(मालवी जाजम के चिट्ठाकार - श्री नरहरि पटेल)
भाई ई-स्वामी ने कोई दो साल पहले ख्वाहिश जाहिर की थी कि कोई मालवी चिट्ठा शुरू करवाई जाए...
इधर कुछ समय से इक्का दुक्का मालवी चिट्ठे शुरु हुए हैं. देर से ही सही, उनकी ख्वाहिश अब पूरी हो गई.
आज चर्चा करते हैं मालवी जाजम की.
मालवी जाजम का पहला चिट्ठा 10 जून को प्रकाशित हुआ और आज 17 जून के आते तक उसमें 7 चिट्ठे मालवी में प्रकाशित हो चुके हैं. यदि रफ़्तार यही रही, जिसके लिए हमारी शुभकामनाएँ हैं , तो यह चिट्ठा मालवी भाषा-बोली की उपस्थिति इंटरनेट पर दर्ज कराने में मील का पत्थर साबित होगा.
प्रस्तुत हैं मालवी जाजम के कुछ चुनिंदा पोस्ट -
मालवी ग़ज़ल
कसी लुगायां हे...
सीधी सादी,कसी लुगायां हे
भोली भाली,कसी लुगायां हे
जनम की मां,करम की अन्नपूर्णा
भूखी तरसी, कसी लुगायां हे
पन्ना,तारा,जसोदा मां, कुन्ती
माय माड़ी, सकी लुगायां हे
कुंआरी बिलखे हे,परणी कलपे
घर से भागी,कसी लुगायां हे
गूंगी-गेली,वखत की मारी हे
खूंटे बांधी, कसी लुगायां हे
फ़ांसी-फ़न्दो,तेल ने तंदूर
लाय लागी,कसी लुगायां हे
टीप:
लुगायां:औरतें
माड़ी:मां
परणी:ब्याहता
लाय: आग
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भाटो फ़ेकीं ने माथो मांड्यो..
मालवी का यशस्वी हास्य कवि श्री टीकमचंदजी भावसार बा अपणीं रंगत का बेजोड़ कवि था.घर -आंगण का केवाड़ा वणाकी कविता में दूध में सकर जेसा घुली जाता था.मालवी जाजम में या बा की पेली चिट्ठी हे....खूब दांत काड़ो आप सब.आगे बा की नरी(अनेक) रचना याद करांगा.कविता को सीर्सक हे..
भाटो फ़ेकी ने माथो मांड्यो...
लकड़ी का पिंजरा में चिड़ियां बिठई
चोराय पे जोतिसी ने दुकान लगई
भीड़ भाड़ देखी ने एक डोकरी रूकी
लिफ़ाफ़ो उठायो तो चिट्ठी दिखी
साठ बरस की डोकरी ने बिगर भणीं
बंचावे भी कीसे भीड़ भी घणीं
अतरा में एक छोरो बोल्यो ला मां... हूं वांची दूंगा
जेसो लिख्यो वेगा वेसो कूंगा
लिख्यो थो...
प्रश्न पूछ्ने वाले तुम्हारी अल्हड़ता और सुंदरता पे
आदमी मगन हो जाएगा
और आते महीने तुम्हारा लगन हो जाएगा.
***-***
इस चिट्ठे को कल ही देखा था, समझ भाषा समझ में नहीं आयी थी. देसी चिट्ठे आ रहे है यही प्रसन्नता की बात है.
जवाब देंहटाएंसही है। अब इस भाषा में स्वामीजी की पोस्ट का इंतजार है!
जवाब देंहटाएंअरे वाह यह तो हमारे राजस्थान में बोले जाने वाली मेवाड़ी से बिल्कुल मिलती है, मुझे इसे समझने में बिल्कुल तकलीफ नहीं हुई।
जवाब देंहटाएंमैने एक दो बार उज्जैन के कवि ओम व्यास मालवी में बोलते सुना तब मैने समझा की वे शायद मेवाड़ी होंगे। अब पता चला कि मेवाड़ी- मालवी इतनी मिलती हैं।
मैं हूँ अरविंद कुमार--समांतर कोश और अभी प्रकाशित दे पेंगुइन इंग्लिश-हिंदी हिंदी-इंग्लिश थिसारस ऐंड डिक्थनरी का रचेता. मैं केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा की हिंदी लोक शब्दकोश परियोजना का अवैतनिक प्रधान संपादक भी हूँ. इस योजना के अंतर्गत हिंदी परिवार की भाषाओं के जो 48 कोश बन रहे हैं, उन में हम अब मालवी को लेना चाहते हैं, मुझे हर मालवी बुद्धिजीवी से सहायता चाहिए. कृपचा मुझ से संपर्क करें--
जवाब देंहटाएंsamantarkosh@gmail.com
कृपया यह भी बताएँ कि हम किन लोगों से कैसे सहायता मिल सकती है. हो सके तो उन के नाम पते भी भेजें--
अरविंद कुमार
मैं हूँ अरविंद कुमार--समांतर कोश और अभी प्रकाशित दे पेंगुइन इंग्लिश-हिंदी हिंदी-इंग्लिश थिसारस ऐंड डिक्थनरी का रचेता. मैं केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा की हिंदी लोक शब्दकोश परियोजना का अवैतनिक प्रधान संपादक भी हूँ. इस योजना के अंतर्गत हिंदी परिवार की भाषाओं के जो 48 कोश बन रहे हैं, उन में हम अब मालवी को लेना चाहते हैं, मुझे हर मालवी बुद्धिजीवी से सहायता चाहिए. कृपचा मुझ से संपर्क करें--
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कृपया यह भी बताएँ कि हम किन लोगों से कैसे सहायता मिल सकती है. हो सके तो उन के नाम पते भी भेजें--
अरविंद कुमार