेना।

दहेज मुझे दे देना।....


यहाँ पर यह पोस्ट भी अवश्य पढ़ें -


जीवन पुष्प

हे मेरे गुरुदेव करुणा-सिंधु .. - भजन

हे मेरे गुरुदेव करुणा-सिंधु करुणा किजीये,

हुं अधम आधीन अशरण, अब शरणमें लिजीये...

खा रहा गोते हुं मैं भव-सिंधु के मझधारमें,

दुसरा है आसरा कोई ना ईस संसारमें,

हे मेरे गुरुदेव करुणा-सिंधु करुणा किजीये...

मुझमें नहि जप-तप व साधन, और नहि कुछ ग्यान है,

निर्लज्जता है एक बाकी, और बस अभिमान है,

हे मेरे गुरुदेव करुणा-सिंधु करुणा किजीये...

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काव्य संग्रह

आराम ज़िन्दगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है।

आराम सुधा की एक बूंद, तन का दुबलापन खोती है।

आराम शब्द में 'राम' छिपा जो भव-बंधन को खोता है।

आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है।

इसलिए तुम्हें समझाता हूँ, मेरे अनुभव से काम करो।

ये जीवन, यौवन क्षणभंगुर, आराम करो, आराम करो।

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ऑरबिट मैक्स

आना है तो आ, राह में कुछ फेर नही है

भगवान के घर देर है, अन्धेर नही है।

जब तुझसे न सुलझे तेरे उलझे हुए धन्दे

भगवान के इन्साफ़ पे सब छोड़ दे बन्दे।

खु़द ही तेरी मुशकिल को वो आसान करेगा

जो तू नहीं कर पाया वो भगवान करेगा।

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तथा यह भी -

उत्सव का मतलब है:

पूस कि रात
चार दोस्त
एक बरसात
चार कप चाय

(या)

१०० रु का पेट्रोल
एक खटारा मोटरगाड़ि
एक खाली सड़क

(या)

म्यागि नूड़ल्स
हास्टल का कमरा
सुबह कि ४:२५

(या)

तीन पुराने साथि
तीन अलग शेहेर
तीन काफ़ी के प्याले
एक इन्टर्नेट मेसेन्जर

(या)

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हैप्पीनेस

....इसीलिये मेरी मां ने मुझे

अशिक्षा की, भाग्यशीलता की

धर्मान्धता की और जांत- पांत की

अफीम चटा दी है...

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बस यूँ ही

हीय में उपजी,

पलकों में पली,

नक्षत्र सी आँखों केअम्बर में सजी,

पल‍ ‍दो पलपलक दोलों में झूल,

कपोलों में गई जो ढुलक,

मूक, परिचयहीनवेदना नादान,

किससे माँगे अपनी पहचान।

नभ से बिछुड़ी,

धरा पर आ गिरी,

अनजान डगर परजो निकली,

पल दो पलपुष्प दल पर सजी,

अनिल के चल पंखों के साथरज में जा मिली,

निस्तेज, प्राणहीनओस की बूँद नादान,

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आज फिर


आज फिर याद कर तुम्हें
रोने का मन करता है
पर इसपर भी मेरा अधिकार नहीं
तुमने क़सम जो दी है मुझको

आज फिर याद कर तुम्हें
वो पेड़ की छाँव याद आती है
तुम्हारी गोद में सिर रख कर
सोने का फिर मन करता है

आज फिर याद कर तुम्हें
चूड़ी की खनक सुनाई देती है
वो कंगन और बाली की आधी झलक
मन हर कोने में खोजता है...

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ओबेदुल्ला अलीम की ग़ज़लें

अजीज़ इतना ही रखो कि जी संभल जाये
अब इस क़दर भी ना चाहो कि दम निकल जाये

मोहब्बतों में अजब है दिलों का धड़का सा
कि जाने कौन कहाँ रास्ता बदल जाये

मिले हैं यूं तो बोहत, आओ अब मिलें यूं भी
कि रूह गरमी-ए-इन्फास* से पिघल जाये

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मिस्टर इंडिया के बीस साल

२० साल पहले शेखर कपूर कि groundbreaking फिल्म "मिस्टर इंडिया" release हुई थी। उस समय शायद मेरी toilet training चल रही थी। इस पिक्चर को मैंने early nineties में अपने VCR पर देखा था। फिल्म इतनी पसंद थी कि इसका cassette भी खरीद लिया था। उस समय कंप्यूटर तो था नही और video game तब खरीदा नही था।केबल काफी नया था। VCR पे picture ही देखी जा सकती थी। आज कल तो दिन भर net पे बैठा रहता हूँ । Torrents से दुनिया भर कि picture और TV shows download कर के देखता हूँ. by chance, आज एक video Youtube पर मिला :

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यहीँ पर एक पोस्ट में लिखा है -

नारद वाले काफी दादागिरी करते हैं। मोगाम्बो जैसे आदमी को रजिस्टर करने के लिए तीन पोस्ट क्यों लिखना ज़रूरी है। बड़ा तोडु introduction लिखा था। सोचा था एक बार aggregate हो जाये, लिस्ट पे नाम आजाये तो पोस्ट करूंगा। अब तो उसे जल्दी ही लगना पड़ेगा।

तो, बंधु अगर आप ऐसी खिचड़ी लिपि में लिखेंगे तो नारद का प्रसाद आपको क्योंकर मिलेगा? अंग्रेज़ी के शब्द खूब लिखें, पर लिखें देवनागरी लिपि में. नारद हो या कोई भी संस्था - उसके अपने कुछ उसूल नियम कायदे कानून तो होंगे कि बस मोगेम्बो की अक्खा, उलटी, बेनियम-बेकायदा दुनिया ही चलेगी?

और, अंत में स्थानीयकृत (लोकलाइज्ड) गुजराती ग़ीक - कार्तिक मिस्त्री का ब्लॉग - यहाँ ब्लॉग पर कुछ पढ़ने ढूंढने के लिए आपको कमांड लाइन के जरिए बैश कमांड देने पड़ सकते हैं! लिनक्स कमांड सीखने का बेहतरीन आइडिया. कमांड लाइन पर help कमांड देकर देखें!

(चित्र - मैं जलकुकड़ी से!)

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5 टिप्‍पणियां:

  1. मस्‍त मेहनत की है.. दमदार कम्‍पाइलेशन है!.. धन्‍यवाद!

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  2. बढ़िया संकलन किया आपने रवि जी,
    धन्यवाद।
    'उत्सव का मतलब' कहीं और भी पढा़ लगता है।

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  3. सही है!
    आजकल आप हट के ही चर्चा कर रहें है, शुक्रिया!

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  4. सही है. आप चर्चा करें और कुछ नया सा न हो, यह तो हो ही नहीं सकता.

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